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बेचैनी भरा है यह दौर

स्त्री शरीर का महत्वपूर्ण चक्र है यह, जिसे मेंस्ट्रुअल साइकल कहते हैं। इससे जुड़ी होती हैं उनकी कई खुशियां। अमूमन 50 की उम्र तक चलने वाला यह चक्र कई बार बीच में रुक जाता है। समय-पूर्व मेनोपॉज बड़ी समस्या है। क्यों हो रहा है ऐसा और क्या इससे बचाव संभव है, इस पर एक्सपर्ट जानकारी।

By Edited By: Published: Mon, 03 Nov 2014 03:30 PM (IST)Updated: Mon, 03 Nov 2014 03:30 PM (IST)
बेचैनी भरा है यह दौर

वेदिका की शादी लगभग साढे चार साल पहले हुई। दो वर्ष पूर्व उन्होंने एक बच्चे को जन्म दिया। बच्चे के जन्म के बाद से उन्हें पीरियड्स नहीं हुए। वह यही मान रही थीं कि ब्रेस्टफीडिंग के कारण ऐसा हो रहा है। 33 वर्षीय वेदिका परिवार बढाना चाहती थीं। इसलिए स्त्री रोग विशेषज्ञ के पास गई। जांच के बाद पता चला कि उन्हें अर्ली मेनोपॉज हो चुका है।

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ऐसे कई मामले आजकल स्त्री रोग विशेषज्ञों के पास आने लगे हैं। लगभग 10 प्रतिशत स्त्रियां अर्ली मेनोपॉज के दौर से गुजर रही हैं।

कारण बहुत स्पष्ट नहीं

आमतौर पर मेनोपॉज की सही उम्र 50-51 मानी जाती है। मेनोपॉज से 2-3 वर्ष पूर्व पीरियड्स की अनियमितता शुरू हो जाती है, जिसे प्री-मेनोपॉज लक्षण माना जाता है। कई बार समय से पहले ही ओवरीजमें एस्ट्रोजन हॉर्मोन बनना बंद हो जाता है। यह हॉर्मोन प्रजनन क्षमता के लिए जरूरी है। किसी वजह से यह न बने तो मेनोपॉजकी आशंका बढ जाती है। थायरॉयड, कैंसर में दी जाने वाली कीमोथेरेपी, ओवरी रिमूवल सर्जरी, अबॉर्शन या डीएंडसी के कारण प्री-मेनोपॉजहो सकता है। मगर कई बार इसका कारण नहीं पता चल पाता और ओवरीज की कार्यक्षमता धीमी हो जाती है।

इसके कई कारण हो सकते हैं। सुस्त-निष्क्रिय लाइफस्टाइल, खानपान की अनियमितता और व्यायाम की कमी के अलावा यह समस्या आनुवंशिक हो सकती है। वायरल संक्रमण, तनाव या दबाव, मिर्गी की समस्या में भी ऐसा हो सकता है। एक धारणा यह भी है कि जिन लडकियों को अर्ली प्यूबर्टी होती है, उन्हें अर्ली मेनोपॉज का खतरा भी ज्यादा होता है, मगर इस धारणा का वैज्ञानिक आधार नहीं है।

कुछ अध्ययन बताते हैं कि स्मोकिंग से भी अर्ली मेनोपॉज का खतरा रहता है। बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआइ) भी इसका कारण हो सकता है। दरअसल एस्ट्रोजन फैट टिश्यूज में जमा होता है। दुबली स्त्रियों में एस्ट्रोजन कम जमा होता है, लिहाजा उनमें मेनोपॉजजल्दी हो सकता है, जबकि थोडा अधिक बीएमआइ वाली स्त्रियों में लेट मेनोपॉज भी संभव है।

