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एकल मां के हक में...

एकल मां के पक्ष में हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण फैसला आया है, जिसके अनुसार कोई भी संस्था मां को इसके लिए बाध्य नहीं कर सकती कि वह अपने बच्चे के डॉक्युमेंट्स में पिता का नाम दर्ज करे। कई दस्तावेजों में आज भी पिता के नाम का उल्लेख

By Edited By: Published: Thu, 24 Sep 2015 03:49 PM (IST)Updated: Thu, 24 Sep 2015 03:49 PM (IST)
एकल मां के हक में...

एकल मां के पक्ष में हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण फैसला आया है, जिसके अनुसार कोई भी संस्था मां को इसके लिए बाध्य नहीं कर सकती कि वह अपने बच्चे के डॉक्युमेंट्स में पिता का नाम दर्ज करे। कई दस्तावेजों में आज भी पिता के नाम का उल्लेख करना अनिवार्य होता है। इस लिहाज्ा से सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मां के हक में सराहनीय कदम है। फैसले की जानकारी दे रही हैं सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता कमलेश जैन।

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बीती 6 जुलाई 2015 को सर्वाेच्च न्यायालय ने आधी आबादी के हक में एक फैसला सुनाया, जो उसे मां होने का गौरव प्रदान करता है। नए फैसले के बाद एकल मांओं को अधिकार मिलेगा कि बच्चे के ज्ारूरी दस्तावेजों जैसे स्कूल प्रमाण पत्र, पासपोर्ट या संपत्ति पर उनके हस्ताक्षर मान्य हों। नए फैसले के बाद एकल, परित्यक्त, अविवाहित मांएं लाभान्वित होंगी। ऐसी स्त्री, जिसका पति उसे बच्चे के साथ छोड कर लापता हो गया हो, बच्चे के लालन-पालन, शिक्षा या करियर में उसने हाथ न बंटाया हो, इस फैसले से लाभान्वित होगी। दुष्कर्म से उपजी संतान की मां को भी अधिकार होगा कि वह बच्चे के डॉक्युमेंट्स पर साइन कर सके। सरकारी या ग्ौर सरकारी विभाग उसे पति का नाम बताने को बाध्य नहीं कर सकते। यदि ऐसा होता है तो व्यक्ति को इस फैसले की प्रतिलिपि दिखानी चाहिए।

सर्वश्रेष्ठ अभिभावक है मां

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला अविवाहित ईसाई मां के मामले में आया। उसने अपने बच्चे को अकेले पाल-पोसकर बडा किया। उसके जैविक पिता ने कभी मां-बेटे को मुड कर नहीं देखा। उसने गार्जियनशिप और वॉड्र्स एक्ट 1890 की धारा 7 में ख्ाुद को एकल अभिभावक बताने के लिए अदालत में याचिका डाली। इसकी वजह यह थी कि वह अपनी सेविंग्स और इंश्योरेंस पॉलिसीज्ा में बेटे को नॉमिनी बनाना चाहती थी। गार्जियन कोर्ट ने उस पर दबाव डाला कि वह बच्चे के पिता का नाम बताए। मां ने असहमति जताई तो अदालत ने उसकी अर्जी ख्ाारिज कर दी। उच्च न्यायालय ने कहा कि उसकी मज्र्ाी पर तभी विचार होगा, जब बच्चे के पिता को नोटिस जारी की जाए, यानी वह पति का नाम ज्ााहिर करे। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि पूरे विश्व में माना गया है कि मां ही बच्चे की सर्वश्रेष्ठ गार्जियन है। वह पिता, जिसने बच्चे की चिंता नहीं की, उसे सुरक्षा नहीं दी, ज्िाम्मेदारी नहीं निभाई, उसे कानूनी मान्यता देने की ज्िाद ग्ालत है। यह बच्चे के हित में भी नहीं है। प्रार्थी मां ने कहा कि यदि बच्चे का पिता कभी बच्चे में रुचि दिखाए तो वह अवश्य मुकदमे में उसे शामिल करेगी। मगर उसका नाम अभी सार्वजनिक करना उसके और बच्चे के हित में नहीं होगा।

प्राइवेसी राइट का उल्लंघन

सुप्रीम कोर्ट के अनुसार भारत धर्मनिरपेक्ष राज्य है, इसलिए इस केस का निबटारा स्त्री धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि भारत के कानून के अनुसार किया जा रहा है। किसी मां को उसके बच्चे के पिता का नाम बताने के लिए मजबूर करना 'निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा। बच्चे के कल्याण के लिए भी ज्ारूरी है कि उसके उस पिता का नाम गुप्त रखा जाए, जो उसे दुनिया में तो लाया, मगर उसकी ज्िाम्मेदारियां नहीं संभालीं।

बच्चे का भविष्य हो प्राथमिकता

भारत में रहने वाली बिन ब्याही ईसाई मां हिंदू मां की तुलना में ज्य़ादा नुकसान की स्थिति में है। वह ग्ौरकानूनी बच्चे की अभिभावक नहीं हो सकती। जबकि हिंदू मां ऐसे बच्चे की स्कूल गार्जियन होती है। उन्हें बच्चे के पिता के बारे में नोटिस नहीं देना होता। यदि कोर्ट ईसाई अविवाहित मां के हक के लिए साहसिक कदम न उठाता तो यह संविधान में प्रदत्त राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की अनदेखी होती। मां ने कहा है कि जब भी बच्चे का पिता बच्चे में रुचि दिखाएगा, दोबारा मुकदमा खोल कर निर्णय बदला जा सकता है। ग्ौरकानूनी बच्चों के विषय में गार्जियनशिप व कस्टडी के मसले एक बार तय होने के बावजूद खुले रहते हैं। निर्णय ज्ारूरत के अनुसार बदले जा सकते हैं।

बच्चे का कल्याण अदालत का सर्वोच्च दायित्व है और इसी के आधार पर फैसले सुनाए जाते हैं। पिता का नाम ज्ारूरी होने के कारण प्रार्थी बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र भी नहीं ले सकी, जोकि आजकल हर जगह एक महत्वपूर्ण दस्तावेज की तरह प्रयुक्त किया जाता है। मगर इस फैसले के बाद बच्चे के एडमिशन, पासपोर्ट या अन्य किसी विभाग या संस्था में पिता का नाम बताए बिना काम हो जाएगा। जहां तक बच्चे के जन्म प्रमाण पत्र का सवाल है तो यह मां द्वारा ऐफिडेविट (शपथ-पत्र/हलफनामा) देने पर दे दिया जाएगा। राज्य का कर्तव्य है कि देश का कोई नागरिक सिर्फ इसलिए परेशान न हो सके कि उसके माता-पिता या अभिभावक ने उसके लिए कुछ नहीं किया।

कमलेश जैन


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