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कवर स्टोरी: सपनों की ऊंची उड़ान

ये हवा का रुख बदलने की ताकत रखती हैं, जमीं से आसमां तक उडऩे की ख्वाहिश रखती हैं। आंधियां कितनी भी चलें, इनके हौसलों की परवाज कभी कम नहीं होती। ये तूफान में दीया जलाने की कूवत रखती हैं तो मुश्किलों के कांटे हटा कर राहों में फूल भी खिला

By Edited By: Published: Fri, 26 Feb 2016 01:27 PM (IST)Updated: Fri, 26 Feb 2016 01:27 PM (IST)
कवर स्टोरी: सपनों की ऊंची उड़ान

ये हवा का रुख बदलने की ताकत रखती हैं, जमीं से आसमां तक उडऩे की ख्वाहिश रखती हैं। आंधियां कितनी भी चलें, इनके हौसलों की परवाज कभी कम नहीं होती। ये तूफान में दीया जलाने की कूवत रखती हैं तो मुश्किलों के कांटे हटा कर राहों में फूल भी खिला सकती हैं। मोम सी मुलायम तो चट्टान सी अडिग इन स्त्रियों से मिलें इंदिरा राठौर के साथ।

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सबसे खूबसूरत आंखें वे होती हैं, जिनमें उम्मीद की हजारों रोशनियां झिलमिलाती हों और जो सपने देखने और उन्हें पूरा करने की हिम्मत रखती हों। इन स्त्रियों की आंखों में भी बेहतर दुनिया के सपने हैं। ये उन हजारों-लाखों स्त्रियों के लिए मिसाल हैं, जो जीवन में कुछ करना चाहती हैं। ये सलेब्रिटी नहीं, आम स्त्रियां हैं, मगर ये कामयाबी की एक नई इबारत लिख रही हैं। असंभव शब्द इनकी डिक्शनरी में नहीं है। जबरन पहनाए गए डर के लिबास को उतार फेंका है इन्होंने। हर बाधा को पार कर लक्ष्य हासिल कर रही हैं ये। रफ्तार की दुनिया में नाम कमा रही हैं तो जोखिम भरे क्षेत्रों में भी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। लेखनी की धार से समाज में बदलाव ला रही हैं तो अपने हुनर से दूसरों के आशियाने भी बसा रही हैं। प्रकृति और वन्य प्राणी संरक्षण को बचाने के लिए प्रयासरत हैं तो सुरक्षा को चाक-चौबंद करने में भी जुटी हैं। इनकी कहानियां सुनें, महसूस करें इनके अनुभव उसी तरह, जिस तरह इन्होंने जिए हैं तो शायद इनके जुनून को समझ सकेें। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर इन्हें सखी का सलाम! इन जुझारु, हिम्मती और हौसलामंद स्त्रियों से रूबरू हों।

डर को मात देती

सनोबर पारदीवाला

पिछले 15 सालों से बतौर स्टंट डायरेक्टर सक्रिय हैं मुंबई की सनोबर पारदीवाला। कई फिल्मों में उन्होंने अभिनेत्रियों के लिए स्टंट और बॉडी डबल का काम किया है।

पहला स्टंट ऐश्वर्या के लिए

करियर का पहला स्टंट ऐश्वर्या राय बच्चन के लिए किया था। फिल्म 'रावण में 300 फीट की ऊंचाई से एक वॉटरफॉल में जंप करना जोखिम का काम था। पहाडी के नीचे पेड और उनकी शाखाएं निकली हुई थीं। उसी फिल्म के लिए अथेरपल्ली जंगल में और भी स्टंट सीन थे, जहां जंगली जानवरों का खतरा होता था। 80 फीट की ऊंचाई से एक हेलीकॉप्टर से नीचे चलते हुए ट्रक पर जंप करना भी रोमांचक अनुभव था।

