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कामयाबी की कीमत

कामयाबी की राह पर निरंतर आगे बढ़ना निश्चित रूप से बहुत अच्छी बात है, पर कुछ और ज्यादा हासिल करने की चाह में कहीं हम मन का सुकून तो नहीं खो रहे, सफलता के सर्वोच्च शिखर तक पहुंचने के लिए इंसान अपनी किन खुशियों की कुर्बानी दे सकता है, उसके अनंत सपनों की यह उड़ान आखिर उसे कहां तक ले जाएगी? कुछ विशेषज्ञों और मशहूर शख्सीयतों के साथ ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब ढूंढ रही हैं विनीता।

By Edited By: Published: Mon, 03 Nov 2014 11:29 AM (IST)Updated: Mon, 03 Nov 2014 11:29 AM (IST)
कामयाबी की कीमत

अगर हम अपनी जिंदगी की बैलेंस शीट का जायजा लें तो समझ आता है कि क्या पाने के लिए हमने क्या खोया है। फिर भी हमारी ख्वाहिशें कम नहीं होतीं। हमें सब कुछ सबसे अच्छा, ज्यादा और पहले चाहिए। क्या करें, हमारा मन भी मासूम बच्चे की तरह थोडा जिद्दी, नादान और लालची है। उसे समझाना बेहद मुश्किल है। तभी तो मिर्जा गालिब का यह शेर आज भी बेहद मौजूं है-

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हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि

हर ख्वाहिश पे दम निकले

बहुत निकले मेरे अरमां

लेकिन फिर भी कम निकले।

राह में चाहे कितनी ही मुश्किलें क्यों न आएं, पर हौसले आसानी से पस्त नहीं होते। यह सच है कि दोनों हाथों से उपलब्धियां बटोरने के लिए हमें बहुत कुछ छोडना भी पडता है, फिर भी पाने की लालसा इतनी जबर्दस्त है कि उसके लिए हम बहुत कुछ खोने को तैयार हैं।

बनी रहे आगे बढने की चाहत

यह सच है कि महत्वाकांक्षा स्वाभाविक मानवीय प्रवृत्ति है। कुछ पाने की लालसा ही हमें जिंदगी से प्यार करना सिखाती है। इसी के लिए इंसान दिन-रात कडी मेहनत करता है। अगर व्यक्ति महत्वाकांक्षी न हो तो वह निष्क्रिय और उदासीन हो जाएगा, इससे देश और समाज का विकास रुक जाएगा। इस लिहाज से जीवन में आगे बढने की ख्वाहिश हमेशा बनी रहनी चाहिए। ख्वाहिशें तो पूरी हो ही जाती हैं, पर उन्हें मुकम्मल करने के पीछे कितना दर्द और कितनी कुर्बानियां छिपी होती हैं, यह दूसरों को कहां मालूम होता है। वैसे, हर इंसान के लिए कामयाबी की परिभाषा अलग होती है। किसी को दौलत और रुतबा चाहिए तो कोई कलाकार ऐसा मास्टर पीस बनाना चाहता है, जिसे अब तक किसी ने न देखा हो। किसी के लिए दूसरों के साथ अपने अनुभव और ज्ञान बांटना कामयाबी है तो कोई जरूरतमंदों की मदद करके ही अपने जीवन को सफल समझता है। भले ही यहां लोगों के सपनों के रंग-रूप अलग हों, पर उन्हें साकार करने के पीछे सबका मकसद खुश रहना ही है। सच्ची लगन के साथ कोशिश करने वाले लोगों को अपने क्षेत्र में कामयाबी भी मिलती है, लेकिन मुश्किल तब आती है जब भौतिक सुख-सुविधाओं की लालसा और मन के सुकून के बीच असंतुलन पैदा होने लगता है। सच तो यह है कि आज के इस बदलते दौर में यह असंतुलन बढता ही जा रहा है।

