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कुछ तो लोग कहेंगे

जब मैंने अपनी नवविवाहिता बहू को आगे पढ़ाने का निर्णय लिया तो लोगों ने कहा कि क्या करेंगी बहू को ज्य़ादा पढ़ा कर

By Edited By: Published: Wed, 17 Aug 2016 12:15 PM (IST)Updated: Wed, 17 Aug 2016 12:15 PM (IST)
कुछ तो लोग कहेंगे
इरादे पर डटी रही सारिका बियानी, रिसडा (पबं.) जब मैंने अपनी नवविवाहिता बहू को आगे पढाने का निर्णय लिया तो लोगों ने कहा कि क्या करेंगी बहू को ज्य़ादा पढा कर, वैसे भी शादी के बाद पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से लडकियों को पढऩे के लिए समय कहां मिल पाता है! लोग बहुत कुछ कहते रहे लेकिन ऐसी बातों पर ध्यान दिए बिना मैंने उसे कंपनी सेक्रेट्रीशिप का कोर्स करने के लिए प्रोत्साहित किया। आखिरकार कुछ समय बाद उसकी मेहनत रंग लाई और मेरी इच्छा पूरी हो गई। कोर्स पूरा होने के बाद जल्द ही उसे एक अच्छी कंपनी में जॉब मिल गई। कुछ समय पहले मेरा एक्सीडेंट हो गया, तब उसने जॉब छोडकर मेरी बहुत सेवा की। इस बीच मेरी पोती का भी जन्म हो चुका था। इसलिए उसने अपनी कंपनी के लिए घर से काम करना शुरू कर दिया। यह देखकर मुझे बहुत खुशी होती है कि आज मेरी बहू आत्मनिर्भर है। अगर उस वक्त मैं लोगों की बातों की परवाह करती तो यह संभव नहीं हो पाता। दल की आवाज सुनी निर्मला हरिहर, पुणे मैं किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह करना चाहती थी, जिसके विचार मुझसे मिलते हों लेकिन कहीं भी बात नहीं बन पा रही थी। पास-पडोस के लोग मेरी शादी को लेकर कई तरह की बातें करने लगे थे। यह सब सुनकर मेरे माता-पिता भी परेशान हो गए। एक रोज तंग आकर उन्होंने गुस्से में मुझसे कहा कि अगर ऐसे ही अपनी मर्जी से जीना है तो घर छोड के कहीं और चली जाओ। यह सुनकर मैंने सचमुच घर छोड दिया और अपनी सहेली के पास पुणे चली गई। फिर उसकी मदद से अपने लिए हॉस्टल ढूंढा और कुछ ही दिनों में मुझे एक जॉब भी मिल गई। इसके एक-दो साल बाद जब मेरे घरवालों का गुस्सा शांत हो गया तो उन्होंने दोबारा मेरे लिए रिश्ता ढूंढना शुरू किया। इस बार एक ऐसा विवाह प्रस्ताव आया, जो मुझे भी पसंद आ गया। मैं अपने भावी पति से मिली। हमने एक-दूसरे के विचारों को जानने के बाद बहुत सोच-समझकर शादी का निर्णय लिया। आज मैं अपने परिवार के साथ बेहद खुश हूं क्योंकि उस वक्त मैंने अपने दिल की आवाज सुनी थी। मनसे जुडे मुहावरे नेकी कर दरिया में डाल रिश्तेदार की बचाई जान रीटा माटा, दिल्ली लगभग तीन साल पहले की बात है। मसूरी यात्रा के दौरान रास्ते में अपने एक बुजुर्ग रिश्तेदार से हमारी मुलाकात हुई। वे भी बस से मसूरी जा रहे थे। मैंने उनसे आग्रह किया कि आप बस छोडकर आराम से हमारे साथ चलिए। लिहाजा वे हमारे साथ चल पडे। बीच रास्ते में ही उनकी पत्नी को दिल का दौरा पड गया। हम उन्हें फौरन अस्पताल ले गए और उनके बेटे को फोन किया। अस्पताल का बिल भी हमने ही चुकाया। इस प्रक्रिया में दो दिन निकल गए और हम बिना घूमे ही तीसरे दिन वापस लौट गए। इस घटना के बाद उस परिवार के किसी भी व्यक्ति ने हमें फोन तक नहीं किया। इससे मुझे बहुत दुख हुआ पर मेरे पति ने मुझे समझाया कि किसी की भलाई करने के बाद हमें उसके बारे में ज्य़ादा नहीं सोचना चाहिए, इसीलिए तो कहा जाता है-नेकी कर दरिया में डाल।

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