बेहद चुनौतीपूर्ण है यह काम

'जग्गा जासूस और 'बैंग बैंग में कट्रीना कैफ के लिए स्टंट किया। इसमें कांच की इमारत को तोडते हुए एक कार एंटर करती है, वह भी 30 फीट की ऊंचाई से। 'भूत में 16 मंजिला ऊंची इमारत से जंप किया था। ऊपर वाले की दया से कभी चोटिल नहीं हुई। यह सब मैं बहुत कम उम्र से कर रही हूं। 18 की उम्र से पहले ही स्कूबा डाइविंग, पैराग्लाइडिंग सीख ली थी। 12 साल की उम्र से स्टंट परफॉर्म कर रही हूं। मैंने कराटे, किक बॉक्सिंग, कुंग फू, जु जिज्सू सब कुछ सीखा है। कुंग फू तो मैंने चीन से सीखा है। 23 की उम्र में चार टॉरस वल्र्ड स्टंट अवॉर्ड जीत चुकी थी। कराटे में भी ब्लैक बेल्ट रह चुकी हूं।

खुद को साबित किया

पहले लोगों को लगता था कि मर्दों की दुनिया में घुसपैठ कर रही हूं। आज वही लडके मुझसे प्रेरणा ले रहे हैं। संतुष्टि इस बात की है कि अब फिल्म लाइन में स्टंट करने वालों को महत्वपूर्ण समझा जाने लगा है और उनकी सुरक्षा के उपाय भी किए जा रहे हैं। पिछले दिनों बीबीसी इंटरनेशनल ने मेरी जिंदगी पर डॉक्युमेंट्री फिल्म बनाई है। मैं पावर योग की ट्रेनिंग भी देती हूं।

पिछले 15 सालों से बतौर स्टंट डायरेक्टर सक्रिय हैं मुंबई की सनोबर पारदीवाला। कई फिल्मों में उन्होंने अभिनेत्रियों के लिए स्टंट और बॉडी डबल का काम किया है।

पहला स्टंट ऐश्वर्या के लिए

करियर का पहला स्टंट ऐश्वर्या राय बच्चन के लिए किया था। फिल्म 'रावण में 300 फीट की ऊंचाई से एक वॉटरफॉल में जंप करना जोखिम का काम था। पहाडी के नीचे पेड और उनकी शाखाएं निकली हुई थीं। उसी फिल्म के लिए अथेरपल्ली जंगल में और भी स्टंट सीन थे, जहां जंगली जानवरों का खतरा होता था। 80 फीट की ऊंचाई से एक हेलीकॉप्टर से नीचे चलते हुए ट्रक पर जंप करना भी रोमांचक अनुभव था।

बेहद चुनौतीपूर्ण है यह काम

'जग्गा जासूस और 'बैंग बैंग में कट्रीना कैफ के लिए स्टंट किया। इसमें कांच की इमारत को तोडते हुए एक कार एंटर करती है, वह भी 30 फीट की ऊंचाई से। 'भूत में 16 मंजिला ऊंची इमारत से जंप किया था। ऊपर वाले की दया से कभी चोटिल नहीं हुई। यह सब मैं बहुत कम उम्र से कर रही हूं। 18 की उम्र से पहले ही स्कूबा डाइविंग, पैराग्लाइडिंग सीख ली थी। 12 साल की उम्र से स्टंट परफॉर्म कर रही हूं। मैंने कराटे, किक बॉक्सिंग, कुंग फू, जु जिज्सू सब कुछ सीखा है। कुंग फू तो मैंने चीन से सीखा है। 23 की उम्र में चार टॉरस वल्र्ड स्टंट अवॉर्ड जीत चुकी थी। कराटे में भी ब्लैक बेल्ट रह चुकी हूं।

खुद को साबित किया

पहले लोगों को लगता था कि मर्दों की दुनिया में घुसपैठ कर रही हूं। आज वही लडके मुझसे प्रेरणा ले रहे हैं। संतुष्टि इस बात की है कि अब फिल्म लाइन में स्टंट करने वालों को महत्वपूर्ण समझा जाने लगा है और उनकी सुरक्षा के उपाय भी किए जा रहे हैं। पिछले दिनों बीबीसी इंटरनेशनल ने मेरी जिंदगी पर डॉक्युमेंट्री फिल्म बनाई है। मैं पावर योग की ट्रेनिंग भी देती हूं।

