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जरूरी है सजगता

किडनी संबंधी समस्याओं के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि शुरुआत में लोग इसके लक्षणों को पहचान नहीं पाते और जब तक उन्हें इसके बारे में मालूम होता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। ऐसे में किडनी ट्रांस्प्लांट ही एकमात्र विकल्प रह जाता है। क्यों होता

By Edited By: Published: Tue, 27 Oct 2015 02:42 PM (IST)Updated: Tue, 27 Oct 2015 02:42 PM (IST)
जरूरी है सजगता

किडनी संबंधी समस्याओं के साथ सबसे बडी दिक्कत यह है कि शुरुआत में लोग इसके लक्षणों को पहचान नहीं पाते और जब तक उन्हें इसके बारे में मालूम होता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। ऐसे में किडनी ट्रांस्प्लांट ही एकमात्र विकल्प रह जाता है। क्यों होता है ऐसा, जानने के लिए जरूर पढें यह लेख।

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हमारे शरीर में किडनी फिल्टर का काम करती है। तभी तो अच्छी सेहत के लिए इसका स्वस्थ होना जरूरी है। राजमा जैसे आकार वाली किडनियों का जोडा पीठ के मध्य भाग में पसलियों के ठीक नीचे स्थित होता है। इनका आकार हमारी मुट्ठी जितना बडा होता है। किडनी लाखों सूक्ष्म तंतुओं से मिलकर बनी होती है, जिन्हें नेफ्रॉन्स कहा जाता है। ये हमारे ख्ाून को फिल्टर करने का काम करती हैं। इस प्रक्रिया के दौरान किडनी ख्ाून में मौजूद नुकसानदेह तत्वों और शरीर में मौजूद अतिरिक्त पानी को छान कर यूरिन के रूप में शरीर से बाहर निकालने का काम करती है। किडनी के साथ दो नलियां जुडी होती हैं, जिन्हें यूरेटर कहा जाता है। इन्हीं के माध्यम से ख्ाून साफ होने के बाद उसका अवशेष ब्लैडर तक पहुंचता है। किडनी से संबंधित ज्य़ादातर बीमारियां नेफ्रॉन्स में गडबडी की वजह से होती हैं। अगर किसी वजह से किडनी के नेफ्रॉन्स क्षतिग्रस्त हो जाएं तो इससे वह सही ढंग से ख्ाून की सफाई नहीं कर पाती। नतीजतन हमारे शरीर को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पडता है। आमतौर पर आनुवंशिकता, डायबिटीज, हाई ब्लडप्रेशर और दर्द निवारक दवाओं के अधिक सेवन से किडनी को नुकसान पहुंचने का ख्ातरा रहता है। अति व्यस्त जीवनशैली और खानपान की गलत आदतों की वजह से आजकल भारत में हृदय रोग के बाद किडनी से संबंधित बीमारियां लोगों को सबसे ज्य़ादा परेशान कर रही हैं। इस समस्या का सबसे ख्ातरनाक पहलू यह है कि शुरुआत में लोग इसके लक्षणों को पहचान नहीं पाते। जब इस बीमारी का पता चलता है, तब तक उनकी दोनों किडनियां 60 से 65 प्रतिशत तक डैमेज हो चुकी होती हैं। अत: समझदारी इसी में है कि पहले से ही सावधानी बरती जाए। आइए जानते हैं कि किडनी से जुडी कौन सी स्वास्थ्य समस्याएं हमें परेशान कर सकती हैं और उनसे कैसे बचाव किया जाए।

किडनी में स्टोन

किडनी जब ख्ाून को फिल्टर करती है तो उसमें से सोडियम और कैल्शियम के अलावा अन्य मिनरल्स के अवशेष बारीक कणों के रूप में निकल कर यूरेटर के माध्यम से ब्लैडर तक पहुंचते हैं और यूरिन के साथ शरीर से बाहर निकल जाते हैं, पर कभी-कभी जब ख्ाून में इन तत्वों की मात्रा बढ जाती है तो ये किडनी में जमा होकर रेत के कणों या पत्थर के टुकडों जैसा आकार ग्रहण करने लगते हैं और इनसे ब्लैडर तक यूरिन पहुंचने का रास्ता अवरुद्ध हो जाता है।

