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खोने का नाम है प्यार

अबके हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें, जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें...। दबे पांव आती ख़्ाामोश सी कोई याद है, जो आंखों को पुरनम कर देती है। शायद यही प्यार है। कहते हैं, इश्क में पाना क्या और खोना क्या! यहां खोकर भी कोई पा

By Edited By: Published: Fri, 22 Jan 2016 04:38 PM (IST)Updated: Fri, 22 Jan 2016 04:38 PM (IST)
खोने का नाम है प्यार

अबके हम बिछडे तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें, जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें...। दबे पांव आती ख्ाामोश सी कोई याद है, जो आंखों को पुरनम कर देती है। शायद यही प्यार है। कहते हैं, इश्क में पाना क्या और खोना क्या! यहां खोकर भी कोई पा जाता है और पाकर भी खो देता है। यह आप ही अपनी राह भी है और मंज्िाल भी। दर्द मिले या ख्ाुशी, प्यार का हर पल ख्ाूबसूरत होता है। प्रेम के इसी एहसास को समझने की एक कोशिश इंदिरा राठौर के साथ।

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निदा फाज्ाली लिखते हैं, 'मिल जाए तो मिट्टी है, खो जाए तो सोना है..। प्रेम का एहसास भी शायद कुछ ऐसा ही है। कुछ लोग मानते हैं कि प्रेम अपने अधूरेपन में ही पूरा होता है और कई बार जिसे पूरा होना कहते हैं, वहां जाते-जाते वह बिखर जाता है। दुनिया की तमाम मशहूर प्रेम कहानियां अधूरी रहीं। हर किसी की ज्िांदगी में कोई न कोई अधूरी दास्तान होती है, जिसे वह ताउम ्र दिल के किसी हिस्से में संजोए रहता है। उसे सिंपल क्रश, आकर्षण, अटैचमेंट, प्यार कहें या फिर लस्ट का नाम दें.... प्रेम हर रूप में सिर्फ प्रेम है, एक पवित्र सी भावना है, जो इंसान को ख्ाुदा के स्तर तक पहुंचा देती है, जहां तेरा-मेरा कुछ नहीं रहता। वहां कबीर कहने लगते हैं, 'जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं...। प्रेम के इस मुकाम पर सारे अहंकार मिट जाते हैं। अमीर ख्ाुसरो कहते हैं, 'ख्ाुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी वा की धार, जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार...। प्रेम कडे इम्तिहान भी लेता है। इसीलिए तो कहते हैं कि 'इक आग का दरिया है और डूब कर जाना है...।

ख्ाामोश सी इक सदा

प्रेम एक ख्ाामोशी है, सुनती है-कहा करती है... सिर्फ एहसास है जिसे रूह से महसूस किया जाता है। मशहूर गीतकार गुलज्ाार तो यहां तक कहते हैं कि 'ख्ाामोशी का हासिल भी एक लंबी सी ख्ाामोशी है...। कई बार सदियां बीत जाती हैं मगर ख्ाामोशी को लफ्ज्ाों का लिबास हासिल नहीं हो पाता। भले ही दिल पूछता रहे 'ये चुप सी क्यों लगी है अजी कुछ तो बोलिए, मगर प्रेम तो वहां से शुरू होता है, जहां शब्द चुक जाते हैं, परिभाषाएं खो जाती हैं और अर्थ ख्ाुद को ढूंढने की असंभव सी कोशिश करने लगते हैं।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल कहते हैं, 'प्रेम एक संजीवनी शक्ति है। संसार के दुर्लभ कार्य भी प्रेम से संभव हो सकते हैं।

प्रेम एक नई ऊर्जा देता है, आदमी को इंसान बना सकता है, उसे किसी मकसद से जोड सकता है। प्रेम में खोना भी पाने जैसा होता है। इसमें हारकर भी मनुष्य जीत जाता है। लेकिन क्या यह भावना स्थायी रहती है?

