कहानी: अनुत्तरित
वय: संधिकाल के उस पार भले ही चंचलता तिरोहित हो जाती हो, वाणी छिन जाती हो परंतु किशोरी के मन में कुछ प्रश्न तितलियों की तरह मंडराते रहते हैं। अपनी तिलमिलाहट के बावजूद अक्सर अनुत्तरित ही रह जाते हैं ये प्रश्न...
खूब बारिश हुई थी उस साल और गांव की इकलौती सड़क पर घुटने तक पानी जमा था। बारिश रुक चुकी थी।
वह दो किताबें और एक कॉपी, जिस पर फाउंटेन पेन खोंसा हुआ था, सीने से चिपकाए माथा नीचे किए ट्यूशन पढऩे जा रही थी। अभी आधे रास्ते ही पहुंची थी कि जावेद चचा की दुकान पर बैठे चाय का लुत्फ उठाते पवन मिश्र ने टोका 'काहे जा रही हो इतने पानी में? लड़की जात हो, आगे शादी-ब्याह ही तो करोगी। बरसाती घाव हो गया तो पांव में निशान छोड़ जाएगा। एक महीना घर बैठ जाने से परीक्षा में फेल नहीं हो जाओगी। पास तो तुम हो ही जाओगी।'
मधुरा ने कुछ भी नहीं कहा और सर हिलाकर आगे बढ़ गई। उसके साथ उसके पड़ोस का लड़का कृष्णमुरारी भी था। उससे किसी ने कुछ भी नहीं कहा। क्लासरूम में उसका मन पढ़ाई में नहीं लग रहा था। कुछ शब्द उसका पीछा कर रहे थे। ये वही शब्द थे जो रास्ते में कहे गए थे। क्या वह सिर्फ इसलिए पास होने का अरमान रखे कि वह एक लड़की है? वह अव्वल क्यों न आए?
ट्यूशन के बाद वह सीधे घर लौट आई, पर कुछ था जो उसे अच्छा नहीं लग रहा था। देर तक खिड़की पर चिंतन की मुद्रा में बैठे रहने के बाद शाम को मन ठीक करने के लिए मधुरा ने हारमोनियम निकाला। वह राग भूपाली की बंदिश गा रही थी-
'सा ध प ग रे सा...
लाज बचाओ कृष्ण मुरारी, तुम बिन और न दूजो कोई, बीच भंवर में आन फंसी अब नैया मोरी डगमग डोले, पार लगाओ शरण तिहारी' पास के कमरे से चचेरा भाई चिल्लाता हुआ आया 'कोई ढंग का गाना नहीं गा सकती! शाम के साढ़े सात बजे 'लाज बचाओ, लाज बचाओ' चिल्लाओगी तो आस-पड़ोस वाले क्या समझेंगे और लाज बचाना ही है तो घर में जवान भाईयों के रहते कृष्ण मुरारी को क्यों बुला रही हो?' अरे! यह बंदिश है और यह पड़ोस का
कृष्णमुरारी नहीं है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण को पुकारा गया है। इस बंदिश को मैंने तो नहीं लिखा, गुरु जी ने सिखाया है' मधुरा ने झल्लाते हुए कहा और गाना बंदकर हारमोनियम को यथास्थान रख आई। मधुरा के पड़ोस में एक कृष्णभक्त मारवाड़ी परिवार रहता था। उस घर के चारों बच्चों के नाम क्रमश: श्यामलता, श्यामबिहारी, कृष्णमुरारी और कृष्णकांता थे। श्यामलता लगातार तीन साल फेल हुई और अब वह भी मधुरा की कक्षा में थी। कभी कभार स्कूल तो चली जाती पर ट्यूशन पढऩे नहीं जाती थी। गांव की अन्य लड़कियों की तरह उसे बस पास ही होना था पर उसके लिए यह भी नाक से पानी पीने जैसा था। कृष्णमुरारी मधुरा के साथ ट्यूशन पढऩे जाता था। ऐसा नहीं था कि किसी ने दोनों को साथ जाने के लिए कभी कहा हो, पर कृष्णमुरारी ने हमेशा मधुरा के साथ चलना अपना कर्तव्य समझा। ऐसा भी नहीं था कि दोनों साथ ही घर से निकलते थे, कभी मधुरा को घर से निकलने में देर हो जाती, तो वह गली के मोड़ पर उसका इंतजार करता। बिना कुछ कहे साथ चलता रहता।
बाहर झींगुरों का शोर था। आधा गांव सो चुका था और बाकी के आधे गांववाले सोने की तैयारी कर रहे थे। कोई बर्तन मांज रही थी तो कोई रोटियां सेंक रही थी।
कोई लाठी लिए 'जागते रहो' पुकार रहा था तो कोई आंखें बंद किए राम-नाम की माला फेर रहा था।
अगले दो घंटे बाद घर-बाहर हर ओर सन्नाटा पसरा था सिवाय उस गांव के जो मधुरा के मानस
में बसा हुआ था। इस गांव में न तो सूरज अस्त होता था न ही चांद खिलता था। बाइस्कोप की तरह बस रील दर रील दृश्य उभरते थे। इस गांव को नींद नहीं आती थी। यह एक बेचैन गांव था जो हरदम जगा रहता था। यह गांव क्या चाहता था मधुरा से?
