लघुकथा: शैतान का दाहिना हाथ
शैतान ने अपने सभी गुलामों को एक पंक्ति में खड़ा किया जिसमें से बुराई, झूठ, लोभ, अहंकार और ईष्र्या भी शामिल थे तो शैतान के भक्त उन्हें खरीदने आये
जब शैतान का मन खुद से ऊब गया तो उसने सन्यास लेने का सोचा और उसने अपने सभी गुलामों को बेचने का सोचा। शैतान ने अपने सभी गुलामों को एक पंक्ति में खड़ा किया जिसमें से बुराई, झूठ, लोभ, अहंकार और ईष्र्या भी शामिल थे तो शैतान के भक्त उन्हें खरीदने आये और सभी को पहचान कर एक-एक कर खरीदते गये तो अंत में एक गुलाम रह गया जिसका मूल्य सबसे अधिक था और वो दिखने में भी बहुत अधिक कुरूप था और कोई भी उसे पहचान नहीं पा रहा था तो अंत में किसी ने साहस कर शैतान से पूछा कि आखिर ये कौन है जो इतना कुरूप है और इसके बाद भी इसका मूल्य सबसे अधिक है। शैतान ने कहा यह मेरा सबसे प्रिय और सबसे वफादार गुलाम है और बहुत थोड़े लोग ही जानते है कि ये मेरा दाहिना हाथ है। इसी के सहारे में बड़ी आसानी से लोगों को अपने शिकंजे में कस लेता हूँ। इस पर उस आदमी ने जो उसे खरीदने आया था कि नहीं मैंने तो अभी भी इसे नहीं पहचाना । इस पर शैतान जोर-जोर से हंसने लगा और बोला कि ये है 'फूट' जिसे में लोगों में डालता हूँ और लोगों को बुराई की तरफ धकेलता हूं जिसके सहारे में लोगो को एक दूसरे के खून क्या प्यासा बना देता हूँ।
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