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अपनाएं सजगता रहें स्वस्थ

लिवर हमारे शरीर का वह जरूरी हिस्सा है, जिसके सहयोग के बिना पाचन-तंत्र का काम करना असंभव है। इसलिए हमें इसकी सेहत का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए।

By Edited By: Published: Mon, 06 Jun 2016 02:43 PM (IST)Updated: Mon, 06 Jun 2016 02:43 PM (IST)
अपनाएं सजगता रहें स्वस्थ

आमतौर पर लोग दिल की बीमारियों और डायबिटीज से बचाव को लेकर काफी सजगता बरतते हैं, पर लिवर को नजरअंदाज कर देते हैं। ऐसा करना अनुचित है क्योंकि इसकी वजह से लिवर सिरोसिस जैसी गंभीर बीमारी हो सकती है। इस समस्या के बारे में जानने से पहले यह समझना बहुत जरूरी है कि हमारे शरीर का यह महत्वपूर्ण अंग काम कैसे करता है?

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कैसे करता है काम

त्वचा के बाद लिवर शरीर का दूसरा सबसे बडा अंग है। सामान्य स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में इसका वजन लगभग 1.5 से 2 किलोग्राम के बीच होता है। हमें स्वस्थ और सक्रिय बनाए रखने के लिए यह 500 से भी ज्यादा छोटे-बडे काम करता है। यहां इसके सभी कार्यों का ब्योरा देना मुश्किल है। अगर इसके सबसे प्रमुख कार्य की बात की जाए तो हम जो कुछ भी खाते हैं, वह पहले आंतों में जाता है। वहां मौजूद एंजाइम्स भोजन को बारीक कणों में परिवर्तित कर देते हैं। इसके बाद आंतों से यह आधा पचा हुआ भोजन लिवर में जाकर स्टोर होता है। लिवर हमारे शरीर में उस रिफाइनरी फैक्ट्री की तरह होता है, जो अधपचे भोजन के बारीक कणों में से पोषक तत्वों को छांट कर अलग करता है। उसके बाद रक्त प्रवाह के साथ सभी विटमिंस और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स हमारे उन अंगों तक पहुंचते हैं, जहां उनकी जरूरत होती है। इसके अलावा यह पानी में घुलनशील विषैले तत्वों को अलग करके उन्हें किडनी में भेज देता है। वहां से यह गंदगी यूरिन के साथ शरीर से बाहर निकल जाती है। इसके अलावा जो अवशेष पानी में घुलने के योग्य नहीं होता, वह लिवर से मलाशय में चला जाता है और स्टूल के रूप में शरीर से बाहर निकल जाता है। इसके अलावा हम जो भी दवाएं खाते हैं, लिवर उसके विषैले तत्वों को निष्क्रिय करने का भी काम करता है। यह रक्त में मौजूद फैट, अमीनो एसिड और ग्लूकोा के स्तर को नियंत्रित रखता है। यह शरीर को इन्फेक्शन और हैमरेज से भी बचाता है। हमारे शरीर में खून जमने की प्रक्रिया भी इसी अंग से संचालित होती है। अगर शरीर का कोई हिस्सा कट जाए तो लिवर की सक्रियता से ही ख्ाून जमने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है और इससे ब्लीडिंग रुक जाती है। लिवर विभिन्न प्रकार के प्रोटीन, एंजाइम और हॉर्मोन्स बनाने का भी काम करता है, जो हमारे शरीर को कई तरह की बीमारियों से बचाते हैं और टूटी-फूटी कोशिकाओं के मरम्मत में भी सहायक होता है। लिवर में आयरन, जरूरी विटमिंस और केमिकल्स का संग्रह होता है और यहीं से शरीर की जरूरत के मुताबिक इन तत्वों की आपूर्ति होती है। लिवर एक और ऐसा महत्वपूर्ण कार्य करता है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आकस्मिक रूप से जब हमारे शरीर को एनर्जी की जरूरत होती है तो उसके लिए यह अपने पास कार्बोहाइड्रेट को जमा करके सुरक्षित रखता है। आकस्मिक जरूरत पडने पर उसे ग्लाइकोजेन में परिवर्तित करके शरीर को तुरंत एनर्जी देता है। इसकी वजह से ही कि बिना भोजन के भी व्यक्ति कई दिनों तक जीवित रह जाता है।

शरीर का जो अंग हमारे लिए इतने सारे काम करता है, जाहिर है कि उसके बीमार होने से हमें कई तरह की परेशानियां होंगी।

