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पल जो ये जाने वाला है....

तारीख़्ों बदलती हैं, कैलेंडर बदल जाते हैं। दिन, महीने, साल सब इतिहास बन जाते हैं। वक्त हमेशा आगे बढ़ता है, सिखाता है कि आगे बढ़ो और हर पल को ज़्िांदादिली से जिओ। इस साल का आख़्िारी सूरज अब अस्त होने को है, मगर क्षितिज पर एक नई सुबह का आग़्ााज़्ा

By Edited By: Published: Tue, 01 Dec 2015 03:08 PM (IST)Updated: Tue, 01 Dec 2015 03:08 PM (IST)
पल जो ये जाने वाला है....

तारीख्ों बदलती हैं, कैलेंडर बदल जाते हैं। दिन, महीने, साल सब इतिहास बन जाते हैं। वक्त हमेशा आगे बढता है, सिखाता है कि आगे बढो और हर पल को ज्िांदादिली से जिओ। इस साल का आख्िारी सूरज अब अस्त होने को है, मगर क्षितिज पर एक नई सुबह का आग्ााज्ा भी होने वाला है। जाते हुए लमहों के साथ हर दुख, निराशा, विफलता को अलविदा कहें और नई ऊर्जा से नए पल का स्वागत करें इंदिरा राठौर के साथ।

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जिएं तो ऐसे जैसे यह आख्िारी पल हो और सीखें तो ऐसे जैसे बरसों जीना हो....राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ये विचार सिखाते हैं कि हर एक पल को उसकी सार्थकता में जीना चाहिए, क्योंकि समय किसी का इंतज्ाार नहीं करता। जो लोग इसकी कीमत पहचानते हैं, समय उनकी कद्र करता है। जो नहीं पहचान पाते, समय उनके हाथ से रेत की तरह फिसल जाता है और पीछे छोड जाता है पछतावा। जैसे नदी बहती है तो लौट कर नहीं आती, दिन-रात बीत जाते हैं, ज्ाुबान से निकले शब्द और कमान से निकले तीर वापस नहीं लौटते, उसी तरह गया वक्त भी कभी नहीं लौटता। अच्छा होता है तो यादों में बसा रहता है, बुरा हो तो दर्द बन कर सीने में सुलगता है। कहते हैं, अतीत कभी लौटता नहीं और भविष्य को किसी ने देखा नहीं, मगर वर्तमान हमारे हाथ में है, जिसे हम जैसा चाहें, बना सकते हैं।

पल-पल का हिसाब

वक्त सबसे बडा बादशाह है, जिसके आगे सभी झुकते हैं। टिक-टिक करती घडी निरंतर बताती है कि समय बीत रहा है। सुबह सबसे पहले नियत समय पर अलार्म क्लॉक बजती है कि उठने का समय हो गया है, न उठे तो दिनचर्या अव्यवस्थित हो जाएगी।

कहते हैं कि समय ही वह धन है, जो सबके पास बराबर है। इसे कैसे ख्ार्च करना है, यह इंसान पर निर्भर करता है।

एक-एक सेकंड कितना मूल्यवान है, इसे वह रेसर अच्छी तरह जानता है, जो दौड में पीछे रह गया हो। भयानक हादसे में बच गया व्यक्ति बता सकता है कि ज्िांदगी के लिए एक सेकंड कितना अहम होता है। एक मिनट की कीमत वह यात्री जानता है, जिसकी ट्रेन उसके प्लैटफॉर्म पर पहुंचने से एक मिनट पहले ही छूट गई हो। एक दिन का महत्व वह मज्ादूर बता सकता है, जो बीमार पडता है तो उसकी दिहाडी नहीं मिलती। एक साल की कीमत वह छात्र जानता है जो परीक्षा में फेल हो गया हो....।

प्रकृति से सीखें

हर दिन नियत समय पर सुबह होती है। दरवाज्ो-खिडकियों से आती धूप की लकीर बताती है कि दिन का शुभारंभ हो चुका है। पंछी चहचहाते हुए घोंसलों से बाहर भोजन का प्रबंध करने निकल पडते हैं। हवा मस्ती में झूम कर और कलियां मुस्करा कर नई भोर का स्वागत करते हैं। पूरी कायनात अपने इशारों से इंसान को समय का मूल्य समझाती है। फिर अंधेरा होता है, सूरज छिप जाता है, शाम ढल जाती है और रात का पहरेदार चांद-सितारों के लाव-लश्कर के साथ आसमान पर विराजमान हो जाता है। सब कुछ बेहद सुंदर, अनुशासित और तय समय पर होता है। यह तालमेल थोडा भी गडबड हो जाए तो पृथ्वी पर हलचल मच जाती है और लोग अनहोनी की आशंका से डर जाते हैं। प्रकृति का यह अनुशासन इंसान सीख जाए तो उसका जीवन सचमुच सार्थक हो। वक्त का सम्मान तभी किया जा सकता है, जब जीवन में अनुशासन हो।

