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नजरअंदाज न करें इसे!

क्या आप फेशियल हेयर, एक्ने और अनियमित पीरियड्स से परेशान हैं? अगर हां तो ये लक्षण पीसीओडी यानी पॉलिसिस्टिक ओवेरियन डिजीज की तरफ इशारा करते हैं। भारत में आधुनिक जीवनशैली के कारण बहुत सारी स्त्रियों को इस समस्या का सामना करना पड़ रहा है, खास तौर पर युवतियों को। एक्सपर्ट की मानें तो इस समस्या का सही कारण अभी तक नहीं पता चला है लेकिन बहुत लंबे समय इसे जेनेटिक डिजीज माना जाता था। इस समस्या में ओवरीज प्रभावित होती है। आधुनिक जीवन शैली की देन पीसीओडी क्या है और इससे बचने के लिए जीवनशैली में क्या बदलाव किए जाने चाहिए, सखी के साथ जानें।

By Edited By: Published: Mon, 03 Nov 2014 03:30 PM (IST)Updated: Mon, 03 Nov 2014 03:30 PM (IST)
नजरअंदाज न करें इसे!

आधुनिक लाइफस्टाइल के कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं का सबसे ज्यादा असर स्त्रियों की सेहत पर दिखाई दे रहा है। खानपान की गलत आदतें, अनियमित दिनचर्या और घर-बाहर की दोहरी जिम्मेदारियों के चलते स्त्रियां खुद पर ध्यान नहीं दे पातीं। इसी वजह से युवावस्था में ही उन्हें कई स्वास्थ्य समस्याएं परेशान करने लगती हैं। पीसीओडी ऐसी ही समस्याओं में से एक है। अगर सही समय पर इसका उपचार शुरू न किया जाए तो यह समस्या गंभीर रूप धारण कर लेती है।

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क्या है पीसीओडी

पीसीओडी स्त्रियों की अंत:स्रावी ग्रंथियों से जुडी समस्या है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 30-40 प्रतिशत टीनएज लडकियां इस समस्या का सामना कर रही हैं। पीसीओडी से ग्रसित स्त्रियों की बडी परेशानी इन्फर्टिलिटी तो है ही, ये समस्या आबेसिटी से जुडी होने के कारण जानलेवा भी हो सकती है। इससे पीडित लगभग 40-60 प्रतिशत स्त्रियों में आबेसिटी होती है, जो आगे चलकर डायबिटीज, यूटेरिन कैंसर और हाइ कोलेस्ट्रॉल की गिरफ्त में आ जाती हैं। एक आंकडे के मुताबिक दुनिया में 4-11 प्रतिशत स्त्रियां पीसीओडी से पीडित हैं। हालांकि पीसीओडी की समस्या ग्रामीण स्त्रियों में कम और शहरी स्त्रियों में अधिक पाई गई है।

पहचानना है मुश्किल

स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा किए गए एक शोध के मुताबिक भारत में 18 से 30 वर्ष की युवतियों में यह समस्या तेजी से बढ रही है। इस उम्र में उनके शरीर में सेक्स हॉर्मोस सबसे ज्यादा सक्रिय होते हैं और इन्हीं के असंतुलन की वजह से यह समस्या पैदा होती है। मानव शरीर में मौजूद अंत:स्रावी ग्रंथियों से कई तरह के हॉर्मोस का स्राव होता है। स्त्रियों के शरीर में मुख्य रूप से एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रॉन नामक सेक्स हॉर्मोंस सक्रिय होते हैं। उनमें आंशिक रूप से मेल हॉर्मोन टेस्टोस्टेरॉन का भी सिक्रीशन होता है। कई बार स्त्री की अंत:स्रावी ग्रंथियों से इस हॉर्मोन का सिक्रीशन अधिक मात्रा में होने लगता है। इसकी वजह से उसकी ओवरी में अंडा बनने और उनके बाहर निकलने की प्रक्रिया में रुकावट पैदा होती है। ऐसी स्थिति में कुछ एग्स गांठ जैसा रूप धारण कर लेते हैं, जिनके भीतर तरल पदार्थ भरा होता है। इसी अवस्था को पीसीओडी यानी पॉलिसिस्टिक ओवेरियन डिजीज कहा जाता है। इस बीमारी के साथ सबसे बडी दिक्कत यह है कि शुरुआती दौर में इसके लक्षणों को आसानी से पहचान पाना मुश्किल होता है। शादी के बाद जब लडकियां पारिवारिक जीवन की शुरुआत नहीं कर पातीं तब गाइनी चेकअप के बाद उन्हें इस समस्या की जानकारी मिलती है, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी होती है।

कई हैं कारण

आमतौर पर जिन स्त्रियों का शुगर लेवल व रक्तचाप का स्तर ज्यादा होता है, वे आसानी से पीसीओडी की शिकार हो जाती हैं। जिनका कोलेस्ट्रॉल लेवल बढा रहता है, उन्हें भी यह समस्या हो सकती है। यहां तक कि जिन स्त्रियों में पहले से हृदय रोग के लक्षण मौजूद होते हैं, उन्हें भी यह समस्या हो सकती है। इसके अलावा मानसिक तनाव, शारीरिक गतिविधियों व वर्कआउट की कमी, अनयिमित दिनचर्या, भोजन में मीठे व वसा युक्त पदार्थो की अधिकता मानसिक तनाव, आनुवंशिकता आदि इसके प्रमुख कारण हैं।