जमीं से आसमां तक

अर्चना सरदाना

श्रीनगर (कश्मीर) में जन्मी अर्चना रोमांच की दुनिया में शादी के बाद आईं। आज 40 की उम्र में वह भारत की जानी-मानी फीमेल बेस जंपर (बिल्ंिडग एरियल स्पैन अर्थ) हैं। ग्रेटर नोएडा में रहने वाली अर्चना स्काई-स्कूबा डाइविंग इंस्ट्रक्टर भी हैं।

बचपन में साइकिल भी नहीं चलाई थी मैंने। रोमांच मेरी जिंदगी में शादी के बाद आया। पति राजीव नेवी अधिकारी हैं और एडवेंचर स्पोट्र्स के शौकीन हैं। हनीमून पीरियड में ही मैंने माउंटेनियरिंग कोर्स के लिए अप्लाई किया। इसी दौरान कुछ स्काई डाइवर्स से मिली तो मन में खयाल आया कि क्यों न मैं भी इसे सीखूं।

बेस जंपिंग से बनी पहचान

पहली बार यूएस में भारत के झंडे के साथ जंप किया। बेस जंपिंग स्काई डाइविंग का हिस्सा है, मगर इसे दुनिया की सबसे खतरनाक जंप माना जाता है। वर्ष 2007 में स्काई डाइविंग से शुरुआत की और प्लेन से लगभग 200 जंप कीं। बेस जंप के लिए मैं सॉल्ट लेक सिटी गई। इसमें शुरुआत लो हाइट से होती है। 87 मीटर हाइट से जंप किया। स्काई डाइविंग में दो पैराशूट होते हैं, मगर बेस जंपिंग में एक ही पैराशूट होता है। एक बार एरिजोना में स्काई डाइव में मेरा पैराशूट ही नहीं खुला। जमीन के करीब आ गई तब अचानक वह खुला। उस दिन बहुत डर लगा था, मगर मैं संभल गई। मलेशिया के ट्विन टॉवर से बेस जंपिंग करते हुए भी एक्सीडेंट हुआ। मुझे काफी चोटें आईं।

खेल-खेल में स्कूबा डाइविंग

स्कूबा डाइविंग तो मैंने खेल-खेल में सीखी। अपने बच्चों के साथ स्विमिंग सीखी। आज मैं स्कूबा डाइविंग सिखा रही हूं। सीखने वालों में लडकियों की भी बडी संख्या है। पेरेंट्स को अपनी बेटियों को प्रोत्साहन देना चाहिए। उनके मन से डर निकालना चाहिए। घर में बैठकर कुछ नहीं हो सकता। किसी भी फील्ड में हों, रिस्क तो लेना पडता है।

रफ्तार की मलिका

सारिका सहरावत

गुडग़ांव की सारिका न सिर्फ भारत की पहली प्रोफेशनल कार रेसर हैं बल्कि देश की चंद मुश्किल कार रैलियों का हिस्सा भी रही हैं। पैशन के लिए उन्होंने मैनेजमेंट की नौकरी भी छोड दी।

शुरुआत तो रोलर स्केट्स से हुई थी। दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन के बाद मैनेजमेंट की पढाई की। कुछ समय नौकरी भी की।

सबका सपोर्ट मिला

वर्ष 2001 में अखबार में मोटर स्पोट्र्स संबंधी एक विज्ञापन देखा तो आवेदन कर दिया। उस समय इस फील्ड में केवल एक लडकी मेरी सीनियर थी, जिसे मैंने कडी टक्कर दी। मां और भाई का सपोर्ट था। भाई मेरे टीम मैनेजर थे। पति आरुष ने यूएस से ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग की है और कार डिजाइनर हैं।

