इस सफर में रोमांच भी है-रोमैंस भी
फिल्म हासिल, पान सिंह तोमर और साहब, बीवी और गैंगस्टर बनाने वाले तिग्मांशु धूलिया आज फिल्म इंडस्ट्री का बड़ा नाम हैं। उन्होंने लीक से हट कर फिल्में बनाने का साहस दिखाया और कामयाब रहे। महज 22 की उम्र में तूलिका से उन्होंने कोर्ट मैरिज की। संघर्ष का दौर लंबा रहा, मगर इसी दौर में खूबसूरत सपने देखे और पूरे भी किए। मिलते हैं इस दंपती से।
इलाहाबाद के तिग्मांशु धूलिया ने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, दिल्ली से पढाई की। थर्ड ईयर में ही थे, जब तूलिका हमसफर बन गई। घर वालों के विरोध के बावजूद कोर्ट मैरिज की और सपनों की नगरी मुंबई आ गए। अब शादी की सिल्वर जुबली मना चुका है यह दंपती।
दोस्ती बदली लगाव में
तूलिका : पहली मुलाकात के वक्त शायद बहुत छोटे थे। छोटे शहरों में लडका-लडकी आपस में कम ही बात करते थे। करें तो मुद्दा बन जाता था। उस समय तो सब कुछ एडवेंचर लगता था। एडवेंचर में ही सफर चलता गया। कभी कुछ प्लान नहीं किया था, लेकिन सरप्राइजकी तरह सब मिलता गया। दोस्तों की मदद से आगे बढते गए। शादी में बडा विरोध यही था कि करियर सेटल नहीं था। हर माता-पिता यही सोचते हैं। तिग्मांशु के करियर के बारे में निश्चित तौर पर बताया नहीं जा सकता था। मगर शादी कर ली तो धीरे-धीरे घर वालों ने भी मान लिया।
तिग्मांशु : तूलिका अच्छी लगती थीं मुझे। इनका स्वभाव अच्छा था। तब मोबाइल तो था नहीं, हम एक-दूसरे को चिट्ठी लिखते थे। सिनेमाघर भी ज्यादा नहीं थे, कहीं जाते तो पकड लिए जाते। लिहाजा दोस्तों के घर पर ही मुलाकातें होती थीं।
तूलिका : अब माता-पिता उदार हो गए हैं। बच्चों को आजादी मिल रही है। हम मिलते थे तो दिल डर से धडकता रहता था। अब शायद ऐसा नहीं होता होगा।
तिग्मांशु : जब तक प्यार नहीं होता, मिलना बडा सहज होता है। क्लासमेट्स या दोस्तों की बहनों से हम बेहिचक मिलते थे, साथ में डांस भी कर लेते थे। कोई पूछता भी नहीं था कि अरे उसके साथ क्या कर रहा था? मगर जब तूलिका दोस्त से ज्यादा कुछ हो गई तो साथ घूमना, पिक्चर देखना बंद हो गया।
तूलिका : हमारे स्कूल्स अलग थे। मैं गर्ल्स कॉलेज में तो तिग्मांशु ब्वॉयज कॉलेज में थे। तब ये बडे जिंदादिल और बिंदास थे। अभी तो थोडे नरम स्वभाव के हो गए हैं।
कोर्ट में बने हमसफर
तूलिका : मैं अपने घर में बडी बेटी हूं। घर में शादी की बातचीत चल रही थी। जबकि तिग्मांशु पढ ही रहे थे। घर से दबाव बढा तो मैंने ही इनसे कहा कि शादी कर लेते हैं।
तिग्मांशु : शादी तो करनी थी। दिक्कत यही थी कि मैं थर्ड ईयर भी पास आउट नहीं हुआ था। दो-तीन महीने बाकी थे। गर्मी की छुट्टियां थीं। मुझे पता था कि इनके घर पर तनाव है, इसलिए छुट्टियों में इलाहाबाद नहीं गया। हॉस्टल में रुक गया। मेरे एक दोस्त संजय ब्राउन मयूर विहार में रहते थे। तूलिका वहीं आई। मेरे पास सिर्फ 40 रुपये थे। दोस्तों की मदद से शादी हुई। तीस हजारी कोर्ट जाकर रजिस्ट्रेशन कर लिया। कुछ दिन छुप कर रहना पडा। इनके पिता बडे अधिकारी थे। पडोसी भी पुलिस में थे। शादी के बाद इलाहाबाद जाना था। सीधी ट्रेन के बजाय कानपुर तक गए और वहां से दूसरी ट्रेन पकडी। हालांकि हफ्ते भर में ही घर में सब ठीक हो गया। दिल्ली लौट कर कुछ दोस्तों के साथ रहे, फिर कमरा लिया। एक ही कमरा था तो हमने बैलकनी को किचेन बना दिया।
