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साथ-साथ चलेंगे तो बात बनेगी

संतूरवादक पद्मश्री पंडित भजन सोपोरी का संगीत से रिश्ता सात पीढ़ी पुराना है। विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान अपर्णा से हुआ परिचय कब प्रेम में बदल गया, पता ही नहीं चला। चार दशक से भी ज्यादा लंबे साथ के इस सफर की दास्तान।

By Edited By: Published: Mon, 03 Nov 2014 03:31 PM (IST)Updated: Mon, 03 Nov 2014 03:31 PM (IST)
साथ-साथ चलेंगे तो बात बनेगी

कश्मीर के सूफियाना घराने के संतूरवादक पंडित भजन सोपोरी मौलिक चिंतक ही नहीं, कवि के रूप में भी जाने जाते हैं। आकाशवाणी में नौकरी के साथ-साथ संगीत की साधना और उसी के जरिये देश को एक सूत्र में बांधे रखने के उनके प्रयासों के लिए उन्हें संगीत नाटक अकादमी सम्मान और पद्मश्री सहित कई अलंकरणों से नवाजा गया। उनकी पत्नी अपर्णा अंग्रेजी साहित्य की प्रोफेसर रही हैं। पढाई के दौरान शुरू हुए प्रेम और फिर विवाह के 45 साल गुजार चुके इस दंपती के जीवन में वह सब है जो किसी आम दांपत्य में होता है - खीज, गुस्सा, शिकायतें.. पर इस सबसे ज्यादा है प्यार, चुहल, शरारतें और जीवन के साज को साथ-साथ बजाते रहने का जज्बा, इसी नहीं, अगले जन्मों में भी। इस अविरल सफर के कुछ अनछुए पन्ने।

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आपका परिचय कैसे हुआ?

भजन : हम साथ-साथ पढते थे कश्मीर यूनिवर्सिटी में। वहीं परिचय हुआ, सुंदर तो ये हैं ही और संवेदनशील भी। संगीत की समझ इनकी अच्छी है। इसलिए आकर्षण हुआ, जो धीरे-धीरे प्रेम में बदल गया।

अपर्णा : भगवान ने इनको सुंदरता और कला तो दी ही है, पढने में भी बहुत अच्छे रहे हैं। संगीत तो विरासत में मिला ही था, लिटरेचर, साइकोलॉजी और फिलॉसफी पर भी इनकी अच्छी पकड है। व्यवहार भी बहुत अच्छा है। तो बस हो गया।

विवाह में कोई मुश्किल नहीं आई?

भजन : नहीं, हमारी ओर से तो अडचन का सवाल ही नहीं था। इनकी ओर से जरूर थोडा था, पर वह भी इनके परिवार की ओर से नहीं था। इनके कुछ रिश्तेदारों को मेरे भविष्य को लेकर आशंका थी।

अपर्णा : मेरे पिताजी इनको बहुत प्यार करते थे। वे आश्वस्त थे। मेरे कुछ रिश्तेदारों ने चर्चाएं जरूर कीं, जो उन तक ही सीमित रहीं। उन्हें आशंका थी कि संगीतकारों के परिवार में लडकी जाएगी। एक तो ये लोग मूडी बहुत होते हैं। दूसरे करियर का कुछ सुनिश्चित नहीं होता। पर शादी बिना किसी दिक्कत के और परंपरागत रीति-रिवाज से हुई।

उनके मूड के उतार-चढाव को लेकर..?

अपर्णा : ये मूडी होने के साथ-साथ मेहनती बहुत हैं, संवेदनशील भी। जब मैं शादी करने जा रही थी, तो जानती थी कि कलाकार कैसे होते हैं। जब आप एक कलाकार के साथ अपने जीवन की डोर बांध रहे हों तो आपको उसकी जरूरतों को समझना होगा। यह केवल कलाकार नहीं, किसी भी सृजनधर्मी व्यक्ति के साथ समझना होगा। यह समझते हुए मैंने इन्हें घर के बंधनों से हमेशा आजाद रखा।

भजन : मुझे आज भी न तो आटे-दाल का भाव पता है और न घर की जरूरतों से कोई खास मतलब रहा। मैं बच्चों को बहुत प्यार करता हूं, पर मेरे बच्चे कैसे बडे हुए, यही बेहतर जानती हैं।

मतलब बच्चों की जिम्मेदारी पूरी तरह आपने निभाई?

