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सोना कभी नहीं खोना

पहले ऐसा माना जाता था कि अनिद्रा बढ़ती उम्र की समस्या है, पर अब स्कूली बच्चे भी तेज़ी से इसकी गिरफ्त में आ रहे हैं। यह उनकी सेहत और मानसिक विकास के लिए बहुत नुकसानदेह है। इसलिए स्वस्थ जीवनशैली अपनाते हुए इससे बचाव बेहद ज़रूरी है।

By Edited By: Published: Mon, 27 Apr 2015 03:48 PM (IST)Updated: Mon, 27 Apr 2015 03:48 PM (IST)
सोना कभी नहीं खोना

पहले ऐसा माना जाता था कि अनिद्रा बढती उम्र की समस्या है, पर अब स्कूली बच्चे भी तेजी से इसकी गिरफ्त में आ रहे हैं। यह उनकी सेहत और मानसिक विकास के लिए बहुत नुकसानदेह है। इसलिए स्वस्थ जीवनशैली अपनाते हुए इससे बचाव बेहद जरूरी है।

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बच्चों की अच्छी सेहत के लिए हम उनके खानपान पर तो पूरा ध्यान देते हैं, पर यह भूल जाते हैं कि पौष्टिक आहार की तरह अच्छी नींद भी उनके लिए बेहद जरूरी है। हाल ही में अमेरिकन स्लीप फाउंडेशन द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह पाया गया कि स्कूली बच्चों के लिए कम से कम आठ-नौ घंटे की नींद जरूरी है, पर चिंताजनक बात यह है कि भारत सहित विश्व के ज्य़ादातर देशों में बच्चों को पर्याप्त नींद नहीं मिल पा रही। इससे वे स्लीप एप्निया यानी अनिद्रा के शिकार हो रहे हैं।

कहां खो गई नींद

भारतीय समाज की बदलती जीवनशैली ने बच्चों की नींद को भी प्रभावित किया है। खास तौर पर महानगरों के ज्यादातर एकल परिवारों में माता-पिता दोनों नौकरी करते हैं। ऐसे में शाम को ऑफिस से घर लौटने में अकसर उन्हें देर हो जाती है। ऐसे में मां को होमवर्क और डिनर खत्म करवाने की जल्दबाजी रहती है। दिन भर माता-पिता से दूर रहने के बाद बच्चे पूरे दिन का अनुभव माता-पिता के साथ शेयर करना चाहते हैं। डिनर के बाद ही बच्चों और पेरेंट्स के पास थोडी फुर्सत होती है। इससे बच्चे इतने उत्साहित होते हैं कि ठीक सोने के वक्त उनकी नींद गायब हो जाती है। इसके अलावा टीवी, इंटरनेट और मोबाइल जैसे गैजेट्स भी बच्चों की नींद उडाने के लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं। बडों की तरह बच्चों में भी इन चीजों का एडिक्शन बढता जा रहा है। इतना ही नहीं ज्य़ादातर परिवारों में वीक एंड पर ही रिश्तेदारों या दोस्तों के साथ फेमिली गेट टुगेदर और डिनर का आयोजन होता है। महानगरों में जगहें काफी दूर होती हैं। शाम के वक्त ट्रैफिक भी बहुत ज्यादा होता है। इसलिए अकसर मेहमानों के आने में देर हो जाती है। लिहाजा उनका लौटना भी देर से होता है। इससे बच्चों की नींद पूरी नहीं हो पाती। यहां सिर्फ नींद पूरी होने भर की बात नहीं है। लगातार देर तक जागने से बच्चों की बॉडी क्लॉक भी उसी तरह सेट हो जाती है। अगर सही समय पर जबरदस्ती सुलाने की कोशिश की जाए तो भी उन्हें नींद नहीं आती। दिल्ली की होममेकर मंजुला शर्मा कहती हैं, 'मेरे पति की अकसर शिफ्ट ड्यूृटी होती है। उनकी इवनिंग शिफ्ट के दौरान बच्चों की नींद बहुत ज्य़ादा डिस्टर्ब हो जाती है, क्योंकि वे अपने पापा से मिले बिना सोने को तैयार नहीं होते। मेरे पति रात ग्यारह बजे से पहले घर नहीं पहुंचते और उनके इंतजार में बच्चे भी जगे रहते हैं। फिर अगले दिन सुबह वे जल्दी उठने को तैयार नहीं होते और अकसर उनकी स्कूल बस मिस हो जाती है।

