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फिल्म प्रमोशन बदलता अंदाज

मौज़ूदा दौर में किसी फिल्म को बनाना जितना कठिन है, उसे रिलीज़ करवा पाना उससे कहीं ज़्यादा चुनौतीपूर्ण है। इसके लिए निर्माता-निर्देशक से लेकर फिल्म से जुड़ा हर व्यक्ति अपने-अपने स्तर पर जीतोड़ मेहनत करता है। फिल्म के प्रचार के लिए अलग-अलग तरह के हथकंडों का बखूबी इस्तेमाल किया जाता है। कभी सेंसरशिप में अटकी हुई तो कभी कंट्रोवर्सी में फंसी फिल्मों को उनके बैनर व कलाकारों के अनुसार सकारात्मक/ नकारात्मक प्रचार मिलता रहता है।

By Edited By: Published: Thu, 17 Nov 2016 10:56 AM (IST)Updated: Thu, 17 Nov 2016 10:56 AM (IST)
फिल्म प्रमोशन बदलता अंदाज
निर्देशक अनुराग कश्यप कहते हैं कि एक बडी फिल्म को रिलीज करने के लिए जितनी तैयारियां की जाती हैं, उतनी तो कोई राजनैतिक पार्टी लोकसभा चुनाव के लिए भी नहीं करती होगी। फिल्म रिलीज करने से पहले उसका नाम तय होने, कलाकारों का ब्योरा, मुहूर्त शॉट, शूटिंग के दौरान सेट की तसवीरें, फस्र्ट लुक पोस्टर, पोस्टर, टीजर, ट्रेलर, गाने, कुछ दृश्यों की मेकिंग के विडियो से लेकर फिल्म देखने की अपील वाले विडियो तक जारी किए जाते हैं। बीच-बीच में म्यूजिक, ट्रेलर व पोस्टर लॉन्च के बहाने मीडिया इवेंट्स भी होते रहते हैं। क्यों जरूरी है प्रमोशन माना जाता है कि किसी फिल्म का प्रचार सही व अनोखे ढंग से न किया जाए तो उसे वितरक और मल्टीप्लेक्स में स्क्रीन मिलने में कठिनाई का सामना करना पड सकता है। फिल्मों का प्रचार फिल्म निर्माण का आज सबसे अहम हिस्सा बन चुका है। इसके लिए कई बार कलाकारों से फिल्म साइन कराते समय ही अनुबंध करवा लिया जाता है। फिल्म में अभिनय करने के साथ ही अभिनेता को उसके प्रचार के भी दिन-तारीख और पैसे तय करने होते हैं। कई कलाकार तो खुद प्रमोशनल स्ट्रैटेजी बनाने में सहयोग करते हैं। ऑडियंस भी प्रमोशंस में रचनात्मकता तो तलाशती ही है, उनमें अपनी भागीदारी की उम्मीद भी करती है। लगभग हर महीने एक साथ कई फिल्में रिलीज होती हैं, ऐसे में भीड से खुद को अलग रखने के लिए प्रचार के नायाब तरीकों को अपनाया जा रहा है। प्रमोशन के ट्रडिशनल तरीके कुछ साल पहले तक प्रचार के तरीके सामान्य थे। एक नजर 1980-90 के दौर पर। फिल्म के रिलीज होने से पहले टीवी पर प्रोमो आने लगते थे और सिनेमाघरों में ट्रेलर चलते थे। रिलीज के हफ्ते भर पहले से शहरों की दीवारों पर फिल्म के बडे-बडे पोस्टर नजर आने लगते थे। ऑटो रिक्शा और रिक्शा को चारों तरफ से कपडे अथवा कागज के पोस्टर से ढक कर फिल्म का प्रचार किया जाता था। उस समय फिल्में कंटेंट और क्वॉलिटी के दम पर कभी सिल्वर जुबली तो कभी गोल्डन जुबली मना लेती थीं। तब कोई नहीं पूछता था कि फिल्म का कलेक्शन कैसा रहा। उत्सुकता बस इसकी रहती थी कि फिल्म कितने हफ्ते चली। समय बदला तो प्रचार के तरीके भी बदले। प्रचार में बदलाव की बयार अब फिल्म के रिलीज होने के कई महीने पहले से ही माहौल तैयार किया जाने लगता है। माना जाता है कि दर्शकों की उत्सुकता