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ब्रेस्ट कैंसर खतरे को पहचानें

सेहत से बड़ा कोई धन नहीं। यह बात तब समझ आती है, जब किसी लंबी या गंभीर बीमारी से जूझना पड़ता है। शरीर के प्रति सजग रहने से रोग जल्दी पकड़ में आता है। अच्छी बात यह है कि कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का भी इलाज है, ख़्ाासतौर पर ब्रेस्ट

By Edited By: Published: Fri, 31 Jul 2015 04:20 PM (IST)Updated: Fri, 31 Jul 2015 04:20 PM (IST)
ब्रेस्ट  कैंसर खतरे  को पहचानें

सेहत से बडा कोई धन नहीं। यह बात तब समझ आती है, जब किसी लंबी या गंभीर बीमारी से जूझना पडता है। शरीर के प्रति सजग रहने से रोग जल्दी पकड में आता है। अच्छी बात यह है कि कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का भी इलाज है, ख्ाासतौर पर ब्रेस्ट कैंसर का इलाज अब सौ प्रतिशत तक भी संभव है।

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शरीर के प्रति जागरूकता एवं रोग से जूझने की मानसिक तैयारी कितनी ज्ारूरी है, यह दो सच्ची घटनाओं से ज्ााहिर होता है।

अनु को उम्र के 31वें पडाव पर स्तन में उभरी गांठ का पता चला। उसने तुरंत डॉक्टर से संपर्क किया। कीमोथेरेपी, रेडियोलॉजी और दवाओं का सिलसिला शुरू हुआ और एक-डेढ साल में गांठ से मुक्ति मिल गई। चौथे-पांचवे वर्ष में फिर दूसरे स्तन में भी गांठ महसूस हुई। पूरी प्रक्रिया दोबारा हुई। दोनों स्तनों को शरीर से अलग करने के बावजूद कुछ ही साल बाद तीसरी बार कैंसर ने हमला बोला। जब तक कुछ समझ पाती, ज्िांदगी हार चुकी थी। कैंसर के साथ वह 14 साल ज्िांदा रही। आज वह दोस्त नहीं है, लेकिन कैंसर पर उसका ब्लॉग और एक पुस्तक लोगों को आज भी जागरूक कर रही है।

कंचन को उम्र के 36वें वर्ष में स्तन में गांठ का पता चला। कैंसर पहली स्टेज में था और ठीक होने की संभावनाएं थीं, मगर इलाज की लंबी प्रक्रिया के चलते उसने इसे लंबे समय तक टाला और अंत में वही हुआ, जिसका डर था। 36 की उम्र में ही वह चली गई।

ये दोनों घटनाएं प्रेरित करती हैं कि अपने जीवन से प्यार करें और शरीर में हो रहे हर बदलाव को गंभीरता से लें। समस्या हो तो हिम्मत रखें और हरसंभव उससे लडऩे की कोशिश करते रहें। आमतौर पर स्त्रियां सेहत को नज्ारअंदाज्ा करती हैं। अमेरिकन कैंसर सोसाइटी के अनुसार हर आठ में से एक स्त्री को ब्रेस्ट कैंसर का ख्ातरा हो सकता है।

अपने शरीर को जानें

यूएस के नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन द्वारा कराए गए एक अध्ययन के मुताबिक विश्व की 22 फीसद और भारत की लगभग 18.5 प्रतिशत आधी आबादी ब्रेस्ट कैंसर से जूझ रही है। पिछले एक दशक में इसमें इज्ााफा हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकडों के अनुसार ब्रेस्ट कैंसर से पीडित दो स्त्रियों में से एक की मौत हो जाती है। इसकी बडी वजह समय पर रोग का पता न चलना और इलाज में देरी है। पश्चिमी देशों में ऐसी स्त्रियों की तादाद भारत से 75 प्रतिशत ज्य़ादा है, मगर जागरूकता व इलाज की बेहतर सुविधाओं के कारण वहां सर्वाइवल रेट भी भारत से ज्य़ादा है। भारत में लगभग 40 प्रतिशत मामलों में मरीज्ा को रोग का पता चौथे चरण में ही चलता है।

चौथे चरण का अर्थ है कि कैंसर शरीर के अन्य अंगों जैसे हड्डियों और फेफडों तक पहुंच चुका है। यूं तो इस स्टेज पर कारगर इलाज अभी नहीं है, मगर लाइफस्टाइल में बदलाव के ज्ारिये कैंसर पर लंबे समय तक नियंत्रण रखा जा सकता है। इलाज से बेहतर है बचाव। हर स्त्री के लिए ज्ारूरी है 30-35 साल की उम्र के बाद नियमित मेडिकल जांच कराएं और शरीर के प्रति सतर्क रहें।