या मधुरा इस गांव से कुछ चाहती थी? बाइस्कोप की एक रील में उसने श्यामलता का चेहरा देखा। उसकी शक्ल दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले धारावाहिक 'उड़ान' की नायिका से हूबहू मिल रही थी। पर आईपीएस अधिकारी बनने के लिए बहुत पढऩा पड़ता है। श्यामलता क्यों सिर्फ पास होना चाहती थी? क्या उसे कभी अव्वल आने
का ख्याल आया होगा? क्या उसे फैसला सुना दिया गया था कि अंतत: उसे भी चौका-बासन ही संभालना है!
रात का चांद नरम पड़ रहा था और खिड़की से आती उसकी ज्योत्स्ना मधुरा को किसी चादर की तरह ढंक रही थी। एक प्रकार की क्लांति अब भी जाग रही थी उसके अंदर। बाइस्कोप की अगली रील में मीराबाई बनी हेमा मालिनी की तस्वीर है।
उसके हाथ में कोई वाद्ययंत्र है। मधुरा सोचने लगी कि क्या मीराबाई ने कभी राग भूपाली की उस बंदिश को गाया होगा? क्या किसी ने उसकी इस बंदिश पर पाबंदी लगाई होगी? प्रेम क्या सिर्फ मूर्तियों से की जाने वाली चीज है? क्या पड़ोस के किसी लड़के से प्रेम करना अक्षम्य अपराध है?
'जागते रहोÓ की कर्कश आवाज एकदम से मधुरा की कानों में पड़ी और वह अपने मानस में बसे उस गांव से बाहर निकल आई। लाठी की ठक-ठक की आवाज देर तक सुनाई देती है। उसके जेहन में कृष्णमुरारी आता है। वह भी चौकीदार की लाठी की तरह ही है। कुछ कहता नहीं है, पर उसकी पदचाप उसके मौन पर भारी पड़ते हुए उसके होने का आभास कराती है। क्लास में भी कम ही बोलता है। क्या कृष्णमुरारी भी एक दिन चौकीदार बनेगा? गांव का चौकीदार बनेगा या देश का?
मधुरा करवट बदलती है और नींद के आगोश में चली जाती है। अब वह सपनों की दुनिया में है। वह सपना देखती है कि वह रोटियां बेल रही है और रोटियां गोल न होकर किसी देश के नक्शे सी दिखती हैं। वह रोटी सेंकने के
लिए तवे पर चढ़ाकर सलाद काटने लगती है और रोटी जल जाती है। वह बर्तन मांजने के लिए आंगन में चापाकल के नीचे आती है और जोरों की बारिश शुरू हो जाती है। वह पूरी तरह से भींग जाती है। वह ठंड से कांपने लगती है। इसी क्रम में उसकी नींद खुल जाती है। वह सोचने लगती है क्या होगा अगर सच में ब्याह के बाद वह गोल रोटियां न बेल पाई तो? क्या वह किसी ऐसे राज्य या देश में जाकर नहीं रह सकती जहां लोग भात खाते हों? क्या पवन मिश्र के घर की स्त्रियां बारिश में भींगकर बर्तन मांजती होंगी? क्या पवन मिश्र उनसे बारिश के पानी में भींगने से मना करते होंगे? क्या उनके शरीर पर बरसाती घाव का निशान होगा?