क्यों होती हैं बीमारियां

लिवर को स्वस्थ रखना बहुत जरूरी है। आमतौर पर लिवर से संबंधित तीन समस्याएं सबसे ज्यादा देखने को मिलती हैं- फैटी लिवर, हेपेटाइटिस और सिरोसिस। फैटी लिवर की समस्या में वसा की बूंदें लिवर में जमा होकर उसकी कार्यप्रणाली में बाधा पहुंचाती हैं। यह समस्या घी-तेल, एल्कोहॉल और रेड मीट के अधिक सेवन से हो सकती है। हेपेटाइटिस होने पर लिवर में सूजन आ जाती है। खानपान में स्वच्छता की कमी, असुरक्षित यौन संबंध या ब्लड ट्रांसफ्यूान की वजह से भी यह बीमारी हो सकती है। सिरोसिस में लिवर से संबंधित कई समस्याओं के लक्षण एक साथ देखने को मिलते हैं। यह लिवर संबंधी समस्याओं की सबसे गंभीर और अंतिम अवस्था मानी जाती है। इसमें लिवर की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होने लगती हैं। सामान्य अवस्था में क्षतिग्रस्त होने के साथ किसी अंग की नई कोशिकाएं भी बनती रहती हैं पर सिरोसिस की स्थिति में लिवर की क्षतिग्रस्त कोशिकाओं का दोबारा निर्माण संभव नहीं हो पाता। आमतौर पर ज्यादा एल्कोहॉल लेने की आदत, खानपान में वसा युक्त चीजों या नॉनवेज का अत्यधिक मात्रा में सेवन और दवाओं के साइड इफेक्ट की वजह से भी यह समस्या हो जाती है। इसके अलावा कई बार एल्कोहॉल से दूर रहने वाले लोगों को भी लिवर सिरोसिस हो जाता है, जिसे नैश सिरोसिस यानी नॉन एल्कोहॉलिक सिएटो हेपेटाइटिस कहा जाता है।

सिरोसिस की तीन अवस्थाएं

ए अवस्था : सिरोसिस के प्रारंभिक यानी ए अवस्था में अकसर थकान महसूस होना, वजन का लगातार घटना और पाचन संबंधी गडबडियां देखने को मिलती हैं।

बी अवस्था : इसमें चक्कर और उल्टियां आना, भोजन में अरुचि और बुख्ाार जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं।

सी अवस्था : इसमें सामान्यत: ऊपर बताए गए लक्षण ही देखने को मिलते पर उनकी गंभीरता बढ जाती है। शुरुआत की दोनों अवस्थाओं को दवाओं से नियंत्रित किया जा सकता है लेकिन अंतिम अवस्था में दवाओं का कोई असर नहीं होता और ट्रांस्प्लांट ही एकमात्र उपाय रह जाता है।

कैसे होता है लिवर ट्रांस्प्लांट

हालांकि, लिवर प्रत्यारोपण की प्रक्रिया काफी जटिल होती है लेकिन अब किडनी की तरह इसका भी सफल प्रत्यारोपण हो जाता है। जिस किसी व्यक्ति को लिवर प्रत्यारोपण की जरूरत होती है, उसके परिवार के किसी सदस्य (माता/पिता, पति/पत्नी के अलावा सगे भाई/बहन) द्वारा लिवर डोनेट किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए कुछ कानूनी औपचारिकताएं पूरी करना जरूरी है। लिवर के संबंध में सबसे अच्छी बात यह है कि अगर इसे किसी जीवित व्यक्ति के शरीर से काटकर निकाल भी दिया जाए तो समय के साथ यह विकसित होकर अपने सामान्य आकार में वापस लौट आता है। इससे डोनर के स्वास्थ्य पर भी कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। इसका दूसरा तरीका यह भी है कि अगर किसी ब्रेन डेड व्यक्ति के परिवार वाले उसके देह दान की इजाजत दें तोछह घंटे के भीतर उस ब्रेन डेड व्यक्ति के शरीर से लिवर निकाल कर उसका प्रत्यारोपण किया जा सकता है।

सर्जरी के बाद सेहत

लिवर ट्रांसप्लांट का ऑपरेशन काफी जटिल होता है। इसमें डोनर और मरीज दोनों की सर्जरी एक साथ चलती है। डोनर के शरीर से स्वस्थ लिवर को निकाला जाता है, मरीज के लिवर के ख्ाराब हो चुके हिस्से को सर्जरी द्वारा हटाकर वहां स्वस्थ लिवर को स्टिचिंग के जरिये प्रत्यारोपित किया जाता है। इसके लिए बेहद बारीक धागे का इस्तेमाल होता है, जिसे प्रोलीन (क्कह्म्शद्यद्गठ्ठद्ग) कहा जाता है। लंबे समय के बाद ये धागे शरीर में घुल कर नष्ट हो जाते हैं और इनका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता। ट्रांस्प्लांट के बाद मरीज का शरीर नए लिवर को स्वीकार नहीं पाता, इसलिए उसे टैक्रोलिनस (ञ्जड्डष्ह्म्शद्यद्बठ्ठह्वह्य) ग्रुप की दवाएं दी जाती हैं, ताकि मरीज के शरीर के साथ प्रत्यारोपित लिवर अच्छी तरह एडजस्ट कर जाए। हालांकि इनके साइड इफेक्ट से कभी-कभी किडनी के प्रभावित होने की आशंका होती है लेकिन मरीज का जीवन बचाने के लिए ट्रांस्प्लांट के बाद उसे ताउम्र ये दवाएं दी जाती हैं। एहतियात के तौर पर सर्जरी के बाद भी मरीज और डोनर दोनों को साल में एक बार अपना लिवर फंक्शन टेस्ट जरूर करवाना चाहिए।

विनीता

इनपुट्स : डॉ. विवेक विज, डायरेक्टर, लिवर ट्रांस्प्लांट डिपार्टमेंट, फोर्टीस हॉस्पिटल, नोएडा


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