कहीं खो न जाए असर
सर्दी-जुकाम और बखार जैसी मामूली तेकलीफों में भी कुछ लोगों को अपने मन से दवाएं लेने की आदत होती है, जो उनकी सेहत के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है।
यह सच है कि समय के साथ लोग सेहत के प्रति जागरूक हो रहे हैं, पर इसका दूसरा पहलू यह भी है कि आजकल ज्यादातर लोग सिररर्द, सर्दी-जुकाम और बुखार जैसी मामूली तेकलीफों के लिए डॉक्टर के पास जाने के बजाय अपने मन से या केमिस्ट से पूछकर दवाओं का सेवन शुरू कर देते हैं। हो सकता है कि ऐसा करने पर उन्हें थोडी देर के लिए तेकलीफ से राहत मिल जाए, पर यही आदत बाद में उनकी सेहत के लिए बहुत नुकसानदेह साबित होती है। ऐसी दवाओं को ओवर द काउंटर ड्रग्स कहा जाता है। इतना ही नहीं तेकलीफ से जल्द राहत पाने के लिए अब लोग डॉक्टर से सलाह लिए बिना एंटीबायोटिक दवाएं भी लेते हैं।
लोगों की इसी आदत को जानने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने हाल ही में एक सर्वेक्षण करवाया था, जिसके अनुसार पूरी दुनिया में लगभग 78 प्रतिशत लोग सर्दी-जुकाम, बखार और सिरदर्द जैसी समस्याओं के लिए डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं समझते। सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि परिवार में इस्तेमाल की गई एक ही दवा अन्य सदस्यों द्वारा भी आजमाई जाती है। दवा की एक डोज से आराम मिलने के बाद लोग दूसरी बार दवा लेना जरूरी नहीं समझते। इस सर्वेक्षण में यह पाया गया कि लगभग 17 प्रतिशत डॉक्टर सर्दी-जुकाम में भी एंटीबायोटिक देते हैं, पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ऐसी स्थिति में एंटीबायोटिक लेने की सलाह नहीं देता।
क्या है नुकसान
ऐसी दवाओं के अधिक इस्तेमाल से हमारे शरीर में मौजूद बैक्टीरिया दवाओं के हमले से खुद को बचाने के लिए अपनी जेनेटिक संरचना बदलाव लाना शुरू कर देते हैं और खुद को पहले की तुलना में ज्यादा मजबूत बना लेते हैं। मेडिकल साइंस की भाषा में इसे बैक्टीरिया का ऑटो इम्यून होना कहा जाता है। ऐसी स्थिति में बैक्टीरिया पर दवाओं का असर खत्म हो जाता है। एंटीबायोटिक्स के लगातार या आधे-अधूरे सेवन की वजह से पैदा होने वाली ऐसी समस्या को एएमआर (एंटी माइक्रोबायल रेजिस्टेंस) कहा जाता है। इतना ही नहीं कुछ लोगों पर दवाओं का साइड इफेक्ट सूजन, श्वसन तंत्र संबंधी परेशानियों और त्वचा पर रैशेज के रूप में भी देखने को मिलता है। लंबे समय तक ऐसी दवाओं के सेवन की वजह से व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कमजोर पडने लगती है। इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने डॉक्टरों को सुझाव दिया है कि वे एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल सीमित मात्रा में करें। मामूली बीमारियों से लडने का बेहतर उपाय यही है कि हम अपने खानपान में विटमिन सी युक्त फलों, ड्राई फ्रूट्स और हरी सब्जियों को प्रमुखता से शामिल करें क्योंकि ये चीजें शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने में मददगार साबित होती हैं।
दवाओं से बेहतर है वैक्सीन
अध्ययनों से यह साबित हो चुका है कि अब न्यूमोनिया, मलेरिया और बुखार के लिए दी जाने वाली दवाएं पहले जितनी कारगर नहीं रहीं। इसीलिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर दवाओं की जगह वैक्सीन के इस्तेमाल की जरूरत महसूस की जा रही है। एंटीबायोटिक्स के बढते प्रयोग को सीमित करने के लिए जरूरी है कि वैक्सीन की उपलब्धता बढाई जाए। मौसम बदलने के समय होने वाले वायरल फीवर, फ्लू या खांसी से बचने के लिए वैक्सी ग्रिप का टीका लगवाना ज्यादा बेहतर उपाय है। इसे हर साल वायरल बुखार के नए लक्षणों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जाता है, जो बदलते मौसम में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर नहीं पडने देता।
भविष्य के लिए खतरा
एंटीबायोटिक्स के अधिक इस्तेमाल की वजह से हमें भविष्य में बहुत परेशानी हो सकती है क्योंकि विश्व की किसी भी फार्मा कंपनी के पास अगले 20 वर्षो तक नया एंटीबायोटिक तैयार करने का कोई भी फॉम्र्युला उपलब्ध नहीं है। इसलिए कम से कम बीस साल तक हमें बाजार में उपलब्ध दवाओं के सहारे ही अपनी सेहत की हिफाजत करनी होगी। इसलिए समझदारी इसी में है कि हम बिना डॉक्टर की सलाह के एंटीबायोटिक्स का सेवन न करें।
यह भी न भूलें
- हमेशा अपने साथ दर्द निवारक दवाएं न रखें। इससे छोटी-छोटी तेकलीफों के लिए भी दवा लेने की आदत पड जाएगी।
-मामूली खांसी-जुकाम या सिरदर्द में पहले ही दिन से दवा न लें।
-घर में रखी अधिक पुरानी दर्द निवारक दवाओं का सेवन न करें, भले ही उनकी एक्सपायरी डेट बोकी हो।
-अगर दवा के एक डोज का असर न हो तो डॉक्टर से मिलें, क्योंकि इससे जाहिर होता है कि बैक्टीरिया ने दवा के खिलाफ अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है।
-एंटीबायोटिक्स वायरस के जरिये हुए संक्रमण को दूर नहीं करते। इनका असर सिर्फ बैक्टीरिया की वजह से होने वाली बीमारियों पर ही होता है। इसलिए फ्लू, खांसी और वायरल फीवर में इनका सेवन न करें।
-डॉक्टर की सलाह पर ही एंटीबायोटिक लें। दवा लेने के निर्धारित समय और सही मात्रा का पालन करें।
-सही दवा, सही जांच के बाद ही दी जा सकती है, इसलिए इलाज से पहले जांच जरूर कराएं।
(पुष्पावती सिंघानिया रिसर्च इंस्टीट्यूट दिल्ली के इंटर्नल मेडिसिन डिपार्टमेंट केसीनियर कंसल्टेंट डॉ. चंदन केदावत से बातचीत पर आधारित)
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