अपर्णा : जी, वे पूरी तरह। हालांकि हम दोनों वर्किग रहे। दोनों की व्यस्तताएं रहीं। मैं सुबह कॉलेज जाती थी तो बच्चों को अपनी मां के पास छोड कर जाती थी और आते वक्त उन्हें साथ लेकर आती थी।

पंडित जी की रियाज और दूसरी व्यस्तताओं से आपको कोई परेशानी नहीं हुई?

अपर्णा : परेशानी तो बहुत हुई, लेकिन मैंने सब झेल लिया। (हंसते हुए)इस जन्म में इन्होंने मुझे बहुत परेशान किया है। इसीलिए मैं कहती हूं कि अगले जन्म में आप गाय बन के आएंगे और मैं कौवा बनूंगी। तो मैं आपकी पीठ पर बैठ के चोंच मारूंगी। पूरा बदला ले लूंगी।

भजन : मैं तो अभी इतना भुगत रहा हूं, अगले जन्म की क्या बात की जाए अभी से.. (हंसने लगते हैं।)

परेशान किस तरह किया आपको?

अपर्णा : इतना तो हर बीवी चाहती है कि मेरा पति मेरे साथ हो। साथ कहीं जाए, एक कप चाय पिए। दुनिया भर की जिम्मेदारियां तो आपने ले लीं, कुछ हमारे बारे में भी सोचा क्या?

भजन : अगर मैंने कश्मीर में रहते हुए कुछ अपना सोचा होता तो शायद राष्ट्रीय एकता की दिशा में जो करने में लगा था वैसा कुछ कर न सका होता। राजनीतिक तौर पर लाहौर ने श्रीनगर को काफी क्षति पहुंचाई, पर हमारी संस्कृति को नुकसान नहीं पहुंचा पाए। वह कुर्बानी ही थी कि मैं कश्मीर को देश से जोडे रखने में एक हेतु बन सका और अपने मोर्चे पर सफल रहा।

आप एक सांस्कृतिक सेतु के रूप में जानेजाते हैं तो आपको संघर्ष तो करना ही पडा होगा?

भजन : कश्मीर का लोकसंगीत अपना अलग स्थान रखता है और मैं तो कहता हूं कि पूरे भारत के लोकसंगीत को अगर जुटा लें तो सारी दुनिया का लोकसंगीत भी मिलकर उसका मुकाबला नहीं कर सकता। आतंकवाद और पाकिस्तानी दुष्प्रचार का प्रभाव जब वहां उग्रतम रूप में था, तब इसे सहेजे रखना आसान तो नहीं ही था।

अपर्णा : वो तो सब आपने कर दिया, पर हम तो आपके इकलौते थे। हम क्यों बलि का बकरा बनें (चिढाने के अंदाज में)। घर के मामले में, यहां तक कि बच्चों के मामले में भी ये बेहद लापरवाह रहे। एक घटना मैं आपको बताती हूं..

भजन : हुआ ये कि रिकॉर्डिग चल रही थी रेडियो में। गाना रिकॉर्ड कर रहा था मैं, तभी इनके पेरेंट्स का फोन आया कि बच्चा खो गया। जाहिर है, मेरा बच्चा खो गया था। तो मैंने कहा कि अच्छा रुकिए, मैं बात कर लेता हूं। फिर काम में लग गया और भूल गया। निकला तो रात के 8 बज गए थे। रिकॉर्डिग हो गई तो फिर याद आया। घर फोन किया तो इनके फादर ने फोन उठाया। मैंने पूछा- खो कौन गया। तो उन्होंने बडे गुस्से में कहा कि तुम्हारा ही बच्चा खो गया था, मिल गया। और फोन रख दिया। (झेंप भरी मुस्कान के साथ)

अपर्णा जी शिकायतें तो आपको बहुत हैं पंडित जी से। इनमें सबसे बडी शिकायत कौन सी है?

