कविताएं
बचपन से ही योग, ध्यान व दर्शन में रुचि रखने वाले अमित कल्ला ने देश भर में भ्रमण कर योगियों के सान्निध्य में काफी समय बिताया है। राष्ट्रीय संग्रहालय संस्थान दिल्ली से कला के इतिहास का अध्ययन किया। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से आर्ट एंड एस्थेटिक्स में स्नातकोत्तर, देश-विदेश में
बचपन से ही योग, ध्यान व दर्शन में रुचि रखने वाले अमित कल्ला ने देश भर में भ्रमण कर योगियों के सान्निध्य में काफी समय बिताया है। राष्ट्रीय संग्रहालय संस्थान दिल्ली से कला के इतिहास का अध्ययन किया। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से आर्ट एंड एस्थेटिक्स में स्नातकोत्तर, देश-विदेश में चित्रों की प्रदर्शनियां आयोजित। कविताओं की दो पुस्तकेें प्रकाशित। 'होने न होने से परे पुस्तक को भारतीय ज्ञानपीठ का नवलेखन पुरस्कार भी मिला। सभी पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं व चित्र प्रकाशित। आकाशवाणी-दूरदर्शन से रचनाओं का नियमित प्रसारण।
संप्रति : जयपुर (राजस्थान) में रह कर रचना-कर्म जारी।
प्रेम में
नदी
सिर्फ और सिर्फ
प्रेम पाने को बहती है
जैसे फूल खिल जाने को
बादल बरसने को
रेत ठहरने को
ये खिलना
बरसना
ठहरना भी
बहना है नदी-सा
प्रेम में।
मौन
1
युगों-युगों से
शब्द छोटे रह जाते हैं
वस्तुत:
डूब ही जाते वे
मौन के उस महासागर में।
2
समय के ठहर जाने पर
वाणी के अर्थ नहीं रह जाते
सिर्फ दृष्टि ही काफी होती जहां
असल पाने को
मन का अहंकार
राख-सा झर जाता
मौन के सुरमई समागम में।
3
कोरी
गहरी चुप्पी नहीं मौन!
मन को मानने का
अतींद्रियदर्शी सुकोमल अनुभव है।
भली-भली सी
अधूरे की
अपनी ही धुरी होती है
होता है उसका आकाश भी
अधूरा स्वयं को निगलता
निपजता उस पूरे को
जहां स्मृतियों की आकृतियां हैं
सिरहाने से फिसलकर
सुबह को लपकती
भली-भली सी इक
रात है।
देखो ज्ारा
देखो!
देखो कि
कुछ देखना
बाकी न रहे
ऐसा समझो कि
जो निरंतर
दोनों छोरों तक
कई-कई अर्थों सा
वहीं का वहीं
किसी मृत्यु रहस्य-सा
बारीक
अपने आप से
जाना जाने वाला
सपनों भरा
शाश्वत सत्य
देखो ज्ारा!
अमित कल्ला
बूंदें
बारिश की चंद बूंदों को
मुठ्ठी में समेटा
और जीवन मिट्टी में
बो दिया
ताकि
अगले पतझडों तक
बादलों का
पेड हो
मेरे आंगन में!
कोई चुरा ले तो क्या
कोई पंख चुरा ले तो क्या
आकाश चुरा न सके!
कोई रास्ते रोक दे तो क्या
कदम चुरा न सके!
कोई दिशाहीन कर दे तो क्या
दिशाएं चुरा न सके!
कोई कश्ती चुरा ले तो क्या
समुद्र को चुरा न सके!
कोई तिनके चुरा ले तो क्या
घरौंदा चुरा न सके!
कोई चंद लकीरें चुरा ले तो क्या
तकदीरें चुरा न सके!
कोई श्वास चुरा ले तो क्या
हवाएं चुरा न सके!
कोई दिया चुरा ले तो क्या
सूरज चुरा न सके!
कोई आंखें चुरा ले तो क्या
नज्ारिया चुरा न सके।
कोई नाम चुरा ले तो क्या
दुआएं चुरा न सके!
कोई चुरा ले किसी का कुछ अनमोल
किश्तें कभी चुका न सके!
मीनाक्षी पुरी