बदल रहा है सब कुछ

समय के साथ लोगों की इच्छाएं तेजी से बढती जा रही हैं। भारतीय समाज बहुत बडे बदलाव के दौर से गुजर रहा है और इसका असर लोगों की सोच पर भी दिखाई दे रहा है। पिछले दो-तीन दशकों में युवाओं के सामने रोजगार के कई बेहतरीन अवसर आए। उन्हें आसानी से विदेश जाने का मौका मिलने लगा। उनकी जीवनशैली पहले की तुलना में ज्यादा समृद्ध और आरामदेह बन गई। आर्थिक उदारीकरण के बाद लोन की सुविधा आसान हो गई। इससे लोगों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव आ गया। पिछली पीढी ताउम्र मेहनत करने के बाद भी अपने लिए जो सुविधाएं जुटा नहीं पाती थी, आज युवाओं के पास करियर के शुरुआती दौर में ही वे सारी सुख-सुविधाएं मौजूद होती हैं। फिर भी वे अपने जीवन से संतुष्ट नहीं दिखाई देते। उनके मन में कुछ और हासिल करने की इच्छा हमेशा बनी रहती है। मनोवैज्ञानिक सलाहकार गीतिका कपूर कहती हैं, हम बहुत बडे सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं। इन सभी बातों का मिला-जुला असर लोगों की सोच पर भी पड रहा है। उपभोक्तावादी संस्कृति की वजह से महानगरों में रहने वाले लोग भौतिक सुख-सुविधाओं की ओर ज्यादा तेजी से आकर्षित हो रहे हैं और छोटे शहरों पर भी इसका प्रभाव दिखाई देने लगा है। अब व्यक्ति अपनी हर खुशी को पैसे से तौलता है। इच्छाओं के दबाव में आकर लोग अपने नैतिक मूल्यों को भूलते जा रहे हैं, जो इस सफलता का स्याह पहलू है।

गलाकाट प्रतिस्पर्धा का दौर

आज जीवन के हर क्षेत्र में इतनी कडी प्रतिस्पर्धा है कि हर व्यक्ति दूसरे को गिराते हुए आगे बढने की कोशिश में तेजी से भाग रहा है। किसी के पास पल भर सुस्ताने की फुर्सत नहीं है। हर पल यही डर सताता रहता है कि अगर मेरे हाथ से यह मौका चूक गया तो दोबारा मुझे बहुत देर तक अपनी बारी का इंतजार करना पडेगा। लोगों का धैर्य जवाब दे रहा है, वे कम से कम समय में बहुत कुछ हासिल कर लेना चाहते हैं। बढती महत्वाकांक्षा इंसान को मशीन बनाती जा रही है। उसकी इच्छाओं का मापदंड दूसरों से तुलना पर आधारित है। इसलिए बहुत कुछ पाकर भी वह अपनी उपलब्धियों से संतुष्ट नहीं होता। उसके मन में अपनी आर्थिक और सामाजिक स्थिति को लेकर हमेशा असुरक्षा की भावना बनी रहती है। खुद आगे बढने से कहीं ज्यादा उसे इस बात की चिंता है कि कहीं दूसरा उससे आगे न निकल जाए। वह अपने बारे में नहीं सोचता। दूसरों की कामयाबी ही उसे सबसे ज्यादा दुख देती है। यही तनाव उसे कई बार अपनों से भी दूर कर देता है। सामाजिक जीवन में वह अकेला और अलग-थलग पड जाता है।

रिश्तों में बढती दूरी

प्रोफेशनल लाइफ में बढती महत्वाकांक्षा का असर लोगों के निजी जीवन पर भी दिखाई देने लगा है। हालांकि यह सकारात्मक बदलाव प्रशंसनीय है कि आजकल ज्यादातर परिवारों में स्त्रियां भी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं। इससे समाज में न केवल उन्हें बराबरी का दर्जा मिला है, बल्कि वे अपने परिवार के जीवनस्तर को बेहतर बनाने में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। खास तौर पर महानगरीय जीवनशैली की बढती जरूरतों को पूरा करने के लिए परिवार में पत्नी का भी जॉब करना बेहद जरूरी हो गया है। आज की कामकाजी स्त्री के ऊपर दोहरी जिम्मेदारियां हैं। इस लिहाज से उसकी व्यस्तता पति से भी ज्यादा है। ऐसे में घर और बाहर की जिम्मेदारियों के बीच संतुलन कायम करना उसके लिए बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है। कई बार घर और ऑफिस की तनावपूर्ण स्थितियों की वजह से स्त्री के व्यवहार में चिडचिडापन और डिप्रेशन जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं। इससे उसका दांपत्य जीवन तनावग्रस्त हो जाता है और वह बच्चों की परवरिश पर भी ध्यान नहीं दे पाती।

