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पराया शहर उत्सव और यादें

त्योहारों का असली मजा अपनों के साथ आता है। यह बात अपने शहर से दूर रह रहे युवाओं से बेहतर कौन समझ सकता है? पढ़ाई या नौकरी की व्यस्तताओं के चलते कई बार घर जाना संभव नहीं हो पाता है। सखी ने ऐसे ही कुछ युवाओं से बात कर उनका मन खंगाला।

By Edited By: Published: Mon, 03 Nov 2014 11:30 AM (IST)Updated: Mon, 03 Nov 2014 11:30 AM (IST)
पराया शहर उत्सव और यादें

ग्रामीणों के अपनेपन में आज भी भीगा है मन

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दिनेश, 25 साल

मैं गोंडा (यूपी) के चिल्ढा गांव का रहने वाला हूं। त्योहार क्या होते हैं, यह मैंने वहीं रहकर जाना। जिंदगी के शुरुआती साल मैंने वहीं गुजारे। बाद में मेरा परिवार दिल्ली शिफ्ट हो गया था। अब गोंडा में सिर्फ मेरी दादी रहती हैं। बडे शहरों में हर त्योहार पर बाजार हावी हो चुका है। लेकिन कस्बों और गांवों में ऐसा नहीं है। आज भी मैं अपने गांव के माहौल को, वहां के लोगों को मिस करता हूं। जब भी गांव जाता हूं तो हर घर में ऐसी आवभगत होती है, जैसे वह मेरे अपने घर हों। हर स्त्री अपने बेटे की तरह स्नेह करती है। घर में बनने वाले विभिन्न पकवान वहां के लोग मेरे लिए खास तौर पर दे जाते हैं। वहां त्योहारों में जो अपनापन और लगाव होता है, उसे महसूस करने के लिए मेट्रो शहरों के लोग तरस जाते हैं। मैं व्यस्तता के चलते इस बार भी गांव नहीं जा पाऊंगा।

भावुक करती हैं यादें

सौम्या, 19 साल

मैं कोटा, राजस्थान की रहने वाली हूं। दिल्ली के एक संस्थान से फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर रही हूं। मैं अपने होमटाउन की नवरात्रि पूजा को बहुत मिस करती हूं। वहां इस मौके पर सभी घरों में दाल-बाटी-चूरमा और छोले-पूरी बनता है। विशाल ट्रेड फेयर भी लगता है जिसमें शॉपिंग करने का अलग मजा होता है। मैंने बचपन में वहां हुए डांस कॉम्पिटीशन में हिस्सा लिया था और पहला प्राइज जीता था। ये यादें आज भी मेरे जेहन में जिंदा हैं। नवरात्रि पर कॉलेज में छुट्टियां न होने के चलते मैं घर नहीं जा पाऊंगी। ऐसे में अपने कॉलेज की सहेलियों के साथ ही वक्त बिताऊंगी ताकि खालीपन महसूस न हो।

त्योहार बनते हैं भाई से मिलने का बहाना

राहुल अहलावत, 20 साल

मैं पानीपत के बबैल गांव का रहने वाला हूं। इस साल मैं नवरात्रि और दीवाली पर घर नहीं जा पाऊंगा। हर साल इन मौकों पर मैं मुंबई से औरमेरा बडा भाई दिल्ली से घर आता है और हम मिल कर खूब धमाल करते हैं। इसी बहाने हम एक-दूसरे से मिल लेते हैं। मेरे घर पर इस मौके पर कन्या भोज का आयोजन किया जाता है। इस साल एग्जैम्स की तारीख अक्टूबर में पडने के चलते मैं घर नहीं जा पाऊंगा। ऐसे में यहीं दोस्तों के साथ शहर घूमने निकलूंगा।

