खर्चीलेपन से बढ़ती खुशी
यह सच है कि हम खर्च करने के लिए ही कमाते हैं, लेकिन बढ़ती उपभोक्तावादी संस्कृति ने पिछले दो दशकों में लोगों को इतना खर्चीला बना दिया है कि कई बार वे गैर जरूरी चीजों पर भी बड़ी ख़्ाुशी के साथ बहुत ज्य़ादा खर्च कर देते हैं। क्यों हो रहा
यह सच है कि हम खर्च करने के लिए ही कमाते हैं, लेकिन बढती उपभोक्तावादी संस्कृति ने पिछले दो दशकों में लोगों को इतना खर्चीला बना दिया है कि कई बार वे गैर जरूरी चीजों पर भी बडी ख्ाुशी के साथ बहुत ज्य़ादा खर्च कर देते हैं। क्यों हो रहा है ऐसा? यही जानने की कोशिश की जा रही है यहां।
चादर की लंबाई देखकर ही हमें अपने पैर फैलाने चाहिए। पहले जब भी फजूखर्ची की बात आती थी तो नसीहत के रूप में लोग इसी कहावत का इस्तेमाल करते थे, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। आज की युवा पीढी का मानना है कि अगर चादर छोटी है तो डरो मत, पहले पैर तो फैलाओ बडी चादर भी आ जाएगी।
तंगी में भी जेब ढीली
अब सवाल यह उठता है कि आख्िार पिछले दस-पंद्रह वर्षों में ऐसी क्या बात हुई, जिसकी वजह से लोग अंधाधुंध खर्च करने लगे। इसके जवाब में आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ डॉ. एस. सी. शर्मा कहते हैं, 'अर्थशास्त्र में इसे डेमॉन्स्ट्रेशन इफेक्ट कहा जाता है। अगर सरल शब्दों में कहा जाए तो दूसरों का अंधानुकरण करने की प्रवृत्ति लोगों को बेवजह ज्य़ादा खर्च करने के लिए प्रेरित कर रही है। बाजार से चीजें ज्य़ादा ख्ारीदी जा रही हैं। इसे हम अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत मान सकते हैं, पर लंबे समय में इंसान पर इसका नकारात्मक असर पडेगा। बिजनेस क्लास की बात और होती है, उनके उधार का हिसाब-िकताब अलग ढंग से चलता है। उनका उधार किसी दूरगामी फायदे के लिए होता है, लेकिन जब सीमित आय वाला नौकरीपेशा व्यक्ति क्रेडिट कार्ड से बेतहाशा महंगी ब्रैंडेड चीजों की शॉपिंग करेगा तो यह उसके लिए घातक साबित होगा। अमेरिका की अर्थव्यवस्था इसका सबसे बडा उदाहरण है। वहां के बैंकों ने लोगों में उधार की प्रवृत्ति को बढावा देने के लिए मिनिमम मार्जिन मनी की सीमा हटा कर चीजों के लिए शत-प्रतिशत फाइनेंसिंग शुरू कर दी। नतीजा यह हुआ कि लोगों ने बिना सोचे-समझे ख्ाूब लोन ले लिया। फिर मंदी के दौर में जब नौकरियां जाने लगीं तो बेहद भयावह स्थिति पैदा हो गई। वहां कर्ज की वजह से डिप्रेशन और आत्महत्या के मामले तेजी से बढऩे लगे। ख्ौर, अपने देश में अभी ऐसी भयावह स्थिति पैदा नहीं हुई है, लेकिन तेजी से बदलते हालात लोगों को ज्य़ादा खर्च करने पर मजबूर कर रहे हैं।
वक्त बना रहा है खर्चीला
