टॉपअप का उठाएं फायदा
आकस्मिक रूप से आने वाले उपचार के खर्च का बोझ कम करने के लिए हेल्थ इंश्योरेंस करवाना निश्चित रूप से समझदारी भरा निर्णय है, लेकिन महंगाई की वजह से इलाज का खर्च कम पड़ जाता है। ऐसे में पॉलिसी के साथ टॉपअप प्लान लेना आपके लिए फायदेमंद साबित होगा।
आकस्मिक रूप से आने वाले उपचार के खर्च का बोझ कम करने के लिए हेल्थ इंश्योरेंस करवाना निश्चित रूप से समझदारी भरा निर्णय है, लेकिन महंगाई की वजह से इलाज का खर्च कम पड जाता है। ऐसे में पॉलिसी के साथ टॉपअप प्लान लेना आपके लिए फायदेमंद साबित होगा।
बढती महंगाई के इस दौर में अचानक आने वाली बीमारियां लोगों का पूरा बजट हिला देती हैं। उपचार ऐसी जरूरत है, जिसे किसी भी हाल में टाला नहीं जा सकता। हालांकि, आजकल ज्य़ादातर लोग इसी बात का ध्यान रखते हुए हेल्थ इंश्योरेंस करवा लेते हैं, पर कई बार ऐसा भी होता है कि व्यक्ति ने जितने रुपये का बीमा करवाया है, इलाज में उससे ज्य़ादा खर्च हो जाता है। इस स्थिति में कई बार व्यक्ति के पास इतने पैसे नहीं होते कि वह इलाज के आकस्मिक खर्च का भार उठा सके। टॉपअप की सुविधा इस दृष्टि से बहुत कारगर साबित होती है।
क्या है टॉपअप
जिस तरह हम अपने मोबाइल फोन के प्री पेड कनेक्शन को निर्बाध रूप से चलाने के लिए उसके प्लान में एडवांस पैसे जमा करवा कर उसे रिचार्ज कराते हैं। ठीक उसी तरह बीमा पॉलिसी की सीमा से ज्य़ादा खर्च होने की स्थिति में टॉपअप कवरेज प्लान उस अतिरिक्त खर्च की भरपाई करता है। मान लीजिए कि अगर किसी व्यक्ति ने पांच लाख रुपये की बीमा पॉलिसी ख्ारीदी है और उसके इलाज में दो-तीन लाख रुपये का अतिरिक्त खर्च आ रहा हो तो ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति को उसी वक्त उन पैसों का भुगतान करना पडता है, लेकिन अगर उसने अपने स्वास्थ्य बीमा के साथ टॉपअप की सुविधा ली है तो उसी वक्त बीमा कंपनी की ओर से इलाज में होने वाले अतिरिक्त खर्च का भुगतान कर दिया जाता है।
सुविधाजनक है प्रीमियम
कई बार लोग ज्य़ादा कवरेज पाने के लिए दो स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी ख्ारीद लेते हैं या बीमा कंपनी से अपना कवरेज अपग्रेड करने को कहते हैं। मिसाल के तौर पर अगर कोई व्यक्ति पांच लाख रुपये की एक और पॉलिसी ख्ारीदता है तो उसे प्रीमियम के रूप में प्रतिवर्ष छह हजार रुपये का अतिरिक्त खर्च उठाना पडता है। बीमा कवरेज अपग्रेड कराने की स्थिति में भी करीब इतना ही प्रीमियम बनता है, लेकिन टॉपअप प्लान के मामले में फायदा यह है कि मात्र दो हजार रुपये के वार्षिक प्रीमियम पर पांच लाख का टॉपअप प्लान मिल सकता है, जो पुरानी पॉलिसी को अपग्रेड करवाने या नई पॉलिसी लेने की तुलना में काफी सस्ता है।
काफी नहीं है ग्रुप इंश्योरेंस
ज्य़ादातर कंपनियां अपने कर्मचारियों को स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी की सुविधा देती हैं, लेकिन केवल ग्रुप इंश्योरेंस के भरोसे रहना समझदारी नहीं है। कंपनी बदलने या नौकरी छूटने पर बीमा कवर भी ख्ात्म हो जाता है। हालांकि, कुछ बीमा कंपनियां विशेष शर्तों के साथ कंपनी बदलने या नौकरी छूटने की स्थिति में भी कवर देने की पेशकश करती हैं, लेकिन यह बहुत आसान नहीं है। ऐसे में व्यक्तिगत रूप से भी एक हेल्थ इंश्योरेंस जरूर करवाएं। यदि किसी व्यक्ति की कंपनी ने उसे तीन लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा कवर दिया है तो वह उतनी ही राशि का टॉपअप ग्रुप प्लान भी ले सकता है, जिसमें ज्य़ादातर कंपनियां ऐसी बीमारियों का भी कवरेज देती हैं, जिनके लक्षण बीमा कराने के पहले से ही व्यक्ति में मौजूद होते हैं। इसके अलावा ग्रुप टॉपअप प्लान के बजाय व्यक्तिगत टॉपअप लेने की सुविधा होती है। कंपनी छोडऩे के बाद भी यह प्लान जारी रहता है।