मनोवैज्ञानिक सलाहकार

डॉ. अशुम गुप्ता कहती हैं, समय के साथ स्त्रियों के जीवन में आने वाला यह बदलाव स्वाभाविक है और इसके लिए वर्तमान सामाजिक व्यवस्था को दोषी ठहराना अनुचित है। मेरे पास काउंसलिंग के लिए ज्यादातर कामकाजी स्त्रियां आती हैं। मेरे विचार से किसी भी स्त्री के लिए पति का सहयोग बहुत मायने रखता है। अगर कामकाजी स्त्री को परिवार से इमोशनल सपोर्ट मिले तो वह अपनी दोहरी जिम्मेदारियों का निर्वाह कुशलता से कर सकती है।

सेहत के साथ समझौता

कामयाबी की दौड में सबसे आगे निकल जाने की कोशिश लोगों को इतना थका देती है कि उन्हें इसकी कीमत सेहत के रूप चुकानी पडती है। अपनी सेहत को नजरअंदाज करके लोग दिन-रात कडी मेहनत करते हैं। अनियमित दिनचर्या की वजह से उन्हें कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं परेशान करने लगती हैं। यही वजह है कि आजकल तीस साल से कम उम्र में ही लोगों को हाइपरटेंशन, डायबिटीज और ओबेसिटी जैसी समस्याएं परेशान करने लगती हैं। 29 वर्षीय अतुल सक्सेना एक एमएनसी में कार्यरत हैं। वह बताते हैं, भारत में रहकर अमेरिका के समयानुसार काम करना बेहद मुश्किल है। इसके लिए हमें रात भर जागना पडता है, लेकिन यहां के बैंक और दूसरे सरकारी दफ्तर दिन के वक्त खुले होते हैं। ऐसे में अपने जरूरी कार्यो के लिए दिन के वक्त भी जागना पडता है। इससे मुझे माइग्रेन की समस्या हो गई थी। अब मैंने सचेत ढंग से अपनी सेहत पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। दिन-रात की कडी मेहनत व्यक्ति के शरीर को ही नहीं, बल्कि उसके दिमाग को भी इतना थका देती है कि उसे कई मनोवैज्ञानिक समस्याएं परेशान करने लगती हैं।

अंधेरा अकेलेपन का

हमें कामयाबी की चमक-दमक तो दिखाई देती है, पर इसके पीछे छिपे अंधेरे को अकसर हम अनदेखा कर देते हैं। सफलता के शीर्ष पर पहुंचते ही व्यक्ति अकेलापन महसूस करने लगता है। ऐसे में उसके पास सारी सुख-सुविधाएं मौजूद होती हैं, पर अपनों का साथ छूटने लगता है। बाहर से हंसता-मुसकराता कामयाब इंसान भी कई बार अंदर से बेहद उदास होता है। उसके पास पहले की तरह वैसे करीबी दोस्त नहीं होते, जिनके साथ वह अपने दिल की बातें शेयर कर सके । मनोवैज्ञानिक सलाहकार गीतिका कपूर आगे कहती हैं, अकसर लोगों को अकेलेपन के रूप में कामयाबी की कीमत चुकानी पडती है। इसी वजह से समाज में स्ट्रेस, एंग्जॉयटी और डिप्रेशन जैसी मनोवैज्ञानिक समस्याएं तेजी से बढ रही हैं।