अब तक यही माना जाता था कि कर्ज लेना मजबूरी और शर्म की बात है, पर कर्ज-उधार अब मजबूरी नहीं, बल्कि जरूरत बन चुका है। कर्ज लेने वाले शरमाते नहीं, बल्कि लोगों को गर्व से बताते हैं, 'मेरी तो 50-50 हजार की दो-दो ईएमआइ चल रही है। अब लोन से ही लोगों की हैसियत आंकी जाती है, जितना बडा कर्जदार उतना मालदार। बैंक भी लोगों की आमदनी का जरिया और उनकी लोन चुकाने की क्षमता को देखकर ही लोन देते हैं। क्या आज के दौर में आप संतोषम् परमम् सुखम् के दर्शन पर यकीन रखते हैं? यह पूछने पर एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत आकाश शर्मा कहते हैं, 'बिलकुल नहीं। हमारी आमदनी सीमित है और खर्च बहुत ज्य़ादा। जरूरी चीजों की कीमतें आसमान छू रही हैं। उन्हें हम किसी तरह कतर-ब्योंत करके पूरी कर लेते हैं, लेकिन जब हमें अपने घर के लिए फ्रिज या एसी जैसा कोई बडा सामान खऱीदना हो तो उसके लिए हमारे पास पैसे कहां से आएंगे? ऐसे में िकस्तों पर चीजें खऱीदना ही एकमात्र विकल्प रह जाता है।
बढ रही है क्रय-शक्ति
देश मेें बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आगमन के बाद आकर्षक सैलरी पैकेज से युवा वर्ग की परचेजिंग पावर अचानक बढ गई है। जब हाथों में पैसे हों तो उन्हें खर्च करने की व्यग्रता भी बढ जाती है। आज अपने देश में हर तरह के विदेशी ब्रैंड मौजूद हैं। शो विंडो में सजी चीजें देखकर मन ललचाए और जेब में कैश न हो तो घबराना कैसा? नकद पैसे देकर चीजें ख्ारीदना या किसी रेस्टरां का बिल चुकाना अब आउट ऑफ फैशन हो गया है। डेबिट कार्ड से बिल चुकाएं, अगर अभी अकाउंट में पैसे न हों तब भी चिंता किस बात की? क्रेडिट कार्ड जिंदाबाद। बाजार ने युवा वर्ग की यह कमजोर नब्ज पकड ली है। अब बाजारवाद का एकमात्र नारा है-जरूरत न हो तो भी युवाओं के लिए रोज नई जरूरतें पैदा करो। शॉपिंग उनका प्रिय शगल बन चुका है। बस, उन्हें रिझाते रहो। वे ख्ाुद-ब-ख्ाुद तुम्हारी चंगुल में आकर फंसेंगे। इसी समस्या पर कुछ साल पहले एक फिल्म बनी थी- 'ईएमआइ। जिसमें संजय दत्त ने एक रिकवरी एजेंट सत्तार भाई की भूमिका निभाई थी। उनका यह डायलॉग बडा चर्चित हुआ था, 'लोन लिया है तो चुकाओ, 'शादी की है तो निभाओ, इस फिल्म में ईएमआइ की वजह से आने वाली मुश्किलों का सटीक विश्लेषण किया गया था। फिर भी प्रॉपर्टी और कार जैसी चीजें ईएमआइ पर ख्ारीदना अब लोगों की जरूरत बन चुका है।
फायदेमंद है िकस्तें चुकाना
िकस्तों पर प्रॉपर्टी, कार या दूसरे महंगे घरेलू उपकरण ख्ारीदना कुछ लोगों को इस दृष्टि से भी फायदेमंद लगता है कि एक बार में किसी महंगे सामान का पेमेंट करने से पूरे महीने का बजट हिल जाता है, लेकिन हर महीने छोटी-छोटी िकस्तों में भुगतान करने पर अगर हमें सौ रुपये की किसी चीज के लिए डेढ सौ रुपये भी चुकाने पडे तो खलता नहीं है। आशीष जैन पेशे से आर्किटेक्ट हैं। वह कहते हैं, 'मैं बहुत सोच-समझकर क्रेडिट कार्ड से चीजें ख्ारीदता हूं और सही समय पर उनका भुगतान कर देता हूं। जब लोग बिना सोच-समझे क्रेडिट कार्ड का बेहिसाब इस्तेमाल करके भुगतान में देर करते हैं तो बाद में उन्हें फाइन सहित पेमेंट करना पडता है। ऐसे में वे क्रेडिट कार्ड को दोष देते हैं। मैंने कार से लेकर कैमरा तक सारी चीजें ईएमआइ की जरिये ही ख्ारीदी हैं। जैसे ही किसी एक चीज की िकस्तें कटनी बंद हो जाती हैं। मैं िकस्तों पर कोई दूसरी नई चीज उठा लाता हूं। ईएमआइ बिलकुल नए जूते की तरह होता है जो, शुरुआत में थोडी तकलीफ जरूर देता है पर बाद में हमें इसकी आदत पड जाती है तो हमें िकस्तों में भुगतान करना नहीं ख्ालता।
