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गजले पुस्तक समीक्षा

कायमगंज, फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश) में जन्मे आलोक यादव की शिक्षा लखनऊ और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुई।

By Edited By: Published: Mon, 12 Sep 2016 12:11 PM (IST)Updated: Mon, 12 Sep 2016 12:11 PM (IST)
गजले पुस्तक समीक्षा
कहीं भी हों, भावनाओं पर नियंत्रण रखना बखूबी जानती हैं। प्यार को ही जीवन का आधार मानने वाली स्त्रियां पहले प्यार को खोने के बाद आसानी से दूसरे प्यार को स्वीकार नहीं कर पातीं। उन्हें लगता है कि इससे पहले प्यार की यादें स्मृति-पटल से ओझल हो जाएंगी। लोकप्रिय फ्रांसीसी लेखक डेविड फोइंकिनोस के उपन्यास 'ला डेलीकाटेसी' के हिंदी अनुवाद 'नजाकत' को पढते हुए ऐसा ही एहसास होता है। यह किताब वर्ष 2011 में बेस्टसेलर रह चुकी है और इस पर मूवी बन चुकी है। इसे अब तक दस पुरस्कार भी मिल चुके हैं। डेविड फोइंकिनोस फिल्मों के लिए स्क्रीन राइटिंग भी करते हैं। हम विदेशियों के बारे में कयास लगाते हैं कि उनके लिए प्यार और वासना में अधिक फर्क नहीं है। डेविड ने जिस खूबसूरती के साथ नायिका नैटेली के प्यार और जज्बात को प्रस्तुत किया है, उससे आपकी सारी भ्रांतियां टूट जाएंगी। प्यार को किसी भी देश की सभ्यता-संस्कृति से बांधना बेमानी है। नायिका नैटेली अपनी जिंदगी से बहुत खुश है। वह न सिर्फ अपने करियर में सफल है, बल्कि उसका पति फ्रांसुआ भी उसे बेहद चाहता है। उसका सुखद पारिवारिक जीवन तब कांच की तरह टूट कर किरिचों में तब्दील हो जाता है, जब फ्रांसुआ एक्सीडेंट में मारा जाता है। वह दुख में डूबी रहती है, क्षण भर को भी प्यार की मीठी यादों को भुलाना नहीं चाहती। अवसाद के क्षणों में ही वह एक दिन अचानक अपने सहकर्मी माक्र्स को चुंबन देती है। तभी माक्र्स को उससे प्यार हो जाता है लेकिन उसे अपनी मोहब्बत कुबूल कराने में काफी मेहनत करनी पडती है। स्त्री के दिल में क्या चल रहा है, यह पता लगाना पुरुषों के लिए कठिन होता है लेकिन स्त्रियां ताड जाती हैं कि सामने वाले के दिल में क्या भावनाएं हैं। खास बात यह है कि इसकी नायिका अवसादग्रस्त है लेकिन उसका दुख पाठकों को बोझिल नहीं करता। प्रेम रस में डूबी यह कहानी पाठकों को अपनी सी लगती है, यही लेखक की सफलता है। कायमगंज, फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश) में जन्मे आलोक यादव की शिक्षा लखनऊ और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुई। अब तक कई रचनाएं राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। आकाशवाणी-दूरदर्शन से रचनाओं का प्रसारण, कई पुरस्कार व सम्मान प्राप्त। उर्दू और हिंदी में गजल संकलन 'उसी के नाम' प्रकाशित। संप्रति : क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त (कर्मचारी भविष्य निधि संगठन, श्रम एवं रोजगार मंत्रालय, भारत सरकार), बरेली। वो इक बिंदास सी लडकी अधर पे हास सी लडकी कोई सब हार दे जिस पर विजय की आस सी लडकी है वैरागी, कभी रागी किशन के रास सी लडकी चली है जीतने जग को अटल विश्वास सी लडकी खुले जो रोज परतों सी नए एहसास सी लडकी वो पहले प्यार के पहले अजब आभास सी लडकी खिलाए पुष्प आशा के सदा मधुमास सी लडकी अजान और आरती सी वो किसी अरदास सी लडकी लिए आशीष के अक्षत लगे उपवास सी लडकी कहीं 'आलोक' देखी है वो तुमने खास सी लडकी? बिन बात अगर रूठ वो जाएं तो करूं क्या? और वजह भी कोई न बताएं तो करूं क्या? सब देखने वालों की निगाहों में जलन है वो मुझसे जो नजरें न हटाएं तो करूं क्या? क्यों गैरों के आगे मैं कभी हाथ पसारूं और यार भी एहसान जताएं तो करूं क्या? होगा यही बढ जाएगी एक और शिकायत वादा भी करें और न आएं तो करूं क्या? मुस्कान पे मैं जिनकी हूं 'आलोक' फिदा वो हर बात मेरी हंस के उडाएं तो करूं क्या? आंखों की बारिशों से मेरा वास्ता पडा जब भीगने लगा तो मुझे लौटना पडा क्यों मैं दिशा बदल न सका अपनी राह की क्यों मेरे रास्ते में तेरा रास्ता पडा दिल का छुपाऊं दर्द कि तुझको सुनाऊं मैं ये प्रश्न एक बोझ सा सीने पे आ पडा खाई तो थी कसम कि न आऊंगा फिर कभी लेकिन तेरी सदा पे मुझे लौटना पडा किस-किस तरह से याद तुम्हारी सताए है दिल जब मचल उठा तो मुझे सोचना पडा वाइज सफर तो मेरा भी था रूह की तरफ पर क्या करूं कि राह में ये जिस्म आ पडा अच्छा हुआ कि छलका नहीं उसके सामने 'आलोक' था जो नीर नयन में भरा पडा। स्मिता

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