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खिलौना नहीं है मोबाइल

बच्चों को मोबाइल फोन के गेम्स और एप्लिकेशंस में बिजी कर आप उनका ध्यान बंटा सकती हैं, लेकिन अगर वे इनके आदी हो जाएं तो यह उनके लिए बेहद नुकसानदेह साबित हो सकता है। आइए इस बारे में जानते हैं सखी से।

By Edited By: Published: Sat, 02 Aug 2014 11:36 AM (IST)Updated: Sat, 02 Aug 2014 11:36 AM (IST)
खिलौना नहीं है मोबाइल

झूला झूलने की जिद करते बेटे का ध्यान भटकाने के लिए अपना काम छोड कर नीचे पार्क में जाने की अपेक्षा उसे स्मार्टफोन में टेम्पल रन गेम खेलने के लिए दे देना ज्यादा सहूलियत भरा है। है ना? बच्चा भी बहल जाता है और आपको अपने काम निपटाने के लिए अतिरिक्त समय भी मिल जाता है। लेकिन क्या आप जानती हैं कि इस सहूलियत की कीमत आपके बच्चे को चुकानी पड सकती है? हाल ही में हुए एक शोध के अनुसार जिन बच्चों के अभिभावक उन्हें तीन साल से कम उम्र में ही स्मार्टफोन दे देते हैं वे वर्बल टेस्ट में फिसड्डी साबित होते हैं। कम उम्र में ज्यादा समय तक मोबाइल फोन इस्तेमाल करने की लत लगने से बच्चों को इस तरह के कई नुकसान होते हैं। इनमें शारीरिक और मानसिक दोनों तरह के नुकसान शामिल हैं। इस बारे में जानकारी दे रहे हैं क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट रिपन सिप्पी।

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समाजिकता की कमी

ज्यादा समय तक मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वाले बच्चे आत्मकेंद्रित हो जाते हैं। वे समाजिक होने में असहज महसूस करते हैं। उन्हें नहीं पता होता कि सामूहिक गतिविधियों में हिस्सा लेने के दौरान किस स्थिति में क्या कहना चाहिए और कैसा व्यवहार करना चाहिए। यह प्रवृत्ति कई बार बच्चे के बडे होने पर भी नहीं जाती जिसके चलते उन्हें जीवन में कई दिक्कतें आती हैं। ऐसे बच्चों का अकसर अपने पेरेंट्स के साथ भी बॉन्ड मजबूत नहीं हो पाता। वे सबसे कटे-कटे से रहते हैं।

संवदेनशीलता की कमी

मोबाइल फोन गेम्स के कैरेक्टर्स बच्चों के मन पर गहरा असर डालते हैं। कई कैरेक्टर्स का व्यवहार हिंसा को महिमामंडित करता है। इसका प्रभाव यह पडता है कि बच्चों को ऐसी स्थितियां देखकर मजा आने लगता है जिन्हें देखकर उन्हें दुखी होना चाहिए। उदाहरण के तौर पर किसी के चोटिल होने या किसी का खून बहने पर बच्चे दुख या सहानुभूति नहीं जताते बल्कि हंसते हैं। इसकी मुख्य वजह यह है कि वे गेम में इतना खून-खराबा होते देखते हैं कि उन्हें लगने लगता है कि यह सामान्य प्रक्रिया है। गेम में दुश्मन को मारने पर उन्हें जीत हासिल होती है। यह देखकर वे दूसरों को चोट खाते देख विजय का अनुभव करने लगते हैं। ऐसी मनोस्थिति चिंताजनक है।

आइ-हैंड कोऑर्डिनेशन

मोबाइल फोन में लंबे समय तक गेम खेलने या एप्लिकेशंस के जरिये पेंटिंग करने वाले बच्चों का आइ- हैंड कोऑर्डिनेशन पुख्ता नहीं हो पाता। ऐसे बच्चे अकसर मार्जिन से बाहर लिखते हैं और ड्रॉइंग में कलर करते समय आउटलाइन से बाहर रंग भर देते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मोबाइल एप्लिकेशन में तो तकनीकी मदद के जरिये वे आउटलाइन के अंदर रंग भर लेते हैं लेकिन जब उन्हें कागज पर वही चीज करनी पडती है तो वे ऐसा नहीं कर पाते क्योंकि वे तकनीकी ऑटोमेशन के आदी हो चुके होते हैं। कलरिंग और मार्जिन के अंदर लिखने के लिए जरूरी एकाग्रता उनमें नहीं विकसित हो पाती।

मोटापे की समस्या

मोबाइल फोन के आदी बच्चे आउटडोर गेम्स खेलने से बचते हैं। बैठे रहने की आदत के चलते उन्हें मोटापा घेर लेता है। ये बच्चे दौडभाग करने वाले बच्चों की तुलना में एक्टिव भी कम होते हैं। उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है और उन्हें अकसर विभिन्न शारीरिक व मानसिक समस्याओं का सामना करना पडता है।

विशेष टिप्स

- बच्चे को अबैकस जैसी गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित करें ताकि उनकी बौद्धिक क्षमता का विकास हो।

- पांच साल से कम उम्र के बच्चे को मोबाइल फोन न छूने दें। जन्म के बाद के पहले पांच साल उसके शारीरिक और मानसिक विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। पांच साल के बाद भी बच्चे को बेहद कम समय के लिए ही मोबाइल फोन दें।

- जो बच्चे मोबाइल फोन के आदी हो चुके हों, उनकी आदत बदलने की कोशिश करें। उन्हें फोन देने से पहले एक निश्चित अवधि के बाद का अलार्म सेट करें। अलार्म बजने पर उनसे फोन वापस ले लें। जिद करने पर भी उनकी बात न मानें।

- बच्चे को मोबाइल फोन पर गेम खेलने की जगह पार्क में खेलने, एक्टिविटी बुक्स फिल करने और कहानियां सुनने-सुनाने के लिए प्रोत्साहित करें। इनसे उनका व्यक्तित्व विकसित होगा।

अभिभावकों का स्मार्टफोन एडिक्शन भी खतरनाकमोबाइल फोन का आदी होने की प्रवृत्ति सिर्फ बच्चों में ही नहीं बढ रही है। वयस्कों में भी यह तेजी से बढ रही है और बच्चों से कहीं ज्यादा है। एक शोध के अनुसार जो अभिभावक मोबाइल फोन एडिक्ट होते हैं वे अकसर अपने बच्चों के साथ नकारात्मक व्यवहार करते हैं। बार-बार फोन इस्तेमाल करने की आदत के चलते उनका अपने बच्चों के साथ रिश्ता मजबूत नहीं हो पाता। शोध के अनुसार 73 प्रतिशत अभिभावक खाना खाने के दौरान कम से कम एक बार अपना मोबाइल चेक करते हैं। इस बीच अगर उनका बच्चा अपनी गतिविधियों के जरिये उनका ध्यान आकर्षित करने की कोशिश करता है तो उसे गुस्से का सामना करना पडता है। कई पेरेंट्स ऐसा होने पर बच्चे को बुरी तरह डांटते हैं तो कई उन पर हाथ तक उठाने से बाज नहीं आते। एक अन्य शोध के अनुसार 84 प्रतिशत लोगों का मानना है कि वे अपने मोबाइल फोन से एक दिन भी दूर नहीं रह सकते हैं। 20 प्रतिशत लोग हर दस मिनट के अंतराल पर अपना फोन चेक करते हैं। शोध के ये नतीजे खासे चिंताजनक हैं क्योंकि इनके चलते बच्चों का विकास प्रभावित हो रहा है।

ज्योति द्विवेदी


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