पति पत्नी और दोस्त
दोस्ती का बंधन हर रिश्ते से ऊपर होता है। सुख हो या दुख, दोस्त हर मौके पर आपके साथ होते हैं। यह बंधन तब और मज़्ाबूत हो जाता है जब पति-पत्नी दोनों के दोस्त कॉमन हों और वे साथ एंजॉय करें। तब इस रिश्ते की ख़्ाूबसूरती निखर कर सामने आती
दोस्ती का बंधन हर रिश्ते से ऊपर होता है। सुख हो या दुख, दोस्त हर मौके पर आपके साथ होते हैं। यह बंधन तब और मज्ाबूत हो जाता है जब पति-पत्नी दोनों के दोस्त कॉमन हों और वे साथ एंजॉय करें। तब इस रिश्ते की ख्ाूबसूरती निखर कर सामने आती है।
जीवन में दोस्तों की अपनी ख्ाास अहमियत होती है। घर और ऑफिस के बाद हम अपना ज्य़ादातर समय अपने दोस्तों के साथ ही बिताते हैं। ऐसे में अगर पति-पत्नी के कॉमन दोस्त हों तो कई सारी समस्याएं सुलझ जाती हैं। दरअसल जब पति-पत्नी के अलग-अलग दोस्त होते हैं तो अकसर यह शिकायत होती है कि वे एक-दूसरे को समय नहीं दे पा रहे। ऐसे में अगर दोनों के कॉमन दोस्त हों तो शिकायतें अपने आप ख्ात्म हो जाती हैं।
समय की किल्लत नहीं
कॉमन दोस्त पति-पत्नी के रिश्तों को मज्ाबूत करने का काम करते हैं। दरअसल जब आपके कॉमन फ्रेंड्स होते हैं तो आपको अलग से समय निकालकर दोस्तों से मिलने नहींजाना पडता, लेकिन जब दोनों के अलग-अलग दोस्त होते हैं तो अकसर एक पार्टनर दूसरे पार्टनर के दोस्तों के बीच बोर हो जाता है या फिर इस बोरियत से बचने के लिए दोनों अपने दोस्तों के साथ अलग-अलग समय बिताते हैं। कॉमन फ्रेंड होने पर दंपती सारे काम एक साथ कर सकते हैं और जब वे ज्य़ादा समय साथ बिताते हैं, तो दोनों की आपसी बॉण्डिंग भी बढती है।
बातचीत का कॉमन टॉपिक
दोस्त कॉमन होते हैं तो बातचीत का टॉपिक भी कॉमन होता है। पति-पत्नी दोनों एक दूसरे के दोस्तों से अच्छी तरह परिचित होते हैं। ग्रुप में सभी एक-दूसरे के बारे में जानते हैं, उनके अनुभवों के बारे में जानते हैंै। ऐसे में किसी के भी बोर होने का सवाल ही नहींउठता बल्कि हंसी-मज्ााक से माहौल ख्ाुशनुमा हो जाता है।
बच्चों की बॉण्डिंग
पति-पत्नी की दोस्तों के साथ ये बॉण्डिंग उनके बच्चे भी शेयर करते हैं। दोस्तों के बच्चे भी आपस में फ्रेंडशिप कर लेते हैं। ऐसे में जब दंपती अपने बच्चों को दोस्तों के घर ले जाते हैं तो वे बोर नहीं होते। इससे पेरेंट्स को भी फायदा होता है। उन्हें बच्चों के लिए अलग से समय नहींनिकालना पडता। नहीं तो बाहर जाते समय बच्चों को घर पर अकेले छोडऩे का टेंशन बना रहता है।
वीकेेंड मस्ती
वीकेंड एक ऐसा वक्त होता है, जब हम अपना समय काम और घर से अलग अपने दोस्तों के साथ, परिवार के साथ बिताना चाहते हैं। अगर पति-पत्नी दोनों के फ्रेंड्स कॉमन हों तो वीकेंड पर सभी लोग एक साथ समय बिता सकते हैं।