साबित किया खुद को

शुरुआत में लोग बहुत डराते थे। लडके पूछते थे, टायर बदलना आता है? डरोगी तो नहीं? 21-22 की उम्र में कार रैलियों में भाग लेना शुरू कर दिया। अगर एक ग्ालती हो जाए तो स्पॉन्सर्स को भी कन्विंस करना होता है कि आगे सब ठीक होगा। 2003 की हिमालयन कार रैली की घटना है। हमारी गाडी का बंपर टूटकर नीचे फंस गया। उसे निकालने के लिए हथौडे का इस्तेमाल करना पडा। पहाडों पर 100-100 किलोमीटर के मुश्किल ट्रैक होते हैं। मेरी नेविगेटर नोरवीना को ब्रीदिंग प्रॉब्लम्स हो गईं तो ऑक्सीजन सिलिंडर लगाना पडा। 2006 में बीकानेर में डिजर्ट रैली के दौरान मेरी गाडी पलट गई। मैं सीट बेल्ट से बंधी थी। पीछे से आने वाली गाडी ने हमें निकाला। मेरे चेहरे पर कई स्टिचेज आईं। चार-पांच महीने िफजियोथेरेपी ली, हाथ में रॉड पडा। सब सोचते थे कि क्विट कर जाऊंगी लेकिन छह महीने में ही दोबारा ट्रैक पर लौटी। पिछले साल बीकानेर में गाडी में आग लग गई। किसी तरह जान बची। फॉम्र्युला वन रेस में गाडी के ब्रेक फेल हो गए, एयरबैग खुलने से जान बची। ऐसे एक्सीडेंट्स तो होते रहते हैं।

प्रतिभाओं को परखती

शानू शर्मा

कुछ साल पहले तक फिल्म इंडस्ट्री में कास्टिंग डायरेक्टर जैसा कोई पद नहीं होता था। मुंबई की शानू शर्मा वह जौहरी हैं जो छिपी प्रतिभाओं को पहचान कर उन्हें मंच प्रदान करती हैं। रणबीर सिंह, परिणीति चोपडा, अर्जुन कपूर, स्वरा भास्कर, भूमि पेडणेकर जैसे चमकते सितारों को उन्होंने ही खोज निकाला है।

यशराज फिल्म्स की कास्टिंग डायरेक्टर शानू शर्मा ने 'धूम 3, 'जब तक है जान, 'एक था टाइगर, 'माई नेम इज खान समेत दो दर्जन फिल्मों की कास्टिंग की है। पहला बडा ब्रेक उन्हें करण जौहर की फिल्म 'कुर्बान से मिला। फिल्म 'ए दिल है मुश्किल, 'बॉम्बे टॉकीज और 'उंगली की कास्टिंग भी उन्होंने ही की।

भाई की प्रेरणा

मैं 14 की उम्र तक साउथ अफ्रीका में थी। मेरे माता-पिता का एक रेस्त्रां था। मेरे भाई समीर शर्मा निर्देशक हैं। उन्होंने मुझे टैलेंट मैनेजमेंट शुरू करने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा, नई प्रतिभाओं को बहुत संघर्ष करना पडता है। तुम उन्हें परख कर इंडस्ट्री के लोगों से मिलवा सकती हो। जब भी किसी निर्देशक को हेयर स्टाइलिस्ट या बच्चों की जरूरत होती तो मुझसे संपर्क करते। मेरे भाई 'खोया खोया चांद की कहानी लिख रहे थे। उसके निर्देशक सुधीर मिश्रा थे। उन्होंने फिल्म की कास्टिंग करने को कहा। वहां से मुझे ट्रेनिंग मिली कि कास्टिंग कैसे होती है?