एक छात्र अपने जीवन के आरंभिक दौर में पढाई में कमज्ाोर था। तब भारत के गांवों में बिजली नहीं थी। वह ढिबरी की रोशनी में पढता था। फिर उसने पढाई पर ध्यान एकाग्र करने के लिए एक संकल्प लिया। वह रोज्ा बाती में निशान लगाता और तब तक पढता, जब तक कि बाती उस निशान तक न जल जाती। देखते ही देखते पढाई में उसका प्रदर्शन शानदार होने लगा। एक बार उसके सवालों के जवाब देख कर परीक्षक को कॉपी में लिखना पडा, 'परीक्षार्थी परीक्षक से ज्य़ादा बुद्धिमान है। बाद में इस छात्र ने आज्ाादी की लडाई में भाग लिया। यह छात्र थे भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद।

समय का मोल अनमोल

इतिहास में झांकें तो समय ने न जाने कितने महारथियों को मात खाने पर मजबूर कर दिया। वाटरलू के युद्ध में एक सेनापति चंद घडिय़ों की देर न करता तो नेपोलियन युद्ध न हारता।

कबीरदास कहते हैं, 'काल करे सो आज कर आज करे सो अब, पल में परलय होएगी, बहुरि करैगो कब?

इतिहास बताता है कि जिसने समय की कीमत समझी, उसने कामयाबी हासिल की। शिक्षाविद ईश्वर चंद विद्यासागर समय के इतने पाबंद थे कि जब वे कॉलेज जाते थे तो राह चलते लोग उन्हें देख कर अपनी घडिय़ां मिलाया करते थे। महान वैज्ञानिक गैलीलियो दवा बेचा करते थे लेकिन इसी समय में से थोडा समय उन्होंने प्रयोगों के लिए निकाला। थॉमस अल्वा एडिसन

रेल में सब्ज्िायां बेचते थे। जब गाडी स्टेशन पर रुकती तो वे वहां की लाइब्रेरी में बैठ कर अध्ययन करते। इन अध्ययनों ने उन्हें वैज्ञानिक बना दिया।

कई उदाहरण ऐसे भी हैं, जहां विपरीत स्थितियों में भी लोगों ने समय की कीमत समझी। कहा जाता है कि महान संगीतकार बिथोवन ने जीवन का सबसे शानदार संगीत तब रचा, जब उनकी सुनने की क्षमता लगभग जा चुकी थी। सर वॉल्टर रैले ने 'विश्व का इतिहास कैद में रहते हुए लिखा। मार्टिन लूथर किंग ने भी बाइबिल का अनुवाद कैद में रहते हुए ही किया।

वर्तमान को बेहतर बनाएं

धैर्य और आत्मविश्वास के साथ विपरीत स्थितियों को अपने अनुकूल बना लेना ही वास्तविक चुनौती है। समय के साथ चलना, निरंतर गतिशील रहना और बदलावों के लिए ख्ाुद को तैयार रखना भी ज्ारूरी है, क्योंकि परिवर्तन ही ज्िांदगी को आगे ले जाता है। बदलाव इंसान को परिपक्वता से सोचने, प्रतिक्रिया करने और अलग-अलग स्थितियों में संतुलित रहना सिखाते हैं। समय का सच यह है कि हर दिन बीत जाता है, चाहे वह अच्छा हो या बुरा, सुख हो या दुख, सफलता हो या विफलता। सफलता में अहं से ग्रस्त हुए बिना और विफलता में निराश हुए बिना जो जीवन में आगे बढता है, सही मायने में वही समय का महत्व समझता है।