हर गांठ कैंसर नहीं होती

लगभग 40 प्रतिशत स्त्रियों को कभी न कभी स्तन में गांठ का अनुभव होता है। सूजन, लालिमा, निपल के आकार में परिवर्तन जैसे लक्षण ज्ारूरी नहीं कि कैंसर के हों, मगर ये लक्षण दिखते ही तुरंत जांच ज्ारूरी है। शरीर में किसी असामान्य-असहज परिवर्तन के प्रति चौकस रहें। ब्रेस्ट कैंसर के कुछ लक्षण हैं- जैसे ब्रेस्ट के आसपास सूजन, लालिमा, लाल-काले निशान, स्तन के आकार में बदलाव, त्वचा में गड्ढे या सिकुडऩ, खुजली, पपडी, ज्ाख्म या दाने। ब्रेस्ट कैंसर में किसी ख्ाास स्थान पर उभरने वाला नया दर्द ख्ात्म नहीं होता। त्वचा के रंग में बदलाव या शरीर के अलग-अलग हिस्सों की बनावट में बदलाव हो सकता है। इसके अलावा ब्रेस्ट या आर्म पिट्स में सख्त गांठ का एहसास भी होता है।

ऐसे बढता है ख्ातरा

ब्रेस्ट में कोशिकाओं का कोई छोटा सा समूह अनियंत्रित तरीके से बढऩे लगता है और उसमें गांठें बनने लगती हैं। ख्ातरा तब होता है, जब कैंसर एक टिश्यू से शुरू होकर अन्य टिश्यूज्ा में फैलने लगता है। इस प्रक्रिया को मेटास्टसिस (रूद्गह्लड्डह्यह्लड्डह्यद्बह्य) कहते हैं। कैंसर ब्रेस्ट सेल्स से होते हुए हड्डियों, लिवर और फेफडों तक फैल सकता है। जहां-जहां भी ये गांठें फैलती हैं, उन अंगों की गतिविधियों को बाधित करने लगती हैं। फेफडों में इनके घुसते ही सांस संबंधी समस्याएं शुरू हो जाती हैं। सर्दी-ज्ाुकाम, कफ व निमोनिया जैसी शिकायत होने लगती है। इसके बाद पेट दर्द और पीलिया की आशंका रहती है। गांठें लिवर तक फैलने लगें तो रक्त का थक्का बनने लगता है। रोगी को थकान व कमज्ाोरी होती है। उल्टी होती है, भूख नहीं लगती और तेज्ाी से वज्ान कम होने लगता है।

कैसे बचें

कैंसर के चार चरण होते हैं। पहले दो को शुरुआती चरण, तीसरे को इंटरमीडिएट और चौथे को एडवांस स्टेज कहा जाता है। पहले दो चरणों में ठीक होने की उम्मीद होती है।

यदि शुरुआती चरण में ट्रीटमेंट शुरू कर दिया जाए तो इलाज संभव है। कैंसर आनुवंशिक होने के अलावा लाइफस्टाइल से जुडा रोग भी है। वज्ान, शारीरिक गतिविधियों और खानपान का इससे सीधा संबंध है। ओवरवेट स्त्रियों को इसका ख्ातरा अधिक होता है। हॉर्मोनल थेरेपी कराने वाली स्त्रियों में भी इसके लक्षण देखे गए हैं।

डॉक्टर्स का मानना है कि कैंसर से बचाव में सेल्फ एग्ज्ौमिन प्रक्रिया ज्ारूरी है। इसमें केवल तीन मिनट लगते हैं। चालीस की उम्र के बाद स्त्रियों को वर्ष में एक बार मेमोग्राफी करानी चाहिए। कैंसर पहले चरण में ही पता चल जाए तो मस्टेक्टमी यानी सर्जरी से ब्रेस्ट निकालने या कीमोथेरेपी की ज्ारूरत भी नहीं होती।

नई जांच और इलाज

दुनिया भर में कैंसर के इलाज को लेकर शोध जारी हैं। एक ताज्ाा रिसर्च में कहा गया है कि ट्रेल प्रोटीन से ट्यूमर का इलाज संभव है। ट्रेल प्रोटीन के संपर्क में आने से ट्यूमर की कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। इस पर अभी एडवांस रिसर्च जारी है।

एक्सज्ाोम डीएनए के अनेलिसिस से भी कैंसर का पता लगाया जा सकता है। अब तक ख्ाून के सैंपल से ऐसा नहीं होता था। मगर इस जांच में कहा गया है कि ख्ाून के नमूने से लिए गए एक्सज्ाोम डीएनए का अनेलिसिस कर कैंसर ट्यूमर के बारे में पता लगाया जा सकता है।