भावनाएं बदलती भी हैं

भारतीय संस्कृति आशावादी है। अंत में सब कुछ अच्छा होता है। बचपन की परीकथाओं में घोडे पर उडता राजकुमार हज्ाार बाधाएं पार कर राजकुमारी को दुष्ट राक्षस की कैद से आज्ााद करा लेता था। अंत में राजा-रानी मिल जाते और ख्ाुशी से साथ रहने लगते।

दूसरी ओर वास्तविक जीवन में हमेशा ऐसा नहीं होता। अकसर राजकुमारी सपनों को पलकों में छुपाए ही ज्िांदगी गुज्ाार देती है तो कभी उसके सपने ही उसके साथ छल कर बैठते हैं। सब कुछ ठीक हो तो प्रेम के आडे समाज भी आ जाता है। कभी कोई बडे दिल का शहंशाह अनारकली को ज्िांदा दीवार में चिनवा देता है तो कभी बडे-बडे आलिम-हािकम मस्तानी को बाजीराव से अलग कर देते हैं। इतिहास से परे झांकेें तो हमारे समाज में ऑनर किलिंग के नाम पर प्रेम को ख्ात्म करने की तमाम कोशिशें जारी रहती हैं।

समाजशास्त्री डॉ. रितु सारस्वत कहती हैं, 'साधारण लोगों को सुखांत ही प्रभावित और आकर्षित करता है। हम पर्दे पर भी तभी तालियां बजाते हैं, जब कोई अच्छा दृश्य देखते हैं। प्रेम का मामला थोडा अलग है। यहां मिलन-बिछोह जैसी स्थितियां एक हद के बाद ख्ात्म हो जाती हैं। समाज प्रेम को स्वीकार कर ले और प्रेम को उसकी मंज्िाल (शादी) मिल भी जाए तो वह इसी रूप में सदा बना रहेगा, ऐसा नहीं कहा जा सकता। लैला-मजनूं शादी करते तो उनका प्रेम उतना ही दिलकश रह पाता, इसकी कोई गारंटी नहीं है। प्रेम में किसी तीसरे की ज्ारूरत नहीं होती, मगर शादी एक सामाजिक संस्था है, जिसमें प्रेम के साथ अन्य ज्िाम्मेदारियां भी जुडी हैं। प्रेम एक भावना है। भावना स्थायी नहीं होती, यह समय-सापेक्ष होती है, इसीलिए बदलती रहती है। कई बार प्रेमियों की शादी अलग-अलग हो जाती है। जीवनसाथी अच्छा और केयरिंग हो तो कई बार लोग पुराने प्रेम को भूल जाते हैं और नई ज्िांदगी में एडजस्ट करने लगते हैं। प्रेम का पौधा तभी जीवित रह पाता है, जब उसे रोज्ा खाद-पानी दिया जाए। नहीं सींचा जाएगा तो पौधा मुरझा जाएगा। स्त्री-पुरुष के बीच प्रेम पनप तो सकता है, मगर वह लंबे समय तक तभी जीवित रह सकता है, जब उसमें अन्य भावनाएं जैसे समर्पण, त्याग, समझौता और ज्िाम्मेदारियां भी शामिल हों।

सुविधा वाला प्रेम

समय के साथ प्रेम की थ्योरी भी बदलती है। दिल्ली की मनोविश्लेषक डॉ. जयंती दत्ता कहती हैं, 'आज के दौर में प्रेम भी सुविधा वाला हो गया है। इसमें क्या दिया या क्या लिया जैसी सोच हावी हो रही है। पहले कवि-साहित्यकार प्यार में ख्ाुदा की तलाश करते थे, लेकिन आज तो प्यार कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगा रहा है। प्यार में दो दिलों की दख्ालअंदाज्ाी काफी थी, आज पूरा समाज इसमें शामिल है। प्यार टूटता है तो न सिर्फ दिल टूटते हैं, बल्कि परिवार-समाज भी टूटता है। ऐसे में सवाल यह है कि अगर प्यार सचमुच होता तो क्या वह कचहरी की फाइलों में गुम होता? आज युवा मज्र्ाी से शादी करते हैं, ख्ाूब पैसा कमाते हैं, दुनिया के सारे सुख हासिल करते हैं। कई बार ऐसे लोग मेरे पास काउंसलिंग के लिए आते हैं जिनके जीवन में सब कुछ है। बेहतर करियर, पैसा, गाडी, घर ..., मगर वे भीतर से खोखले हो चुके हैं। एक-दूसरे पर शक करते हैं, उपहारों को कीमत से आंकते हैं, एक-दूसरे के बैंक बैलेंस पर नज्ार गडाए रहते हैं। उनके बाकी सपने इतने बडे हो गए हैं कि छोटा सा प्रेम इस भौतिकवादी दुनिया में नहीं समा पाता। रिश्ते को देने के लिए उनके पास प्रेम और समय नहीं है। तो प्यार वहीं तक साथ निभा पाता है, जहां तक सुविधाएं जुडी होती हैं, सुविधाएं ख्ात्म होते ही प्यार भी खोने लगता है। प्यार में अगर जुडाव, समर्पण और कमिटमेंट नहीं है तो वह नहीं टिक सकता।

