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ठान लें अगर तो सब कुछ है आसान

बॉडी बिल्डिंग का क्षेत्र पुरुषों के लिए ही सुरक्षित समझा जाता रहा है। धीरे-धीरे लड़कियां यहां आ रही हैं, मगर उनकी संख्या अभी कम है। ममता देवी युमनाम पिछले कुछ समय से इस क्षेत्र में नाम कमा रही हैं। इस फील्ड में लड़कियां क्यों कम हैं और कैसे उन्हें प्रोत्साहित

By Babita kashyapEdited By: Published: Fri, 21 Nov 2014 03:19 PM (IST)Updated: Fri, 21 Nov 2014 03:40 PM (IST)
ठान लें अगर तो सब कुछ है आसान

इस वर्ष की शुरुआत में पुणे में होने वाली विमेन बॉडी बिल्ंिडग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतने वाली ममता देवी युमनाम मूल रूप से मणिपुर की हैं, मगर अब दिल्ली में रहती हैं। 35 की उम्र पार कर चुकी ममता के तीन बच्चे हैं। इसके बावजूद वह इस फील्ड में आईं ही नहीं, बल्कि उजबेकिस्तान, थाइलैंड और वियतनाम में हुई तमाम प्रतिस्पर्धाओं में मेडल भी हासिल किए। $िफलहाल वह 2015 की शुरुआत में मुंबई में होने वाले वल्र्ड चैंपियनशिप की तैयारी कर रही हैं।

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मॉडलिंग से हुई शुरुआत

ममता की शुरुआत मॉडलिंग से हुई। वह कहती हैं, यह फील्ड आमतौर पर लड़कों का है। मैं भी पहले यही मानती थी। बचपन से स्टेज पर जाने का सपना था। मैंने थोड़ी-बहुत मॉडलिंग की थी, ब्यूटी कॉन्टेस्ट में हिस्सा लेती थी। पहला एक्सपोज़्ार तो यहीं से मिला। बॉडी बिल्डिंग में भी हम शरीर को सुंदर दिखाना चाहते हैं। उसके लिए बेहतर डाइट लेते हैं, एक्सरसाइज़्ा करते हैं। फिर कुछ ऐसा संयोग रहा कि मेरी शादी ही एक बॉडी बिल्डर से हो गई। पति के एक्सरसाइज़्ा व डाइट रुटीन की तैयारियां मैं ही करती थी।

बच्चे नहीं हैं बाधक

लड़कियों की बॉडी बिल्डिंग संबंधी एक विडियो क्लिपिंग ने मेरी सोच बदल दी। मुझे लगा कि मैं भी कर सकती हूं। मगर सोचने और करने में बड़ा अंतर होता है। यह अंतर जब तक ख़्ात्म होता, मेरे तीन बच्चे हो गए थे। पेट पर का$फी चर्बी थी, जिसे कम करना बड़ी चुनौती था। मॉडलिंग में शरीर को फिट रखना ज़्ारूरी होता है। मैं हेल्दी लाइफस्टाइल में रही हूं, तो बहुत मुश्किल नहीं था मेरे लिए। धीरे-धीरे एक्सरसाइज़्ा व जिमिंग से बॉडी को टोंड किया। एक दिन मैंने पति से पूछा कि क्या मैं छह पैक्स बना सकती हूं तो उन्होंने हंसते हुए कहा कि लड़कियों के लिए यह थोड़ा मुश्किल है। मैंने इसे चुनौती की तरह लिया और कुछ ही समय बाद छह पैक्स बना लिए। फिर प्रतिस्पर्धा में उतरी तो सबने तारी$फ की, मगर मेडल मेरी झोली में नहीं आया। निराशा हुई कि इतनी मेहनत के बाद कुछ नहीं मिला। मगर यह शुरुआत थी। जब लोगों को पता चलता था कि मैं तीन बच्चों की मां हूं तो उन्हें आश्चर्य होता था।

मेडल मिले तो आशा जगी

फिर मैं रूस गई, वहां पहली बार ब्रोंज जीता। मुझे अपने फील्ड की प्रोफेशनल जानकारियां नहीं थीं। कंपिटीशन का ड्रेस कोड क्या है, यह भी मुझे नहीं मालूम था। धीरे-धीरे और मेडल जीते तो मन में उम्मीदें जगीं।

भारत में पिछले 3-4 वर्षों से इस फील्ड में लड़कियों की संख्या बढ़ी है, हालांकि अभी वे कम हैं। मुंबई में होने वाली आगामी वल्र्ड चैंपियनशिप में भारत की चार लड़कियों का चयन हुआ है। हमारे यहां लोगों को लगता है कि लड़कियों को मसल्स नहीं बनानी चाहिए। वे बॉडी बनाएंगी तो शादी कैसे होगी या बच्चे कैसे होंगे। मगर बाहर के देशों में लोग ऐसा नहीं सोचते। रूस में मुझे एक 52 वर्षीय बॉडी बिल्डर मिलीं। वह नानी-दादी बनने के बाद इस फील्ड में नाम कमा रही हैं। एक हंगेरियन स्त्री से मिली, जो 40 की उम्र पार कर चुकी थीं। हमारे यहां स्त्रियों की ऐसी छवि है कि उन्हें बॉडी बिल्डिंग करते नहीं देख पाते। मेरा छोटा बेटा 7 साल का है। कई बार कहता है कि मां आप पहले ही अच्छी थीं, आपने इतनी मसल्स क्यों बना लीं? लेकिन मेरे बड़े बच्चों को कोई प्रॉब्लम नहीं है। मेरी बेटी ताईक्वांडो में है और इसी फील्ड में आगे बढऩा चाहती है। बच्चे तारी$फ करते हैं तो आलोचना भी करते हैं। बताते भी हैं कि मुझे और क्या करने की ज़्ारूरत है।

ठान लें तो संभव है

मुझे लगता है कि लड़कियां ठान लें तो सब कुछ कर सकती हैं। अकसर लोग कहते हैं कि बॉडी बिल्डर्स का शरीर बाद में बेकार हो जाता है। ऐसा नहीं है। नियमित एक्सरसाइज़्ा और सही डाइट से शरीर शेप में रह सकता है। मैं मणिपुर की हूं। वहां लड़का-लड़की में भेदभाव कम है। वहां लड़कियां भी किसी न किसी स्पोट्र्स का हिस्सा बनती हैं। मुझे लगता है लड़कियों को शुरू से सही डाइट मिले, खेलकूद में हिस्सा लें तो वे मज़्ाबूत भी बनेंगी और आत्म-रक्षा के गुर भी सीखेंगी। आज के समय में तो शारीरिक तौर पर मज़्ाबूत होना बहुत ज़्ारूरी हो गया है।


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