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'मसान' अंत के बाद नया आगाज

हाल में आई फिल्म 'मसान' को पहले ही कान फिल्म फेस्टिवल में दो पुरस्कार मिल चुके हैं। दर्शकों ने भी इसकी सराहना की है। बनारस की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म में एक सधी हुई मार्मिक कहानी है। कई तरह के सामाजिक अंतर्विरोधों के बावजूद यहां ज़्िांदगी की एक उम्मीद

By Edited By: Published: Tue, 22 Sep 2015 04:23 PM (IST)Updated: Tue, 22 Sep 2015 04:23 PM (IST)
'मसान' अंत के बाद नया आगाज

हाल में आई फिल्म 'मसान' को पहले ही कान फिल्म फेस्टिवल में दो पुरस्कार मिल चुके हैं। दर्शकों ने भी इसकी सराहना की है। बनारस की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म में एक सधी हुई मार्मिक कहानी है। कई तरह के सामाजिक अंतर्विरोधों के बावजूद यहां ज्िांदगी की एक उम्मीद नज्ार आती है। फिल्म कैसे बनी, बता रहे हैं अजय ब्रह्मात्मज।

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छठे जागरण फिल्म फेस्टिवल की ओपनिंग फिल्म 'मसान आख्िारकार जब थिएटर में रिलीज हुई तो उसे दर्शकों ने भी सराहा। 'मसान बनारस की पृष्ठभूमि पर बनी समकालीन कहानी है, जिसमें कुछ किरदारों के ज्ारिये प्रेम, संबंध और जातिगत अंतर्विरोधों को समझने की कोशिश की गई है। 'मसान इस साल कान फिल्म फेस्टिवल से दो पुरस्कार लेकर लौटी थी।

'मसान के निर्देशक नीरज घेवन हैं। उन्होंने फिल्मी करियर की शुरुआत अनुराग कश्यप के सहायक के रूप में की थी। 'गैंग्स ऑफ वासेपुर में उन्होंने यूनिट को संभाला। इस फिल्म के समाप्त होने तक नीरज घेवन ने तय कर लिया था कि वे अब अपनी फिल्म का निर्देशन करेंगे। उन दिनों अनुराग ने पहले तो अपनी टीम के साथ जुडे रहने के लिए कहा। बाद में नीरज की ज्िाद के आगे वे हार गए। उन्होंने सलाह दी कि पूरे मनोयोग से फिल्म का निर्देशन करो। अनुराग कश्यप की फिल्मों से अलग शैली है नीरज घेवन की। 'मसान देखते हुए आश्चर्य होता है कि जीवन और समाज के अंधेरों में रमने की संभावना के बावजूद नीरज ने उधर प्रयाण नहीं किया। उनकी फिल्म अवसाद और दुख के बावजूद इस सकारात्मक सोच पर ख्ात्म होती है कि सब कुछ ख्ात्म नहीं हुआ है।

मुश्किलों के बीच राह

'मसान एक उम्मीद है, जो मुश्किलों के बीच भी किरदारों को संबल देती है। 'मसान में नीरज घेवन ने देवी, दीपक, पाठक, शालू, रामधारी और झोंटा जैसे किरदारों को चुना है। वे किरदार बनारस की वह कहानी कहते हैं, जिसमें गलियां और गालियां मात्र हों। नीरज बताते हैं कि बनारस जड शहर नहीं है। यहां की आध्यात्मिकता और मौज-मस्ती में एक गति है। यह गति नई दुनिया के बदलते वक्त के साथ कदम मिला कर चल रही है। देवी और दीपक हैं तो छोटे शहर के, लेकिन वे आत्मविश्वास के धनी हैं। वे अपनी ज्िांदगी संवारना चाहते हैं। वे छोटे शहर की छोटी बातों की हद से निकलना चाहते हैं। बनारस अपने बारे में मशहूर लोकोक्ति 'रांड सांढ सीढी संन्यासी, इनसे बचो तो सेवो काशी से आगे निकल चुका है। प्राचीनता और आध्यात्मिकता के साथ ही यहां वर्तमान की चुनौतियां और संभावनाएं हैं।