खोने या पाने से परे प्रेम

मशहूर पंजाबी साहित्यकार अमृता प्रीतम और चित्रकार इमरोज्ा ने प्रेम किया, साथ रहे लेकिन शादी नहीं की। इमरोज्ा कहते हैं, 'प्रेम को किसी रिश्ते की ज्ारूरत नहीं है। दिक्कत वहां से होती है, जहां हम प्रेम को शादी से जोड कर देखने लगते हैं। मैंने अमृता से प्रेम किया। हम बरसों साथ रहे। आज वह शरीर से मेरे साथ नहीं हैं, लेकिन पूरे घर में उनका वजूद बिखरा हुआ है। अंतिम दिनों में मैं साये की तरह उनके साथ रहा। हम चाहते तो शादी कर सकते थे। हमारे परिवारों को इसमें आपत्ति भी नहीं थी, लेकिन हमें ऐसी कोई ज्ारूरत नहीं महसूस हुई। शादी एक बंधन है, जबकि प्रेम आज्ााद है। जहां बंधन होगा, वहां प्रेम नहीं हो सकता।

प्रेम हर शर्त से आज्ााद है। इसीलिए इसके बारे में कवि-दार्शनिक ख्ालील जिब्रान लिखते हैं, 'प्रेम जब भी तुम्हें पुकारे, उसके पीछे चल पडो, हालांकि उसके रास्ते बडे बीहड हैं। जब उसके डैने तुम्हें अपने अंक में समेटने लगें तो समर्पित हो जाओ। उसके पंखों में छिपी तलवार तुम्हें चोट भी पहुंचाए तो सहन करो। जब वह तुमसे कुछ कहे तो उसका यकीन करो। हो सकता है उसकी ज्ाुबान तुम्हारे सपनों को चूर-चूर कर दे, क्योंकि प्रेम यदि तुम्हें सत्ता तक पहुंचा सकता है तो सलीब पर भी टांग सकता है। यह तुम्हें विस्तार देता है तो तराश भी सकता है। प्रेम किसी पर आधिपत्य नहीं जमाता, न किसी की अधीनता स्वीकार करता है।

ख्ात्म सब झगडे हो जाएं

आज की भागती-दौडती ज्िांदगी में सच्चे प्यार की बात करना भी बेमानी सा लगने लगा है, लेकिन इसी दुनिया में कुछ लोग हैं जो प्रेम की ख्ाातिर जी रहे हैं और दुनिया को बेहतर बनाने की कोशिशों में जुटे हैं।

ओशो कहते हैं, 'प्रेम ख्ाुशी देता है और परमात्मा के प्रति जुडाव पैदा करता है। लेकिन यह एक बडा भय भी पैदा करता है, क्योंकि प्रेम अहंकार मिटाता है। इसीलिए लोग पीछे हट जाते हैं क्योंकि उन्होंने तो हमेशा से अहंकार में जीना सीखा है।

