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सेहत है नेमत

जरा सी लापरवाही के कारण व्हील चेयर पर आ गई चंचल लड़की ने जाना कि हमें ईश्वर द्वारा दिए गए शरीर की हिफाजत करनी चाहिए.. उस समय मेरे पिता एक सरकारी विभाग में उच्च पदस्थ अधिकारी थे और मां एक साधारण गृहिणी। एक बड़े भाई और एक बड़ी बहन थी। कुल मिलाकर सुखी परिवार था। जीवन में सुख-सुविधाओं की कोई कमी नहीं थी। पिता जी का तबाद

By Edited By: Published: Tue, 09 Sep 2014 04:33 PM (IST)Updated: Tue, 09 Sep 2014 04:33 PM (IST)
सेहत है नेमत

जरा सी लापरवाही के कारण व्हील चेयर पर आ गई चंचल लड़की ने जाना कि हमें ईश्वर द्वारा दिए गए शरीर की हिफाजत करनी चाहिए..

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उस समय मेरे पिता एक सरकारी विभाग में उच्च पदस्थ अधिकारी थे और मां एक साधारण गृहिणी। एक बड़े भाई और एक बड़ी बहन थी। कुल मिलाकर सुखी परिवार था। जीवन में सुख-सुविधाओं की कोई कमी नहीं थी। पिता जी का तबादला अलग-अलग शहरों में होता रहता। हमें उनके साथ नई जगहों पर जाना बहुत रोमांचकारी लगता था। परिवार में सबसे छोटी होने के कारण मैं सबकी लाडली थी।

मुझे लगता था कि दुनिया में कोई ऐसा कार्य नहीं, जिसे मैं अपने प्रयास से पूरा नहीं कर सकती। कक्षा में हमेशा अव्वल आती। हां, मैं चंचल बहुत थी। शांत और स्थिर रहना मेरे स्वभाव में था ही नहीं। उस समय मेरी आयु सिर्फ 13 वर्ष थी। गर्मी की छुट्टियों के दौरान मैं मां और बहन के साथ रिश्तेदार के घर मिलने गई। शाम के समय सभी लोग बैठकर बातें कर रहे थे लेकिन मैं सहेलियों के साथ छत पर चली गई। हम सब छत पर जाकर खेलने लगे। खेलते समय मैं पीछे की ओर चलने लगी और छत के किनारे तक पहुंच गई। छत की छोटी सी चारदीवारी से मेरा पैर टकराया और मैं असंतुलित होकर नीचे जमीन पर जा गिरी। मेरी रीढ़ की हड्डी में चोट आई और गर्दन के नीचे का पूरा शरीर संवेदनहीन हो गया।

उस समय पिताजी भी शहर में नहीं थे। अफरातफरी में सभी मुझे लेकर एक चिकित्सक के यहां पहुंचे। उन्होंने कहा कि गिरने के भय के कारण मैं सदमें में हूं, इसलिए शरीर में हरकत नहीं हो रही है, जब सुबह तक मेरी स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो अस्थिरोग विशेषज्ञ को बुलाया गया, जिन्होंने मुझे गोरखपुर ले जाने की सलाह दी। गोरखपुर के डॉक्टर ने बताया कि रीढ़ की हड्डी में चोट के कारण मेरा गरदन के नीचे का पूरा हिस्सा लकवाग्रस्त हो चुका है।

दुनिया को अपनी मुट्ठी में रखने का सपना देखने वाली चंचल लड़की अब अपनी इच्छा से अपनी मुट्ठी भी बंद नहीं कर सकती थी। बचपन से डॉक्टर बनने का सपना देखने वाली मैं अब डॉक्टरों पर निर्भर थी। ऐसे समय में पिता के सकारात्मक विचारों, उनकी आशावादी सोच ने मुझे उस परिस्थिति का सामना करने का सहस और शक्ति दी।

इस घटना को 22 वर्ष बीत चुके हैं। मैं आज व्हील चेयर पर हूं और पूरी तरह दूसरों पर आश्रित हूं। इस घटना ने मुझे बहुत बड़ी सीख दी। मैंने जाना कि जब हम अस्वस्थ होते हैं, तो इसका असर हम पर ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार पर होता है। मुझे लगता है कि मेरी एक गलती के कारण मेरे माता-पिता और परिवार के सपने अधूरे रह गए। इस अनुभव ने मुझे स्वस्थ शरीर का महत्व समझा दिया कि हमें अपने शरीर का खास खयाल रखना चाहिए।

(सौम्या श्रीवास्तव, वाराणसी)


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