अलग प्रोफेशन से हों दोस्त
पति-पत्नी अगर अलग-अलग प्रोफेशन से हों और उनके कॉमन फ्रेंड्स हों तो बातचीत का दायरा बढ जाता है। शेयर करने के लिए उनके पास बहुत सारी बातें होती हैं, लेकिन जब पति-पत्नी एक ही ऑफिस में काम करते हैं और उनके कॉमन दोस्त भी उसी ऑफिस में काम करने वाले हों तो बातचीत का दायरा सीमित हो जाता है, साथ ही कभी-कभी यह नीरस लगने लगता है।
सीमित दायरा
एक ही ऑफिस के कॉमन दोस्त होने के कारण आपके दोस्तों का दायरा भी सीमित हो जाता है। ऑफिस में भी आप उन्हीं दोस्तों से घिरे रहते हैं और वीकेेंड पर भी उन्हीं के साथ होते हैं। शुरुआत में यह सब अच्छा लग सकता है लेकिन लॉन्ग टर्म में यह कंपनी बोरिंग हो जाती है। ऑफिस और घर पर एक ही जैसी बातेें होने पर अकसर नए विचारों का प्रवाह रुक जाता है और जीवन में ठहराव आने लगने लगता है।
आपका बॉस पति का दोस्त
ये कॉमन दोस्ती उस समय अजीब मोड पर पहुंच जाती है, जब आपके कॉमन दोस्तों में कोई आपका बॉस या आपके पति का बॉस हो और दोस्ती के कारण आप गाहे-बगाहे उससे फेवर की मांग करने लगते हैं। इससे दोस्ती में खटास आ सकती है।
अनमैरिड दोस्त
आपका दोस्त अगर सिंगल हो, तो भी वह आपके लिए समस्या बन सकता है। कॉमन फ्रेंड होने के कारण वह बेरोकटोक आपके घर आता है, आपकी चीज्ाों का इस्तेमाल करता है। यही नहीं,वह आपके घर का इस्तेमाल दूसरे दोस्तों से मिलने के लिए मीटिंग पॉइंट की तरह करने लगता है जो आपकी प्राइवेसी के लिए संकट बन जाता है।
ज्य़ादा फ्रैंकनेस है ख्ातरनाक
कॉमन दोस्त होने के कारण सभी एक-दूसरे के बीच ओपन भी होते हैं। ये फ्रैंकनेस बैचलर होने पर अच्छी लगती है, लेकिन जैसे ही दो लोग एक होते हैं, दोस्तों से ऐसी फ्रैंकनेस खलने लगती है और इसका असर दोस्ती पर तो पडता ही है, पति-पत्नी के रिश्तों में भी दरार आने लगती है।
राज की बातें
दोस्त आपस में बहुत सारी बातें शेयर करते हैं। इन बातों में कुछ ऐसी बातें भी होती हैं, जिन्हें हम सिर्फ अपने दोस्तों से ही शेयर करते हैं। ये बातें पति को भी मालूम नहीं होतीं। आपका राज्ादार जब आपका कॉमन फ्रेंड बन जाता है तो अकसर उसके आने से सामने वाला असहज महसूस करने लगता है। उसके मन में राज्ा खुलने का डर समा जाता है और जब ऐसा होता है तो वह उस रिश्ते को खुल कर नहीं निभा पाता। इसलिए कहा जाता है कि रिश्तेदार तो जैसे भी मिलें, हमें निभाना पडता है, लेकिन दोस्त तो हम ख्ाुद चुनते हैं और उन्हें चुनते हुए हमें ख्ाास एहतियात बरतना चाहिए जिससे वे हमारे जीवन में खुशियां लाएं न कि जीवन को नर्क बना दें।
संगीता सिंह
(जयपुर की साइकोलॉजिस्ट सुनीता पांडे से बातचीत पर आधारित)