प्रेम एक जुनून है, लेकिन इस जुनून में किसी को चोट या नुकसान पहुंचाने की मंशा नहीं होती। अगर ऐसा है तो वह सिर्फ वासना है-प्यार नहीं। प्यार में इंसान नफा-नुकसान से परे सबकी ख्ाुशी की कामना करता है। ख्ाुद की ख्ाुशी भूल जाता है। प्यार के चंद पल भी किसी की ज्िांदगी भर की पूंजी बन जाते हैं। प्रेम जब चरम पर पहुंचता है तो इंसान को ख्ाुदा के स्तर तक पहुंचा सकता है। यहां तेरा-मेरा, मैं-तुम, मिलन-बिछोह जैसे झगडे ख्ात्म हो जाते हैं।

खोने-पाने से परे होकर सोचें तो प्यार का यह एहसास हर किसी के दिल में हमेशा मौज्ाूद होता है। कोई पुराना सा मौसम लौटता है, दूर कोई भूली सी धुन फिर से बजाता है, किताबों के फडफ़डाते पन्नों से एकाएक सूखा सा कोई गुलाब मिल आता है और किसी अकेली सी शाम चाय की चुस्कियों के साथ प्रेम का यह एहसास फिर ज्िांदा हो उठता है। यही है प्यार...। कभी ख्ाामोश सा अफसाना, कभी समाज से टकराता जुनूनी विचार, कभी उम्र भर की कसक तो कभी ज्िांदगी को अर्थ देता कोई मकसद...।

स्क्रीन ट्रेजेडीज्ा

बॉलीवुड-हॉलीवुड मूवीज्ा में भी ट्रेजिक रोमैंटिक कहानियों की भरमार रही है। कुछ कहानियां जो सबकी आंखें नम कर जाती हैं-

डॉ. जिवागो : एक कवि और डॉक्टर के बीच उपजा क्लासिक स्क्रीन रोमैंस है। उमर शरीफ और जूली क्रिस्टी मिलते हैं, प्यार करते हैं और फिर रूसी क्रांति के दौरान एक-दूसरे को खो देते हैं।

टाइटेनिक : इस प्रेम कहानी को पूरे विश्व में पसंद किया गया। प्रेम, जो एक जहाज में शुरू होता है, परवान चढता है....। एकाएक तूफान में जहाज डूबने लगता है और एक प्रेम कहानी का दुखद अंत हो जाता है।

रोमियो-जूलियट : शेक्सपियर के नॉवल पर बनी यह फिल्म शुरू होती है उस पार्टी से जहां रोमियो-जूलियट की मुलाकात होती है। दोनों एक-दूसरे के प्रेम में पड जाते हैं। मगर उनके परिवारों की बरसों से चली आ रही दुश्मनी के कारण उन्हें चर्च में चुपचाप शादी करनी पडती है। फिर एक अफवाह फैलती है कि जूलियट मर गई। ऐसा एक साज्िाश के तहत किया जाता है। जूलियट को ताबूत में देख रोमियो जान दे देता है। बाद में जूलियट भी रोमियो के ग्ाम में प्राण त्याग देती है।

देवदास : हिंदी में कई बार बनी यह फिल्म पारो और देवदास की दुखद प्रेम कहानी है। देवदास ग्ाम में शराब को अपना लेता है और अंत में पारो के द्वार पर ही उसके जीवन का अंत हो जाता है।

मुग्ाले-आज्ाम : सलीम-अनारकली के प्रेम पर आधारित ऐतिहासिक फिल्म मुग्ाले-आज्ाम को आज भी दर्शकों का भरपूर प्यार मिलता है।

