क्या भूलूं क्या याद करूं
बढ़ती उम्र के साथ घटती याद्दाश्त का बहुत करीबी रिश्ता है। छोटी-छोटी बातें भूलना तो स्वाभाविक है, लेकिन जब व्यक्ति बहुत ज्य़ादा भूलने लगे तो यह अल्ज़ाइमर्स का रूप धारण कर लेता है। क्यों होती है यह समस्या, आइए जानते हैं सखी के साथ।
क्या है मर्ज
अगर सरल शब्दों में कहा जाए तो यह बढती उम्र से जुडी एक ऐसी न्यूरोलॉजिकल समस्या है, जो बहुत धीरे-धीरे इंसान को अपनी गिरफ्त में लेती है। मानव मस्तिष्क का वह हिस्सा जो हमारी यादों को संजोने का काम करता है, उम्र बढऩे के साथ उसकी सेल्स सिकुडऩे लगती हैं, जिसका सीधा असर व्यक्ति की स्मरण-शक्ति पर पडता है। अल्जाइमर्स होने पर ब्रेन के पेरीटल लोब
(क्कड्डह्म्द्बद्गह्लड्डद्य द्यशड्ढद्ग) के न्यूरॉन्स तेजी से नष्ट होने लगते हैं। ब्रेन का यह हिस्सा चीजों को देखकर समझने और उसके अनुरूप शरीर के सभी अंगों को कार्य करने का निर्देश देता है। जब इसके न्यूरॉन्स नष्ट होने लगते हैं तो व्यक्ति के हर कार्य और व्यवहार की गति धीमी हो जाती है क्योंकि उसका मस्तिष्क किसी भी निर्देश को सुनते ही तत्काल उसके अनुरूप प्रतिक्रिया देने में सक्षम नहीं होता। आपने भी नोटिस किया होगा कि सार्वजनिक स्थलों पर जब भी किसी नियम-कायदे से संबंधित कोई निर्देश दिया जाता है तो बाकी लोग उस पर तत्काल अमल शुरू कर देते हैं, पर कुछ बुजुर्ग ऐसे होते हैं, जिन्हें एक ही बात को दोबारा समझाना पडता है। इससे नाराज होकर कई बार वहां काउंटर पर बैठे लोग उनके साथ बहुत रुख्ााई से पेश आते हैं। ऐसा करने वालों को यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि बुजुर्ग जानबूझ कर किसी को परेशान नहीं करते, बल्कि अपनी उम्र से संबंधित इस समस्या की वजह से उनके व्यवहार में यह बदलाव आता है। इसकी प्रमुख वजह यह है कि हमारे शरीर में एमिलॉयड (्रद्व4द्यशद्बस्र) नामक ख्ाास तरह का प्रोटीन पाया जाता है, जो कोशिकाओं के किनारे पर स्थित होता है और उन्हें आपस में जोडऩे का काम करता है। उम्र बढऩे के साथ कई बार ब्रेन में इसकी मात्रा बढ जाती है, जिससे उसके काम करने की गति धीमी हो जाती है और व्यक्ति के लिए बातें याद रखना मुश्किल हो जाता है। आमतौर पर 60 वर्ष की आयु के बाद लोगों में इसके लक्षण नजर आते हैं, पर यह जरूरी नहीं है कि हर बुजुर्ग व्यक्ति को ऐसी समस्या हो। फिर भी उम्र बढऩे के बाद इसकी आशंका बढ जाती है। जीवनशैली की बढती व्यस्तता और खानपान की आदतों में लापरवाही की वजह से कई बार मिडिलएज लोगों में भी अल्जाइमर्स के लक्षण दिखाई देते हैं।
प्रमुख लक्षण
लोगों के नाम और चेहरे भूलना
अपनी जरूरी चीजों को इधर-उधर रखकर भूल जाना
घर से बाहर निकलने पर अपने परिचित रास्तों को भी पहचान न पाना
रोजमर्रा के कार्यों के प्रति उदासीनता
सामाजिक जीवन से दूर रहने की कोशिश
तर्क करने की क्षमता कम होना
शॉर्ट टर्म मेमोरी लॉस यानी वर्तमान से जुडी छोटी-छोटी बातें बहुत जल्दी भूल जाना। मसलन फ्रिज का दरवाजा खोलने के बाद यह भूल जाना कि मुझे उससे क्या निकालना है?