प्रमुख लक्षण

-अनियमित पीरियड्स

-पीरियड्स के दौरान ज्यादा ब्लीडिंग

-एक्ने की समस्या

-लगातार वजन बढना

-चेहरे, पेट, उंगलियों और पीठ पर अवांछित बाल निकलना

-डिप्रेशन, चिडचिडापन और अनिद्रा

-अनावश्यक थकान और इन्फर्टिलिटी

संभव है बचाव

अगर शुरु से ही स्वस्थ जीवनशैली अपनाई जाए तो इससे बचाव संभव है। मोटापे का इस समस्या से सीधा संबंध है। इसलिए वजन पर नियंत्रण जरूरी है। नियमित रूप से एक्सरसाइज, पैदल चलना, लिफ्ट के बजाय सीढियों का इस्तेमाल, छोटे-छोटे काम खुद करना, पौधों को पानी देना, घर की साफ-सफाई आदि कार्यो को अपनी दिनचर्या का जरूरी हिस्सा बना कर बढते वजन को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।

जंक फूड से दूरी

टीनएज लडकियां जंक फूड का सेवन अधिक मात्रा में करती हैं, जो आगे चलकर उनकी सेहत के लिए नुकसानदेह साबित होता है। ऐसी समस्या से बचने के लिए हर मां को अपनी टीनएजर बेटी की सेहत के प्रति जागरूक होना चाहिए। उसके खानपान की आदतों पर शुरुआत से ही ध्यान देना बेहद जरूरी है। बेटी को चॉकलेट, पेस्ट्री, वेफर्स, पिज्जा-बर्गर, नूडल्स और कोल्ड ड्रिंक्स जैसी चीजों से जहां तक संभव हो दूर रखना चाहिए या पंद्रह दिन में एक बार ही इसके सेवन की इजाजत देनी चाहिए।

जरूरी है नियमित जांच

जिन स्त्रियों को पहले से उच्च रक्तचाप और टाइप टू डायबिटीज की समस्या हो उन्हें डॉक्टर से नियमित चेकअप कराते रहना चाहिए। दवाओं और संयमित खानपान की मदद से इन दोनों समस्याओं को नियंत्रित रखने की कोशिश करनी चाहिए। जिन स्त्रियों को हाइ कोलेस्ट्रॉल की समस्या है, उन्हें तली-भुनी चीजों व मिठाइयों से दूर रहना चाहिए। उनके लिए स्कि्म्ड मिल्क व दही का सेवन लाभदायक होगा। इसके साथ रोजाना सात-आठ घंटे की अच्छी नींद भी जरूरी है। अनिद्रा बहुत सी बीमारियों की जड है।

व्यायाम है रामबाण

एक्सरसाइज में जरा भी लापरवाही न बरतें। चाहे कितनी भी व्यस्तता क्यों न हो, सुबह की सैर जरूर करें। एक्सरसाइज के समय में कटौती न करें। प्रतिदिन 30 मिनट की ब्रिस्क वॉक से शुरुआत करें। जब दिनचर्या नियमित हो जाए तो किसी फिटनेस ट्रेनर की सलाह पर कार्डियो वैस्क्युलर एक्सरसाइज को भी रुटीन में शामिल कर लें।

जांच एवं उपचार

पीसीओडी की आंशका होने पर पेल्विक अल्ट्रासाउंड और हॉर्मोन संबंधी जांच से इस समस्या का पता लगाया जाता है। अगर शुरुआती दौर में पहचान कर ली जाए तो दवाओं की मदद से ही यह बीमारी दूर हो जाती है। समस्या गंभीर होने पर लेप्रोस्कोपिक सर्जरी से इसका उपचार किया जाता है। इस सर्जरी के एक दिन बाद ही स्त्री अपनी सामान्य दिनचर्या में वापस लौट सकती है, लेकिन ऐसी स्थिति में उसे कम से कम एक महीने तक शारीरिक संबंध से दूर रहने की सलाह दी जाती है। इसके बाद वह आसानी से कंसीव कर सकती है।

ध्यान दें

1. पीसीओडी स्त्रियों के शरीर में होने वाले हॉर्मोनल असंतुलन की वजह से होता है। यह असंतुलन इंसुलिन रेजिस्टेंस या ओबेसिटी के चलते हो सकता है। सेक्स हॉर्मोंस की अधिकता व इंसुलिन का रेजिस्टेंस ओबेसिटी व पीसीओडी को बढाते हैं। अभी तक यह साबित नहीं हो पाया है कि ओबेसिटी से पीसीओडी होता है या फिर पीसीओडी से ओबेसिटी।

2. अधिक कैलरी युक्त भोजन और व्यायाम की कम के कारण इंसुलिन रेजिस्टेंस होता है, जिससे शरीर में इंसुलिन का स्तर बढ जाता है। इससे वजन बढता है और ओवरीज का स्टिम्युलैशन होता है। इस कारण ओवरीज में मल्टीपल सिस्ट बन जाती हैं।

3. अगर पीसीओडी पर नियंत्रण न किया जाए तो यह डायबिटीज को जन्म देता है।

इनपुट्स: डॉ. रमन गोयल, मेटाबॉलिक एंड बैरिएट्रिक सर्जन, हिंदुजा हेल्थकेयर, मुंबई

इला श्रीवास्तव


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