चित्रकार व ध्यान गुरु प्रतीक्षा अपूर्व कहती हैं, 'जीवन को वर्तमान में जीना चाहिए। मैं हर पल को सार्थक कार्यों में बिताती हूं, उसका उपयोग करती हूं, इसलिए मुझे कभी पछतावा नहीं हुआ। हां, मैंने कभी बहुत बडे-बडे संकल्प नहीं लिए, लेकिन जो भी सोचा, उसे किया। इसलिए आज अगर मौत भी सामने आ जाए तो मुझे भय नहीं होगा। मैं जहां भी रहती हूं, वहां अपना सौ फीसदी देने की कोशिश करती हूं। कभी लगातार 6-7 घंटे तक पेंटिंग बनाती रहती हूं तो कभी ऐसा भी होता है कि कई दिन तक रंग व कूची हाथ में ही नहीं लेती। पिछले दिनों 20 दिन ऑस्ट्रेलिया में थी तो ख्ाूब घूमी और प्रकृति का नज्ाारा लिया। पेंटिंग्स भूल गई। मेरा मानना है कि वर्तमान को अच्छा बनाएं और उसे अच्छी तरह जिएं तो कभी कोई चिंता नहीं रहेगी।

चलें समय के साथ

'वक्त के साथ चलना और उसके हिसाब से ख्ाुद को अपडेट करते रहना ज्ारूरी है, कहती हैं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. वारिज्ाा चौधरी। वह कहती हैं, 'सबके पास 24 घंटे होते हैं। कोई इसका सर्वोत्तम उपयोग कर लेता है, कोई नहीं कर पाता। सुबह आधा घंटा पहले उठ जाएं और यह समय अपनी सेहत को दें तो कार्यक्षमता दुगनी हो जाएगी। एक डॉक्टर के तौर पर मैं स्वस्थ समाज की कल्पना करती हूं। मेरा समय मरीज्ाों के लिए समर्पित है। मुझे मानसिक रूप से तैयार रहना होता है कि दिन हो या रात, कोई मुश्किल केस आया तो मुझे जाना होगा। मैंने स्टाफ को हिदायत दी है कि कोई भी प्रसव केस मेरे बिना न हो। मैं पेशेंट्स के हिसाब से टाइम मैनेजमेंट करती हूं। कई बार ऐसा भी हुआ है कि किसी शादी या पार्टी में जाने को तैयार हुई और ऐन वक्त पर कोई इमर्जेंसी केस आ गया और मुझे हॉस्पिटल भागना पडा। काम करने के मेरे कुछ उसूल हैं। अगर वर्कप्लेस में संतुलित रहना है और अनावश्यक दबाव से बचना है तो पूरा ध्यान काम पर दें। प्राथमिकता के हिसाब से काम करें। काम ज्य़ादा है तो अनावश्यक फोन कॉल्स, चैटिंग, सोशल नेटवर्किंग में समय न गंवाएं। ख्ाुद को अपडेट करें। मैं ख्ााली समय में मेडिकल की किताबें पढती हूं। कविताओं और संगीत-नृत्य में मेरी रुचि है। सेमी क्लासिकल म्यूज्िाक सीख रही हूं। मुझे लगता है, हर किसी को बदलावों के लिए तैयार रहना चाहिए। जैसे पेरेंट्स के तौर पर हम पति-पत्नी चाहते थे कि हमारी बेटी डॉक्टर बने। उसने हमारी इच्छा का सम्मान किया, लेकिन डॉक्टर बनने के बाद उसने कहा कि वह इंटीरियर डिज्ााइनिंग करना चाहती है। हमें थोडा समय लगा इसके लिए तैयार होने में, लेकिन बेटी के भविष्य के बारे में सोचते हुए उसे परमिशन दी। पिछले दिनों मैं बेटी से मिलने फ्लोरेंस गई। वहां उसका काम देखकर मुझे लगा कि उसका निर्णय सही था। अगर हम ख्ाुद को उसकी इच्छा के अनुसार न बदलते तो यह उसके भविष्य के लिए बुरा हो सकता था। उसने समय पर सही निर्णय लिया और हमने उसे समझा।

