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डरना मना है पेरेंटिंग टिप्स

बच्चे बड़ों से ही सीखते हैं। अगर आपको भी छोटी-छोटी बातों से डर लगता है तो उसके सामने ज़ाहिर न करें। अगर वह आपकी बात नहीं मानता तो डराने के बजाय उसे तार्किक ढंग से समझाएं।

By Edited By: Published: Thu, 23 Mar 2017 02:38 PM (IST)Updated: Thu, 23 Mar 2017 02:38 PM (IST)
डरना मना है पेरेंटिंग टिप्स

दोस्तों से डरावनी कहानियां सुनने के बाद अगर वह आपसे सवाल पूछे तो उसे समझाएं कि ऐसा कुछ भी नहीं होता। उसे मनपसंद ढंग से खेलने की पूरी आजादी दें। इससे उसका मनोबल बढेगा और डर भी अपने आप दूर हो जाएगा।

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मेरी 8 वर्षीय बेटी बेहद डरपोक स्वभाव की है। उसे अंधेरे से बहुत डर लगता है। अगर मैं उसे उसके बेडरूम में सुलाती हूं तो वह थोडी ही देर बाद वापस हमारे पास चली आती है। उसकी यह आदत कैसे सुधरेगी? रुचिका सिंह, चंडीगढ

इस उम्र के बच्चों में डर की कई वजहें होती हैं। मसलन घर पर अकसर अकेले रहने वाले बच्चों में अत्यधिक एंग्जायटी होती है, जिससे वे खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं और इसी वजह से उनके मन में डर की भावना पैदा होती है। टीवी पर हॉरर शो देखने वाले बच्चों को भी अंधेरे से डर लगता है। इसके अलावा भूत-प्रेत, एलियन या राक्षसों की कहानियां सुनने वाले बच्चे भी ऐसी ही काल्पनिक दुनिया में जीते हैं और कहानियों में सुनी गई बातों को वे बिलकुल सच मानने लगते हैं। जिन बच्चों के माता-पिता उन्हें ओवर प्रोटेक्टिव माहौल में रखते हैं, वे अपने पेरेंट्स से पल भर के लिए भी अलग होने को तैयार नहीं होते। ऐसे में जब माता-पिता बच्चे को थोडी देर के लिए भी दूसरे कमरे में जाने को कहते हैं तो उन्हें सेपरेशन एंग्जायटी होने लगती है, जिससे बचने के लिए वे डर का सहारा लेते हैं।

उन्हें यह मालूम होता है कि अगर मैं डर की बात करूंगा तो मम्मी मुझे अपने पास बुला लेंगी। कुछ बच्चे जन्मजात रूप से ही शर्मीले और इंट्रोवर्ट होते हैं। उनमें आत्मविश्वास की कमी होती है और वे किसी मामूली सी बात पर डर जाते हैं। इस समस्या की एक खास वजह यह भी है कि जैसे ही बच्चा पेरेंट्स के निर्देशों को समझना शुरू करता है, वे उससे अपनी बात मनवाने के लिए झूठ का सहारा लेने लगते हैं। मसलन, बाहर वॉचमैन घूम रहा है, जल्दी सो जाओ, नहीं तो वह तुम्हें अपने साथ ले जाएगा, जल्दी दूध पी लो वरना उस अंधेरे कमरे से अभी भूत आ जाएगा...बच्चों से अपनी हर बात मनवाने के लिए कुछ ऐसे ही डरावने जुमलों का इस्तेमाल अक्सर मम्मियां करती हैं। लगातार ऐसी बातें सुनकर बच्चों के मन में स्थायी रूप से डर बैठ जाता है, जिसे दूर करने में पेरेंट्स को बहुत परेशानी होती है।

कई बार लोग यूं ही मजाक में बच्चों को डरा देते हैं, जिसे वे सच मान लेते हैं। इतना ही नहीं, मनोवैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध से यह तथ्य भी सामने आया है कि प्रेग्नेंसी के दौरान अगर कोई स्त्री ज्य़ादा तनावग्रस्त रहती है तो जन्म के बाद बच्चे में भी फोबिया के लक्षण नजर आ सकते हैं। जहां तक आपकी बेटी का सवाल है तो उसका डर एंग्जायटी से जुडा है, जिसे दूर करने के लिए सबसे पहले आपको भी अपनी कुछ आदतों में बदलाव लाना होगा। इस मामले में जल्बाजी न दिखाएं। कुछ पेरेंट्स बच्चों की ऐसी समस्याओं को लेकर खुद तनावग्रस्त हो जाते हैं। ऐसा कभी न करें। अगर कभी उसे डर लगे तो आप उसके सामने चिंता जाहिर न करें। उसे प्यार से समझाएं कि डरने की कोई बात नहीं है। अगर वह आपको अपने डर के बारे में बताना चाहती है तो पहले उसे अपनी बात कहने का पूरा मौका दें। फिर वह जिस स्थिति या वस्तु से डरती है, आप उसे तार्किक ढंग से समझाएं कि ऐसा कुछ नहीं होता, यह सब मन का वहम है।

अगर पहले कभी आपने उसे किसी बात से डराया है तो अब वक्त आ गया है कि नि:संकोच उसे सच्चाई बता दें...कि छोटे बच्चों को डराने के लिए कई बार हमें झूठ का सहारा लेना पडता है और मैंने भी वही किया लेकिन अब तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं है। अगर उसे अंधेरे कमरे से डर लगता है तो शुरुआत में उससे कहें कि धीरे-धीरे तुम उस कमरे की ओर जाओ, मैं भी तुम्हारे साथ हूं। इसी तरह कुछ दिनों तक उसे सुलाते वक्त आप भी उसके साथ लेटें और उसके बेडरूम का नाइट लैंप जलता छोड दें। सोने से पहले ही उसे समझा दें कि जब तुम्हें नींद आ जाएगी तो मैं अपने कमरे में चली जाऊंगी। अगर तुम्हें डर लगे तो हमारा दरवाजा खुला रहेगा, तुम जब भी चाहो मेरे पास आ सकती हो। आपके प्यार भरे आश्वासन से उसका आत्मविश्वास बढेगा। जब उसे इस बात पर यकीन होगा कि मम्मी हमेशा मेरे साथ हैं तो धीरे-धीरे उसका डरना भी बंद हो जाएगा।


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