सीखना जारी है

शुरुआत में निर्देशक श्याम बलसे की फिल्म 'मानसून की। उसमें विवेक वासवानी थे। उसकी कास्टिंग स्पेशल थी क्योंकि उसे मैंने सिर्फ ढाई हजार रुपये में किया था। अब पिछले 10 वर्षों से यशराज फिल्म्स में हूं। मुझे सीखना अच्छा लगता है। मैं अपनी प्रतिस्पर्धा खुद से करती हूं, आलोचनाओं को सकारात्मक लेती हूं।

जंगल की दावेदार लडकियां

गुजरात के गिर फॉरेस्ट नेशनल पार्क में जाएं तो वहां न सिर्फ खतरनाक शेर मिलेंगे, बल्कि इनका संरक्षण करने वाली किरन, रसीला, दर्शना जैसी लडकियों से भी मुलाकात हो सकती है। दुनिया में शायद ही कहीं वन्य प्राणी संरक्षण में इतनी बडी महिला ब्रिगेड हो।

विवाहित और एक बच्चे की मां किरन बीथिया को बचपन से वर्दी आकर्षित करती थी। राजकोट जिले की किरन एथलीट भी हैं।

जब जानवर हों हिंसक

किरन कहती हैं, 'हम जानवरों का व्यवहार नोटिस करते हैं। जैसे अगर वे छोटे बच्चों के साथ हों, मेटिंग पीरियड में या भूखे हों तो आक्रामक हो जाते हैं। एक बार मैं बाइक से जा रही थी। अचानक सामने पेड पर चीता दिखा, नीचे शेर खडा था। हम तीन आमने-सामने थे। मैंने एक सेकंड भी नहीं सोचा और बस बाइक घुमा कर भाग गई।

जंगल का कानून

दर्शना जूनागढ जिले के किसान परिवार की बेटी हैं। शादी को एक साल हुआ है। कहती हैं, 'मैं गार्ड के तौर पर भर्ती हुई थी। दो साल पहले प्रमोशन हुआ और फॉरेस्टर बन गई। हमें जानवरों के व्यवहार को समझना सिखाया जाता है। इसमें रेस्क्यू ऑपरेशन, वाइल्ड लाइफ प्रॉपर्टी, ट्रेकिंग की जानकारी भी दी जाती है। अकेले और ग्रुप में उनका व्यवहार अलग होता है। मेल-फीमेल के व्यवहार में अंतर होता है। एक बार पेट्रोलिंग के दौरान वापसी में शाम के लगभग साढे सात बजे मेरी बाइक के सामने शेर आ गया। 500 मीटर की दूरी पर मैंने बाइक रोकी। काफी देर हम दोनों बिना हिले-डुले एक-दूसरे को देखते रहे। फिर शेर ने मेरा रास्ता छोड दिया।

प्रकृति को बचाना है जरूरी

रेस्क्यू टीम की इन्चार्ज हैं रसीला वढेर। 28 वर्षीय रसीला ने पिछले साल 600 रेस्क्यू मिशंस चलाए हैं। बताती हैं, 'हम घायल व बीमार जानवरों का इलाज करवाते हैं। शेर के बच्चे दूसरे ग्रुप में भी हिल-मिल जाते हैं, लेकिन चीता या तेंदुआ बच्चों को दोबारा ग्रुप में शामिल नहीं करते। पिछले पांच वर्षों में रेस्क्यू ऑपरेशंस के कारण यहां शेरों की संख्या 411 से बढ कर 523 हो गई है। कई बार ये खेती को नुकसान पहुंचाते हैं लेकिन किसान बुरा नहीं मानते, बल्कि कई बार टीम की मदद करते हैं। प्रकृति और जीव-जंतुओं को बचाना हमारा पहला कर्तव्य है।

मुस्तैद लेडी बाउंसर

मिथलेश

तुरंत फैसला लेना, अप्रत्याशित घटनाओं से निपटना और जरूरत पडऩे पर थोडा बल-प्रयोग, यही है इनका काम। ये हैं लेडी बाउंसर मिथलेश, जो पिछले 10 वर्षों में न जाने कितने सलेब्रिटीज की सुरक्षा में मुस्तैद रही हैं। मिलते हैं इनसे।