एक कंपनी की नेशनल मार्केटिंग हेड अनुराधा कहती हैं, 'मेरी दिनचर्या अनिश्चित है। लगातार मीटिंग्स और ट्रैवलिंग होती रहती है। मैं काम के तौर-तरीके नहीं बदल सकती, मगर काम का दबाव कम होते ही लंबे वीकेंड पर चली जाती हूं। परिवार के साथ समय बिताती हूं, घूमती हूं और ख्ाुद को समय देती हूं। टाइट शेड्यूल में मैं बहुत कुछ नहीं कर पाती, इसलिए छोटे-छोटे संकल्प लेती हूं, ताकि उन्हें पूरा कर सकूं। आने वाले साल में हेल्थ के लिए समय निकालना मेरी प्राथमिकता है। इस फील्ड में आने से पहले मैं जानती थी कि मुझे बहुत मेहनत करनी होगी। मुझे अपने काम की ज्ारूरतें भी मालूम हैं और अपनी सीमाएं भी। दोनों के बीच तालमेल बिठाती हूं। जो करती हूं-बेस्ट करती हूं, जो नहीं कर पाती, उसके लिए रिग्रेट नहीं रखती।

बस यही इक पल है

अकसर लोग इस चिंता में डूबे रहते हैं कि कल क्या होगा। चिंता से किसी समस्या का हल नहीं होता। वक्त का सही इस्तेमाल करने से ही कुछ हासिल होता है। कल क्या हुआ और कल क्या होगा, इसके बजाय यह सोचें कि आज क्या कर रहे हैं। आत्ममुग्ध होना ग्ालत है मगर ख्ाुद को दूसरों के पैमाने से नापना भी ग्ालत है।

ऐपल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स ने एक लेख में लिखा था, 'समय हमेशा कम होता है, इसलिए इसे दूसरों की तरह जीने में व्यर्थ न गंवाएं। दूसरों की राय क्या है, इसके बजाय यह महत्वपूर्ण है कि आप क्या सोचते हैं और आपकी राय क्या है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि अपने अंतर्मन की आवाज्ा पर चलने का साहस दिखाएं। वहीं से सच्ची सलाह मिल सकती है, बाकी सब तो बाद की बातें हैं।

हाल ही में एक चैनल को दिए गए इंटरव्यू में बॉलीवुड स्टार सलमान ख्ाान ने कहा कि कई बार फिल्म बनाते हुए लगता है कि यह फिल्म तो 'शोले जैसी ही बनेगी। बाद में जब वह फ्लॉप होती है तो लगता है इसे बनाया ही क्यों। फिल्मी दुनिया में ऐसा होता रहता है। हम इससे परेशान नहीं होते, फिल्म की विफलता को भी सेलब्रेट करते हैं।

जो भी है-बस आज ही है। इसी पल में जीना है, इच्छाएं पूरी करनी हैं और परिवार, समाज और देश के लिए कुछ करना है। हर दिन सुबह उठने पर ख्ाुद से कहें, मैं भाग्यशाली हूं कि एक और दिन मुझे जीवन मिला है। इसे व्यर्थ नहीं करना है, बल्कि इसे सजाना-संवारना है।

जाते हुए पलों के साथ हर पीडा, निराशा और विफलता को विदा करें और आने वाले पल का नई आशा और उत्साह से स्वागत करें। समय सबको यही सिखाता है।

आत्ममंथन तो ज्ारूरी है शरमन जोशी, ऐक्टर

मैंने वर्ष 2015 में ही सोचा था कि काम में अपनी स्पीड बढाऊंगा। इसमें काफी हद तक सफल रहा। चार फिल्में की। अभी अनीज्ा बज्मी की फिल्म शुरू करने जा रहा हूं। हालांकि अभी भी मैं समय का ज्य़ादा उपयोग नहीं कर सका हूं, इसलिए आने वाले साल में भी मेरा संकल्प यही रहेगा कि अपनी स्पीड बढाऊं। ख्ाूब काम और हॉलीडे, यही मेरा संकल्प है इस साल के लिए। छुट्टी का प्लान तो तैयार है। इस महीने के अंत में परिवार के साथ कश्मीर जा रहा हूं। अभी तक मैं वहां गया ही नहीं हूं। अप्रैल में यूएस जाना है। वैसे सबसे पहले तो काम ही मेरी प्राथमिकता है। करियर में बेहतर करूं और परिवार को ख्ाुश रखूं, यही मेरा मकसद है। छुट्टी मैं पहले से प्लान करता हूं और जब लौटता हूं तो काम करने की क्षमता दुगनी हो जाती है। पहले कम छुट्टी लेता था, लेकिन अब महसूस हुआ कि अवकाश के कुछ पल बहुत ज्ारूरी हैं। मैं आत्म-मंथन करता हूं। इससे जीवन में सही काम करने की प्रेरणा मिलती है। स्कूल में मेरे टीचर ने कहा था हर रोज्ा रात में सोने से पहले सोचें कि पूरे दिन आपने क्या किया। सोचें कि किन कार्यों को करने से आत्मिक ख्ाुशी मिली और किन कार्यों से दुख होता है। इससे पता चल जाता है कि अगले दिन आप क्या करने वाले हैं। मैं यही फॉम्र्युला अपनाता हूं। मैं फैसले लेने में ज्य़ादा समय नहीं लेता, इसके बाद चाहे जो हो, उसकी ज्िाम्मेदारी ख्ाुद पर लेता हूं। इसलिए पछताता भी नहीं। मुझे लगता है कि सुनो सबकी, करो अपने मन की।