सच्ची प्रेम कहानियां ही याद रहती हैं: जूही चावला, अभिनेत्री

इतिहास में उन्हीं प्रेम कहानियों का ज्िाक्र हुआ, जहां प्रेम सच्चा था। शाहजहां और मुमताज की प्रेम कहानी अनोखी थी। उनकी मुहब्बत की निशानी ताजमहल आज भी मौजूद है। ऐसी कई कहानियां इतिहास में दर्ज हैं जिनकी मिसालें दी जाती हैं। इसका कारण उनका सच्चा प्रेम था। प्रेम कहानियां हमारे सिनेमा में हर दौर में पसंद की गईं। 'दिल वाले दुलहनिया ले जाएंगे सुपरहिट हुई। यह फिल्म 20 साल सिनेमाहॉल में लगातार चली। उसका नायक अपनी नायिका को आसानी से भगा कर शादी कर सकता था मगर उसने परिवार की मर्यादा का ध्यान रखा। उनके प्रेम को परिवार ने समझा। ऐसा असल ज्िांदगी में भी होता है। प्रेम अगर सच्चा हो तो उसके आगे समाज भी झुकता है। यह सही है कि आसानी से मिल जाने वाली चीज्ा की अहमियत नहीं होती। संघर्ष के बाद कुछ हासिल होता है तो उसका अनुभव अलग होता है। हीर-रांझा हो या लैला मजनंू, प्यार की राह किसी के लिए भी आसान नहीं रही, उन्हें इसीलिए आज याद किया जाता है क्योंकि उन्होंने हर कष्ट सहा लेकिन प्यार का साथ नहीं छोडा। प्रेम की नींव भरोसे पर ही टिकी होती है। दौर कोई भी हो, आपसी समझ और भरोसा सबसे ज्ारूरी है। प्रेम में स्वार्थ की कोई जगह नहीं होती। जहां स्वार्थ होता है, वहां प्यार नहीं टिकता। प्यार केवल शारीरिक आकर्षण नहीं है, एक-दूसरे के गुणों को समझना, भावनाओं का सम्मान करना भी है। उम्र के एक पडाव पर कुछ चीज्ाों के प्रति आकर्षण होता है, फिर समय के साथ-साथ विचारों में परिपक्वता आती है, पसंद-नापसंद बदलती है, लेकिन प्यार नहीं बदलता। मुझे लगता है कि अगर आप किसी को सच्चे दिल से चाहते हैं तो किसी भी स्थिति में उसे कभी हर्ट करने के बारे में नहीं सोच सकते।

इश्क की अधूरी दास्तानें

रानी रूपमती-बाज बहादुर

मालवा की गायिका रूपमती और सुल्तान बाज बहादुर ने अंतर्धार्मिक विवाह किया था। युद्ध, प्रेम, संगीत और कविता का अद्भुत सम्मिश्रण है यह प्रेम कहानी। बाज बहादुर मांडु के अंतिम स्वतंत्र शासक थे। रूपमती किसान पुत्री और गायिका थीं। मुगल सम्राट अकबर ने अधम ख्ाान को मांडु पर चढाई करने भेजा। बाज बहादुर की छोटी सी सेना उसके आगे टिक न सकी और वह हार गए। रानी रूपमती के सौंदर्य पर अधम ख्ाान मर-मिटा और उसे साथ ले जाना चाहा, लेकिन रूपमती ने ज्ाहर पीकर मौत को गले से लगा लिया।

लैला-मजनूं

अरब के बानी आमिर जनजाति का था कवि मजनूं। लैला भी इसी जाति से आती थीं। लैला के पिता के विरोध के कारण इनका विवाह नहीं हो सका। लैला की शादी कहीं और हो गई और मजनूं उनके ग्ाम में पागल हो गए। इसी पागलपन में उन्होंने कई कविताएं रचीं। लैला पति के साथ इराक चली गईं, जहां कुछ ही समय बाद बीमार होकर उनकी मृत्यु हो गई। मजनूं भी कुछ समय बाद मौत की गोद में चले गए।

सलीम-अनारकली

मुगल सम्राट अकबर के चहेते बेटे सलीम ने एक मूर्तिकार की बेटी अनारकली से प्रेम किया। अकबर इसके िखलाफ थे, इसलिए सलीम ने पिता के िखलाफ बगावत कर दी। कहा जाता है कि अकबर ने अनारकली को दीवार में चिनवा दिया।