तूलिका : हमें कभी खयाल नहीं आया कि कल क्या होगा? सपनों में जीते थे, लेकिन सपने सच होते गए। एक बार तिग्मांशु ने एक जिंगल किया था। पांच सौ रुपये मिले और हमें लगा, अरे इससे तो हम दुनिया खरीद लेंगे। मुझे कभी नहीं लगा कि हमारे पास किसी चीजकी कमी है।
सपनों से यथार्थ में आना
तूलिका : संयोग था कि हम बचपन के सारे दोस्त आसपास रहते थे। इसलिए संघर्ष किया भी तो उसका एहसास नहीं हुआ।
तिग्मांशु : दोस्तों ने हर कदम पर साथ दिया। शादी के बाद केरल गए कुछ समय के लिए। वहां टू बेडरूम सेट लिया था, जिसका भाडा भी संजय देते थे।
तिग्मांशु : अब एक-दूसरे को समझने की इच्छा कम होने लगी है। टेक्नोलॉजी ने रिश्तों में दूरियां बढा दी हैं। अब तो लाइक्स और डिस्लाइक्स से बात होती है। किसी ने डिस्लाइक कर दिया तो दिमाग खराब हो गया। समाज अकेलेपन से जूझ रहा है।
तूलिका : एक साल पहले की बात है। मेरी बेटी ने बताया कि उसकी क्लास में ज्यादातर बच्चों के पेरेंट्स अलग हो चुके हैं। अजीब लगा सुन कर। रिश्ते कैसे बिखरने लगे हैं! मुझे लगता है कि केवल परिवार में ही बिना शर्त प्यार मिलता है। हमारी बॉन्डिंग इतनी मजबूत है कि कुछ भी हो, हम साथ रहेंगे।
तिग्मांशु : लोग शादी से भाग रहे हैं। किसी को इस पर विश्वास नहीं है तो कोई 40-45 की उम्र में शादी कर रहा है। सोचिए, जब उनके बच्चे टीनएजर होंगे, वे खुद बूढे हो जाएंगे। पूरा संतुलन ही बिगड जाता है।
तूलिका : परिवार का प्यार नि:शर्त होता है। दोस्त भी दो-चार ही होते हैं, जो सचमुच प्यार करते हैं। भावनात्मक लगाव तो चाहिए ही। कितने भी मॉडर्न हो जाएं, घर लौट कर हम किसी से सुख-दुख तो शेयर करना चाहते हैं।
बंटवारा जिम्मेदारियों का
तिग्मांशु : घर में फैसले तूलिका लेती हैं।
तूलिका : हां। फैसले मैं लेती हूं, बाकी सब ये देखते हैं। इसे लेकर कोई बहस नहीं होती।
तिग्मांशु : ये पेंटिंग करती थीं। घर के बारे में मुझसे बेहतर सोचती हैं। कलर्स, फैब्रिक की समझ इनकी अच्छी है। मैं इसमें जीरो हूं। हमने नया घर लिया है, उसका इंटीरियर का काम तूलिका ही देख रही हैं। ये शॉपिंग फ्रीक हैं। मैं जाता हूं तो एक ही दुकान से सब कुछ खरीद कर लौट आता हूं। तूलिका बहुत मोल-भाव करती हैं।
तूलिका : हां, इसीलिए तिग्मांशु की लाई हुई चीजें कई बार फेंकनी पडती हैं।
ग्लैमर वर्ल्ड की असुरक्षा
तूलिका : नहीं, इन्हें लेकर असुरक्षा कभी नहीं रही। हम जानते हैं, कितना भी लडें-झगडें मगर रहेंगे एक-दूसरे के साथ।
तिग्मांशु : यही मुझे रास्ते पर रखती हैं। मुझे लगता है अगर कोई व्यक्ति अपने माता-पिता से प्यार करता है, उनके प्रति केयरिंग है, बहन के प्रति प्रोटेक्टिव है, दोस्तों के सुख-दुख में साथ निभाता है तो वह आगे दांपत्य जीवन भी निभा लेगा। देखिए, अब समय बदल गया है। पति-पत्नी दोनों को पर्सनल स्पेस चाहिए। शादी के बाद स्थितियां बदलती भी हैं। दूसरे की जरूरतों-इच्छाओं का मान भी रखना होता है। कई बार बंधन महसूस होता है, लेकिन रिश्ते ऐसे ही निभाए जाते हैं।
तूलिका : एक-दूसरे पर भरोसा व पर्सनल स्पेस जरूरी है। नैगिंग या लगातार टोकने से रिश्ते बिगडते हैं। एक-दूसरे को अपने हिसाब से जीने दें, उसे अपनी इच्छाएं पूरी करने दें, तभी परिवार में संतुलन बना रहता है।
बदलाव जिंदगी में
तूलिका : शादी के बाद ये ज्यादा नहीं बदले। ये पहले से ही केयरिंग व लविंग हैं। सादा जीवन उच्च विचार पर यकीन रखते हैं। दूसरों की तकलीफ से परेशान हो जाते हैं। आज के समय में ऐसे लोग कितने हैं, जो दूसरों के बारे में भी सोचते हैं?