गिरें, संभलें और आगे बढें

नीतू चंद्रा, ऐक्टर

जिंदगी को हर क्षण जीना ही जिंदगी है। मुझे लगता है कि जो होना है-वह होकर रहता है। हां, अपनी ओर से हम बेहतर करने की कोशिश कर सकते हैं। मैं अपनी ग्ालतियों से सीख कर आगे बढऩे में यकीन रखती हूं। कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में मुसीबत नहीं लाना चाहता, लेकिन कई बार घटनाओं या स्थितियों पर हमारा बस नहीं होता। इसलिए ऐसी चीज्ाों पर पछतावा करना नासमझी है। जिओ और जीने दो, कुल मिला कर ज्िांदगी यही है। गिरो, संभलो, खडे हो और चलते रहो, बस रुको नहीं, क्योंकि जहां हम रुकते हैं, वहीं से वक्त आगे निकल जाता है। सुख-दुख, आशा-निराशा और सफलता-विफलता तो ज्िांदगी का हिस्सा हैं। हर चीज्ा का अपना आनंद है। जीवन के हर पल को अपने अनुभव का हिस्सा बनाते चलें और गुज्ारे वक्त से सबक लेकर आगे बढें। वक्त किसी के लिए नहीं रुकता, इसलिए समय की कीमत को समझना बहुत जरूरी है।

समय के साथ आगे बढऩा ही समझदारी है ज्ारीन ख्ाान, ऐक्टर

मैं संकल्प लेने या प्लान करने में बहुत यकीन नहीं रखती। कई बार प्लानिंग के साथ किए गए कार्यों में भी सफलता नहीं मिलती। यही वजह है कि मैं ज्य़ादा नहीं सोचती, बल्कि हर दिन को नई चुनौती के रूप में लेकर काम करती हूं। इस साल के बारे में सोचूं तो मुझे लगता है कुल मिला कर सब अच्छा रहा। इसी महीने मेरी फिल्म 'हेट स्टोरी 3 रिलीज्ा हुई है। फिल्म के ट्रेलर और गानों को पहले ही अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है। उम्मीद सभी को होती है, मुझे भी उम्मीद है कि यह साल जाते हुए हमें कई सौगातें दे जाएगा। आने वाले साल में मेरी कई फिल्में आएंगी। ज्िांदगी में कई मौके ऐसे आते हैं, जब अपने फैसलों पर पछतावा होता है। मगर उसके लिए हमेशा आंसू नहीं बहाए जा सकते। ग्ालतियों से सबक लिया जा सकता है। कई बार हम अधिक दबाव में आकर फैसले लेते हैं। किसी ख्ाास पल में यह समझ नहीं आता कि क्या करना है या क्या नहीं करना। समय ने मुझे भी बहुत सिखाया है। गुज्ारते वक्त के साथ कुछ भरोसे टूट गए और कुछ दोस्त अजनबी बन गए। वक्त यही तो है। बहरहाल, हर वक्त से सीख रही हूं। साल 2016 से बहुत सी उम्मीदें लगाई हैं। मैं संकल्प लेती नहीं, कभी लूं तो उन्हें पूरा नहीं कर पाती। स्ट्रेस-फ्री होकर जीती हूं, यही मेरे लिए सबसे ज्ारूरी है। मैं ख्ाुश रहना चाहती हूं। भौतिकता मेें मेरा बहुत विश्वास नहीं है। मेरी मां मेरे लिए सब कुछ हैं। उन्हें सारी ख्ाुशियां देना चाहती हूं, यही मेरी ज्िांदगी का मकसद है और यही मेरा संकल्प है।