हीर-रांझा

पंजाब की धरती पर उपजी और वारिस शाह रचित हीर को साहित्यिक जगत के लोग बख्ाूबी जानते हैं। अमीर परिवार की खूबसूरत हीर ने प्रेम किया रांझा से। रांझा चार भाइयों में सबसे छोटा था, भाइयों से विवाद के बाद वह घर छोडकर भाग गया और हीर के गांव आ पहुंचा। हीर के घर में वह पशुओं की रखवाली करने लगा। इसी बीच हीर से उसे प्रेम हो गया, मगर हीर की शादी कहीं और कर दी गई। रांझा जोगी हो गया। एक बार फिर वह हीर से मिला और दोनों भाग गए, मगर पुलिस ने उन्हें पकड लिया। उसी रात शहर में आग लग गई। घबरा कर महाराजा ने प्रेमियों को आज्ााद कर दिया और उन्हें विवाह की इजाज्ात दी। शादी के ही दिन हीर के ईष्र्यालु चाचा ने उसे ज्ाहर दे दिया और एक प्रेम का दुखद अंत हो गया।

शीरीं-फरहाद

फारस की पृष्ठभूमि में जन्मी इस कहानी का नायक फरहाद शिल्पकार था, जो राजकुमारी शीरीं से मुहब्बत करता था। वह बांसुरी पर प्रेम धुनें बजाता था। शीरीं को यह बात मालूम हुई तो वह फरहाद से मिली। शीरीं के पिता नहीं चाहते थे कि राजकुमारी किसी आम आदमी से शादी करे। उन्होंने शर्त रखी कि यदि फरहाद पहाडों के बीच नहर खोद दे तो वह शीरीं का विवाह उससे कर देंगे। फरहाद ने नहर खोदनी शुरू की। उसकी मेहनत देख राजा घबरा गए। वज्ाीर की सलाह पर फरहाद को संदेश भिजवाया गया कि राजकुमारी की मौत हो चुकी है। इससे फरहाद को सदमा पहुंचा और उसने अपने औजारों से खुद को मार लिया। दूसरी ओर फरहाद की मौत की ख्ाबर सुनकर आहत शीरीं ने भी आत्महत्या कर ली। इस तरह एक प्रेम कहानी का दुखद अंत हो गया।

ज्िांदगी से भी बडा होता है प्रेम

संजय लीला भंसाली, फिल्म निर्देशक

प्यार का कोई जाति-धर्म नहीं होता। उसमें कोई शर्त नहीं होती। प्यार सिर्फ प्यार है, उसमें हिंदू-मुसलिम नहीं होता। प्रेम में हज्ाार चीज्ों देखेंगे तो वह बिज्ानेस में बदल जाएगा, जैसा आजकल हो रहा है। दिक्कत यही है कि इस भावना को कई बार व्यक्ति ख्ाुद नहीं समझ पाता। वह समझ भी ले तो उसका परिवार और समाज इसे नहीं समझ पाता। सब लोग इश्क की इस गहराई को नहीं समझ सकते, इसलिए उसे माप भी नहीं सकते। लाभ-हानि और गुणा-भाग से दूर होता है प्रेम। प्रेम को समझने के लिए इससे ऊपर उठना होता है, त्याग, बलिदान और समर्पण के लिए तैयार होना होता है। आज जो प्रेम कहानियां इतनी लोकप्रिय हुई हैं, आख्िार उनमें ऐसा क्या था? प्रेम और सिर्फ प्रेम...। प्रेम जब जीवन से बडा हो जाता है, उसमें मौत भी ज्िांदगी सी लगने लगती है। प्रेम ख्ाुद में असाधारण एहसास है, जिसे साधारण लोग नहीं समझ सकते।