कारण : आमतौर पर यूरिन में कुछ ख्ाास तरह के केमिकल्स होते हैं, जो इसमें पाए जाने वाले मिनरल्स को क्रिस्टल बनाने से रोकते हैं, पर किसी वजह से यूरिन में इन केमिकल्स का न बनना, तरल पदार्थों का सेवन न करना, यूरिनरी ट्रैक में इन्फेक्शन आदि की वजह से किडनी में स्टोन की समस्या पैदा होती है।

लक्षण : पेट में तेज दर्द, बार-बार टॉयलेट जाने की जरूरत महसूस होना, रुक-रुक कर यूरिन डिस्चार्ज होना, कंपकंपी के साथ बुख्ाार, भूख न लगना और जी मिचलाना, यूरिन के साथ ब्लड आना, यूरिन डिस्चार्ज करते समय दर्द महसूस होना।

बचाव : प्रतिदिन कम से कम आठ से दस ग्लास पानी पीएं, किडनी की नियमित जांच जरूर करवाएं, अगर पहले से डायबिटीज या हाई ब्लडप्रेशर हो तो सचेत रहना चाहिए। भोजन में प्रोटीन, सोडियम, कैल्शियम और फॉस्फोरस की मात्रा सीमित रखें। खाने में चीनी-नमक का इस्तेमाल सीमित और संतुलित मात्रा में करें। दर्द निवारक दवाओं के सेवन से बचें। दिन भर में दो कप से ज्य़ादा कॉफी का सेवन न करें।

उपचार : अगर स्टोन की समस्या ज्य़ादा गंभीर न हो तो यह दवाओं से भी ठीक हो जाती है, पर कुछ स्टोन ऐसे होते हैं, जिनमें कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है और उन्हें निकालने के लिए सर्जरी की जरूरत होती है। हालांकि सर्जरी के अलावा भी आजकल लैप्रोस्कोपी, यूरेट्रोस्कोपी , परक्यूटेनियस ने फ्रोस्टोलिथोटॉमी जैसी कई तरह की नई तकनीकें विकसित हो चुकी हैं, जिनसे मरीज को कोई तकलीफ नहीं होती और वह शीघ्र स्वस्थ हो जाता है।

यूरिनरी ट्रैक इन्फेक्शन

शरीर का यूरिनरी सिस्टम किडनी, यूरेटर, ब्लैडर और यूरेथ्रा से मिलकर बना होता है। इस सिस्टम में कभी-कभी लोगों कोसंक्रमण हो जाता है, जिसे यूरिनरी ट्रैक इन्फेक्शन कहा जाता है।

लक्षण : यूरिन डिस्चार्ज करते समय दर्द, बार-बार टॉयलेट जाना, सुस्ती, शरीर में कंपन और बुख्ाार, पेट के निचले हिस्से में दबाव, यूरिन में बदबू और रंगत में बदलाव।

बचाव : व्यक्तिगत सफाई का विशेष ध्यान रखें, सार्वजनिक टॉयलेट के इस्तेमाल से पहले भी फ्लश जरूर चलाएं। इन्फेक्शन के दौरान सेक्स से दूर रहें।

पॉलिसिस्टिक किडनी डिजीज

साधारण बोलचाल की भाषा में हम जिसे किडनी फेल हो जाना कहते हैं, दरअसल वह

पॉलिसिस्टिक किडनी डिजीज ही है। इसमें किडनी में गांठ बन जाती है और धीरे-धीरे उसकी कार्यक्षमता कम हो जाती है। ऐसा माना जाता है कि अधिक मात्रा में एल्कोहॉल और सिगरेट के सेवन से किडनी की कार्यक्षमता प्रभावित होती है और अगर इनका सेवन कम नहीं किया गया तो एक स्थिति ऐसी भी आती है, जब किडनी काम करना बंद कर देती है। हाई ब्लडप्रेशर और डायबिटीज के मरीजों में किडनी फेल होने की आशंका बढ जाती है।