भय असुरक्षा का

सफलता और शोहरत के साथ व्यक्ति के मन में असुरक्षा की भावना भी बढने लगती है। कामयाबी के खास मुकाम तक पहुंचने के बाद उसे बरकरार रखना सबसे बडी चुनौती है। समाज में ऊंचा रुतबा हासिल करने के साथ ही व्यक्ति में अहं की भावना प्रबल होने लगती है। उसके लिए सामाजिक प्रतिष्ठा बहुत मायने रखती है। वह हर हाल में उसे कायम रखने की कोशिश करता है। अगर किसी वजह से ऐसे प्रयासों में कोई रुकावट आती है तो अपनी उपलब्धियों को खोने का डर उसे मानसिक रूप से परेशान कर देता है। मनोवैज्ञानिक सलाहकार डॉ. अशुम गुप्ता आगे कहती हैं, यह डर स्वाभाविक है। ऐसे में व्यक्ति को धैर्य के साथ अपना मनोबल बनाए रखना चाहिए। अगर संतुलित दृष्टिकोण अपनाया जाए तो इससे सही निर्णय लेना आसान हो जाता है। मजबूत इच्छा-शक्ति के बल पर जीवन में आने वाले उतार-चढाव का सामना आसानी से किया जा सकता है।

मृग मरीचिका है यह

जीवन में ज्यादा से ज्यादा सुख-सुविधाएं पाने का लालच रेगिस्तान की मृग-मरीचिका की तरह है। जिस तरह रेत पर पडने वाली सूरज की रोशनी दूर से पानी की तरह दिखाई देती है और उसे पाने की लालच में हिरण तेजी से दौड पडता है, पर पास जाने के बाद उसे मायूसी होती है। हमारी जिंदगी का भी यही हाल है। कई बार लोग बिना सोचे-समझे कामयाबी की अंधी दौड में शामिल हो जाते हैं। ऐसे में अकसर उन्हें निराश होना पडता है। मैनेजमेंट गुरु प्रमोद बत्रा कहते हैं, जो लोग अपनी जरूरतों को पहचाने बगैर दूसरों की देखादेखी भेडचाल में चलने की कोशिश करते हैं, अकसर उन्हें नाकामी मिलती है। अगर कोई व्यक्ति अपनी प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए योजनाबद्ध ढंग से धीरे-धीरे कदम बढाए तो उसे निश्चित रूप से कामयाबी मिलेगी।

होड कीमत चुकाने की

यह सच है कि कडी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है और इसका फल हमेशा मीठा ही होता है, पर इस फल को पाने के लालच में कई बार लोग अपनी जान जोखिम में डाल देते हैं। ज्यादा पैसे कमाने के लिए ओवरटाइम करना, कभी छुट्टी न लेना, नौकरी के साथ फ्री लांसिंग करना आदि कई ऐसे तरीके हैं, जिन्हें अपना कर व्यक्ति अपने आसपास के लोगों की तुलना में ज्यादा पैसे तो जरूर कमा लेता है, लेकिन अपनी सेहत और परिवार की सुख-शांति के रूप में उसे इस कामयाबी की कीमत चुकानी पडती है। मेहनत करना गलत नहीं है, पर इसके साथ ही व्यक्ति को अपनी सेहत का भी पूरा ध्यान रखना चाहिए। सेहत पैसे से ज्यादा कीमती है। अगर शरीर स्वस्थ नहीं होगा तो भविष्य के लिए और भी ज्यादा समस्याएं पैदा होंगी।