यादों में पूरा होता है अधूरा प्यार: दिव्य प्रकाश दुबे, लेखक

प्यार कभी खोता या अधूरा नहीं रहता है। साथ रहना ही प्यार नहीं होता, बिछडऩे में भी प्यार होता है। किसी से अलग होने के बाद हम उस इंसान से ज्यादा उन यादों के लिए रोते हैं जिन्हें हम बना सकते थे। अधूरी कहानियां यादों में पूरी होती रहती हैं, हम साथ होते तो ऐसे होते, यह कर लेते, वह कर लेते... प्यार में आजादी होती है, हां या न का डर होता है, साथ रहने की तमन्ना होती है और एक-दूसरे में सारी दुनिया दिखने लगती है। जहां मैं और तुम के बीच की दूरी ख्ात्म होकर 'हम में बदल जाती है, वहीं प्यार जन्म ले लेता है। साथ रहते हुए कंफर्टेबल महसूस करना बहुत जरूरी है। अगर एक-दूसरे पर भरोसा नहीं होगा तो प्यार भी नहीं रहेगा। प्यार शब्द में बहुत ताकत है, इसके एहसास की तो बात ही अलग होती है। यह इतना स्ट्रॉन्ग होता है कि इसके होने या खोने पर ही व्यक्ति कभी लेखक तो कभी शायर बन जाता है। लैला-मजनूं, हीर-रांझा की अमर प्रेम कथाएं दरअसल अधूरी नहीं थीं। वे तो एक-दूसरे के हो चुके थे। हर पल जिंदगी बदलती है, अगले पल का कोई भरोसा नहीं होता है। इसलिए प्यार से उम्मीदें रखने के बजाय बस निभाते रहना चाहिए। मैं जब कहानियां लिखता हूं तो अपने आसपास के किरदारों को ही उनमें पिरोता हूं। जो कहानियां अधूरी रह जाती हैं, उनके साथ होने की कल्पना करके उन्हें पूरा करता हूं। प्यार आज या कल का न होकर हमेशा का होता है। आज भी सच्चा प्यार जिंदा है, मिसालें आज भी हैं, बस जाहिर करने के तरीके बदल चुके हैं। अपनी लव स्टोरी की हैप्पी एंडिंग न होने पर भी कभी अफसोस नहीं करना चाहिए, अपनी कहानी को यादों में पूरा करते रहना चाहिए।

दिल तो आज्ााद पंछी है : कंगना रनौट, अभिनेत्री

आवारगी, बंजारापन, दीवानगी और इश्क दरअसल कुछ ऐसे लफ्ज्ा हैं, जो कई मर्तबा समझदारी से ज्य़ादा मज्ाा देते हैं। इश्क स्वतंत्र विचार है, कैद में वह मर जाता है। समझ तो हमेशा समझौते करने को उकसाती है मगर दिल का क्या है....वह तो बने-बनाए नियमों के परे ख्ाुले गगन में उडऩे को प्रेरित करता है। प्रेम मन की भावना है, जिसे बांधने के लिए हमने परंपराओं, रिवाज्ाों और सरहदों की सीमाएं बनाई हैं। हमने हमेशा जीवन को ग्ाुलाम बनाए रखने के लिए जतन किए हैं। धर्म, सभ्यता, संस्कार जैसे लफ्ज्ाों से कई मर्तबा हम अपनी पोंगापंथी की ही पैरवी करते नज्ार आते हैं और ये सब व्यक्ति को बेहतर बनाने के बजाय उसे दकियानूस बनाए रखने पर आमादा हैं। हम रीति-रिवाजों के नाम पर मूर्ख बनते हैं, जबरन अमूर्त बंधनों में ख्ाुद को बांधे रहते हैं। प्रेम इनके ख्िालाफ है, इसलिए दुनिया इसके ख्िालाफ होती है।

