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सजगता से संभव है बचाव

मस्तिष्क हमारे शरीर की सभी गतिविधियों को नियंत्रित करता है। इसी वजह से ब्रेन स्ट्रोक को गंभीर स्वास्थ्य समस्या माना जाता है। अगर थोड़ी सजगता बरती जाए तो इसके प्रभावों को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।

By Edited By: Published: Mon, 01 Sep 2014 04:27 PM (IST)Updated: Mon, 01 Sep 2014 04:27 PM (IST)
सजगता से संभव है बचाव

अब तक ऐसा माना जाता था कि ब्रेन स्ट्रोक सिर्फ बुजुर्गो को ही होता है, पर आधुनिक जीवनशैली की जटिलताओं की वजह से मिडिल एज ग्रुप के लोगों में भी यह समस्या देखने को मिलती है। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा किए गए सर्वेक्षण के मुताबिक भारत में प्रति वर्ष 1.5 लाख लोग ब्रेन स्ट्रोक के शिकार होते हैं, लेकिन जागरूकता न होने की वजह से उनकी यह समस्या गंभीर रूप धारण कर लेती है, जो कई बार जानलेवा साबित होती है। इसलिए बेहतर यही होगा कि इस समस्या के कारण, लक्षण और बचाव के तरीकों को समझते हुए पहले से ही पूरी सजगता बरती जाए।

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क्या है मर्ज

सही ढंग से कार्य करने के लिए हमारे दिमाग को हमेशा ऑक्सीजन की जरूरत होती है और रक्त प्रवाह के जरिये ऑक्सीजन मस्तिष्क तक पहुंचता है। उसकी रक्तवाहिका नलियों में ब्लड क्लॉटिंग या उनके फटने की वजह से ब्रेन की कोशिकाओं को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाता और वे तेजी से नष्ट होने लगती हैं। इसी स्थिति को ब्रेन स्ट्रोक कहा जाता है। लोगों को सरल भाषा में समझाने के लिए नेशनल स्ट्रोक एसोसिएशन ने इसके लिए ब्रेन अटैक शब्द का इस्तेमाल करने की सलाह दी है। ब्रेन स्ट्रोक मुख्यत: दो तरह का होता है-इस्केमिक और हेमरैजिक स्ट्रोक। पहली स्थिति में व्यक्ति के मस्तिष्क की नसों में खून जमने की समस्या होती है, जिससे उसके कुछ हिस्सों को ऑक्सीजन युक्त रक्त नहीं मिल पाता। स्ट्रोक के लगभग 87 प्रतिशत मामलों में ऐसी ही समस्या देखने को मिलती है। दूसरे तरह के स्ट्रोक में मस्तिष्क की नसें फट जाती हैं, इससे उसके कुछ हिस्सों में अनियंत्रित रक्त प्रवाह शुरू हो जाता है। यह स्थिति भी बेहद खतरनाक होती है।

कैसे करें पहचान

कुछ लक्षणों की समानता की वजह से अकसर लोग इसे हार्ट अटैक समझने लगते हैं, पर यह उससे भी ज्यादा गंभीर समस्या है। ब्रेन अटैक के प्रमुख लक्षणों को पहचान कर लोगों को इसके प्रति जागरूक बनाने के लिए विशेषज्ञों ने एक सरल फॉम्र्युला तैयार किया है, जिसे फास्ट नाम दिया गया है। इसका मतलब है-

एफ-फेस में टेढापन

ए-आ‌र्म्स में कमजोरी, कोशिश करने पर भी व्यक्ति अपने हाथ ऊपर नहीं उठा पाता।

एस-स्पीच में दिक्कत, ऐसे में ज्यादातर लोगों की आवाज लडखडाने लगती है।

टी-टाइम की कीमत पहचानते हुए स्ट्रोक से प्रभावित व्यक्ति को हॉस्पिटल पहुंचाने में जरा भी देर न करें। लगभग 60 प्रतिशत ब्रेन स्ट्रोक के मामलों में ये प्रमुख लक्षण दिखाई देते हैं। इसके अलावा ऐसे मरीजों में कुछ अन्य लक्षण भी नजर आते हैं, जैसे- आंखों के आगे अंधेरा छाना, हर चीज दो-दो दिखाई देना, शारीरिक संतुलन बिगडना, कमजोरी महसूस होना या शरीर का कोई एक हिस्सा सुन्न पड जाना आदि। ये लक्षण ज्यादा खतरनाक साबित होते हैं क्योंकि अकसर लोग इन्हें मामूली कमजोरी समझ कर नजरअंदाज कर देते हैं और हॉस्पिटल पहुंचने में देर हो जाती है।