नुकसान

यदि समय से 8-10 वर्ष पूर्व मेनोपॉज हो जाए तो इसका सीधा असर प्रजनन क्षमता पर पडता है। एस्ट्रोजन हॉर्मोन अच्छे एचडीएल कोलेस्ट्रॉल को बढाता है और बुरे एलडीएल कोलेस्ट्रॉल को घटाता है। यह रक्त-नलिकाओं को सुचारु-संतुलित रखता है और हड्डियों की सुरक्षा करता है। एस्ट्रोजन की समय-पूर्व कमी से शरीर व मन पर बुरा प्रभाव पडता है। ये प्रभाव हार्ट या कार्डियोवैस्कुलर डिजीज, आस्टियोपोरोसिस, पार्कि संस, डिमेंशिया, डिप्रेशन के रूप में नजर आते हैं।

लक्षण

मेनोपॉज के दौरान किसी स्त्री के शरीर और मन में कई बदलाव होते हैं।

1. पीरियड्स अनियमित होने लगते हैं या अचानक बंद हो सकते हैं।

2. दबाव व तनाव बढता है। अर्ली मेनोपॉज होने से किसी स्त्री की पूरी फ्यूचर प्लानिंग प्रभावित होती है। वह परिवार नहीं बढा सकती। ऐसे में बेचैनी, तनाव, अवसाद, कुंठा, मूड स्विंग, फटीग की समस्या बढने लगती है। यानी स्त्री भावनात्मक असुरक्षा और अस्थिरता से जूझती है।

3. एस्ट्रोजन कम होने से सेक्स डिजायर्स कम हो जाती हैं, वजाइनल ड्राइनेस बढती है। सेक्स संबंधों में दर्द हो सकता है। यीस्ट इन्फेक्शन और वजाइनल डिस्चार्ज जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।

4. बोन डेंसिटी कम होती है, जिससे हड्डियों से जुडी समस्याएं बढने लगती हैं। शरीर में फ्रैक्चर्स होने लगते हैं।

5. कई स्किन प्रॉब्लम्स भी होने लगती हैं। ड्राई आइज, ड्राई स्किन और ड्राई माउथ जैसी समस्याओं से जूझना पडता है।

6. कई स्त्रियों में असामान्य बॉडी टेंप्रेचर जैसी परेशानी देखी जाती है। अचानक पसीना, घबराहट या बेचैनी हो सकती है। पेट फूल सकता है या ब्रेस्ट में भारीपन जैसी शिकायत हो सकती है।

जांच प्रक्रिया

डॉक्टर्स कई स्तरों पर इसकी जांच करते हैं। यह काफी लंबी प्रक्रिया है। लक्षणों के आधार पर जांच प्रक्रिया तय की जाती है। मरीजकी मेडिकल हिस्ट्री देखी जाती है। उससे पूछा जाता है कि क्या उसकी पूर्व में कोई सर्जरी, अबॉर्शन या डीएंडसी हुई है। कुछ जरूरी टेस्ट कराए जाते हैं।

1. प्रेग्नेंसी टेस्ट

2. पीरियड्स की अनियमितता और समस्याओं का पता लगाया जाता है

3. शारीरिक-भावनात्मक लक्षणों की जांच

4. हॉर्मोनल टेस्ट

5. ट्रांस्वजाइनल अल्ट्रासाउंड, जिसके जरिये पता लगाया जाता है कि ओवरीज का साइज सामान्य है या नहीं, ओवरी में एग्स की संख्या कितनी है, यूट्रस लाइनिंग की मोटाई कितनी है या इसमें कोई रुकावट तो नहीं है।

6. थायरॉयड, ब्लड शुगर, कोलेस्ट्रॉल स्तर, बोन डेंसिटी टेस्ट।

जीवनशैली बदलें

अर्ली मेनोपॉज की समस्या तनाव व सुस्त जीवनशैली से भी जुडी है। इसलिए डाइट व लाइफस्टाइल में बदलाव भी जरूरी है।