पैशन सिनेमा का

नीरज घेवन की पृष्ठभूमि रोचक है। हैदराबाद में पैदा हुए नीरज घेवन ख्ाुद को उत्तर भारतीय मानते हैं। वे बनारस से जुडाव महसूस करते हैं। 'गैंग्स ऑफ वासेपुर की शूटिंग के समय उनका यह जुडाव मज्ाबूत और गाढा हुआ। 'मसान के किरदारों से मिलने के बाद उन्होंने अपनी कहानी रचने के लिए वरुण ग्रोवर का साथ लिया। दोनों ने मिलकर 'मसान की पटकथा रची। इस पटकथा की तैयारी में उन्होंने महीनों बनारस में बिताए। उन सभी किरदारों के साथ संगत की, जो विभिन्न रूपों में फिल्म में दिखते हैं। पर्दे पर उनके नाम अलग हो सकते हैं, लेकिन वास्तविक बनारस में इन किरदारों से मुलाकात हो सकती है।

इंजीनियरिंग से फिल्मों तक

नीरज घेवन ने परिवार के दबाव में इंजीनियरिंग की पढाई की और एमबीए करके एक कॉरपोरेट ऑफिस में ऊंची पगार के साथ नौकरी की शुरुआत की। सुविधा और संपन्नता के बावजूद उनका मन कुछ और करने को होता था। पढाई के दौरान ही एक बार एफटीआइआइ के प्रोफेसर समर नखाटे से उन्होंने फिल्म संबंधित वार्ता सुनी। उनके सहपाठियों में शायद ही किसी ने समर नखाटे की बातों पर ग्ाौर किया। नीरज घेवन उस वार्ता से प्रभावित हुए। उन्होंने गंभीरता के साथ फिल्में देखने और समझने की कोशिश की। इस कोशिश में उन्होंने लिखना आरंभ कर दिया। वे अपनी पसंद की फिल्मों पर लिखते थे और सिनेमा के मशहूर वेबसाइट 'पैशन फॉर सिनेमा पर उन्हें पोस्ट करते थे। इसी क्रम में उनकी मुलाकात अनुराग कश्यप से हुई। यही मुलाकात फिल्मों में आने की राह बन गई।

नीरज घेवन ने 'मसान के पहले कुछ शॉर्ट फिल्में बनाई हैं। क्राफ्ट और नेरेेटिव पर अपनी पकड आज्ामाने और ज्ााहिर करने के बाद उन्होंने फीचर फिल्म के आइडिया पर काम किया। सालों पहले उन्होंने 'मसान की मूल कहानी 36 पृष्ठों में लिखी थी। फिल्म बनाने का इरादा होने पर उन्होंने वरुण ग्रोवर को जोडा। वरुण ने बनारस से ही पढाई की थी और वहां के जीवन से अच्छी तरह वािकफ थे। दोनों बनारस गए। बीएचयू के साधारण गेस्ट हाउस में रहते हुए उन्होंने 40 दिनों तक लंबा रिसर्च किया। वे रोज्ा आठ से 10 लोगों से मिलते और उनकी बातें रिकॉर्ड करते थे। उन्हीं बातों से उनके किरदारों ने आकार लिया। स्क्रिप्ट लिखे जाने के बाद दोस्तों की सराहना और प्रशंसा से उनकी हिम्मत बढी। यह स्क्रिप्ट सनडांस के लिए चुनी गई थी। कह सकते हैं कि आरंभ से इस फिल्म को भरपूर समर्थन मिल रहा था।