जरूरी है मोल-भाव

यह प्रकृति का शाश्वत नियम है कि जीवन में कुछ पाने के लिए हमें बहुत कुछ खोना भी पडता है। मेहनत, त्याग और संघर्ष के बिना कुछ भी हासिल नहीं होता। ऐसे में व्यक्ति को अपनी तरफ से चुकाई जाने वाली कीमत का हमेशा खयाल रखना चाहिए कि क्या पाने के लिए उसे क्या खोना पड रहा है। हममें यह भी आंकने की क्षमता जरूर होनी चाहिए कि कहीं हम निरर्थक और क्षणिक खुशियों के लिए बडी कीमत तो नहीं चुका रहे। बैंक में कार्यरत अभिषेक शर्मा कहते हैं, कोई भी बडा निर्णय लेते समय मैं हमेशा सचेत रहता हूं। आर्थिक फायदे के बजाय मैं परिवार की सुख-शांति को ज्यादा प्राथमिकता देता हूं। कुछ साल पहले मुझे ट्रांस्फर के साथ प्रमोशन मिल रहा था, पर उन दिनों मेरी मां बहुत बीमार थीं। बेटा दसवीं में पढता था। उसकी पढाई का ध्यान रखना भी जरूरी था। मैं अपने परिवार को अकेला नहीं छोड सकता था। इसलिए मैंने प्रमोशन का मोह त्यागकर अपना तबादला रुकवा लिया क्योंकि मेरे लिए मन का सुकून पैसे से ज्यादा अहमियत रखता है।

बहुत बडी हैं छोटी खुशियां

सुबह बिना किसी जल्दबाजी के चाय की चुस्कियों के साथ अखबार पढना, शाम को बैलकनी में बैठकर डूबते सूरज को निहारना, रात को सोने से पहले अपना मनपसंद संगीत सुनना.. ऐसी कई छोटी-छोटी खुशियां हैं, जिनसे हम दूर होते जा रहे हैं। हमारी व्यस्तता इतनी बढ गई है कि बडी उपलब्धियों की चाहत में हम जीवन के कई खूबसूरत पलों को खो देते हैं, जबकि छोटी-छोटी खुशियां भी हमारे लिए बेहद कीमती होती हैं। इन्हें हासिल करने के लिए हमें न तो ज्यादा मेहनत करनी पडती है और न ही पैसे खर्च करने की जरूरत होती है। ऐसे पल हमारे आसपास ही मौजूद होते हैं, पर हम इन्हें पहचान नहीं पाते। मनोवैज्ञानिकों द्वारा अब तक किए गए शोध से यह प्रमाणित हो चुका है कि जीवन की छोटी-छोटी खुशियां ही व्यक्ति के भीतर सकारात्मक दृष्टिकोण का संचार करती हैं। हमें अपने आसपास मौजूद ऐसे खूबसूरत लमहों को तलाश कर उनका भरपूर लुत्फ उठाने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि इसी में जिंदगी की खूबसूरती है।

अतीत को न भूलें

जीवन के बारे में अकसर यही कहा जाता है कि जो कल बीत गया वह लौट कर नहीं आएगा और आने वाले कल को किसी ने नहीं देखा। आज हम जिस पल को जी रहे हैं, वही सबसे बडा सच है। इसीलिए जीवन में आगे बढने के लिए हमें हमेशा वर्तमान में जीना चाहिए। व्यावहारिक दृष्टिकोण से यह बिलकुल सही है, लेकिन अतीत को पूरी तरह भुला देना भी उचित नहीं है। पुरानी गलतियों से सीख लेते हुए हमें उन्हें न दोहराने का संकल्प लेना चाहिए। सबसे बडी तो यह है कि अतीत की यादें हमें अपनी जमीन से जोडे रखती हैं।

जिंदगी है अनमोल

कामयाबी हासिल करने के साथ हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ये सारी उपलब्धियां हमारे लिए हैं, हम इनके लिए नहीं हैं। कई बार अपने आराम से जुडी तमाम सुख-सुविधाएं जुटाते हुए हुए व्यक्ति इतना थक चुका होता है कि उसके लिए ये सभी साधन बेकार हो जाते हैं। उसकी हालत नींद बेचकर खाट खरीदने वाले इंसान की तरह हो जाती है, जो सुख आराम के सभी साधनों की मौजूदगी के बावजूद उनका सुख उठाने में असमर्थ होता है। यह न भूलें कि कोई भी कामयाबी जिंदगी से बडी नहीं होती। अगर आप सही मायने में खुशहाल रहना चाहते हैं तो कामयाबी और मन के सुकून के बीच संतुलन बनाए रखें।