आमतौर पर अल्जाइमर्स के मरीजों को पुरानी बातें मसलन, स्कूल के दोस्तों के नाम और बचपन से जुडे दिलचस्प अनुभव अच्छी तरह याद रहते हैं, पर ये वर्तमान से जुडी जरूरी सूचनाएं याद नहीं रख पाते।
ज्य़ादा गंभीर स्थिति में ऐसे मरीज अपने परिवार के सदस्यों को भी पहचानने में असमर्थ होते हैं।
कब होती है आशंका
वैसे तो बढती उम्र अल्जाइमर्स की सबसे प्रमुख वजह है ही, इसके अलावा भी कई ऐसी बातें हैं, जो इस समस्या को जन्म देती हैं। जीन्स की संरचना में होने वाली गडबडी और आनुवंशिकता की वजह से भी ऐसी समस्या हो सकती है। इसी वजह से कई बार युवाओं में भी इसके लक्षण दिखाई देने लगते हैं। वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययनों में यह पाया गया है कि पुरुषों की तुलना में स्त्रियों में इसकी आशंका अधिक होती है क्योंकि मेनोपॉज के बाद उनके शरीर में एस्ट्रोजेन हॉर्मोन की कमी हो जाती है। दरअसल यह हॉर्मोन स्त्रियों को युवा और सक्रिय बनाए रखने का काम करता है। इसकी कमी से भी उनमें अल्जाइमर्स की आशंका बढ जाती है, पर यह जरूरी नहीं है कि मेनोपॉज के बाद सभी स्त्रियों को ऐसी समस्या हो। इसके अलावा हाइ ब्लडप्रेशर, थायरॉयड, डायबिटीज और हृदय रोग होने पर भी व्यक्ति की स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है। सिर में लगी गंभीर चोट या किसी दवा के साइड इफेक्ट से भी यह समस्या हो सकती है।
जरूरी है फर्क समझना
अकसर लोग पार्किंसंंस, डिमेंशिया और अल्जाइमर्स को एक ही बीमारी समझने की भूल कर बैठते हैं, पर वास्तव में ऐसा नहीं है। ये तीनों मस्तिष्क से जुडी अलग-अलग समस्याएं हैं। इनमें केवल यही समानता है कि ये तीनों बढती उम्र की न्यूरोलॉजिकल डिजीज हैं। दरअसल पार्किंसंस में मांसपेशियों पर मस्तिष्क का नियंत्रण ख्ात्म हो जाता है। इससे पीडित व्यक्ति के हाथ-पैरों या पूरे शरीर में कंपन की समस्या होती है। इसकी वजह से कई बार आवाज भी लडखडाने लगती है। डिमेंशिया भी अल्जाइमर्स की ही तरह याद्दाश्त से जुडी समस्या है, पर इसके लक्षण युवाओं या मिडिलएज के लोगों में भी नजर आ सकते हैं। अगर सही समय पर उपचार शुरू न किया जाए तो कुछ वर्षों के बाद डिमेंशिया से पीडित लोगों को भी अल्जाइमर्स हो सकता है। अत: डिमेंशिया को इस बीमारी का शुरुआती रूप भी कहा जा सकता है।
बचाव एवं उपचार
स्वस्थ खानपान और सही जीवनशैली अपनाना बहुत जरूरी है क्योंकि डायबिटीज, हाइ कोलेस्ट्रॉल, ब्लडप्रेशर और ओबेसिटी जैसी समस्याएं भी कई बार अल्जाइमर्स का सबब बन जाती हैं।
ब्रेन के विभिन्न हिस्सों में ब्लड की सप्लाई कम होने से भी यह समस्या हो सकती है। नियमित योगाभ्यास और ध्यान भी इससे बचाव में मददगार हो सकता है।
इस समस्या से बचने के लिए दिमाग को एक्टिव रखना बहुत जरूरी है। हमेशा अपनी रुचि से जुडे कार्यों में व्यस्त रहें। जहां तक संभव हो, अकेलेपन से बचने की कोशिश करें। आसपास के लोगों से मेलजोल बढाएं।
सुडोकू और शतरंज जैसे गेम्स से भी दिमाग की अच्छी एक्सरसाइज होती है। ऐसी एक्टिविटीज को अपनी दिनचर्या में नियमित रूप से शामिल करें।
कभी-कभी कुछ बातें भूलना स्वाभाविक है, पर जब इस आदत की वजह से रोजमर्रा की दिनचर्या प्रभावित होने लगे या इस बीमारी की फेमिली हिस्ट्री रही हो तो बिना देर किए किसी न्यूरोलॉजिस्ट से सलाह लें। ब्रेन के एमआरआइ या सीटी स्कैन के जरिये इस बीमारी का आसानी से पता लगाया जा सकता है। सेरिब्रो स्पाइनल फ्लूइड की जांच से भी ब्रेन की अवस्था का पता लगाया जाता है। अल्जाइमर्स होने की स्थिति में दवाओं की मदद से ब्रेन के केमिकल्स को संतुलित रखा जाता है। इस समस्या को पूरी तरह दूर नहीं किया जा सकता, लेकिन इसके लक्षणों को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है। द्
खानपान की अहमियत
जब भी हम कोई बात भूल जाते हैं तो हमारे दोस्त हंसते हुए कहते हैं, बादाम ख्खाया करो और इस सलाह को हम मजाक समझकर टाल देते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि बादाम और अख्खरोट का नियमित सेवन हमारी याद्दाश्त बढाने में मददगार साबित होता है। इसके अलावा मछली में मौजूद ओमेगा-3 फैटी एसिड भी ब्रेन की सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है। अपने भोजन में हरी पत्तेदार सब्जियों को भी प्रमुख्खता से शामिल करें। खाने में ज्य़ादा घी-तेल का इस्तेमाल न करें। एल्कोहॉल और स्मोकिंग से दूर रहें क्योंकि इससे हृदय रोग और डायबिटीज की आशंका बढ जाती है, जिससे बाद में अल्जाइमर्स भी हो सकता है। इसलिए हमेशा पौष्टिक और संतुलित आहार अपनाएं।
सखी फीचर्स
इनपुट्स : डॉ. पंकज अग्रवाल, न्यूरोलॉजिस्ट एंड मूवमेंट डिसॉर्डर स्पेशलिस्ट, ग्लोबल
हॉस्पिटल मुंबई