लक्षण : पीठ और पेट के निचले हिस्से में दर्द, सिरदर्द, यूटीआइ, यूरिन के साथ ब्लड आना, हाथ-पैरों और आंखों के नीचे सूजन, सांस फूलना, भूख न लगना, पाचन संबंधी गडबडी, ख्ाून की कमी से त्वचा की रंगत का पीला या काला पडऩा, कमजोरी, थकान, बार-बार यूरिनेशन, उल्टी व जी मिचलाना, पैरों की पिंडलियों में खिंचाव होना, त्वचा में खुजली आदि लक्षण यह बताते हैं कि व्यक्ति की किडनियां ठीक से काम नहीं कर रहीं।

मर्ज की प्रमुख अवस्थाएं

किडनी फेल होने की समस्या को चार प्रमुख चरणों में बांटा जा सकता है :

पहला चरण : इस अवस्था में एक वयस्क पुरुष के एक डेसिलीटर ख्ाून में क्रियेटिनिन 0.6-1.2 मिलीग्राम एवं स्त्री में 0.5-1.1 मिलीग्राम होती है। इसके अलावा ईजीएफआर (एस्टिमेटेड ग्लोमेरूलर फिल्टरेशन रेट) सामान्य से 90 या उससे ज्य़ादा होता है। ईजीएफआर से यह पता चलता है कि किडनी कितना फिल्टर कर पा रही है। जांच करने पर यूरिन में प्रोटीन की अधिक मात्रा पाई जाती है।

दूसरा चरण : इसमें ईजीएफआर घटकर 90-60 के बीच में होता है, लेकिन क्रियेटिनिन सामान्य ही रहता है। इस स्टेज में भी यूरिन से ज्य़ादा प्रोटीन निकलता है।

तीसरा चरण : ईजीएफआर 60-30 के बीच आ जाता है, वहीं क्रियेटिनिन बढऩे लगता है। इसी स्टेज में किडनी की बीमारी के लक्षण सामने आने लगते हैं। शरीर में ख्ाून की कमी हो सकती है, ब्लड टेस्ट के बाद ख्ाून में यूरिया की मात्रा ज्य़ादा हो सकती है। त्वचा में खुजली जैसे लक्षण भी नजर आते हैं।

चौथा चरण : ईजीएफआर 30-15 के बीच होता है और क्रियेटिनिन बढकर 4 या इससे अधिक हो जाता है। यह वैसी अवस्था है, जिसमें जरा सी लापरवाही मरीज को डायलिसिस या ट्रांस्प्लांट की अवस्था में पहुंचा सकती है।

पांचवां चरण : ईजीएफआर 15 से कम हो जाता है और क्रियेटिनिन 4-5 हो जाता है। फिर मरीज के लिए डायलिसिस या ट्रांस्प्लांट ही एकमात्र उपाय बचता है।

क्या है उपचार

पॉलिसिस्टिक किडनी डिजीज यानी किडनी फेल्यर के उपचार को मेडिकल भाषा में रीनल रिप्लेस्मेंट थेरेपी (आरआरटी) कहते हैं। किडनी ख्ाराब होने पर स्थायी इलाज तो ट्रांस्प्लांट ही है, लेकिन जब तक ट्रांस्प्लांट नहीं होता, इसका अस्थायी हल डायलिसिस है। अगर स्टेज चार में भी मरीज खानपान में संयम बरते, नियमित दिनचर्या का पालन करे और समय पर डायलिसिस करवाता रहे तो वह सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है।