अपर्णा : रिगे्रट यही एक है कि सारी जिंदगी इन्होंने इतनी मेहनत की, पर उसका वह रिटर्न इन्हें नहीं मिला जो मिलना चाहिए था। हमें इस बात को लेकर इन पर बहुत गुस्सा आता है। क्योंकि इनके लिए न दिन था, न रात होती थी। कफ्र्यू होता था। ये अंधेरे में चल के जाते थे। फिर 90 के बाद जब ये वापस गए, इन्होंने पूरे कश्मीर से वापस एक-एक कलाकार को जुटाने की कोशिश की। बहुत कुछ झेलना पडा उस दौरान.. ये समझें कि वो सेकंड रेनेसां जैसा दौर था।

ऐसी स्थिति में तो इनका खयाल रखना भी आपके लिए बडी जिम्मेदारी रही होगी?

अपर्णा : जी बिलकुल। मेरे लिए यह भी एक बडे बच्चे रहे हैं। हम वैष्णो माता जा रहे थे। रास्ते में ये और मेरे दोनों बच्चे आगे निकल गए। जबर्दस्त हैं। मैंने एक बंदे से पूछा तो उसने कहा कि माता जी आपके तीनों लडके आगे निकल गए। अब आप समझें कि हमारी स्थिति क्या है। (हंसते हुए) एक तो माता जी हो गए हम और मेरे दोनों बच्चों के साथ इनको भी जोड दिया। इनको भगवान ने चिरयौवन दिया है तो हम क्या कर सकते हैं!

कश्मीर छोड कर जब आप दिल्ली आए तो उस समय नए माहौल से सामंजस्य बैठाने का अनुभव कैसा रहा?

भजन : यहां आने पर कोई ऐसी परेशानी तो हमें नहीं हुई, जैसी वहां से आने वाले दूसरे लोगों को हुई। क्योंकि हमारा तो एक जनरल ट्रांस्फर था। हालांकि यहां हमने फिर जीरो से शुरू किया..। इनिशियली तो काफी प्रॉब्लेमैटिक रहा।

अपर्णा : जब हम श्रीनगर से निकले, इट वाज अ फोटी सेवन रिपीटेड। हालत ऐसी थी कि ये कहां थे, ये हमको पता नहीं था और हम कहां थे, ये इनको नहीं पता था।

आपके रिश्ते के 45 साल बीत गए और इस दौरान बहुत गिले-शिकवे भी रहे। फिर भी आपके बीच मन की कोई दूरी नहीं आई। इसका रहस्य आप शेयर करना चाहेंगे?

अपर्णा : कंप्रोमाइज बहुत जरूरी है जीने के लिए, खास कर रिश्तों में। समझ होनी चाहिए पति-पत्नी के बीच। ये हकीकत है कि अगर दूसरी कोई लडकी होती इनके साथ तो वो निभा नहीं पाती इस तरह। वो अपनी जरूरतों को भी अहमियत देती। मगर हमने वह नहीं किया। हमने अपनी सारी जरूरतों को स्थगित किया। आजकल के लोगों को भी ये समझना है कि अगर किसी मुकाम तक पहुंचना है, तो बहुत सारी बाधाएं पार करनी होंगी। मगर ये जरूर हो कि साल में कम से कम एक हफ्ता निकालिए परिवार के लिए। उस दौरान बाकी सब बंद, केवल पति-पत्नी और परिवार। आज के बच्चों को समझना है कि जिंदगी की गाडी हमें चलानी है तो उसमें दो पहिये हैं। अगर वे साथ-साथ चलेंगे तो ही बात बनेगी। लडकी को ये बात समझनी है कि उसको इज्जत देनी है और लडके को भी इसका खयाल रखना होगा।

भजन : इन सबके अलावा तनाव का एक कारण आइडियो लॉजिकल क्लैश होता है। एक दूसरे की बात आप समझ लें, फिर अपनी आइडियोलॉजी के साथ जिएं तो कोई समस्या नहीं आती।

इष्ट देव सांकृत्यायन


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