पहचानें समय की कीमत

ब्रेन स्ट्रोक से जूझ रहे मरीज के लिए एक-एक सेकंड बेहद कीमती होता है क्योंकि स्ट्रोक के बाद व्यक्ति के मस्तिष्क की कोशिकाएं तेज रफ्तार से नष्ट होने लगती हैं। अगर परिवार के सदस्यों को ब्रेन स्ट्रोक का एक भी लक्षण दिखाई दे तो उनकी यह जिम्मेदारी बनती है कि बिना एक पल भी गंवाए वे मरीज को सबसे नजदीकी अस्पताल ले जाएं, जहां आइसीयू और सक्षम न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट के अलावा सीटी स्कैन की सुविधा हो। ऐसी स्थिति में सोचने-विचारने या फेमिली डॉक्टर से सलाह लेने की भूल नहीं करनी चाहिए क्योंकि यह एक मेडिकल इमर्जेसी है और आधुनिक सुविधाओं से युक्त अस्पताल में ही इसका उपचार संभव है। अस्पताल पहुंचने के बाद भी इस बात का ध्यान रखें कि 30 मिनट के भीतर मरीज का सीटी स्कैन हो जाए और 45 मिनट के भीतर उसके बाकी सभी टेस्ट हो जाएं, ताकि जल्द से जल्द उसका उपचार शुरू किया जा सके। ऐसी अवस्था में ब्रेन की नसों का ब्लॉकेज खोलने के लिए खास तरह का इंजेक्शन दिया जाता है।

स्ट्रोक का असर

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के अनुसार ब्रेन स्ट्रोक के 41 प्रतिशत मामलों में व्यक्ति की जान को खतरा होता है और 59 प्रतिशत लोगों में शारीरिक या मानसिक दुर्बलता की आशंका बनी रहती है। अटैक के बाद कुछ लोग चलने-फिरने में असमर्थ हो जाते हैं, कुछ को बोलने में दिक्कत होती है, दृष्टि में धुंधलापन आ जाता है और कई बार स्मरण-शक्ति कमजोर पड जाती है। दरअसल मानव मस्तिष्क का हर हिस्सा अलग-अलग शारीरिक-मानसिक क्रियाओं को संचालित और नियंत्रित करता है। आमतौर पर ब्रेन का बायां हिस्सा शरीर के दाहिने भाग को और दायां हिस्सा शरीर के बाएं भाग को नियंत्रित करता है। अटैक की वजह से मस्तिष्क का जो हिस्सा प्रभावित होता है, उससे संबंधित अंगों के संचालन में बाधा पहुंचती है। बोलचाल की भाषा में इसे लकवा या पैरलिटिक अटैक कहा जाता है।

संभव है बचाव

अकसर लोग यह सोचकर भयभीत हो जाते हैं कि ब्रेन स्ट्रोक का हमला अचानक होता है। इसलिए इससे बचाव असंभव है, पर वास्तव में ऐसा नहीं है। इससे बचने के लिए स्वस्थ- संतुलित खानपान और नियमित एक्सरसाइज अपनाना चाहिए। शरीर में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित रखना बेहद जरूरी है क्योंकि बैड कोलेस्ट्रॉल एलडीएल हार्ट के साथ मस्तिष्क की रक्तवाहिका नलिकाओं को भी संकरा बनाने का काम करता है। इसकी वजह से केवल हार्ट अटैक ही नहीं, बल्कि ब्रेन स्ट्रोक का भी खतरा बढ जाता है। साल में एक बार रुटीन हेल्थ चेकअप अवश्य कराना चाहिए। डायबिटीज के मरीजों को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि उनके शरीर में रक्तवाहिका नलिकाओं के सिकुडने की प्रवृत्ति होती है, जो आगे चलकर ब्रेन को भी प्रभावित कर सकती है।

कुछ लोगों को यह गलतफहमी होती है कि एक बार ब्रेन स्ट्रोक पडने के बाद व्यक्ति सामान्य जीवन नहीं जी सकता है, पर वास्तव में ऐसा नहीं है। अगर उसे सही समय पर उपचार मिल जाए तो उसकी सेहत में सुधार संभव है। अस्पताल से घर लौटने के बाद व्यक्ति को विशेष देखभाल की जरूरत होती है। मर्ज की गंभीरता के अनुरूप उसे मेडिकल कंसल्टेंसी के अलावा फिजियोथेरेपी, स्पीचथेरेपी और काउंसलिंग की भी जरूरत पडती है। स्ट्रोक की शारीरिक तकलीफों से उबरने में काफी वक्त लगता है। इससे मरीज को डिप्रेशन और तनाव होने लगता है। ऐसे में परिवार के सदस्यों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे उसे भावनात्मक सहयोग देते हुए उसका मनोबल बढाने की कोशिश करें।

कब होता है खतरा

-हाई ब्लडप्रेशर

-डायबिटीज

- मोटापा

-बीमारी की फेमिली हिस्ट्री

-रक्त में कोलेस्ट्रॉल और अमीनो एसिड की मात्रा बढना

-अधिक मात्रा में एल्कोहॉल और सिगरेट का सेवन

-सिर में कोई अंदरूनी चोट या अत्यधिक मानसिक तनाव की वजह से भी यह समस्या हो सकती है।

-60 की उम्र के बाद इसका खतरा बढ जाता है। आधुनिक जीवनशैली की व्यस्तता की वजह से लोग अपनी सेहत पर ध्यान नहीं दे पाते। इसलिए आजकल 30-40 साल के आयु वर्ग वाले लोग भी ब्रेन स्ट्रोक के शिकार हो जाते हैं। अब इस समस्या से उम्र का कोई संबंध नहीं रह गया है।

(मैक्स हॉस्पिटल दिल्ली के हेड ऑफ न्यूरोलॉजी यूनिट डॉ. आर. एस. रेड्डी से बातचीत पर आधारित)

विनीता


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