Move to Jagran APP

कितने आज़ाद हैं हम ?

क्या व्यावहारिक तौर पर भी हम उतने ही आज़ाद हैं? किन क्षेत्रों में युवा अभी भी बंधन महसूस करते हैं, जानते हैं इस बारे में उनकी राय।

By Edited By: Published: Tue, 18 Apr 2017 03:19 PM (IST)Updated: Tue, 18 Apr 2017 03:19 PM (IST)
कितने आज़ाद हैं हम ?

देश के आजाद होने के बावजूद युवाओं के मन में अकसर अपनी आजादी को लेकर सवाल उठते रहते हैं। संवैधानिक तौर पर तो हम बहुत पहले आजाद हो चुके हैं मगर क्या व्यावहारिक तौर पर भी हम उतने ही आजाद हैं? किन क्षेत्रों में युवा अभी भी बंधन महसूस करते हैं, जानते हैं इस बारे में उनकी राय।

loksabha election banner

अपने लिए हैं आजाद यह सोशल मीडिया का युग है। हमें जब भी कोई राय व्यक्त करनी होती है, उसे सोशल साइट्स पर शेयर कर देते हैं। हम ये भूल जाते हैं कि उसे हर व्यक्ति अपने ढंग से समझ रहा है। कई बार मामलों को बेवजह की तूल दे दी जाती है, उन पर बहस छिडऩे लगती है, कुछ दिनों तक मुद्दा ट्रेंडकरता है और फिर सब भूल जाते हैं। नारी सशक्तीकरणऔर लैंगिक समानता पर भी समय-समय पर सब अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं पर क्या दिल से वे उन बातों या अपने ही विचारों की इज्जत करते हैं? शायद नहीं। हम बदल तो रहे हैं पर सिर्फ दिखावे के लिए, मन से नहीं। अगर लडकियां आज भी खुदको सुरक्षित महसूस नहीं कर रही हैं तो उसकी वजह यह समाज ही है। उन्हें आगे बढऩे का प्लेटफॉर्म तोमिल रहा है पर जब वे वाकई आगे बढ जाती हैं तो समाज उन्हें पीछे होने के लिए बाध्य करने लग जाता है। हमारी आजादी सिर्फ हमारे लिए होती है, उसके एवज में हम दूसरों को उनकी आजादी से समझौता करवाने लगे हैं।

बदलना होगा युवाओं को देश के संविधान में हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे अधिकार मिले जरूर हैं लेकिन फिर भी हम पूरी तरह से आजाद नहीं हैं। कॉलेजोंके कैंपस में राजनीतिक हस्तक्षेप बढ गया है, जिसकी वजह से स्टूडेंट्स किसी भी मुद्दे पर विमर्श करने से पहले कई बार सोचते हैं। उन्हें लगता है कि कहीं वे बेवजह किसी बहस का मुद्दा न बन जाएं। इससे कहीं न कहीं छात्रों की आजादी बाधित होती है पर युवाओं को भी यह ध्यान रखना चाहिए कि आजादी का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि नियमों और कानूनों को तोडा जाए। देश के आम इंसान की हालत आज भी कहीं न कहीं वैसी ही है जैसी आजादी के पहले थी। अगर हम पूरी तरह आजाद होते तो देश में अशिक्षा, आतंकवाद या लडकियों के प्रति अन्याय जैसी बुराइयां नहीं होतीं। देश में स्त्रियोंं के प्रति होने वाले अपराधों का ग्राफ तेजी से बढता जा रहा है। हमारे सामाजिक मूल्य, रीति रिवाज और प्रथाएं ही कुछ ऐसी हैं, जिनकी वजह से पुरुष प्रधान समाज स्त्रियों के अधिकारों का हनन करता रहा है। हम युवाओं को यह सोच बदलनी होगी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.