जरूरतें तब भी होती थीं पूरी
पिछली पीढी के लोग तो कर्ज के नाम से भी घबराते हैं। इस संबंध में अवकाश प्राप्त इंजीनियर महेश वर्मा कहते हैं, 'पहले कम वेतन में भी बिना किसी कर्ज-उधार के लोगों की सारी जरूरतें पूरी होती ही थीं। मेरी पत्नी ने बडी किफायत से पैसे बचा कर गृहस्थी चलाई। तभी मैं अपने दो बेटों को इंजीनियर बना पाया और बेटियों की शादी की, पर एक पैसा भी कर्ज नहीं लिया। आज जब मैं अपने बेटों को एक साथ दो-तीन चीजों की िकस्तें चुकाते देखता हूं तो मुझे बहुत चिंता होती है। प्राइवेट नौकरियों का कोई भरोसा नहीं होता। अगर उन्हें थोडे समय के लिए भी बिना जॉब के रहना पडे तो वे अपने लोन को कैसे मैनेज करेंगे? मैं उन्हें समझाने की कोशिश करता हूं तो वे हंस कर टाल देते हैं। ...लेकिन हंस कर टाल देना किसी समस्या का समाधान नहीं है। इसलिए अब हमें बेतहाशा खर्च करने की आदतों को नियंत्रित करने और ईएमआइ की सुविधा के संतुलित इस्तेमाल पर विचार करना चाहिए।
ऐसे करें खर्च में कटौती
जीवन की मूलभूत जरूरतों, स्वास्थ्य की देखभाल और बच्चों की शिक्षा जैसी जरूरतों पर खर्च करना तो आवश्यक है, लेकिन मात्र दिखावे के लिए बेतहाशा खर्च करने की आदत को नियंत्रित करने की कोशिश करनी चाहिए। अगर आप इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखें तो जीवन में सुकून बना रहेगा :
-अपने परिवार का मासिक बजट संतुलित रखें। अपनी आमदनी का एक निश्चित हिस्सा आकस्मिक जरूरतों के लिए सुरक्षित रखें।
-अपनी आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए लोन लेने का निर्णय लें। अगर पहले से ही आपका होम लोन चल रहा है तो यह सुनिश्चित कर लें कि उसके भुगतान के समय आपके बैंक अकाउंट में पर्याप्त धन राशि हो।
-ईएमआइ पर एक साथ कई चीजें न खऱीदें। किसी एक वस्तु की िकस्तें चुकाने के बाद ही कुछ नया ख्ारीदने का निर्णय लें।
-जब कोई सामान ख्ारीदने की जरूरत हो तभी शॉपिंग मॉल में जाएं। बेवजह विंडो शॉपिंग की आदत से बचें। इससे कई बार वैसी चीजें भी ख्ारीद ली जाती हैं, जिनकी वास्तव में जरूरत नहीं होती।
-शॉपिंग के लिए क्रेडिट के बजाय डेबिट कार्ड का इस्तेमाल ज्य़ादा सुरक्षित होता है। इसमें आप उधार के भुगतान की चिंता से मुक्त रहते हैं।
-अपने सेविंग अकाउंट के साथ एक रिकरिंग डिपॉजिट अकाउंट जरूर खोलें। इसमें प्रतिमाह एक निश्चित रकम आपके अकाउंट से कट कर दूसरे अकाउंट में जमा होती रहती है और उस पर अच्छा ब्याज भी मिलता है।
-अपने बच्चों को शुरू से ही बचत के लिए प्रोत्साहित करें। आजकल कई बैंक बच्चों के लिए जूनियर अकाउंट खोलने की भी सुविधा देते हैं।
विनीता