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पारिवारिक मूल्यों वाला सिनेमा प्रेम रतन धन पायो

हाल िफलहाल आई राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म 'प्रेम रतन धन पायोÓ ने एक बार फिर से पारिवारिक मूल्यों वाले सिनेमा को स्वर दिया है। समीक्षकों ने शुरू से इसके नाम को लेकर बहस शुरू कर दी। हालांकि निर्माता सूरज बडज़ात्या ने नाम से लेकर कलाकारों के चयन तक देसी टच

By Edited By: Published: Tue, 24 Nov 2015 03:24 PM (IST)Updated: Tue, 24 Nov 2015 03:24 PM (IST)
पारिवारिक मूल्यों वाला सिनेमा प्रेम रतन धन पायो

हाल िफलहाल आई राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म 'प्रेम रतन धन पायो ने एक बार फिर से पारिवारिक मूल्यों वाले सिनेमा को स्वर दिया है। समीक्षकों ने शुरू से इसके नाम को लेकर बहस शुरू कर दी। हालांकि निर्माता सूरज बडज़ात्या ने नाम से लेकर कलाकारों के चयन तक देसी टच देने की कोशिश की है। फिल्म कैसे बनी, बता रहे हैं फिल्म संपादक अजय ब्रह्मात्मज।

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रज बडज़ात्या की पहली फिल्म 'मैंने प्यार किया' थी। इस फिल्म ने हिंदी फिल्मों में संघर्ष कर रहे सलीम ख्ाान के बेटे सलमान ख्ाान को रातों रात स्टार बना दिया था। इस बडी कामयाबी के बाद सलमान ख्ाान को पलट कर नहीं देखना पडा। वे हिंदी फिल्मों के सुपर स्टार बने। सूरज बडज़ात्या और सलमान ख्ाान ने बाद में 'हम आपके हैं कौन' और 'हम साथ-साथ हैं' फिल्में कीं। दोनों ही फिल्में कमोबेश कामयाब रहीं। पिछले महीने रिलीज्ा हुई 'प्रेम रतन धन पायो में दोनों 16 सालों के बाद फिर एक साथ आए। इस फिल्म को दर्शकों की सराहना मिली। सूरज बडज़ात्या ने अपनी शैली और परंपरा का निर्वाह करते हुए चंद सफल प्रयोग भी किए। फिल्म की रिलीज्ा के पहले कहा जा रहा था कि वर्ष 2015 में भला कौन ऐसी पारंपरिक और रुढिवादी फिल्म देखना पसंद करेगा, लेकिन दर्शकों के समर्थन से ज्ााहिर हुआ कि उन्हें ढंग की फिल्म मिले तो वे अवश्य पसंद करते हैं।

नाम का आइडिया

कुछ समीक्षकों को फिल्म के नाम से ही आपत्ति थी। सिनेमा पर निरंतर लिखने वालों में अंग्रेजी समीक्षकों और लेखकों की जमात बढ रही हैं। उनकी सोच-समझ अंग्रेजी फिल्मों से प्रभावित है। शिक्षा-दीक्षा और परवरिश में भी उनका भारतीय परंपराओं और मूल्यों से कम साबका पडा है। हिंदी के मशहूर कथाकार हृषिकेष सुलभ ने सूरज बडज़ात्या की इसलिए तारीफ की कि उन्होंने ऐसे समय में इतना सुंदर और सरल शीर्षक सोचा। सूरज बडज़ात्या बताते हैं, 'मैं नित्य साधना करता हूं। साधना के समय मुझे 'राम रतन धन पायो भजन याद आया। उससे प्रेरित होकर ही मैंने 'प्रेम रतन धन पायो नाम रखा। जब मैंने यह नाम सलमान ख्ाान को सुनाया तो वे कुछ देर ख्ाामोश रहे। फिर बोले, अगर किसी और ने मेरी फिल्म का यह नाम सुझाया होता तो उसे निकाल देता। आपने यह नाम चुना है तो उसकी वजह होगी। फिल्म के गीतकार इरशाद कामिल ने शीर्षक गीत में इसके भाव और फिल्म की थीम को अच्छी तरह व्यक्त किया है। अगर मीरा के भजन याद करें तो उन्होंने प्रेम के लिए धन शब्द का इस्तेमाल किया है। मेरी फिल्म में भी प्रेम वास्तव में रतन धन ही है।

पारिवारिक कहानी

सूरज बडज़ात्या फेमिली और भारतीय मूल्यों की फिल्मों के लिए विख्यात हैं। राजश्री की परंपरा में अपने दादा ताराचंद बडज़ात्या के उसूलों पर चलते हुए वे उन्हें मॉडर्न टच भी दे रहे हैं। सूरज बडज़ात्या कहते हैं, 'मैं ऐसी फिल्में ही बना सकता हूं। कई लोग मुझसे पूछते हैं कि क्या आज के दौर में दर्शक ऐसी फिल्में पसंद करेंगे। मेरा यही कहना है कि अभी सिनेमा का अच्छा दौर है। दर्शक हर तरह की फिल्में पसंद कर रहे हैं। मैं मानता हूं कि मेरी फिल्मों के दर्शक 8 से 80 साल की उम्र के हैं। मेरी फिल्मों में सिर्फ युवा ही नहीं, बच्चे, उनके दादा-दादी और नाना-नानी सब आते हैं। 'प्रेम रतन धन पायो को भी दर्शकों ने पसंद किया।