तिग्मांशु : अच्छा ही हुआ कि कम उम्र में जिम्मेदारियां पड गई, इससे ग्रोथ भी जल्दी हुई। जानशीं (बेटी) के आने के बाद बहुत बदलाव हुआ। उसे सलीम जावेद की फिल्में अच्छी लगती हैं। उसे अमिताभ बच्चन की डॉन अच्छी लगती है, लेकिन शाहरुख खान की डॉन उसे पसंद नहीं है। प्रकृति, संगीत, आर्ट और कल्चर में उसकी दिलचस्पी है। वह पियानो सीख रही है। छुट्टी में कहीं घुमाने की जिद नहीं करती। बल्कि वह हमें असिस्ट करती है। ऑफिस जाकर काम सीखती है। मुझे लगता है, बच्चों में पारिवारिक मूल्य आने चाहिए, तभी उनकी जडें मजबूत रहती हैं और उनके पैर जमीन पर बने रहते हैं। मैं खुश हूं कि मैंने टेढा रास्ता चुना। जीवन में कई मौके आए, जब जेब में एक पैसा भी नहीं होता था, लेकिन कोई न कोई दोस्त मदद कर देता। कभी किसी से उधार नहीं मांगना पडा। दोस्तों ने मेरी परेशानी समझी और काम बन गया।
फ्रीडम नहीं प्यार चाहिए
तिग्मांशु : शादी का फैसला हमें कम उम्र में लेना पडा। अगर तूलिका के घर में परेशानी नहीं होती तो शायद दो-चार साल रुक कर शादी करते। हमारे समय में लिव-इन-रिलेशनशिप का कॉन्सेप्ट नहीं था। खैर, अब तो 25 साल हो गए शादी को। शादी न करता तो बिगडैल हो जाता। मैं ठहरा दोस्ती-यारी वाला बंदा। आओ और खाओ-पियो में ही लगा रहता। इसलिए शादी का अंकुश जरूरी था मेरे लिए। अच्छा ही हुआ, जो समय रहते शादी हो गई।
तूलिका : पति-पत्नी से ज्यादा कंपेनियनशिप वाली फीलिंग रही है हमारी। शादी का दबाव जैसा कुछ कभी महसूस नहीं हुआ। आजकल छोटी-छोटी चीजों पर लोग अलग हो जाना चाहते हैं। ऐसा लगता है, मानो दुनिया का संतुलन बिगड रहा है। प्यार-मुहब्बत से आदमी दूर भाग रहा है। उसे यह सब बोझ लग रहा है। लोगों को आजादी चाहिए। जबकि मुझे लगता है फ्रीडम नहीं, सबको प्यार चाहिए।
तिग्मांशु : हमारे आसपास कई जोडे हैं, जिन्होंने शादी की, बच्चे हुए। फिर एक दिन शादी टूट गई। बोर हो गए थे एक-दूसरे से। फिल्म इंडस्ट्री में ही नहीं, पूरी दुनिया में यही हो रहा है। एक दोस्त की बीवी को शिकायत थी कि वह घर में रहता है, जबकि वह घर से ही काम कर रहा है। हर कोई तो ऑफिस नहीं जाता। पेट तो सभी भरते हैं न!
अजय ब्रह्मात्मज