पहले जैसी आजादी नहीं रही

परिणीति चोपडा, अभिनेत्री

चाहे हम कितने ही काबिल क्यों न हों, लेकिन खुद को साबित करने के लिए हमें दिन-रात मेहनत करनी पडती है। प्रोफेशनल लाइफ में कभी-कभी हताशा का भी दौर आता है, पर मैं हमेशा संयम से काम लेती हूं। कामयाबी की तरह नाकामी भी हमारी जिंदगी का जरूरी हिस्सा है। मैं असफलताओं से नहीं घबराती, बल्कि उसके कारणों को जानकर उन्हें दूर करने की कोशिश करती हूं। हां, हर इंसान को अपनी कामयाबी के लिए कुछ न कुछ कीमत चुकानी पडती है। बॉलीवुड में आने के बाद मैं अपने पुराने दिनों को बहुत मिस करती हूं। अब जीवन में पहले जैसी आजादी नहीं रही। मुझे शुरू से ही शॉपिंग मॉल्स में घूमना बेहद पसंद है। पहले जब भी बोरियत महसूस होती थी तो मैं विंडो शॉपिंग के लिए मॉल चली जाती थी, पर अब ऐसा नहीं कर पाती क्योंकि लोगों की भीड में खुद को बहुत असहज महसूस करती हूं। हालांकि, मैं अपने भीतर कोई बदलाव महसूस नहीं करती। मुझे ऐसा लगता है कि सलेब्रिटी बनने के बाद रोजमर्रा की जिंदगी में आने वाली परेशानियों को लेकर हमें कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह जिंदगी हम अपने लिए खुद ही चुनते हैं।

कीमत तो चुकानी ही पडेगी

रागिनी खन्ना, टीवी कलाकार

यह तो जीवन का सीधा सा नियम है कि कुछ भी हासिल करने के लिए हमें कडी मेहनत करनी पडती है। जब मैं ससुराल गेंदा फूल में काम कर रही थी, उस दौरान लगभग दो वर्षो तक मुझे रोजाना लगभग 18-20 घंटे काम करना पडता था क्योंकि उस दौरान टीवी सीरियल के अलावा मेरे पास कई अवॉर्ड फंक्शन और रिअलिटी शोज भी थे। तब लगातार काम करने की वजह से नींद पूरी नहीं हो पाती और बहुत ज्यादा थकान महसूस होती थी। फिर भी मैं बेहद खुश थी क्योंकि मुझे खुद को साबित करने का मौका मिल रहा था, वरना इस फील्ड में वर्षो तक मेहनत करने के बाद भी कई बार लोगों को कामयाबी नहीं मिलती। हमें मुफ्त में कुछ भी नहीं मिलता।

इसलिए कीमत चुकाने को लेकर मुझे कभी कोई अफसोस नहीं होता। आज मुझे जो भी पहचान मिली है, उससे बेहद खुश हूं। हमें समय की मांग के अनुसार खुद को ढालना पडता है। जब मैंने अपनी पसंद से करियर चुना है तो फिर उसके रास्ते में आने वाली मुश्किलों का सामना करने के लिए भी हमेशा तैयार रहती हूं। हां, शुरुआती दौर में जरूरत थी तो मैंने दिन-रात एक करके काम किया, पर अब मैं अपनी सेहत पर भी ध्यान देती हूं। नियमित रूप से योगाभ्यास और मेडिटेशन करती हूं। जिंदगी की छोटी-छोटी खुशियों को जी भरकर एंजॉय करती हूं। काम उतना ही लेती हूं, जितना आसानी से पूरा कर सकूं। ऐक्टिंग के अलावा मुझे एंकरिंग करने में बहुत मजा आता है। इसीलिए आजकल मैं सोनी पल चैनल के एक शो के लिए एंकरिंग कर रही हूं। यह तो करियर की शुरुआत है, अभी मुझे बहुत आगे जाना है और उसके लिए बहुत मेहनत भी करनी है।