बेशकीमती है नींद

नींद प्रकृति की ओर से दिया गया नि:शुल्क, लेकिन बेहद कीमती उपहार है। वैसे तो नींद सभी के लिए जरूरी है, लेकिन बच्चों के स्वस्थ शारीरिक-मानसिक विकास में अच्छी नींद का महत्वपूर्ण योगदान होता है। नींद की अवस्था में उनके पाचन तंत्र को सही ढंग से काम करने अवसर मिलता है। नींद के दौरान ही लिवर और किडनी जैसे महत्वपूर्ण अंग शरीर में मौजूद नुकसानदेह तत्वों को छांट कर अलग रखने और उन्हें शरीर से बाहर निकालने की तैयारी कर रहे होते हैं। नींद में ही ब्रेन को ऑक्सीजन मिलता है, जिसकी मदद से अगले दिन व्यक्ति का दिमाग सही ढंग से काम कर पाता है। नींद की विभिन्न अवस्थाओं में ड्रीमिंग स्लीप को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दौरान हमारा मस्तिष्क महत्वपूर्ण स्मृतियों को संरक्षित करने का काम करता है। दिन भर में व्यक्ति जितना कुछ देखता, सुनता-समझता है, उनमें से महत्वपूर्ण बातों को पहचान कर हमारा मस्तिष्क उन्हें हमारे मेमोरी बैंक में जमा कर देता है। पढाई-लिखाई के दौरान बच्चों को बहुत कुछ याद रखने की जरूरत होती है। रात भर में हर दो घंटे बाद कुछ समय के लिए नींद की यह अवस्था आती है। ऐसे में अगर बच्चा कम सोएगा तो उसकी नींद में ड्रीमिंग स्लीप की अवस्था मुश्किल से दो ही बार आ पाएगी। इससे उसकी स्मरण शक्ति कमजोर पडऩे लगेगी। वैसे बच्चों की नींद में ड्रीमिंग स्लीप की अवधि ज्यादा होती है, लेकिन उम्र बढऩे के साथ यह घटने लगती है। अत: अच्छी स्मरण शक्ति के लिए बच्चों को हमेशा पर्याप्त नींद लेनी चाहिए।

टीनएजर्स में बढती समस्या

छोटी उम्र में बच्चों के सोने-जागने की रुटीन को नियंत्रित करना पेरेंट्स के लिए काफी हद तक आसान होता है, लेकिन जैसे ही बच्चे किशोरावस्था में प्रवेश करते हैं उनकी नींद में कई तरह की बाधाएं आने लगती हैं। फिर पेरेंट्स के लिए उनके स्लीपिंग पैटर्न को बदल पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। पढाई के बढते बोझ और मोबाइल-इंटरनेट पर दोस्तों के साथ देर रात तक चैटिंग की आदत की वजह से उनमें नींद को टालने की आदत विकसित हो जाती है। किशोरावस्था में बच्चों के शरीर में बहुत तेजी से हॉर्मोनल बदलाव आ रहे होते हैं, जिससे उनकी नींद में बाधा पहुंचती है। अब तक किए गए अध्ययनों से यह तथ्य भी सामने आया है कि इस उम्र में बच्चों का ब्रेन बहुत ज्य़ादा ऐक्टिव होता है और उनकी सोच भी क्रिएटिव होती है। इसलिए उन्हें जल्दी नींद नहीं आती। इसके अलावा दोस्तों के बीच होने वाले झगडे, विपरीत सेक्स के दोस्तों के प्रति बढता आकर्षण, टीचर की नाराजगी आदि कई ऐसे वजहें हैं, जिससे बच्चे तनावग्रस्त हो जाते हैं और इसका सीधा असर उनकी नींद पर पडता है।

