गुरु के सम्मान का पर्व गुरु पूर्णिमा
भारतीय संस्कृति में पुरातन काल से ही गुरु को आदर-सम्मान देने की परंपरा रही है। गुरु को हमेशा से ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान पूज्य माना जाता है। आचार्य देवोभव: का स्पष्ट अनुदेश भारत की पुनीत परंपरा है।
वरदविनायक चतुर्थी - 1 जुलाई
देवशयनी एकादशी - 8 जुलाई
चातुर्मास प्रारंभ - 9 जुलाई
गुरु पूर्णिमा - 12 जुलाई
सावन मास प्रारंभ - 13 जुलाई
कामदा एकादशी - 22 जुलाई
प्रदोष व्रत - 24 जुलाई
शनैश्चरी अमावस्या - 26 जुलाई
हरियाली तीज - 30 जुलाई
भारतीय संस्कृति में पुरातन काल से ही गुरु को आदर-सम्मान देने की परंपरा रही है। गुरु को हमेशा से ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान पूज्य माना जाता है। आचार्य देवोभव: का स्पष्ट अनुदेश भारत की पुनीत परंपरा है। हमारे धार्मिक ग्रंथों में गुरु को भी भगवान की तरह सम्मानजनक स्थान दिया गया है। गुरु के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए आषाढ शुक्ल पूर्णिमा को यह विशेष पर्व मनाया जाता है। गुरु अपने आप में पूर्ण होते हैं। अत: पूर्णिमा को उनकी पूजा का विधान स्वाभाविक है।
पथ प्रदर्शक हैं गुरु
आषाढ शुक्ल एकादशी को देवशयनी एकादशी होती है। ऐसी मान्यता है कि देवशयनी एकादशी के बाद सभी देवी-देवता चार मास के लिए सो जाते हैं। इसलिए देवशयनी एकादशी के बाद पथ प्रदर्शक गुरु की शरण में जाना आवश्यक हो जाता है। परमात्मा की ओर संकेत करने वाले गुरु ही होते हैं। इसीलिए गुरु की छत्रछाया से निकले कपिल, कणाद, गौतम, पाणिनी जैसे विद्वान ऋषि आदि अपनी विद्या वैभव के लिए आज भी संसार में प्रसिद्ध हैं। गुरुओं के शांत पवित्र आश्रम में बैठकर अध्ययन करने वाले शिष्यों की बुद्धि भी वहां के वातावरण के अनुकूल उज्ज्वल और उदात्त हुआ करती थी। तब सादा जीवन, उच्च विचार गुरुजनों का मूल मंत्र था। तप और त्याग ही उनका पवित्र ध्येय था। लोकहित के लिए अपने जीवन का बलिदान कर देना ही उनकी शिक्षा का आदर्श होता था।
श्रीकृष्ण हैं जगत गुरु
धर्मग्रंथों में गुरु शब्द की व्याख्या करते हुए लिखा गया है कि जो शिष्य के कानों में ज्ञान रूपी अमृत का सिंचन करे और उन्हें धर्म का मार्ग दिखाए वही गुरु है। यह जरूरी नहीं है कि हम किसी व्यक्ति को ही अपना गुरु बनाएं। योग दर्शन नामक पुस्तक में भगवान श्रीकृष्ण को जगतगुरु कहा गया है, क्योंकि महाभारत युद्ध के दौरान उन्होंने अर्जुन को कर्मयोग का उपदेश दिया था।
व्रत का विधान
इसी उदात्त परंपरा की याद दिलाने के लिए प्रत्येक वर्ष आषाढी पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन प्रात:काल शांत चित्त से अपने गुरु का स्मरण करते हुए गुरु पूर्णिमा व्रत का संकल्प करें। इस दिन अपने गुरु के पास जाकर उनका अर्चन, वंदन और सम्मान करना चाहिए। इस दिन अपने गुरु से आशीर्वाद, उपदेश और भविष्य के लिए निर्देश ग्रहण करना चाहिए। यदि गुरु दूर रहते हों, दिवंगत हों या आपने भगवान को ही अपना गुरु मान लिया हो तो उनके चित्र या पादुका (खडाऊं) को उच्च स्थान पर रखकर, लाल, पीले और सफेद कपडे को बिछाकर स्थापित करें, लाल स्नेह, पीला समृद्धि और श्वेत शांति का प्रतीक है। ये तीनों ही जीवन में परम आवश्यक हैं। गुरु के चित्र या पादुका का धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, चंदन, नैवेद्य आदि से पूजन करें। गुरु स्तोत्र का पाठ करें और श्रद्धापूर्वक गुरु का स्मरण करें। वेद व्यास ने वेद, उपनिषद और पुराणों का प्रणयन किया है। इसलिए वेद व्यास जी को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि वेद व्यास जी का जन्म भी इसी दिन हुआ था। इसलिए इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। आज के दिन व्यास जी के चित्र का पूजन और उनके द्वारा रचित ग्रंथों का भी अध्ययन करना चाहिए।
हमारे अमूल्य धरोहर
भक्ति और ज्ञान का संगम : विष्णु पुराण
सनातन धर्म में जिन 18 पुराणों का उल्लेख मिलता है, विष्णु पुराण उनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण और प्राचीन है। इसकी रचना श्री पराशर ऋषि द्वारा की गई है। यह इसके प्रतिपाद्य भगवान विष्णु हैं, जो सृष्टि के आदिकारण, नित्य, अक्षय, अव्यय तथा एकरस हैं। इस पुराण में आकाश आदि भूतों का परिमाण, समुद्र, सूर्य का परिमाण, पर्वत, देवतादि की उत्पत्ति, मन्वंतर, कल्प-विभाग, संपूर्ण धर्म, देवर्षि तथा राजर्षियों के चरित्र का विशद वर्णन है। भगवान विष्ण की प्रधानता होने के बाद भी यह पुराण विष्णु और शिव की अभिन्नता का प्रतिपादक है। विष्णु पुराण में मुख्य रूप से श्रीकृष्ण चरित्र का वर्णन है। इसमें संक्षेप में राम कथा का उल्लेख भी है। इसके अलावा भूगोल, च्योतिष, कर्मकांड, राजवंश और श्रीकृष्ण चरित्र आदि कई प्रसंगों का बडा ही अनूठा और विशद वर्णन किया गया है। श्री विष्णु पुराण में भी इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति, वर्ण व्यवस्था, आश्रम व्यवस्था, भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की सर्व व्यापकता, ध्रुव, प्रह्लाद, वेणु आदि राजाओं के वर्णन एवं उनकी जीवन गाथा, विकास की परंपरा, कृषि, गोरक्षा, आदि कार्यो का संचालन, सात समुद्रों और तीनों लोकों के वर्णन के अलावा, चौदह विद्याओं, वैवस्वत, मनु, इक्ष्वाकु, कश्यप, पुरुवंश, कुरुवंश और यदुवंश का वर्णन, कल्पांत के महाप्रलय जैसे विषयों का विस्तृत विवेचन किया गया है। कुल मिलाकर विष्णु पुराण में भक्ति और ज्ञान की प्रशांत धारा अविरल बह रही है, जो हमारे लिए अमृत तुल्य है।
संध्या टंडन