किरदारों का चयन

फिल्म की कास्टिंग एकबारगी नहीं हुई। रिचा चड्ढा शुरू से ही नीरज के दिमाग में थीं। देवी के किरदार के लिए वे उन्हें ही रखना चाहते थे। कई मित्रों और शुभचिंतकों ने उन्हें अधिक चर्चित और मशहूर अभिनेत्रियों के नाम सुझाए, लेकिन नीरज अपने फैसले पर अडिग रहे। दीपक की भूमिका के लिए पहले राजकुमार राव के नाम पर विचार हुआ था। किसी कारणवश उन्हें नहीं लिया गया तो विकी कौशल का नाम उभरा। विकी कौशल मशहूर स्टंट डायरेक्टर शाम कौशल के बेटे हैं। शाम कौशल चाहते थे कि उनके बेटे के करियर की शुरुआत किसी ख्ाास फिल्म से हो। इस फिल्म में देवी के पिता बने पाठक जी की भूमिका संजय मिश्रा ने निभाई है। वे इस भूमिका में दर्शकों को द्रवित करते हैं। इस किरदार के लिए नीरज घेवन की पहली चाहत मनोज बाजपेयी थे। वे चाहते थे कि मनोज इस भूमिका को निभाएं। लेकिन इसमें कई तरह की परेशानियां थीं। दूसरी दिक्कतों के अलावा फिल्म यूनिट को यह भी लगा कि पति-पत्नी के रूप में 'गैंग्स ऑफ वासेपुर में मनोज और ऋचा को देख चुके दर्शक इस फिल्म में उन्हें बाप-बेटी के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे। बहरहाल, संजय मिश्रा का चुनाव सटीक रहा।

तोडी परिपाटी

'मसान का निर्माण भारत और फ्रांस के सहयोग से हुआ है। गुनीत मोंगा इस फिल्म की निर्माता हैं। पिछले अनुभवों से सीख कर उन्होंने फ्रांसीसी निर्माता भी जोडे। 'मसान निर्माण के आरंभ से ही इंटरनेशनल फिल्म के तौर पर स्वीकृत हो गई। संयोग ऐसा रहा कि यह कान फिल्म फेस्टिवल के 'अनसर्टेन रिगार्ड में चुनी गई। अनुराग कश्यप को स्वयं अभी तक ऐसा सुयोग नहीं मिला है, जबकि उनके सहयोगी विक्रमादित्य मोटवाणी और नीरज घेवन इस मामले में आगे रहे।

'मसान हिंदी फिल्मों की परिपाटी तोडती है। पहले भी इस जॉनर की फिल्में बनती रही हैं। इस फिल्म में प्रचलित चलन के मुताबिक नायक-नायिका नहीं हैं। सभी किरदार प्रमुख हैं। उन पर फोकस होता है तो वे आगे चले आते हैं। ग्ाौर करें तो निर्देशक किसी भी किरदार के साथ संलिप्त नहीं है। छोटे किरदारों का भी अपना महत्व है।

'मसान में ज्िांदगी की कगार पर जी रहे सभी किरदार अपनी भावनाओं और प्रतिक्रियाओं से शहर की जातीय, लैंगिक और आर्थिक असमानताओं को व्यक्त करते हैं। देवी, दीपक, शालू और पाठक को नीरज घेवन ने पूरे मनोयोग से रचा है। अपनी पीडाओं, तकलीफों और भूलों से वे कभी ख्ाुशी ज्ााहिर करते हैं तो कभी ग्लानि। आख्िारकार वे अपनी ग्लानि और तकलीफों से निकलते हैं, क्योंकि जीवन ऐसा ही है। प्रिय यादों और रिश्तों के गुज्ार जाने के बाद उनके साथ जीवन नहीं बिताया जा सकता।

अलग शिल्प का असर

'मसान में नीरज घेवन ने कहानी की ज्ारूरत के मुताबिक अलग शिल्प अपनाया है। इसमें एक साथ तीन कहानियां चलती हैं। वे एक-दूसरे को कहीं-कहींक्रॉस भी करती हैं, लेकिन अंत में जाकर मिल जाती हैं। नीरज ने अपने किरदारों को ऑर्गेनिक रखा है। ऐसे किरदार और उनके इमोशन हिंदी फिल्मों में पहले नहीं देखे गए। यही वजह है कि छोटी होने के बावजूद इस फिल्म का बडा असर हुआ। सभी ने इसकी सराहना की और इसे पसंद किया। उम्मीद की जानी चाहिए कि पॉपुलर फिल्म पुरस्कारों की सूची में 'मसान रहेगी।

अजय ब्रह्मात्मज


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