पलवल (हरियाणा) की मिथलेश बाउंसर पति की प्रेरणा से इस फील्ड में आईं।

फिटनेस जरूरी

हमारे लिए चुस्ती जरूरी है। मैं नियमित वॉक और एक्सरसाइज से खुद को चुस्त रखती हूं। पहले इस फील्ड में लडकियां कम थीं, लेकिन अब महानगरों में हमारी डिमांड बढ गई है।

दिलचस्प रहे अनुभव

मैं दिल्ली की बाउंसर बॉस सिक्योरिटी एंड इवेंट कंपनी से जुडी हूं। विल्स फैशन वीक, ट्रेड फेयर, कॉलेज फेस्ट... हर जगह जाती हूं। एक बार सीरी फोर्ट में कार्यक्रम के दौरान भीड आक्रामक हो गई। हम 30 बाउंसर्स ने उसे काबू किया। क्लब्स में लोग ड्रिंक करके हंगामा करते हैं तो स्थिति बेकाबू हो जाती है। अमिताभ बच्चन, माधुरी दीक्षित, अनिल कपूर, दीपिका, आमिर खान जैसे सलेब्रिटीज की सुरक्षा में तैनात रही हूं। कई बार खुश होकर वे टिप देते हैं। सर्दियों में इवेंट्स ज्य़ादा होते हैं तो काम भी ज्य़ादा होता है। मुझे खुशी है कि मैं अलग फील्ड में हूं। हर फील्ड में थोडा रिस्क तो होता ही है। स्त्रियों को ज्य़ादा साबित करना होता है खुद को।

फिल्म एडिटिंग की माहिर

नम्रता राव

फिल्म 'कहानी के लिए बेस्ट एडिटर का अवॉर्ड जीतने वाली नम्रता को इंडस्ट्री में आठ साल हो चुके हैं। 'इश्िकया, 'बैंड बाजा बारात, 'दम लगा के हईसा, 'तितली जैसी कई फिल्मों की एडिटिंग कर चुकी हैं वह।

फिल्म में सीन दर सीन जोडऩे का काम होता है एडिटर का। पहले यह काम निर्देशक ही करता था, मगर अब इसे एक अलग काम की तरह लिया जाने लगा है। इसमें पूरे समर्पण के साथ मुस्तैद हैं नम्रता राव। शाहरुख खान की फिल्म 'फैन की एडिटिंग वही कर रही हैं।

नम्रता बताती हैं, 'मैं कोलकाता में सत्यजीत रे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट में पढाई कर रही थी। मेरे प्रोफेसर श्यामल करमाकर डॉक्युमेंट्री बनाते थे। मैंने उनकी फिल्म 'आइ एम द ब्यूटीफुल की एडिटिंग की। वह फिल्म कई फेस्टिवल्स में प्रदर्शित हुई। उसे दिबाकर बनर्जी ने भी देखा तो उन्होंने मुझसे संपर्क किया। मैंने उनकी फिल्म 'ओए लकी लकी ओए की एडिटिंग की। बस कोलकाता से मुंबई का सफर शुरू हो गया। इसके बाद दिबाकर की ही चार फिल्में कीं, फिर 'इश्िकया की। कई नए फिल्ममेकर्स के साथ भी काम किया।

चुस्त एडिटिंग है जरूरी

फिल्म की एडिटिंग कहानी को दोबारा लिखने जैसा है। एडिटिंग ठीक नहीं होगी तो फिल्म प्रभाव नहीं छोड पाएगी। एक फिल्म में तकरीबन 120 सीन होते हैं। हमारी कोशिश डायरेक्टर द्वारा शूट सभी दृश्यों को लेने की होती है। हालांकि कई बार एडिटिंग में सीन कट जाते हैं। एडिटिंग करते हुए मैं किरदार के साथ जुडऩा पसंद करती हूं। 'कहानी की एडिटिंग के वक्त मैं विद्या बालन के किरदार में रच-बस गई थी। 'शुद्ध देसी रोमांस में लेखक जयदीप साहनी ने एडिटिंग में भागीदारी की थी। लेखक उर्मि जुवेकर और दिबाकर बनर्जी भी एडिटिंग में दिलचस्पी रखते हैं। कहानी की समझ उन्हें बेहतर होती है। उनका साथ मिलने से कई चीजें आसान हो जाती हैं। 'फैन के निर्देशक मनीष शर्मा के साथ तो ये मेरी पांचवीं फिल्म है। वे बहुत अच्छी तरह कहानी के बारे में समझाते हैं।