क्या है नुकसान

बच्चे तो नासमझ होते हैं। इसलिए पेरेंट्स की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे उन्हें नींद की कमी से होने वाले नुकसान के बारे में समझाएं। नींद पूरी न होने की वजह से बच्चों के व्यवहार में चिडचिडापन, कमजोर स्मरण शक्ति, उत्साह में कमी, ध्यान केंद्रित न कर पाना, निर्णय लेने की क्षमता में कमी, कमजोर पाचन-शक्ति, सिरदर्द, आंखों में जलन और सुस्ती जैसे लक्षण नजर आते हैं। ज्य़ादा लंबे समय तक अनिद्रा से ग्रस्त रहने वाले बच्चों में हाइपरएक्टिव नार्कोलेप्सी जैसी गंभीर बीमारी के भी लक्षण नजर आने लगते हैं। ऐसी स्थिति में बच्चों को अचानक कहीं भी नींद का दौरा पड जाता है, जिससे उन्हें गिरने या चोट लगने का खतरा हो सकता है। नींद की कमी से जो भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा होती हैं, उससे बच्चा पढाई में पिछड जाता है और उसके मन में हीन भावना विकसित होने लगती है, जो उसके व्यक्तित्व के विकास में बाधक होती है। इसलिए बच्चों के संतुलित विकास के लिए अन्य जरूरतों की तरह हमें उनकी नींद का भी पूरा खयाल रखना चाहिए।

इससे होगी आसानी

-बच्चों का स्लीपिंग पैटर्न सुधारने के लिए डिनर की शुरुआत जल्दी करें ताकि उन्हें सही समय पर सुलाना संभव हो।

-घर में टीवी का स्विच ऑफ करने का एक निश्चित समय निर्धारित कर दें और ध्यान रहे कि परिवार के सभी सदस्य समान रूप से उसका पालन करें।

-टीनएजर्स के लिए इंटरनेट और मोबाइल के संबंध में भी यही नियम बनाएं।

-अगर बच्चे देर रात तक जागने का आग्रह करें तो उन्हें सिर्फ वीकएंड में ही ऐसा करने की इजाजत दें और संडे की रात उनसे जल्दी सोने को कहें।

-टीनएजर्स को योगाभ्यास के लिए प्रेरित करें। इससे उन्हें अच्छी नींद आएगी।

-स्कूल से लौटने के बाद बच्चे को आधे घंटे के लिए लेटने को कहें। इससे उसकी थकान दूर होगी और शाम को पढाई के समय उसे झपकी नहीं आएगी, पर ध्यान रहे कि दोपहर के वक्त वह देर तक न सोए। इससे उसे रात में नींद नहीं आएगी।

- घर का माहौल का माहौल शांत रखें और बेडरूम की लाइट ऑफ कर दें।

-बच्चों को सुलाने के लिए आप जो भी समय निर्धारित करती हैं, उससे कम से कम आधा घंटा पहले उन्हें बेड पर ले जाएं क्योंकि लेटने के बाद वे थोडी देर तक पेरेंट्स से बातें करना चाहते हैं और नींद आने में भी थोडा समय लगता है।

-बच्चों को सुलाने में बेड टाइम स्टोरी भी मददगार साबित होती है।

-उनके के लिए कोई एक प्रार्थना निर्धारित करें और सोने से पहले उन्हें अपने साथ वही प्रार्थना दोहराने को कहें। इससे बच्चे के ब्रेन तक यह संदेश चला जाएगा कि अब सोने का सही समय हो गया है और उसे जल्दी नींद आ जाएगी।

विनीता

(गुडग़ांव स्थित आर्टिमिज हॉस्पिटल के रेस्परेटरी क्रिटिकल केयर एंड स्लीप मेडिसिन डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ. हिमांशु गर्ग से बातचीत पर आधारित)


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