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कुछ तो लोग कहेंगे

चाहे सास-बहू के आपसी रिश्ते की बात हो या स्त्री की आर्थिक आजादी का मामला। हर मुद्दे पर लोग नकारात्मक टीका-टिप्पणी करने से बाज नहीं आते। आइए रूबरू होते है पाठिकाओं के कुछ ऐसे ही अनुभवों से।

By Edited By: Published: Tue, 01 Jul 2014 07:14 PM (IST)Updated: Tue, 01 Jul 2014 07:14 PM (IST)
कुछ तो लोग कहेंगे

ध्यान नहीं देती इन बातों पर

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आशा सिंह, जयपुर

लोगों को तो बस मौके की तलाश होती है, वे दूसरों के निजी जीवन में हस्तक्षेप करने से बाज नहीं आते। आज से तीस साल पहले जब मैं पहली बार ससुराल पहुंची तो लोगों ने मुझसे कहना शुरू कर दिया, तुम्हारी सास बेहद सख्त स्वभाव की हैं, उनके साथ दूरी बनाकर रखना तभी खुश रह पाओगी। खैर, लोगो की इन बातों की परवाह किए बगैर अपने स्नेहपूर्ण व्यवहार से मैंने सासू मां का दिल जीत लिया। समय बीता और मेरे दोनों बेटे युवा हो गए। बडे बेटे की शादी के बाद जब मेरी बहू आई तब भी लोगों ने मुझसे कुछ ऐसा ही कहा, बहू से ज्यादा लाड करोगी तो एक दिन तुम्हें ही पछताना पडेगा, सास हो, सास की तरह रहो। ऐसी बातों से कभी-कभी मन सशंकित हो उठता, लेकिन बहू को देखकर मेरा मन वात्सल्य से भर उठता। हमारे स्नेहिल रिश्ते को देखकर रिश्तेदार कहने लगे, तुम बहुत बडी गलती कर रही हो। बहू में बेटी मत ढूंढो, बहू कभी भी बेटी नहीं बन सकती। यह सुनकर मुझे बहुत दुख होता, लेकिन इन बेकार की बातों पर मैंने कभी भी ध्यान नहीं दिया। इसका परिणाम बेहद सुखद रहा। आज मेरी 86 वर्षीया सासू मां मुझसे बेहद स्नेह रखती है। उनके सहयोग से ही मैंने नौकरी करते हुए अपने दोनों बेटों की परवरिश की और बहू ने तो मेरे जीवन में बेटी की कमी पूरी कर दी।

आगे बढने नहीं देते ऐसे लोग

उमा अग्रवाल, बरगढ (ओडिशा)

मेरे पति अपने बिजनेस की वजह से बहुत परेशान थे क्योंकि अपने फर्नीचर के व्यवसाय में उन्हेंआशा के अनुरूप कामयाबी नहीं मिल रही थी। ऐसे में मैं उनकी मदद के लिए आगे आई। संयुक्त परिवार के अन्य सदस्यों को यह बात अच्छी नहीं लगी। उन्होंने कहना शुरू कर दिया, घर की बहू को यह सब शोभा नहीं देता, जब वह बाहर जाएगी तो रोटी कौन पकाएगा, यह काम औरतों के वश का नहीं..। मेरा मानना है कि लोगों की ऐसी बातें हमें आगे बढने से रोकती हैं, इसलिए हमें इन पर जरा भी ध्यान नहीं देना चाहिए। जीवन के उस कठिन दौर में मैं सारा ध्यान केवल अपने काम पर लगा रही थी। मेरे बाहर जाने से परिवार के सदस्यों को कोई असुविधा न हो, इसलिए रोजाना सुबह चार बजे उठ जाती और घर का सारा काम निबटाने के बाद ही बाहर निकलती। मेरी मेहनत रंग लाने लगी और तीन वर्षो के भीतर हमने फर्नीचर का एक और नया शो रूम खोल लिया। अब मैं उसे अकेले ही संभालती हूं। कल तक जो लोग मुझमें कमियां निकालते नहीं थकते थे, आज वही लोग अपने बिजनेस से जुडे मामलों में मुझसे सलाह लेने आते हैं। परिवार के अन्य सदस्यों को भी इस बात का एहसास हो गया कि मेरा निर्णय गलत नहीं था। अगर सच्चे इरादे से कोशिश की जाए तो कामयाबी जरूर मिलती है।


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