स्त्रियां बहुत कम हैं यहां

यह अभी तक पुरुषों का ही क्षेत्र समझा जाता रहा है। स्त्रियां बहुत कम हैं। स्त्रियों को हर फील्ड में थोडा ज्य़ादा संघर्ष करना होता है, उन्हें खुद को साबित करने के लिए लगातार मेहनत करनी होती है, लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। मैंने हमेशा अच्छे निर्देशकों के साथ काम किया है। स्त्री होने के नाते मुझे किसी तरह की समस्या नहीं हुई। यह भी मेरे लिए अच्छा रहा कि मैंने महिला प्रधान फिल्में ही कीं।

आशियाना बनाते हाथ

कमर पर कसा दुपट्टा, सिर पर सेफ्टी हेलमेट, सीमेंट-गारे से सने हाथ...। अपनी कारीगरी से किसी के ख्वाबों का महल तैयार कर रही हैं ये। सिर्फ बोझा नहीं ढोतीं ये, राजमिस्त्री भी हैं और फिटर भी। ये हैं रायगढ (छत्तीसगढ) की कामगार स्त्रियां।

ये कभी सीमेंट के मसाले से दीवारें चिनती हैं तो कभी बिजली के तार फिट करती हैं। पेंटर हैं तो इलेक्ट्रिशियन और वेल्डर भी। मशीनें फिट करती हैं तो ट्रेनिंग भी देती हैं।

घरवालों का विरोध

राजमिस्त्री ममता सेठ बताती हैं, 'गांव का स्कूल टूटा तो हमने मरम्मत की। सरपंच ने कहा कि आगे आपको काम देंगे। फिर हमने सडक भी बनाई। सबने कहा, औरत राजमिस्त्री कैसे बन सकती है? लेकिन पति के पैर में फ्रैक्चर हुआ तो तीन बच्चों की परवरिश करने के लिए काम पर जाने लगी। मेरे पिता उडीसा में रहते हैं, उनका ऑपरेशन अपने पैसे से कराया, बहन को कंप्यूटर का कोर्स कराया।

अपने पैसे से स्कूटी खरीदी

लक्ष्मी भगत कहती हैं, 'मैं आठवीं पास थी, लेकिन हिंदी भी नहीं बोल पाती थी। राजमिस्त्री की ट्रेनिंग मिली तो सब सीखा। अपनी कमाई से 60,000 रुपये की स्कूटी खरीदी है। उसी से आती हूं। आधा पैसा घर में देती हूं। सोचा है, शादी भी अपने पैसे से ही करूंगी।

ब्रेड विनर घर की

झारखंड की तान्या बेग फिटर हैं और ट्रेनिंग दे रही हैं। कहती हैं, 'मशीनों के पार्ट फिट करती हूं। शुरू में बडी-बडी मशीनें देखने पर डर लगता था कि कैसे हैंडल करूंगी? सेफ्टी यूनिफॉर्म पहनना भी अजीब लगता था। आज लडकों को भी ट्रेनिंग दे रही हूं। मेरे पापा नहीं है। मैं ही घर का खर्च चलाती हूं। जो भी पैसा मिलता है, घर भेज देती हूं। काम ने मुझे मच्योर बनाया है।

इंटरव्यू: दिल्ली से इंदिरा राठौर, यशा माथुर, मुंबई से स्मिता श्रीवास्तव, अमित कर्ण

इंदिरा राठौर


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