1. दिन में 2-3 सर्विग कैल्शियम युक्त डेयरी प्रोडक्ट्स का सेवन करें।

2. मसल स्ट्रेंथनिंग एक्सरसाइजऔर नियमित पैदल चलना जरूरी है।

3. विटमिन डी का स्तर सही रखें। इसके लिए सुबह 11 बजे से पहले और शाम को 4 बजे के बाद की धूप में रहना अच्छा है। कम से कम 15 मिनट धूप में रहें। वैसे यह सीमा अलग-अलग जलवायु के अनुसार अलग हो सकती है। भारत में सुबह 8 से 10 बजे की धूप विटमिन डी की अच्छी स्रोत होती है।

4. विटमिन डी की कमी हो तो इसके सप्लीमेंट्स लेने जरूरी हैं।

5. यदि 40 की उम्र से पहले मेनोपॉज हो तो हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एचआरटी) दी जाती है। हालांकि इसके कुछ साइड इफेक्ट्स भी हैं। जिनके परिवार में किसी को ब्रेस्ट कैंसर हो, उन्हें एचआरटी नहीं दी जाती।

6. अर्ली मेनोपॉज के बाद हार्ट डिजीज की आशंका बढ जाती है। इसलिए लाइफस्टाइल को सक्रिय रखना जरूरी है। कोलेस्ट्रॉल स्तर को संतुलित रखें, नियमित सैर व व्यायाम करें, वजन नियंत्रित रखें, ताजे फल व सब्जियों का सेवन अधिक करें और कार्ब कम करें। ऑयली फूड, घी, बटर, तले-भुने खाने का सेवन कम करें और लिक्विड डाइट बढाएं। परिवार में पहले किसी को हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत रही हो तो नियमित ब्लड प्रेशर की जांच करें। ऐसी डाइट लें जो हृदय की सेहत को ठीक रखे।

मन को रखें शांत

समय पूर्व मेनोपॉजका सर्वाधिक असर मानसिक व भावनात्मक सेहत पर पडता है। डिप्रेशन, एंग्जायटी और मूड स्विंग जैसी समस्याएं इसमें आम हैं। इसलिए अपनी दिनचर्या में व्यायाम, ध्यान, संगीत या किसी भी शौक को जगह दें। समस्या के बारे में सोचने के बजाय इससे उबरने के रास्तों पर ध्यान केंद्रित करें। समस्या को रोका नहीं जा सकता मगर इसके असर को कम किया जा सकता है। इसमें भावनात्मक रिश्तों की बडी अहमियत होती है। पति और बच्चों का साथ स्त्री को कई समस्याओं से उबरने में मदद करता है। स्मोकिंग, एल्कोहॉल से दूर रहना जरूरी है। शरीर के प्रति सजग रहें। फिटनेस और हेल्थ पर ध्यान दें।

अपना खयाल रखें

1. डॉक्टर से नियमित जांच कराएं। उसे खुलकर अपनी समस्याएं बताएं।

2. जरूरी हो तो मनोवैज्ञानिक परामर्श भी लें। 3. पति, दोस्त या बच्चों से भावनाएं बांटें। उनके साथ अधिकाधिक समय बिताएं।

4. डायरी लिखें या संगीत सुनें।

5. अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए कोई कलात्मक-रचनात्मक तरीका खोजें।

6. अच्छा खाएं-अच्छा सोचें। नियमित फेशियल, स्पा और मसाज कराएं।

7. जीवनसाथी के साथ समय बिताएं। सेक्स क्रिया में समस्याएं हो सकती हैं मगर सेक्स दांपत्य जीवन का हिस्सा है, इसलिए इससे दूर न जाएं, इसे मन व शरीर को स्वस्थ रखने का माध्यम समझें।

(मूलचंद मेडिसिटी दिल्ली में स्त्री एवं प्रसूति विभाग की सलाहकार डॉ. वंदना सोढी से बातचीत पर आधारित)

इंदिरा राठौर


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