खुद को स्टार नहीं मानता

परेश रावल, अभिनेता एवं सांसद

राजनीति में आने के बाद मेरी जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया है। हां, सामाजिक और राजनैतिक मुद्दों को लेकर ज्यादा जागरूक हो गया हूं। अपनी इस नई भूमिका के प्रति जिम्मेदारी का एहसास बढ गया है। मैं खुद को स्टार नहीं मानता। राजनीति का क्षेत्र जनता से जुडा है। इसलिए मैं आम लोगों से मिलकर उनकी समस्याएं जानने की कोशिश करता हूं। जहां तक अभिनय की दुनिया का सवाल है तो मैं अपने काम से कभी भी संतुष्ट नहीं होता क्योंकि ऐसा सोचने से कलाकार का विकास रुक जाता है। सफलता की बुलंदियों तक पहुंचने के लिए सभी को संघर्ष करना पडता हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि संघर्ष के बाद मिली सफलता सभी को अच्छी लगती है, लेकिन हमें अपनी नाकामी से हार नहीं माननी चाहिए।

कामयाबी पर टिके रहने की चुनौती

प्राची देसाई, अभिनेत्री

इसे मैं अपनी खुशकिस्मती मानती हूं कि बॉलीवुड में पहचान बनाने के लिए मुझे ज्यादा संघर्ष नहीं करना पडा, सफलता पाने के बाद उसे कायम रखना बहुत बडी चुनौती है। सिफारिश के आधार पर किसी को एक बार काम मिल सकता है, लेकिन पहचान काबिलीयत से ही बनती है। जीवन में कई ऐसे मोड आए, जब मुझे अपने करियर को लेकर बहुत हताशा हुई। फिर भी मैंने अपना मनोबल बनाए रखा। अभिनय मेरी आत्मा है। मैं इससे कभी भी अलग नहीं हो सकती। अपनी अभिनय प्रतिभा को निखारने के लिए मैं कडी मेहनत करती हूं। बॉलीवुड में आने के बाद लोग मुझे पहचानने लगे हैं। अब मैं अकेले शॉपिंग करने या फिल्म देखने नहीं जा सकती। दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ समय बिताने का मौका नहीं मिलता। इन छोटी-छोटी खुशियों से दूर होने का दुख बहुत सालता है, पर यही तो कामयाबी की कीमत है, जिसे हाल में चुकाना ही पडता है।

मेहनत का कोई विकल्प नहीं

जय सोनी, टीवी कलाकार

मैं मूलत: सूरत के व्यवसायी परिवार से संबंध रखता हूं। मेरे पिता डायमंड का बिजनेस करते हैं। मेरे स्कूल की पढाई खत्म होने के बाद पिता जी मुंबई चले आए और उन्होंने यहीं अपना कारोबार शुरू किया। बचपन से ही ऐक्टिंग और डांस में मेरी गहरी रुचि थी, लेकिन परिवार में ऐसा कोई माहौल नहीं था। इसलिए इस क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने के लिए मुझे काफी संघर्ष करना पडा। मुंबई आने के बाद ऐसा लगा कि अभी मैं बहुत पीछे हूं और मुझे अपनी ग्रूमिंग करनी चाहिए। मेरा वजन बहुत ज्यादा था। इसलिए मैंने नियमित रूप से जिम जाना शुरू किया। इंग्लिश बोलना सीखा, अपने पहनावे और हेयर स्टाइल में भी सुधार लाने की कोशिश की। हर तरीके से खुद को प्रेजेंटेबल बनाया। यह प्रक्रिया बहुत लंबी थी, पर मैंने हिम्मत नहीं हारी। मेरी मेहनत रंग लाने लगी और मुझे काम मिलने लगा। अब मैं टीवी धारावाहिकों में अभिनय के साथ एंकरिंग भी कर रहा हूं। आजकल सोनी पल चैनल के एक रिअलिटी शो दिल है छोटा सा छोटी सी आशा के लिए काम कर रहा हूं। मैं आज भी खुद को स्ट्रगलर ही मानता हूं। मुझे ऐसा लगता है कि इंसान को हमेशा सीखते रहना चाहिए, जिस दिन वह अपनी कामयाबी से संतुष्ट हो जाएगा उसके विकास की प्रक्रिया रुक जाएगी। इसीलिए मैं आज भी दिन-रात कडी मेहनत करता हूं क्योंकि इसका कोई विकल्प नहीं है। सेहत का बहुत ज्यादा ध्यान रखता हूं क्योंकि सही ढंग से काम करने के लिए स्वस्थ रहना बेहद जरूरी है। मैं उसी हिसाब से काम लेता हूं कि मेरी सेहत पर उसका कोई बुरा असर न पडे। नियमित रूप से जिम जाने के लिए समय जरूर निकालता हूं। मुझे ऐसा लगता है कि जीवन में आगे बढने के लिए हमेशा कुछ न कुछ नया सीखने की कोशिश करनी चाहिए।

