पापा के लिए मन में सम्मान है...
ग्रीक गॉड कहे जाने वाले रितिक रोशन फिल्म इंडस्ट्री का ऐसा चेहरा हैं, जिन्हें सभी पसंद करते हैं। पिछले दिनों वह दैनिक जागरण के नोएडा स्थित ऑफिस आए तो उनसे ढेरों बातें हुईं, खासतौर पर पिता-पुत्र रिश्तों पर।
बचपन में कई सेहत संबंधी समस्याओं से जूझने वाले रितिकरोशन ने मेहनत और दढ इच्छाशक्ति के बलबूते बॉलीवुडमें अलग स्थान बनाया है। बच्चे उनके डांस के दीवाने हैं तो बडे उनके अभिनय और सहजता के कायल हैं। कूल डैड माने जाने वाले रितिकपरवरिश के मामले में अपने पिता से कितने अलग हैं, उनसे यह जानने की कोशिश की हमने।
पापा का संघर्ष मेरे पिता ने सफलता के लिए बहुत मेहनत की। मुझे याद है, 20साल तक उन्होंने पहले ऐक्टर और फिर प्रोड्यूसर के तौर पर काम किया। बाद में वह निर्देशन के फील्ड में आए। हम जहां रहते थे, वह अपार्टमेंटकिराये का था। एक बार तो हमारे पास किराया देने के लिए भी पैसा नहीं था....। हमें घर छोडऩे के लिए कह दिया गया और हम अपने सारे सामान के साथ वहां से निकल पडे।
सबक मेरे पिता के जीवन में ऐसे कई अनुभव थे, जिनसे मुझे सबक मिला। मैंने उनके संघर्ष का पूरा दौर देखा। तब समझ आया कि यह सब जो चकाचौंध नजर आती है यानी पार्टी, मेकअप, ग्लैमर... कुछ भी काम नहीं आता। सफलता आसानी से नहीं, कडी मेहनत से मिलती है। फिर मैंने उनके असिस्टेंट के तौर पर काम किया, मुझे महसूस हुआ कि कैमरे के पीछे क्या होता है। कैमरे के पीछे जो लोग हैं, वे सुबह पांच बजे जग जाते हैं। स्टार्ससाढे नौ बजे उठ सकते हैं लेकिन उनसे पहले असिस्टेंट्सको उठना होता है। मैं भी जल्दी उठता था। इससे मुझे लोगों की आई। मैं स्पॉट बॉय और लाइट बॉयके साथ उठता था। फिल्म के लीड आर्टिस्ट आउटडोर शूटिंग्स के दौरान फस्र्ट क्लास से सफर करते थे पर मैं सेकंड क्लास से जाता था। तब मैं समझ पाया कि कैमरे के पीछे रहने वाले लोग फिल्म के लिए कितनी मेहनत करते हैं। मेरे मन में पूरे स्टाफ के प्रति बेहद सम्मान है। इन्हीं की बदौलत स्टार्सढंग से काम कर पाते हैं। परवरिश के यही मूल्य मुझे मिले। मेरे बच्चों का वास्ता अभी ऐसी कई हकीकतों से नहीं पडा है। मैं भी उनके लिए बेस्ट करने की कोशिश करता हूं। मेरे पापा ने अपने समय के हिसाब से मुझे बेस्ट परवरिश दी है, मैं भी पूरी कोशिश करता हूं कि अपने बच्चों को बेहतर परवरिश दे सकूं।
बदली है पेरेंटिंग पेरेंटिंगके तौर-तरीके इतने वर्षों में बहुत बदल गए हैं। आज की पेरेंटिंग बहुत अलग और चुनौतीपूर्ण है।मैं अपने बच्चों का दोस्त बनने की कोशिश करता हूं लेकिन मेरे पिता मेरे दोस्त नहीं थे। दरअसल उनके लिए मेरे मन में सम्मान था, वह भी इतना कि अगर कभी मैं सुबह उठ कर उन्हें गुडमॉर्निंगडैड कहूं तो वह मुझे घूर कर देखेंगे कि इसे क्या हो गया है? मैं अपने बच्चों के साथ घूमता व खेलता हूं, उन्हें हर सुख-सुविधा देता हूं, अपना समय देता हूं मगर मैं उन्हें अपने बचपन और पिता के संघर्ष की कहानी भी सुनाता हूं, ताकि वे जीवन मूल्यों को जानें और का असल अर्थ समझें।
शरारती बचपन बचपन में मैं बहुत शरारती था। कई बार इसके लिए सजा भी मिली। एक बार मैं अपने दोस्त के साथ अपार्टमेंटके 13वेंफ्लोर पर था। वहां से नीचे देखने पर डर लगता है लेकिन काफी रोमांच भी महसूस होता है। छत पर कोल्ड ड्रिंक और बियर की कई खालीबोतलें पडी थीं। हम नीचे देख रहे थे। वहां कुछ बच्चे खेल रहे थे। एकाएक दिमागमें आइडिया आया, हमने एक बोतल उठाई, सटाकसे नीचे गिरा दी। बोतल हवा में लहराते हुए नीचे गिरी और फिर एक विस्फोट सा हुआ। लोग इधर-उधर भागने लगे। उन्हें भागते देख हमें भी मजा आने लगा। हम एक-एक बोतल फेंकते और लोग भागने लगते। इस बीच किसी ने हमें देख लिया तो पापा को फोन कर दिया कि देखिए आपका सुपुत्र क्या कर रहा है...। पापा तुरंत घर पहुंच गए और इसके बाद मेरी जो धुनाई हुई....वह बयान नहीं की जा सकती।