उम्मीद की लौ जलती रहती है

पार्वती ओमनाकुट्टम, पूर्व मिस इंडिया

मेरे लिए हर नया दिन एक नई उम्मीद जगाता है। इस साल मैंने जितना सोचा था, उससे ज्य़ादा किया। इस साल मुझे छुट्टी पर जाना था, जिसके लिए भरपूर मौका मिला। मैं 'ख्ातरों के खिलाडी सीजन 7 में प्रतिभागी रही। शो की शूटिंग अर्जेंटिना में थी। इस शो में हिस्सा लेना अलग ही अनुभव है। इसे परवरिश कह लें कि मैं किसी भी स्थिति में धैर्य नहीं खोती। मैं समझती हूं कि अगर आप रात में चैन की नींद ले पाते हैं और आसपास के लोगों के साथ ख्ाुश हैं तो इससे बडा सौभाग्य और कुछ नहीं है। जो वक्त बीत गया, उस पर ज्य़ादा नहीं सोचती। वह तो हाथ से निकल ही गया है, इस चिंता में वर्तमान और भविष्य क्यों बर्बाद करूं। कलाकार के तौर पर ही नहीं, सामाजिक तौर पर भी कुछ करना चाहती हूं। ऐसी दुनिया में जहां हर कोई दूसरे को पछाडऩे की जुगत में है, किसी को चोट न पहुंचाऊं, यही इच्छा है। मुझे अपने फैसलों पर कभी पछतावा नहीं हुआ। अनुभव ही हमें परिपक्व बनाते हैं। कई बार दूसरों के हिसाब से हम फैसले लेते हैं और वह ग्ालत साबित हो जाता है। सफलता और विफलता का ईमानदारी से आकलन करने पर ही आगे जीत मिलती है।

मन में कभी कोई रिग्रेट

ंनहीं रखा अनुष्का शंकर, सितारवादक

वर्ष 2015 मेरे लिए बहुत अच्छा रहा। मेरे दूसरे बेटे का जन्म हुआ, एक नया अलबम आया और एक पर काम शुरू किया। परिवार के साथ मैंने छुट्टियों का लुत्फ भी लिया। लेकिन दुनिया में जो कुछ हुआ, उससे मैं परेशान हुई। लोगों को व्यथित देख कर मुझे अंदर से कुछ कचोटता है। हर आने वाला पल यही कहता है कि करने को बहुत कुछ है और समय बहुत कम है। मैं जब परेशान होती हूं, ध्यान और आत्म-मंथन करती हूं। मुझे लगता है, हम सब कभी न कभी ग्ालत निर्णय लेते हैं। मैंने भी लिए, हालांकि ऐसा यदा-कदा ही हुआ है। मैं उनके लिए मन में कोई रिग्रेट नहीं रखती। हम पास्ट को बदल नहीं सकते, सिर्फ ग्ालतियों से सीख सकते हैं। आगामी वर्ष में मुझे नए अलबम पर काम करना है और घूमना है।

हार-जीत दोनों को गले से लगाया

अनिल कपूर, ऐक्टर

अच्छा हो या बुरा, हर पल गुज्ार जाता है। उम्मीद तो हर दिन से होती है। दिसंबर का महीना है तो कह सकता हूं कि यह साल मेरे लिए बहुत अच्छा रहा। करियर के लिहाज्ा से भी और निजी ज्िांदगी में भी मैं आगे बढा। इस साल आई मेरी फिल्मों 'दिल धडकने दो और 'वेलकम बैक को दर्शकों ने प्यार दिया। एक कलाकार को उसके काम की तारीफ मिले, और क्या चाहिए! अगले साल मैं अपने शो '24 का दूसरा सीज्ान ला रहा हूं। उसे भी पहले शो की तरह बेहतर बनाने की कोशिशें रहेंगी। िफलहाल इसी पर जी-जान से जुटा हूं। मेरा मानना है कि ज्िांदगी चलते रहने का नाम है। सफलता-विफलता, हार-जीत ज्िांदगी का हिस्सा है। हमेशा सफलता साथ रहे, ज्ारूरी नहीं। इसलिए विफलता को भी एंजॉय करना चाहिए। इसी से आगे बेहतर करने की प्रेरणा मिलती है। देने वाले ने मुझे बहुत कुछ दिया है। इस साल मेरी बेटी सोनम की फिल्म 'प्रेम रतन धन पायो आई। मेरा बेटा हर्षवद्र्धन भी फिल्मी दुनिया में कदम रखने की तैयारी में है। अगले साल उसकी फिल्म रिलीज्ा होगी। बेटी रिया पहले ही प्रोडक्शन हाउस संभाल रही है। पिता के तौर पर मैं अपने बच्चों की कामयाबी से ख्ाुश हूं। आने वाला साल हमारे परिवार, देश-दुनिया के लिए ख्ाुशहाली लाए, यही चाहता हूं। सभी स्वस्थ और प्रसन्न रहें, बस यही कामना है मेरी। अगर आपके आसपास का वातावरण ख्ाुशहाल होगा तो आप भी ख्ाुश रहेंगे। लिहाज्ाा मैं चाहूंगा कि हमारा देश ख्ाूब उन्नति करे और दुनिया में इसका नाम रोशन हो।