क्या है वेटिंग पीरियड
कोई भी व्यक्ति पॉलिसी ख्ारीदते ही इलाज का क्लेम नहीं कर सकता। इस नियम के तहत एक निश्चित अवधि निर्धारित होती है, जिसे वेटिंग पीरियड कहा जाता है। इसके तहत मेडिकल इंश्योरेंस करने वाली कंपनियों की कुछ शर्तें होती हैं। यदि कोई बीमा धारक वेटिंग पीरियड में ही अस्पताल में भर्ती हो जाता है तो उसे क्लेम नहीं मिलता। इस वेटिंग पीरियड की तीन श्रेणियां होती हैं-1. इनिशियल वेटिंग पीरियड 2. डिजीज स्पेसिफिक वेटिंग पीरियड
3. प्री-एग्जिस्टिंग डिजीज वेटिंग पीरियड। इनिशियल वेटिंग पीरियड के तहत पॉलिसी ख्ारीदने के बाद शुरुआती 30 से 90 दिनों तक किसी भी बीमारी के इलाज का कवर नहीं दिया जाता, हालांकि दुर्घटना की स्थिति में यह शर्त लागू नहीं होती है। ऐसी दशा में पॉलिसी धारक को पूरा कवर मिलता है। डिजीज स्पेसिफिक वेटिंग पीरियड के तहत बीमा कंपनियां विशेष शर्तों के तहत पॉलिसी लेने पर दो वर्षों तक पहले से मौजूद कुछ बीमारियों का बीमा कवर नहीं देतीं। इस तरह की बीमारियों में हर्निया, पाइल्स, हाइपरटेंशन, डायबिटीज और गाइनी प्रॉब्लम्स आदि शामिल हैं। पॉलिसी ख्ारीदते समय यदि व्यक्ति किसी ख्ाास बीमारी से ग्रस्त है या पहले से ही उसे कोई बीमारी है तो बीमा कंपनियां उसे प्री-एग्जिस्टिंग वेटिंग पीरियड के तहत रखती हैं। ऐसे में बीमा कंपनियां तय अवधि तक क्लेम नहीं देतीं। यह अधिकतम अवधि चार साल तक हो सकती है।
सर्वाइवल पीरियड का फायदा
जिस तरह सामान्य स्वास्थ्य बीमा में वेटिंग पीरियड होता है। उसी तरह गंभीर बीमारियों की पॉलिसी सर्वाइवल पीरियड के साथ आती है। गंभीर बीमारियों के लिए पॉलिसी देने से पहले बीमा कंपनियां व्यक्ति का मेडिकल टेस्ट करवाने के बाद उसकी शारीरिक अवस्था के आधार पर यह अनुमान लगाती हैं कि वह व्यक्ति कितने दिनों में पूर्णत: स्वस्थ हो जाएगा। अगर वह जॉब करता है तो कितने दिनों बाद काम पर वापस लौट पाएगा। फिर कंपनी सर्वाइवल पीरियड का निर्धारण करती है। यह समय-सीमा पॉलिसी धारक की सेहत और उम्रके आधार पर तय की जाती है। इस दौरान इलाज के ख्ार्च की भरपाई बीमा कंपनी की ओर से की जाती है, लेकिन इसके लिए थोडा ज्य़ादा प्रीमियम चुकाना पडता है।
यह भी न भूलें
-कोई भी पॉलिसी लेते समय उसकी सेवा संबंधी शर्तों को बहुत ध्यान से पढें। पहले से यह सुनिश्चित कर लें कि उसमें कौन सी बीमारियों का कवरेज शामिल नहीं है, ताकि बाद में आपको कोई गलतफहमी न हो।
-किस्तों का भुगतान सही समय पर करें और संबंधित पेपर्स संभालकर रखें।
-आजकल कुछ कंपनियां यूनिट लिंक हेल्थ इंश्योरेंस प्लान की भी सुविधा देती हैं, जिसमें आपकी प्रीमियम का कुछ हिस्सा हेल्थ कवरेज और कुछ सेविंग में जाता है। यह पॉलिसी धारक के लिए काफी फायदेमंद साबित होता है।
-आजकल ज्य़ादातर कंपनियां अपने उपभोक्ताओं को कैशलेस हेल्थ कार्ड की सुविधा देती हैं। इसमें अस्पताल में भर्ती होने से पहले अपनी इंश्योरेंस कंपनी के कस्टमर केयर को सूचना देनी होती है। व्यक्ति के भर्ती होते ही पैसा उस कार्ड में ट्रांस्फर हो जाता है और उसके जरिये मरीज स्वयं अस्पताल के बिल का भुगतान बहुत आसानी से कर सकता है।
-कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं, जिनका इलाज लंबा और ख्ार्चीला होता है, लेकिन उसके लिए मरीज को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं पडती। कुछ बीमा कंपनियों ने ऐसे मरीजों का ध्यान रखते हुए उनके लिए भी हेल्थ पॉलिसी की व्यवस्था की है। अधिक जानकारी के लिए बीमा एजेंट से संपर्क करें।
सखी फीचर्स
(वित्तीय सलाहकार एम.के.अरोडा से बातचीत पर आधारित)