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व्यंग्य: रमकल्लो की पाती

चुनाव आ गए हैं, जो कुछ मिल जाए वही बहुत है। आंधी के आम हैं, जितने बटोर पाओ सो बटोर लो, नहीं तो पांच साल के लिए गए।

By Babita KashyapEdited By: Published: Tue, 14 Feb 2017 12:27 PM (IST)Updated: Tue, 14 Feb 2017 12:38 PM (IST)
व्यंग्य: रमकल्लो की पाती
व्यंग्य: रमकल्लो की पाती

प्राननाथ चरन स्पर्श,

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तुम्हें गए छै महीना से ज्यादा हो गए। ऐसा लगता है कब तुम्हाए दर्शन कर लूं। तुम्हारी याद में जी तलफत। फुरसत मिले तो एकाध दिन के लिए घर चले आना। फिर चाहे तुरंत लौट जइयो। दो महीना बड़ी आफत में जान रही, काए से कि सरकार ने पांच सौ और हजार के लोट चलन से बाहर कर दिए थे। यहां की बैंकों में तो बड़ी भीड़ रही, वहां का हाल कैसा रहा? मै तीन-चार दिन कतार में खड़ी रही। लैन में लगे-लगे पांवन की दशा हो गई। तुम हजार रुपए के दो लोट धर गए थे, वे मैंने बदलवा लिए। बदलवाती न तो तुम्हीं बताव, बेकार न हो जाते। काम-धाम न लग रहा हो तो यहां चले आओ।

चुनाव आ गए हैं, जो कुछ मिल जाए वही बहुत है। आंधी के आम हैं, जितने बटोर पाओ सो बटोर लो, नहीं तो पांच साल के लिए गए। पिछले चुनाव में कम पइसा मिले थे, इस बार मूर्ख नहीं बनना है। तुम आ जाओ, बइयर-जनी को लोग बुद्धू बना देते हैं। पइसा सबके लेने हैं, चाहे जिस पाल्टी के हों। पैसा न लेकर काहे किसी के बुरे हों।

पैसे नहीं लेते हैं तो वे सोचते हैं कि हम उनको वोट नहीं देंगे। ऐसा कैसा है कि सबके ले लो, हमारे लिए सब बरोबर हैं। जो हमारे दरवाजे आ गए, सिर माथे पर। हम दबहाव काऊ को नई मानत, चाहे जितना बड़ा लकचंद्र हो। वोट तो हम अपनी मर्जी से देंगे।

तुम्हारी एक बहुत बड़ी कमी है, तुम भावनाओं में जल्दी बह जाते हो। उन्होंने लोट हाथ पर धरे सो तुम उनके एहसान तले दब जाते हो। वे अपने पुरखा का थोड़े दे रहे हैं, करोड़ों के बारे-न्यारे करके आए हैं। देखना जीतने के बाद उनके दर्शन दुर्लभ हो जाएंगे। जो गठिया-बछिया मिले उसे चांप लो, फिर न जाने कब राम जनकपुर आएंगे। उनकी महानता के नीचे ज्यादा न दबा करो।

भैंस खरीदने के लिए फार्म भर दिया है। परधान जी बता गए थे कि सरकार किसानों को ऋण दे रही है। बैंक मनीजर ने मेरी फोटो ले ली है और फार्म में पांच-छै जगह दस्तखत करा लिए। सुना है, संग वाले दो-चार लोगों को ऋण मिल गया है, मुझे नहीं मिला मनीजर रुपए मांग रहा था, मैं कहां से देती? न पैसे दिए और न ऋण मिला। बीच में यह नोटबंदी पबर आई। अब तो दो-चार महीना बाद की आशा करो। तुम आ जाओ सो मनीजर को निपटा-सुरझा देव। बिना देय-लेय काम न होगा। बताव, मिलना होता तो मिल न जाता। छै महीने से बैंक में फार्म पड़ा है। मनीजर के पांव छू लइयो, शायद कछु कम कर दे। सब कहूं भ्रष्टाचार है। समासई के मरे पर कहां तक रोओगे। सरकार कहत भ्रष्टाचार खत्म कर देंगे।

कैसे खत्म हो जाएगा? अभी कल हरबी की मौड़ी और कलुआ का लड़का की कछू उल्टी-सीधी बातें हो गई थीं। हरबी ने कलुआ के लड़का को दो तमाचा मार दिए थे। कलुआ ने रिपोर्ट कर दी। पुलिस दोनों पक्षों को थाने ले गई। लड़की ने थानेदार से साफ कह दिया था कि लड़के ने मुझसे कुछ नहीं कहा लेकिन पुलिस मानी का। जब थाने आ गए तो सूखे कैसे बच जाएंगे। थानेदार ने रुपए दोनों पक्षों से ऐंठ लिए। नहीं दे रहे थे तो न जाने कौन सा केस लगा देते। प्राननाथ चि_ी पाते ही घर चले आना। हां, एक बात तो भूल ही गई, अबकी बार मोबाइल खरीद लइयो। ये चिठिया-पतिया लिखने का झंझट खत्म हो जाएगा। शेष आपके आने पर

तुम्हारे चरनन की दासी

रमकल्लो

कृष्णाधाम से आगे, अजनारी रोड,

नया रामनगर, उरई-285001

लखन लाल पाल

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