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इंसानियत की रस्सी

अनजान जगह में फंसे व्यक्ति की जब ट्रक ड्राइवर ने सहायता की, तो उसको समझ में आया कि इंसानियत से बड़ी नहीं कोई दूसरी चीज...

By Pratibha Kumari Edited By: Published: Sun, 19 Feb 2017 02:12 PM (IST)Updated: Sun, 19 Feb 2017 02:20 PM (IST)
इंसानियत की रस्सी
इंसानियत की रस्सी

एक घटना भी बदल सकती है जिंदगी। मेरी कहानी मेरा जागरण के तहत भारी संख्या में मिली पाठकों की कहानियां उनके सच्चे अनुभव बयान करती हैं। इस सप्ताह संपादक मंडल द्वारा चुनी गई दो श्रेष्ठ कहानियां...

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यह घटना आज से लगभग 10 वर्ष पूर्व की है। मैं अपने एक वकील दोस्त के साथ कार से एक शादी समारोह में शामिल होने के लिए फर्रुखाबाद से आगरा गया था। साथ में उनकी वृद्ध माता और दो छोटे बच्चे भी थे। शादी में शामिल होने के बाद अगली शाम हम लोग वापसी की तैयारी करने लगे। मुझे लगा कि सर्दी का सीजन है और रात में यात्रा करना ठीक नहीं है। मैंने वकील साहब से कहा कि रात में यहीं रुक जाते हैं। कल सुबह जल्दी वापसी करेंगे लेकिन उनकी मां और बच्चे राजी नहीं हुए। गाड़ी वकील साहब चला रहे थे। जब हम लोग शिकोहाबाद-मैनपुरी के बीच सुनसान सड़क पर थे, तभी कुछ लोग कटी हुई झाड़ियों को खींचते हुए रोड की तरफ ला रहे थे। उन लोगों ने पुलिस की तरह कोट पहन रखे थे।

वकील साहब ने गाड़ी रोकनी चाही पर मैंने उन्हें सख्ती से गाड़ी की रफ्तार बढ़ाने को कहा। वे बोले कि यह तो पुलिसवाले हैं। मैंने कहा पुलिस नहीं ये लुटेरे हैं। उन्होंने गाड़ी भगाकर झाड़ियां पार कर लीं। जब हम मैनपुरी के निकट पहुंचे तो उनसे कहा कि आपके करीबी रिश्तेदार यहां रहते हैं। चलो रात वहीं गुजारी जाए लेकिन इस पर भी उनकी माता जी सहमत नहीं हुईं। हम लोग मैनपुरी पार ही कर पाए थे कि रेलवे क्रॉसिंग के पास गाड़ी की लाइट बंद हो गई। वकील साहब के प्रयास से लाइटें सही हुईं तो इंजन जोर की आवाज करने लगा। अब कार 5-6 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चल रही थी। धीरे-धीरे हम लोग भोगांव पहुंच गए। वहां वकील साहब ने बोनट खोलकर कुछ किया तो गाड़ी रफ्तार पकड़ने लगी। अभी हम लोग भोगांव से तीन-चार किलोमीटर आगे चले होंगे कि गाड़ी एकदम बंद हो गई।

रात के करीब 11 बज रहे थे। हम लोग लाचार खड़े थे। कुछ देर बाद भोगांव की तरफ एक ट्रक आता दिखाई पड़ा। पास आकर ट्रक वाले ने ट्रक रोक दिया। मैंने उससे कहा कि भाईसाहब मदद करिए, मैं गलत जगह फंस गया हूं। वह ट्रक चालक बोला कि हां आप गलत जगह पर फंसे हैं। यहां आपको कब लूट लिया जाए कुछ पता नहीं। फिर वह बोला कि मैं आगरा से सामान लादकर चला था। आप लोग दिख गए तो ट्रक रोक दिया। इसके बाद वह कहने लगा कि मेरी गाड़ी ओवरलोड है। भला ऐसे में मैं आपकी क्या मदद करूं?

मैंने आग्रह किया कि जब गाड़ी रोक ही दी है तो मदद भी करिए। वह बोला कि आपके पास कोई रस्सी या चेन है तो मैंने न में सिर हिला दिया। उसने क्लीनर से ट्रक में बंधी रस्सी खुलवाई और हमारी कार ट्रक में बांधते हुए बोला कि अगर कोई परेशानी आए तो डिपर का इशारा करना। ट्रक चल पड़ा। मेरी हालत खराब थी। मैं मन ही मन मां दुर्गा का स्मरण कर रहा था। कुछ दूर चलते ही चट की आवाज आई। मैंने वकील साहब से कहा कि रस्सी टूट गई है, जल्दी से डिपर दो। वकील साहब ने डिपर दिया तो ड्राइवर ने ट्रक रोक दिया। ड्राइवर ट्रक रोककर नीचे आया और बोला क्या हुआ? मैंने कहा कि रस्सी टूट गई है। उसने देखकर कहा कि सिर्फ एक लड़ टूटी है, अभी तीन ठीक हैं। अब हम धीरे-धीरे चलेंगे। किसी तरह हम लोग बेबर आ गए।

ड्राइवर ने ट्रक पेट्रोल पंप के पास आकर रोक दिया और बोला कि अब आप लोग सुरक्षित स्थान पर आ गए हैं। गाड़ी यहां छोड़कर निकल जाओ। मैंने धन्यवाद करते हुए कहा कि भाईसाहब आपको कितने पैसे दे दूं? वह बोला, कुछ नहीं। मैंने कहा कि आपकी रस्सी टूट गई है। उसने जवाब दिया, कोई बात नहीं। मैंने कहा कि चाय ही पी लीजिए या खाना खा लीजिए तो उसने जवाब दिया कि कभी आपके घर आकर खाऊंगा। मैंने कहा, अच्छा अपना नाम तो बता दीजिए। वह बोला, मेरा नाम सलीम खान और क्लीनर का नाम असलम है। हम लोग भोगांव के रहने वाले हैं। इसके बाद दोनों ट्रक लेकर तेजी से आगे बढ़ गए। उनका परिचय सुनकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई, क्योंकि वे जिस संप्रदाय से थे, उसके बारे में मेरी सोच थोड़ी छोटी थी। वे दोबारा हमें नहीं मिले लेकिन मदद करने के साथ ही यह नसीहत जरूर दे गए कि इंसानियत का कोई धर्म नहीं होता है। आज मैं जब भी किसी को परेशानी में फंसा देखता हूं तो आगे बढ़कर मदद करता हूं।

देवेंद्र कुमार मिश्रा, फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश)


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