सुबह की अजान तय करती है मधुरा के रियाज का वक्त। हारमोनियम लेकर बैठ तो गई, पर गाए क्या? उसे राग भैरवी का रियाज करके गुरु जी के पास जाना है और बंदिश है - 'मधुर बंसी नाद सुनत ब्रिज सुंदरी भई पुलकित चित आवत श्याम मूरत' यह महज संयोग ही था कि जिस संगीत विद्यालय में मधुरा शास्त्रीय संगीत सीखने जाती थी, उसी विद्यालय में कृष्णमुरारी का बड़ा भाई श्यामबिहारी बांसुरी बजाना सीख रहा था। एक
दिन पहले चचेरे भाई ने जो सुनाया, उसके बाद यह बंदिश गाना बिल्कुल भी हितकारी नहीं था।
हारमोनियम की 'सा' कुंजी पर उंगली धरे मधुरा सोच रही थी कि गुरु जी ने देवी सरस्वती को सुर की देवी तो बताया पर पिछले दो सालों में किसी भी राग की किसी भी बंदिश में 'शारदा' या 'सरस्वती' जैसा शब्द क्यों नहीं मिला? ज्यादातर बंदिशों में कृष्ण की लीला और कुछ में शिव की महिमा का ही गान क्यों है? क्या किसी रोज वह खुद अपनी बंदिशें लिख पाएगी? क्या वह पहली बंदिश में देवी सरस्वती का जिक्र करेगी? क्या किसी बंदिश में वह अपने प्रेमी का नाम लिख पाएगी? क्या वह उस बंदिश को अपने पिता या भाई के समक्ष गा सकेगी? कभी ऐसा भी हो सकता है कि उसके गाने पर ही बंदिशें लगा दी जाएं?
मधुरा ने आरोह, अवरोह और तान का रियाज किया और हारमोनियम रख आई। चाची ने धुले कपड़ों को पसारने में मदद करने के लिए मधुरा को छत पर बुलाया। अभी मधुरा ने दो-तीन कपड़े ही पसारे होंगे कि चाची बोलीं 'तुम्हारी मां किसी से बता रही थी कि तुम आगे डॉक्टर बनने की पढ़ाई करने वाली हो?Ó'इतना आसान कहां है चाची!
बहुत पढऩा होता है फिर कांप्टीशन और फिर...' मधुरा अपनी बात समाप्त भी नहीं कर पाई थी कि चाची ने कहा, 'हां, कोई जरूरत नहीं है ये सब करने की। पराया धन हो, दूसरों के घर ही तो जाना है फिर बाप का पैसा क्यों बर्बाद करना? लड़की अपने बाप के लिए नहीं सोचेगी तो कौन सोचेगा।
तुम तो बस बी.ए. करो और शादी कर लो। वैसे भी ज्यादा पढ़ाई करने से आंखों के नीचे काले दाग हो जाते हैं।' मधुरा चुपचाप कपड़े पसार रही थी और सोच रही थी कि लड़की होना ज्यादा बड़ी समस्या है या शरीर पर दाग वाली लड़की होना?
पांव में बरसाती घाव के निशान ज्यादा परेशान करता है इस समाज को या आंखों के नीचे का काला दाग? तो क्या टीवी पर वह झूठ सुनती है कि 'दाग अच्छे हैं!' मधुरा ने अपनी सवालिया तितलियों को वक्त के गांव भेज दिया है। सुना है समय डाकिया जवाब दे जाता है। क्या मधुरा के पास इतना वक्त होगा?
क्या समय की चि_ियां सही पते पर पहुंचेंगी?
(प्रतिभाशाली कवयित्री की यह दूसरी ही कहानी है।)
डी-1/201स्टेलर सिग्मा अपार्टमेंट्स, 74 सिग्मा-4,
ग्रेटर नोएडा-201310
सुलोचना वर्मा
यह भी पढ़ें: लघुकथा: पत्थर बने हीरेलघुकथा: संघर्ष के बीज