सुकून खोकर सच हुए सपने

श्रीदेवी, अभिनेत्री

अब मुझे यह एहसास होता है कि ऐक्ट्रेस बनने का सपना तो जरूर साकार हुआ, पर इसके साथ ही मैंने मन का सुकून खो दिया। इसी वजह से अपनी बेटियों के जन्म के बाद मैंने करियर से लंबा ब्रेक ले लिया था। वर्षो बाद मैंने इंग्लिश-विंगलिश सिर्फ इसलिए की क्योंकि उसकी स्क्रिप्ट मुझे बेहद पसंद आई थी। अभिनय छोडने के बाद मैंने केवल अपनी बच्चियों की परवरिश पर ध्यान दिया। यह सच है कि मुझे फिल्म इंडस्ट्री में जगह बनाने के लिए ज्यादा संघर्ष नहीं करना पडा। मैं लगभग दस साल तक नंबर वन एक्ट्रेस रही, पर यह आसान नहीं था। शिखर पर पहुंचने से ज्यादा मुश्किल है, वहां टिके रहना। जब मेरा करियर अपनी बुलंदी पर था, उसी दौरान बहुत कम समय के अंतराल पर मेरे माता-पिता का निधन हो गया। तब मुझे सारी उपलब्धियां व्यर्थ लगने लगीं क्योंकि मेरे लिए रिश्ते बेहद कीमती हैं। ऐसे में अगर मेरे पति बोनी ने मुझे सपोर्ट न दिया होता तो शायद मुझे डिप्रेशन हो जाता। कामयाबी की इस दौड में मैंने जीवन के कई खुशनुमा पलों को खो दिया। जब तक ऐक्टिंग में सक्रिय रही, लंबी छुट्टियां बिताने का मौका नहीं मिला, लेकिन जीवन का उसूल है कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पडता है। दर्शकों का प्यार पाया, बोनी जैसे पति और प्यारे बच्चे मिले, जिन्होंने मुझे काम के बीच भी हमेशा खुशमिजाज बनाए रखा।

खुद को मशीन नहीं बनने दिया

पं. जसराज, शास्त्रीय गायक

मैं अपने जीवन के 84 वसंत देख चुका हूं। यह विधाता की कृपा है कि आज भी पीछे मुडकर देखने की फुर्सत नहीं है। मैंने कडी मेहनत कभी नहीं की और न ही स्वयं को सफल मानता हूं। मेरे सुर श्रोताओं को पसंद आते हैं, यह उनका बडप्पन है। मैं उन्हीं के लिए गाता हूं और इसी से मुझे सच्ची संतुष्टि मिलती है। मेरा सपना है कि रीमिक्स म्यूजिक में खोई नई पीढी भारतीय शास्त्रीय संगीत को भी सराहे। मैंने मशीन की तरह कभी काम नहीं किया। यूं भी, कला का क्षेत्र निरंतर मेहनत की मांग करता है। मैं पैसों के पीछे कभी नहीं भागा, इसीलिए हमेशा तनावमुक्त रहा। मैं उम्र के जिस पडाव पर हूं, वहां सिर्फ एक ही इच्छा बाकी है कि गाता रहूं, सुनता-सुनाता रहूं। मेरी रचनात्मकता संगीत में ही है। मैं कंटेंपरेरी म्यूजिक भी सुनता हूं और खुद को नए बदलाव से अपडेट रखने की कोशिश करता हूं।

इंटरव्यू : अमित कर्ण, स्मिता श्रीवास्तव एवं विनीता


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