प्रेम और समर्पण की कहानी बाजीराव मस्तानी
एक लंबे अरसे तक डिब्बे में बंद रही 'बाजीराव मस्तानीÓ जब परदे पर आई तो शुरुआत उसकी भले ही धीमी रही लेकिन जब फिल्म ने रफ्तार पकड़ी तो शाहरुख़्ा और काजोल की जोड़ी को मात दे दी। फिल्म कैसे बनी, बता रहे हैं फिल्म संपादक अजय ब्रह्म्ïाात्मज।
संजय लीला भंसाली लंबे समय से 'बाजीराव मस्तानी की प्रेम कहानी बडे परदे पर लाना चाहते थे। 'देवदास के समय ही उन्होंने इस पर भी सोचा था। तब उन्होंने सलमान ख्ाान और रानी मुखर्जी के नाम पर विचार किया था। संयोग ऐसा रहा कि वह फिल्म नहीं बन सकी। फिर भी 'बाजीराव मस्तानी की प्रेम कहानी उन्हें मथती रही। इस दौरान उनसे मिलने वाले हर व्यक्ति की जिज्ञासा रहती थी कि आख्िार कब बाजीराव मस्तानी पर फिल्म बनेगी? 'गोलियों की रासलीला-रामलीला के निर्माण-निर्देशन और सफलता के बाद संजय ने महसूस किया कि रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण के रूप में उन्हें अपने किरदार मिल गए हैं और उन्होंने फिल्म का निर्माण शुरू कर दिया। शुरुआत में फिल्म धीमी रही लेकिन एक बार जब उसने रफ्तार पकडी तो प्रतिद्वंद्वी फिल्म को अच्छी टक्कर दे डाली।
मराठी संस्कृति से लगाव
संजय लीला भंसाली गुजराती हैं, लेकिन बचपन से वह मराठियों के बीच रहे। मराठी संस्कृति और भाषा का उन पर बहुत प्रभाव है। 'बाजीराव मस्तानी के निर्माण की वजह पूछने पर वह बताते हैं, 'मैं बचपन से मराठी सभ्यता, संस्कृति और संगीत से जुडा रहा हूं। मराठा इतिहास में अनेक रोचक घटनाएं हैं। कई दिलचस्प कहानियां हैं। उनमें से एक बाजीराव और मस्तानी की प्रेम कहानी है। मैं उसे पर्दे पर लाना चाहता था। आप देखें कि बहादुर बाजीराव ने चालीस लडाइयां जीतीं। मस्तानी की वजह से वह अपने परिवार के आगे हार गया। वह चाहता तो सभी के विरोध के बावजूद मस्तानी को महल में ला सकता था। वह योद्धा था। गौर करें तो हर युग में जब भी कोई कुछ नया करना चाहता है तो उसका विरोध होता है। आज भी हो रहा है। मेरे लिए यह जानना रोचक था कि बाजीराव ने ऐसा क्यों किया?
परफेक्ट कास्टिंग
इस फिल्म में कलाकारों के सटीक चुनाव की अहम भूमिका रही। बाजीराव के किरदार में रणवीर सिंह, मस्तानी के लिए दीपिका पादुकोण और काशीबाई के लिए प्रियंका चोपडा को 'बाजीराव मस्तानी में लेने का मन संजय लीला भंसाली ने 'गोलियों की रासलीला-रामलीला के समय ही बना लिया था। रणवीर और दीपिका के बीच की केमिस्ट्री उन्हें अपनी नई फिल्म के लिए भी उपयुक्त लगी।
काशीबाई थी ख्ाास
काशीबाई की भूमिका के लिए प्रियंका चोपडा के चुनाव ने जरूर हैरत में डाला। फिल्म में काशीबाई के लिए कम स्पेस था। प्रियंका चोपडा बताती हैं, यह रोल सुनाते समय संजय सर ने मुझसे स्पष्ट कहा था कि काशीबाई मेरी फिल्म का संघर्ष है। उन्होंने सबसे पहले मेरी कास्टिंग की थी। फिल्म में काशीबाई के किरदार को संजय सर ने उस समय की एक समझदार औरत के रूप में दिखाया। जब उसे एहसास हो गया कि उसका पति मस्तानी के प्रेम में डूबा हुआ है तो उसने उसे मुक्त कर दिया। आख्िार में उसने अपने पति के लिए मस्तानी को आजाद भी किया। एक औरत का दिल इतना बडा होता है कि वह अपने समर्पण के लिए कुछ भी कर सकती है।
भव्य सेट