प्यार को खोने से डरती हूं डेलनाज्ा ईरानी, टीवी कलाकार

प्यार खोता है तो बहुत कुछ टूटता है हमारे भीतर। मैंने प्यार किया, शादी भी की और उसे 14 साल तक निभाया। अब मेरी ज्िांदगी में फिर से एक शख्स है पर्सी। उसकी ज्िांदगी का मकसद सिर्फ मेरी ख्ाुशी है। वह मेरा एंजल है। मुझे कभी दुखी नहीं देख सकता। मेरे लिए पूरी दुनिया से लड सकता है। यह एक जुनूनी प्यार है, लेकिन उसका प्यार ऐसा है जैसा शायद माता-पिता बच्चों से करते हैं। रीअलिटी शो 'पावर कपल में उसने मुझे शादी के लिए प्रपोज्ा किया तो मैंने इंकार कर दिया, क्योंकि मैं नियति से घबराती हूं। मैं शादी इसलिए नहीं करना चाहती क्योंकि मैं प्यार को खोने से डरती हूं। हम दोनों ही तलाकशुदा हैं। मैंने भी परंपरागत ढंग से प्यार किया, शादी की, फिर पति, घरवालों और समाज को ख्ाुश करने के लिए बहुत कुछ किया। मेरी डिक्शनरी में तलाक जैसा लफ्ज्ा नहीं था, लेकिन शायद हम तकदीर के लिखे को मिटा नहीं सकते। अब मुझे ऐसा प्यार मिला है, जिसमें कोई शर्त नहीं है। मैं पर्सी को जितना चाहती हूं, वह उससे कई गुना मुझे चाहता है। मैंने उसके प्रपोज्ाल को ठुकराया तो शो के होस्ट अरबाज्ा ने मुझसे कहा कि एक पेपर पर ही तो साइन करना है, कर लो। हां, शादी एक साइन से ज्य़ादा कुछ नहीं है मेरे लिए। साइन कर भी लूं तो क्या फर्क पडेगा? अपनी पहली शादी की कई यादें मेरे साथ हैं। मैं उन्हें अपनी ज्िांदगी से चाहकर भी निकाल नहीं सकती। तलाक से सब कुछ नहीं ख्ात्म हो जाता। एक झटके से सब नहीं ख्ात्म होता। देखिए, कृष्ण ने राधा से शादी नहीं की थी, लेकिन उनका नाम हमेशा राधा से ही जोडा जाता है। पर्सी ने उस वक्त मेरा साथ दिया, जब मुझे उसकी सबसे ज्य़ादा ज्ारूरत थी। मैं इस रिश्ते में ख्ाुश हूं और आगे भी ख्ाुश रहना चाहती हूं। सिर्फ इसलिए कि शादी करनी चाहिए या इसे निभाना चाहिए, मैं इसे नहीं कर सकती। शायद मेरे भीतर कोई असुरक्षा या भय है, भविष्य में यह डर निकल जाए तो हो सकता है, शादी कर लूं। मैं शादी के ख्िालाफ नहीं हूं, लेकिन रिश्ते मेंं सबसे ज्ारूरी चीज्ा है एक-दूसरे का सम्मान। अगर वह है तो रिश्ता चलेगा, वर्ना नहीं। मैं अपने छोटे से घर में अपने साथी के साथ ख्ाुश हूं। हम दोनों अपना काम कर रहे हैं, एक-दूसरे को सहयोग दे रहे हैं तो और क्या चाहिए!

प्रेम की बुनियाद है त्याग

विनय सपु्र, डायरेक्टर

कहा तो यही जाता है कि प्रेम में मुकम्मल जहां नहीं मिलता। यही चिरंतन कमी प्रेम की ख्ाूबसूरती भी है। यह खिले गुलाबों में नहीं, मुरझा चुके पत्तों में बसता है, लेकिन वहां बसकर भी यह पत्तों में महक बिखेर देता है। जब कोई प्रेम में होता है तो उसे सब अच्छा लगता है। खुद को लुटाकर भी हम खुद को पा जाते हैं। प्रेम खो जाता है तो जीवन में कोई कमी सी रहती है, लेकिन इसी कमी से जीवन पूरा होता है। प्यार कभी दर्द भी देता है, आंसू भी देता है, मगर इन्हीं आंसुओं की बुनियाद पर जीवन रचा जाता है। वही कथाएं आज लोगों को याद हैं, जहां प्रेमियों ने त्याग किया। चाहे हीर-रांझा हो या लैला-मजनूं या बाजीराव-मस्तानी। लोगों को जोधा-अकबर और शाहजहां से ज्य़ादा सलीम-अनारकली की प्रेम गाथा याद है। वजह, ज्ााहिर तौर पर उनका त्याग ही है, क्योंकि पा लेना तो हर कोई चाहता है। कोई भी पा सकता है, मगर प्रेम की ख्ाातिर कोई मीरा ही होगी, जो ज्ाहर का प्याला भी हंस कर पी ले।

साक्षात्कार : मुंबई से अमित कर्ण, स्मिता श्रीवास्तव, दिल्ली से दीपाली, इंदिरा


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