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शिव और विष्णु की भक्ति का अनूठा समन्वय

भगवान शिव और विष्णु को वैसे तो हम अलग-अलग रूपों में पूजते हैं, लेकिन वास्तव में ये एक ही परमात्मा के दो स्वरूप हैं। भागवत और विष्णु पुराण में ये विष्णु रूप से और शिव, कूर्म, मत्स्य, स्कन्द आदि पुराणों में शिव रूप से संस्तुत एवं महिमा मंडित होते हैं।

By Edited By: Published: Mon, 03 Nov 2014 03:30 PM (IST)Updated: Mon, 03 Nov 2014 03:30 PM (IST)
शिव और विष्णु की भक्ति का अनूठा समन्वय

अक्षय नवमी 1 नवंबर

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देवोत्थान एकादशी 3 नवंबर

भौम-प्रदोष व्रत 4 नवंबर

बैकुंठ चतुर्दशी 5 नवंबर

कार्तिक पूर्णिमा 6 नवंबर

उत्पन्ना एकादशी 18 नवंबर

शनैश्चरी अमावस्या 22 नवंबर

वरदविनायक चतुर्थी 25 नवंबर

राम विवाह 27 नवंबर

भगवान शिव और विष्णु को वैसे तो हम अलग-अलग रूपों में पूजते हैं, लेकिन वास्तव में ये एक ही परमात्मा के दो स्वरूप हैं। भागवत और विष्णु पुराण में ये विष्णु रूप से और शिव, कूर्म, मत्स्य, स्कन्द आदि पुराणों में शिव रूप से संस्तुत एवं महिमा मंडित होते हैं। दो अलग रूपों में अभिव्यक्ति होने पर भी ये दोनों परस्पर उपासक, प्रशंसक एवं परम सखा हैं। पुराणों में यह भी कहा गया है कि शिव और विष्णु एक-दूसरे की अंतरात्मा हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी बैकुंठ चतुर्दशी कहलाती है। इस दिन भगवान विष्णु और शिवजी के पूजन की परंपरा है।

व्रत का विधान

वैकुंठ चतुर्दशी को प्रात:काल नहा धोकर भगवान विष्णु के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। पूजन सामग्री में धूप, दीप, चंदन, अक्षत, नैवेद्य, कमल का फूल, तुलसीदल, बेलपत्र, धतूरा आदि साम‌र्थ्य के अनुसार होना चाहिए। दिनभर उपवास रखने के बाद रात्रि में भगवान विष्णु और शिव की विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए। पूरे वर्ष में यही एक ऐसा दिन होता है, जब शिव जी को बेलपत्र की जगह तुलसीदल और विष्णु भगवान को तुलसीदल के बजाय बेलपत्र चढाए जाते हैं। दूसरे दिन प्रात:काल शिवजी का पूजन और ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद यह व्रत संपन्न होता है।

प्रचलित कथा

प्रचलित कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु देवाधिदेव महादेव का पूजन करने के लिए काशी पधारे। वहां मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके उन्होंने एक हजार स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ की पूजा का संकल्प किया। अभिषेक के बाद जब वे पूजन करने लगे तो शिवजी ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के उद्देश्य से एक कमल पुष्प कम कर दिया। एक पुष्प की कमी देखकर भगवान विष्णु ने सोचा कि मेरी आंखें कमल के समान ही हैं। इसीलिए तो मुझे कमलनयन और पुण्डरीकाक्ष कहा जाता है। एक कमल के स्थान पर मैं शिवजी को अपनी एक आंख ही चढा देता हूं। ऐसा सोचकर वे अपनी कमल सदृश आंख चढाने को तैयार हो गए, भगवान विष्णु की इस अगाध भक्ति से भावुक होकर महादेव प्रकट होकर बोले, हे श्रीहरि! तुम्हारे समान इस संसार में मेरा कोई दूसरा भक्त नहीं है, इसलिए आज से यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब बैकुंठ चतुर्दशी के नाम से प्रसिद्ध होगी। इस दिन जो व्यक्ति आपका पूजन करने के बाद मेरी पूजा करेगा वह सदैव सुखी रहेगा और अंत में उसे वैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी।

हरि-हर का मिलन

देश के बारह ज्योतिर्लिगों में श्री महाकाल एकमात्र ऐसा ज्योर्तिलिंग है, जिसकी प्रतिष्ठा समय और मृत्यु के देवता के रूप में की गई है। उज्जैन शहर के बीच बाजार में महाराज दौलत राव सिंधिया की महारानी बायजाबाई ने द्वारकाधीश (गोपाल) के मंदिर का निर्माण करवाया। ऐसी मान्यता है कि बैकुंठ चतुर्दशी को रात्रि 12.00 बजे के पश्चात हरि और हर अर्थात भगवान विष्णु और शिव का मिलन होता है। महाकालेश्वर की सवारी रात्रि में गोपाल मंदिर में जाती है, वहां महाकालेश्वर को तुलसी दल का भोग लगाया जाता है। इसके बाद गोपालजी की सवारी महाकाल मंदिर आती है, जहां उन्हें बेलपत्र और भस्म अर्पित किया जाता है। यह बडा ही मनोहारी दृश्य होता है। इस व्रत में यही संदेश छिपा है कि सर्वशक्तिमान ईश्वर एक ही हैं। इसलिए विभिन्न मतों के आधार पर हमें दूसरों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार नहीं करना चाहिए।

हमारे अमूल्य धरोहर

शैव एवं वैष्णव

मत समाहित हैं

वामन पुराण में

महापुराणों की सूची में वामन पुराण को चौदहवां स्थान प्राप्त है। इसमें भगवान विष्णु के वामन अवतार का विस्तृत उल्लेख है। इसके अलावा शिव और विष्णु की भक्ति, पूजन विधि, देवी माहात्म्य आख्यान, देवासुर संग्राम, तीर्थो का वर्णन, व्रत-उपवास आख्यान आदि का भी बहुत सुंदर वर्णन देखने को मिलता है। वामन पुराण में कुछ ऐसे विषय भी हैं, जिनका अन्य पुराणों में वर्णन नहीं किया गया है। जैसे- शिवजी के विभिन्न अंगों के भूषण के रूप में सर्पो के नामों का उल्लेख, देवों और असुरों के अलग-अलग वाहनों का वर्णन, वामन रूप में भगवान विष्णु के विविध स्वरूपों एवं निवास स्थानों का वर्णन आदि। इसमें 6,000 श्लोक एवं लगभग 28 स्तोत्र हैं, जिसमें 17 भगवान विष्णु और 11 स्तोत्र शिवजी से संबंधित हैं। इस पुराण में प्रह्लाद, बलि, सुकेशि आदि असुरों का भी उल्लेख है, जो भगवान की भक्ति के कारण इस संसार में अमर हो गए। इस ग्रंथ में वैष्णव और शैव मतों का सुंदर समन्वय दिखाई देता है।

संध्या टंडन


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