मिस करता हूं गुझिया और पुआ

विशाल बरन, 25 साल

मैं देवघर, झारखंड का रहने वाला हूं। इस साल दीवाली पर मैं चाह कर भी अपने घर नहीं जा पाऊंगा क्योंकि मेरे एसएससी मेन्स का एग्जैम इसी महीने है। ऐसे में अपने चारों फ्लैट मेट्स के साथ ही सेलब्रेशन कर परिवार की कमी दूर करने की कोशिश करूंगा। घर में बनने वाली गुझिया और पुआ मैं बहुत मिस करता हूं। पर घर जाना संभव नहीं है इसलिए बंगलुरु में ही कुछ खुशियां सहेजने की कोशिश करूंगा।

साथ करते हैं पूजा

श्रुति, 19 साल

मुझे त्योहारों की रौनक बहुत पसंद है। कभी सोचा नहीं था जिंदगी की मसरूफियत अपनों के पास जाने का वक्त भी नहीं देगी। पढाई का इतना दबाव रहता है कि कई त्योहारों पर चाहकर भी नहीं जा पाती। पिछले साल होली पर भी मैं मन मारकर रह गई थी। ऐसी परिस्थितियों में मैं अपनी फ्लैट मेट्स के साथ त्योहारों की खुशियां बटोरने की कोशिश करती हूं। हम चार सहेलियां एक फ्लैट में रहती हैं। हमने एक कॉमन मंदिर भी बना रखा है। दीवाली, गणेशोत्सव, जन्माष्टमी जैसे मौकों पर हम साथ में पूजा करते हैं। मिठाइयां और अपनी पसंदीदा चीजें खाते हैं। इस तरह अपने त्योहारों और अपनी संस्कृति से भी जुडाव बना रहता है।

वो दीवाली के दीये, वो यारों की यारियां

परमजीत, 22 साल

मैं हरियाणा स्थित अपने होमटाउन झज्जर में रहने वाले दोस्तों को बहुत मिस करता हूं। त्योहारों पर तो उनकी याद और भी ज्यादा आती है। वजह यह कि इन मौकों पर हम जमकर मस्ती और शरारतें करते थे। दीवाली पर घर की छत पर दीए जला कर रखते थे। वह समय हमेशा यादगार रहेगा। आज जिंदगी ने हमें इस कदर व्यस्त कर दिया है कि हम कई साल तक त्योहारों पर घर नहीं जा पाते हैं।

बहनों की तरह एंजॉय नहीं कर पाती

कविता, 19 साल

मैं उत्तराखंड की रहने वाली हूं। त्योहारों पर मैं अपने परिवार को बहुत मिस करती हूं। इस साल रक्षाबंधन पर मैं अपने घर नहीं जा पाई थी। मेरी बहनें मुझे भाई से मिले गिफ्ट्स के बारे में बताकर चिढा रही थीं। नवरात्रि और दशहरा पर भी मैं इस साल नहीं जा पाऊंगी। तब भी वह सब मुझे यह बताएंगी कि उन्होंने कितना एंजॉय किया। उनकी ये बातें सुनकर मैं घर को और ज्यादा मिस करती हूं।

सूनी लगेगी दीवाली

योगेश त्रिपाठी, 23 साल

सुल्तानपुर स्थित मेरे गांव में दीवाली के मौके पर मेले जैसा माहौल हो जाता है। इस पर्व पर हुए एक वाकये के बाद से मैंने आतिशबाजी से तौबा कर ली थी। हुआ यह कि एक बार मैं अपने दोस्तों के साथ पटाखे छुटा रहा था। रॉकेट में आग लगाई तो पता नहीं कैसे वह पास बने एक झोपडी के छप्पर से जा टकराया। यह देखकर मैं घबरा गया। गनीमत यह रही कि आग लगने से कोई हताहत नहीं हुआ। इसके बाद मैंने आतिशबाजी का शौक हमेशा के लिए छोड दिया। हां, इन मौकों पर अपनों के साथ अच्छा वक्त बिताना और खुशियां बांटना जारी रहा। इस साल मैं कुछ कारणों के चलते घर नहीं जा सकूंगा। यहीं दोस्तों के साथ वक्त बिताऊंगा ताकि परिवार की कमी न खले।


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