कैसे होता है ट्रांस्प्लांट

जब व्यक्ति की दोनों किडनियां लगभग 80 प्रतिशत काम करना बंद कर देती हैं, तब इस समस्या का स्थायी इलाज ट्रांस्प्लांट ही होता है। इस प्रक्रिया के दौरान मरीज और डोनर के ब्लड ग्रुप से लेकर टिश्यू मैचिंग तक कई तरह की जांच के बाद यह तय किया जाता है कि डोनर मरीज के लिए सही है या नहीं। डोनर की शारीरिक अवस्था की गहन जांच करने के बाद जब डॉक्टर्स इस बात को लेकर आश्वस्त हो जाते हैं कि किडनी रिमूवल सर्जरी के बाद डोनर शीघ्र स्वस्थ हो जाएगा और बाद में उसे कोई परेशानी नहीं होगी, तभी डॉक्टर किडनी ट्रांस्प्लांट का निर्णय लेते हैं। किडनी डोनेशन से पहले उससे जुडे मनोवैज्ञानिक और कानूनी पहलुओं को भी काफी अहमियत दी जाती है। कानूनन केवल माता-पिता, पति-पत्नी, भाई-बहन जैसे करीबी रिश्तों में किडनी डोनेशन को मंजूरी दी जाती है। इसके अलावा कुछ विशेष स्थितियों में विवाहित स्त्री या पुरुष के सास-ससुर को भी किडनी डोनेट करने की इजाजत मिल जाती है। ट्रांस्प्लांट की प्रक्रिया में डॉक्टर्स की दो बडी टीमें साथ मिलकर काम कर रही होती हैं। एक टीम डोनर की सर्जरी करती है और दूसरी मरीज की। दोनों सर्जरी एक ही समय पर चल रही होती है। डोनर के शरीर से किडनी को निकाल कर उसे साफ करने के कुछ ही मिनटों के भीतर मरीज के शरीर से ख्ाराब किडनी को हटाकर उसी स्थान पर जोड दिया जाता है। ट्रांस्प्लांट के एक सप्ताह बाद डोनर स्वस्थ हो जाता है, लेकिन मरीज को ताउम्र डॉक्टर के निर्देशों का पालन करते हुए संयमित दिनचर्या और खानपान अपनाने की जरूरत होती है।

अपनाएं स्वस्थ खानपान

-रोजाना के भोजन में नमक और चीनी का सीमित मात्रा में सेवन करें।

-मैग्नीशियम किडनी को स्वस्थ बनाए रखने में मददगार होता है। इसे प्राप्त करने के लिए अपने भोजन में रंग-बिरंगी सब्जियों और फलों की मात्रा बढाएं।

-35 साल की आयु के बाद साल में कम से कम दो बार ब्लड प्रेशर और शुगर की जांच जरूर कराएं।

-न्यूट्रिशन से भरपूर खाना, एक्सरसाइज और वजन पर कंट्रोल रखने से भी किडनी की बीमारी की आशंका को काफी कम किया जा सकता है।

-अंडे की सफेदी में एमिनो एसिड और सीमित मात्रा में फास्फोरस होता है, जो किडनी को स्वस्थ रखने में मदद करता है।

-मछली में ओमेगा-3 फैटी एसिड होता है, जो किडनी को हर बीमारी से बचाता है।

-लहसुन में एंटी ऑक्सीडेंट और एंटी क्लॉटिंग तत्व पाए जाते हैं, जो दिल के साथ किडनी को भी दुरुस्त रखते हैं।

-स्ट्रॉबेरी और जामुन का सेवन किडनी के लिए फायदेमंद साबित होता है।

-जैतून के तेल में एंटी इन्फ्लेमेटरी फैटी एसिड होता है, जो ऑक्सिडेशन को कम कर किडनी को स्वस्थ रखने में मदद करता है।

-अगर किडनी में स्टोन की समस्या हो तो नियमित रूप से प्याज का सेवन फायदेमंद साबित होता है।

-लाल अंगूर में फ्लेविनॉइड होता है, जो किडनी को बीमारियों से बचाता है।

विनीता

इनपुट्स : डॉ. सुनील प्रकाश, नेफ्रोलॉजिस्ट, डॉ. आदित्य प्रधान ट्रांस्प्लांट सर्जन, बी.एल. कपूर सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल दिल्ली


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