हर पल यहां जी भर जिओ

अस्मिता शर्मा, एक्ट्रेस-प्रोड्यूसर

मेरे लिए तो वर्ष 2015 हर मायने में ख्ाास रहा है। मैंने जो लक्ष्य बनाए थे, उन्हें हासिल भी किया। यह साल मेरे करियर का टर्र्निंग पॉइंट बना है। मैंने पटना से मुंबई तक का सफर अपने दम पर तय किया है। एक अजनबी शहर में आकर अपनी पहचान बनाना आसान नहीं होता। यहां कोई मेरा गॉडफादर नहीं था। मैं टीवी एक्ट्रेस से फिल्म प्रोड्यूसर बनने के साथ ही अपनी फिल्म की लीड एक्ट्रेस भी हूं। यह साल मुझे ढेर सारी अच्छी यादें देने के साथ ही कई तरह की सीख भी देकर जा रहा है। मैंने मेहनत और समय की कीमत को समझा और उस पर अमल किया। मैं हर पल को जीने में यकीन रखती हूं। अपनी फिल्म के ज्ारिये मैंने बुनियादी स्तर पर गांव की स्त्रियों की परेशानियों को करीब से महसूस किया। मेरी फिल्म गांव की उन स्त्रियों पर केंद्रित है, जिनके घरों में टॉयलेट्स नहीं हैं। गुजरे हुए लमहों से सबक लेते हुए हमें भविष्य संवारना चाहिए। अगर मन-मुताबिक न भी हासिल कर सकें तो भी परेशान होने के बजाय आने वाले पलों को ख्ाूबसूरत बनाने का लक्ष्य बनाएं ताकि ज्िांदगी में सकारात्मकता बनी रहे।

अनुशासित रहने का है संकल्प : ताहिर राज भसीन, ऐक्टर

फिल्म 'मर्दानी में करण रस्तोगी का किरदार निभाने वाले ताहिर राज भसीन कहते हैं, 'मेरी ज्िांदगी के दो पैशन हैं। पहला ऐक्टिंग और दूसरा ट्रैवलिंग। िफलहाल 'फोर्स 2 की शूटिंग में व्यस्त हूं। इसकी शूटिंग का एक शेड्यूल बुडापेस्ट में शूट हुआ। शूटिंग के बीच समय का सदुपयोग वहां घूमने और वहां की संस्कृति को करीब से देखने में किया। चाहता हूं कि आने वाले वर्ष में अलग िकस्म के किरदार निभाने को मिलें और लोगों को मेरी क्रिएटिविटी नज्ार आए। जो भी करूं, उसे लोग याद रखें, यही ख्वाहिश है। हर साल मैं कोई संकल्प लेता हूं, लेकिन निभा नहीं पाता। इस वर्ष हसरत है कि जीवन में अनुशासित रहूं। फिल्म 'फोर्स 2 की शूटिंग के दौरान हॉलीवुड का क्रू भी शामिल हुआ। वे सभी बहुत अनुशासित थे। अपने काम को बेहद लगन और समर्पण से करते हैं। जॉन अब्राहम फिल्म में मेरे कोस्टार हैं। उनकी फिटनेस ने मुझे बहुत प्रेरित किया है। आने वाले साल में उम्मीद है कि अनुशासित रह सकूंगा और अपनी डाइट को संतुलित रखने का प्रयास करूंगा।

इंटरव्यू : मुंबई से स्मिता श्रीवास्तव, दिल्ली से वंदना, दीपाली, इंदिरा।


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