इन दिनों स्टेम सेल थेरेपी को लेकर काफी काम हो रहा है। ऐसे मरीज्ा जिनकी कीमो और रेडियोथेरेपी हो चुकी है और बोन मैरो नष्ट हो चुका है या रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम हो, उन्हें स्टेम सेल थेरेपी दी जा सकती है।

अब तक सबसे भरोसेमंद पद्धति कीमोथेरेपी ही मानी जाती है। तीसरे या चौथे चरण में इलाज की तीन तकनीकों में से दो की मदद ली जाती है। इसमें कैंसर की कोशिकाएं मारने के लिए शरीर में इंंटेंसिव टॉक्सिंस प्रवेश कराए जाते हैं। हालांकि ये टॉक्सिंस कैंसर की कोशिकाओं के साथ-साथ कई स्वस्थ कोशिकाओं को भी मार देते हैं।

कई बार इनसे लिवर को नुकसान होता है।

इसके साइड इफेक्ट्स में सबसे प्रमुख हैं- हेयर फॉल और वॉमिटिंग आदि।

सभी कैंसर्स की प्रकृति अलग-अलग होती है, इसलिए ऑन्कोलॉजिस्ट्स अलग-अलग ट्यूमर्स की प्रकृति के बारे में जानते हुए इलाज के लिए ब्ल्यूप्रिंट जैसे जीनोमिक टेस्ट पर भरोसा करने लगे हैं। संस्था आइलाइफ डिस्कवरीज्ा ने हाल में दो नए जीन परीक्षण प्रस्तुत किए हैं, जिनसे ऑन्कोलॉजिस्ट को ट्यूमर की अंदरूनी प्रकृति को समझने में मदद मिलेगी और वे यह तय कर पाएंगे कि ब्रेस्ट कैंसर के मरीज्ाों के लिए कीमोथेरेपी की ज्ारूरत टाली जा सकती है या नहीं। इसमें मेमा प्रिंट और ब्ल्यू प्रिंट डीएनए की गहन जांच की जाती है, ताकि ट्यूमर की वास्तविक प्रकृति को समझा जा सके। इससे कैंसर के मोलेक्युलर सबटाइप्स का विश्लेषण करने में सहूलियत होती है। जांच से पता लगाया जा सकता है कि क्या शुरुआती चरण वाला कैंसर दोबारा हो सकता है। डॉ. रमेश सरीन कहती हैं, 'सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट होने के नाते मुझे मस्टेक्टमी (पूरे ब्रेस्ट को निकालने की प्रक्रिया) या लम्पेक्टमी (ब्रेस्ट के प्रभावित हिस्से को निकालने की प्रक्रिया) के ज्ारिये कैंसर वाले ट्यूमर को निकालने की चिंता रहती है। दुर्भाग्यवश कुछ स्त्रियों में कैंसर इसके बाद भी फैलता है। अब तक हमारे पास ऐसी कोई जांच प्रणाली नहीं थी, जो बता सके कि स्त्रियों में किस तरह का कैंसर फैल सकता है और किस तरह का नहीं। मगर अब एफडीए से अनुमोदित 70 जीन मेमा प्रिंट टेस्ट है, जिससे ट्यूमर की जीनोमिक प्रोफाइलिंग पर नज्ार रख कर और उसके व्यवहार का परीक्षण कर मरीज्ा का इलाज जारी रखा जा सकता है।

योग से मिलती है ताकत

एक शोध में पता चला है कि कैंसर के इलाज के बाद तीन महीने तक नियमित योग करने से थकान व सूजन पर काबू पाया जा सकता है। ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी यूएस में हुए शोध में कहा गया कि इससे मरीज्ाों को बहुत फायदा हुआ। शोध में 200 लोगों से छोटे-छोटे समूहों में 12 हफ्ते तक सप्ताह में दो बार योग करने को कहा गया। एक समूह को ऐसा निर्देश नहीं दिया गया। योग करने वालों को थकान 57 प्रतिशत और सूजन 20 प्रतिशत तक कम हुई। शोध में शामिल स्त्रियां शोध के पहले कैंसर ट्रीटमेंट से गुज्ारी थीं।

इंदिरा राठौर

(इनपुट्स : डॉ. रमेश सरीन, सीनियर कंसल्टेंट सर्जिकल ऑन्कोलॉजी इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स और ए. गुप्ता, फाउंडर-सीएमडी लाइफकेयर डिस्कवरीज्ा)


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