वे फिर कहते हैं, 'मैं आगे भी ऐसी फिल्में बनाऊंगा। मेरी सारी फिल्मों में सरस्वती का वास रहेगा, यह भी तय है।

शुरू से सूरज बडज़ात्या केे हीरो का नाम प्रेम रहता आया है। सलमान ख्ाान सहित अन्य निर्माताओं को भी यह नाम प्रिय है। कहते हैं कि सोलह फिल्मों में सलमान ख्ाान का नाम प्रेम रहा है। सूरज बडज़ात्या कहते हैं, 'मेरा स्वभाव प्रेम जैसा है। मेरा नायक स्त्रियों और अपने से छोटों को सम्मान और प्यार देता है। परिवार की अहमियत समझने वाले मेरे नायक केे जीवन में सादगी रहती है। वह निश्छल होता है। उसके लिए प्रेम से बेहतर नाम नहीं हो सकता। सलमान ख्ाान बताते हैं कि 'मैने प्यार किया के समय इस नाम पर विचार हुआ था। डर यही था कि कहीं दर्शक इसे नकारात्मक अर्थ में न ले लें। तब प्रेम चोपडा हिंदी फिल्मों के खलनायक के तौर पर मशहूर थे। 'बॉबी फिल्म का उनका संवाद पॉपुलर हुआ था....मेरा नाम है प्रेम, प्रेम चोपडा। एक ज्ामाने तक बच्चों के नाम प्रेम और प्राण नहीं रखे जाते थे, क्योंकि दोनों ही हिंदी फिल्मों में खल किरदारों को निभाने वाले मशहूर कलाकार रहे हैं। सूरज टस से मस होने को तैयार नहीं थे। वे प्रेम नाम पर ही अडे रहे। आज तो यह नाम पॉपुलर हो चुका है।

रांझणा से मिले कलाकार

कलाकारों के चयन में एक अहम भूमिका 'रांझणा ने निभाई। सूरज बताते हैं, 'उसमें सोनम कपूर की स्क्रीन प्रेज्ोंस व परफॉर्मेंस देखते ही मैंने तय कर लिया था कि प्रेम की मैथिली सोनम ही होंगी। दरअसल उनका देसीपन मुझे भा गया। हालांकि सलमान को सोनम के नाम पर मनाने में चार महीने लगे, क्योंकि सोनम उनके सामने बडी हुई हैं। सलमान उन्हें बचपन में भी देख चुके हैं, जब वे बेहद मोटी थीं। उनका तर्क था कि सोनम के साथ रोमैंस कैसे होगा। मैंने उन्हें समझाया कि उनकी उम्र की अभिनेत्री कहां मिलेगी, तब जाकर वे माने। आज दोनों की जोडी खूब पसंद की जा रही है।

सोनम कपूर कहती हैं, 'रांझणा की रिलीज्ा के एक हफ्ते बाद ही मुझे सूरज जी का फोन आया। उन्होंने साफ कहा कि मुझे उनकी अगली फिल्म में काम करना है। उन्होंने सलमान को मेरे बारे में बताया तो सलमान ने कहा कि एक बार बात कर लें क्योंकि वे मेरे पापा के साथ काम कर चुके हैं। इस पर मैंने सूरज सर से कहा कि सलमान मेरे पिता के कंटेंपरेरी नहीं हैं। और उन्होंने मुझसे दो साल छोटी सोनाक्षी सिन्हा के साथ काम किया है। फिर प्रॉब्लम क्या है?

चंद्रिका यानी स्वरा का चयन

प्रेम की बहन चंद्रिका की कास्टिंग भी फिल्म 'रांझणा का परिणाम था। स्वरा भास्कर कहती हैं, 'रांझणा में मेरी परफॉर्मेंस से सलमान की बहन अलवीरा प्रभावित थीं। उन्होंने ही सूरज जी को मेरा नाम सजेस्ट किया। आज फिल्म में उनके काम की तारीफ हो रही है। ख्ाुद सलमान कहते हैं, 'ज्ाुबान साफ होना...किसी के भी परफार्मेंस में इसका बडा रोल होता है। स्वरा की हिंदी बहुत अच्छी है। सीन की अंडरस्टैंडिंग गज्ाब की रहती है और वह उसे पर्सनल टच देती हैं। वह परफॉर्म नहीं करतीं, अपनी ज्िांदगी से ले आती है। वह कैलकुलेट नहीं करती।

सूरज बताते हैं, 'सलमान की बहन का किरदार निभाने के लिए कोई लडकी तैयार नहीं थी। बाद में स्वरा भास्कर मानीं। उनके लिए इमेज से बढ कर किरदार है। दीपक डोबरियाल भी फिल्म 'रांझणा की खोज रहे। उस फिल्म में उनका पप्पी जी वाला रोल हमारे परिवार में अमूमन सभी को पसंद है।

फिल्म में एकमात्र विलेन है, जिसे अरमान कोहली ने निभाया। अरमान के मुताबिक, 'वह रोल मुझे सलमान भाई की वजह से मिला। उन्होंने सूरज जी को मेरा नाम सजेस्ट किया। नील के नाम पर भी मुहर सलमान ख्ाान के कहने पर लगी।

अजय ब्रह्मात्मज


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