'बाजीराव मस्तानी में अपूर्व भव्यता है। संजय लीला भंसाली की यह ख्ाूबी है कि उनकी फिल्मों के सेट विशाल और भव्य होते हैं। इस फिल्म के लिए मुंबई की फिल्म सिटी में सेट लगाए गए। इसके अलावा राजस्थान के ऐतिहासिक िकलों में भी शूटिंग की गई। युद्ध के दृश्यों के लिए मैदानी इलाकों का चुनाव किया गया। संजय अपनी हर फिल्म में एक नया रंग चुनते हैं। पूरी फिल्म में उसी रंग की छटाएं दिखती हैं। 'बाजीराव मस्तानी में मराठा इतिहास के साक्ष्य और पुरानी ऐतिहासिक इमारतों के रंग और वास्तु का ध्यान रखा गया। उन्हीं के मेल में सेट तैयार किया गया। कॉस्ट्यूम और हथियारों की रिसर्च में सभी जानकारियों और बारीिकयों का काफी ध्यान रखा गया।
स्ट्रिक्ट डायरेक्टर
संजय लीला भंसाली इस बात के लिए विख्यात हैं कि वे अपनी फिल्म में जरा भी हेरफेर नहीं करने देते। हालांकि, फिल्म की स्क्रिप्ट रहती है, कलाकारों को सब बता भी दिया गया होता है, लेकिन सेट पर कैमरा ऑन होने के पहले सीन और टेक बदला जा सकता है। सभी कलाकार दोहराते हैं कि संजय लीला भंसाली उनकी मेहनत और तैयारी पर पानी फेर देते हैं। संजय अपने बचाव में कहते हैं, 'मैं हर दिन के मूड के हिसाब से शूटिंग करता हूं। एक मोटा ढांचा तैयार रहता है लेकिन कलाकारों की ऊर्जा, सहयोगी कलाकारों के जोश और रोशनी के हिसाब से सब कुछ बदल भी सकता है। मुझे यह अच्छा नहीं लगता कि कोई पहले से कुछ सोच कर आए और उसे ही निभा कर संतुष्ट हो ले। अचानक बदलाव हो तो कलाकार की योग्यता और क्षमता निखर कर आती है।
रिसर्च में लगा समय
रणवीर सिंह बताते हैं, 'संजय सर की टीम ने सारी रिसर्च कर रखी थी। फिल्म शुरू करने के साथ मुझे रिसर्च मैटीरियल दे दिया गया। साथ ही एक मराठी कोच भी मेरे साथ कर दिया गया। इस फिल्म में योद्धा की तैयारी में समय लगा। मुझे िफजिकली भी बहादुर दिखना था। मैं अपनी तैयारी को महीनों और समय में काउंट नहीं करना चाहता। सेट के पास रह सकूं, इसलिए कुछ दिनों के लिए मैंने अपना घर भी बदल लिया था। मेरे लिए बाजीराव एक बहुत बडी चुनौती थे। फिल्म को मिली सराहना और अपनी तारीफ के बाद लग रहा है कि हमारी मेहनत सफल रही।
कल्पनाशील हैं संजय
प्रियंका चोपडा अपने निर्देशक संजय लीला भंसाली की कल्पना की कायल हैं। वह कहती हैं, 'इसी फिल्म की बात करें तो कागज पर लिखे शब्दों को पढ कर कोई सोच भी नहीं सकता था कि ऐसी फिल्म बन जाएगी। मेरे ख्ायाल में हर सीन के विज्ाुअल उनके दिमाग में बने रहते हैं, जिन्हें वह अपनी टीम की मदद से साकार करते हैं। उनके साथ काम करने में इसलिए अधिक मजा आता है क्योंकि वैसे दृश्य हम पहली बार कर रहे होते हैं।
ख्ाूबसूरती पर ख्ाास ध्यान
संजय लीला भंसाली की फिल्मों में अभिनेत्रियां बला की ख्ाूूबसूरत दिखती हैं। दीपिका पादुकोण बताती हैं, 'हमें भी नहीं मालूम रहता कि किसी कोण से हम कितने ख्ाूबसूरत लग सकते हैं। उन्होंने दोनों ही फिल्मों में मुझे जिस सौंदर्य के साथ पेश किया है, उस रूप में दूसरे निर्देशक मुझे नहीं देख सके। उनकी फिल्मों में सिर्फ अभिनेत्रियां ही नहीं, परिवेश में भी सौंदर्य झलकता है।
मुगले-आजम को श्रृद्धांजलि
संजय स्पष्ट शब्दों में कहते हैं, 'मेरी फिल्म 'मुगले-आज्ाम को दी गई श्रृद्धांजलि है। अगर किसी को नकल या प्रेरणा लग रही हो तो यह स्वाभाविक है। मैं उनकी बराबरी तो नहीं कर सकता लेकिन 21वीं सदी के दर्शकों को एक पीरियड और प्रेमकथा की फील तो दे ही सकता हूं। मुझे ख्ाुशी है कि दर्शकों ने फिल्म को सराहा।
प्र्रियंका थी फस्र्ट चॉइस
बाजीराव मस्तानी फिल्म में भले ही बाजीराव और मस्तानी के लिए कई कलाकारों का नाम सामने आया लेकिन इन दस सालों में काशीबाई के लिए एक ही नाम फाइनल हुआ जिसने अंत में वह भूमिका परदे पर साकार की। वह थी प्रियंका चोपडा। संजय को प्रियंका की प्रतिभा पर पूरा भरोसा था।
अजय ब्रह्म्ाात्मज