बढेगी तो वे सिनेमाघरों में आएंगे। यह काम किसी भी प्रकार की ऐक्टिविटी से किया जा सकता है। सामाजिक मौजूदगी : धार्मिक स्थानों में मत्था टेकने से लेकर विभिन्न सामाजिक कार्यक्रमों में डांस व ऐंकरिंग तक के आयोजन किए जाते हैं। टीवी कार्यक्रम : टीवी पर प्रसारित हो रहे गेम शोज, टॉक शोज, कॉमेडी शोज और नियमित धारावाहिकों में फिल्म के कलाकारों को शामिल किया जाता है। पब्लिसिटी स्टंट : कोशिश की जाती है कि फिल्म के रिलीज होने तक फिल्म और उसके कलाकार किसी भी तरह से चर्चा में बने रहें और मीडिया की सुर्खियों में जगह बनाए रहें। सोशल मीडिया : फेसबुक पर मूवी का पेज, फिल्म से जुडा सोशल गेम या ऐनिमेटेड सीरीज लॉन्च करना, प्रीमियर टिकट के लिए कॉम्पिटीशन, मूवी की ऑफिशियल वेबसाइट, ट्विटर व इंस्टाग्राम पर अपडेट्स करते रहना। मीडिया इवेंट्स : विभिन्न अवसरों पर पत्रकारों, फिल्म समीक्षकों व क्रिटिक्स को बुलाकर फिल्म पर चर्चा की जाती है, कलाकारों के इंटरव्यूज होते हैं जिनमें वे फिल्म वाले गेट अप में ही आते हैं। ऑडियंस की भागीदारी : कभी मूवी में फिल्माए जा रहे भीड वाले दृश्यों के बहाने तो कभी कॉम्पिटीशंस या रिअलिटी शोज के बहाने ऑडियंस को प्रमोशंस का हिस्सा बनाया जाता है। ट्रेलर व पोस्टर रिलीज : कुछ मिनटों के ट्रेलर यू ट्यूब से लेकर हर डिजिटल प्लेटफॉर्म पर रिलीज किए जाते हैं। कई बार तो नकारात्मक प्रचार का सहारा भी लिया जाता है। कई तरह की टैक्टिक्स भुनाकर दर्शकों को सिनेमाघरों तक खींचने की कोशिश की जाती है। बढता प्रचार का बजट फिल्मों का प्रचार महंगा होता जा रहा है। पहले फिल्म के बजट का एक छोटा हिस्सा ही प्रचार में खर्च किया जाता था। कुल लागत का 5-10 प्रतिशत काफी माना जाता था। इन दिनों कई बडे स्टार अपनी फिल्मों के सह-निर्माता या प्रॉफिट में हिस्सेदार होते हैं इसलिए वे भी प्रचार को पूरा समय देते हैं। शाह रुख खान ने 'रा.वन' के प्रचार के लिए 5 करोड रुपये खर्च किए तो 'दिलवाले' के लिए 25 करोड। वे फिल्म से जुडे हर अहम पल (म्यूजिक रिलीज, ट्रेलर रिलीज आदि) को किसी इवेंट की तरह मनाना जरूरी समझते हैं। फिल्मों की रिलीज से पहले पीआर कंपनियां फिल्म को चर्चित करने के लिए तरह-तरह की नई और मौलिक योजनाएं बनाती हैं। रिलीज के पहले फिल्म के स्टार कलाकारों को पीआर, मार्केटिंग कंपनी और संबंधित एजेंसियों से जो भी सलाह मिलती है, उनकी टीम उस पर अमल करती है। प्रमोशन का नया अंदाज गजनी : फिल्म की रिलीज से पहले मुंबई के कई मल्टीप्लेक्सेज में वहां के एंप्लॉइज आमिर खान वाले हेयर स्टाइल में नजर आए। 3 इडियट्स : आमिर खान प्रमोशन के मामले में परफेक्शनिस्ट माने जाते हैं। इस फिल्म की रिलीज से पहले वे अपने किरदार के अनुसार गायब हो गए थे। 2 स्टेट्स : आलिया भट्ट ने तो ट्रेलर के रिलीज होने से पहले ट्विटर पर अपनी एंगेजमेंट की घोषणा कर दी थी। राज 3 : बिपाशा ने मुंबई के ऑटो ड्राइवर्स को फिल्म के रिलीज होने से पहले नींबू-मिर्च वितरित किया था। दीपाली पोरवाल

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