Move to Jagran APP

लेखनकक्ष से: औरत अकेली नहीं

जब समाज की विषम परिस्थितियां अंतर्मन को झकझोरती हैं, तो वे बन जाती हैं ओड़िया कथाकार डॉ. प्रतिभा राय के उपन्यास की नई कड़ी। उनसे बातचीत के अंश-

By Pratibha Kumari Edited By: Published: Sun, 05 Mar 2017 03:58 PM (IST)Updated: Wed, 08 Mar 2017 02:52 PM (IST)
लेखनकक्ष से: औरत अकेली नहीं
लेखनकक्ष से: औरत अकेली नहीं

आपके ‘याज्ञसेनी’ का ‘द्रौपदी’ और ‘तथाशिलापदम’ का ‘कोणार्क’ नाम से हिंदी अनुवाद हुआ है। क्षेत्रीय साहित्य का अनुवाद कितना जरूरी है?
अनुवाद बेहद जरूरी है। मेरी कहानियों में भले ही ओड़िया समाज परिलक्षित होता हो लेकिन मैं सिर्फ ओड़िया लोगों के लिए ही नहीं लिखती। लेखन तो समाज को जोड़ने का काम करता है। भारत की विभिन्न भाषाओं के साहित्य को एक-दूसरे के पाठकों से परिचित कराना बहुत जरूरी है। इसके लिए अनुवाद के क्षेत्र में व्यापक स्तर पर काम होना चाहिए। भारतीय भाषाओं के साहित्य के अनुवाद के लिए सरकारी संस्थाएं ही हैं, जबकि निजी संस्थाओं को भी इस ओर काम करना चाहिए।

loksabha election banner

इन दिनों आप क्या पढ़ रही हैं और किस विषय पर काम कर रही हैं?
इन दिनों आतंकवाद के कारण होने वाली क्षति और आतंकवाद के विरोध में एक उपन्यास लिख रही हूं। इसके अलावा गेब्रिएल गार्सिया मार्खेज की एक किताब पढ़ रही हूं। एक बात मैं कहना चाहूंगी कि विदेशी और भारतीय भाषाओं के बीच सिर्फ भाषा और स्थान का अंतर होता है। दोनों जगहों के साहित्य के अंतर्मन की आवाज एक ही होती है।

हिंदी से कितना अलग पाती हैं ओड़िया लेखन को?
मैं एक भारतीय लेखक हूं। ओड़िया भले ही एक अंचल की भाषा है लेकिन यदि आंचलिक भाषा में साहित्य लिखा जाता है, तो वह सार्वजनिक हो जाता है। अनुवाद के माध्यम से वह सभी के लिए उपलब्ध हो जाता है।

आपके दो कविता संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं। कविता के बारे में आपकी क्या राय है?
एक छोटे से आइडिया को जब विस्तार दिया जाता है, तो वह कविता बन जाती है। पहले मैं कविता ही लिखती थी। कविता तो दिल से निकलती है, जो आपकी नाजुक भावनाओं को अभिव्यक्त करती है। अब मैं नियमित तौर पर कविता नहीं लिख पाती। जब दिल में भावनाएं उफान पर होती हैं, तो कविता लिख लेती हूं।

आपकी कहानियों में स्त्री अक्सर केंद्र में होती है?
मैं समसामयिक विषयों पर ही अधिक लिखती हूं। विश्व की परिस्थितियों या समाज की घटनाओं जैसे स्त्रियों पर जो अत्याचार हो रहे हैं, गरीबी आदि पर ही लिखती रहती हूं। कब कौन सा विषय लिखने के लिए प्रेरित करेगा, यह कहना मुश्किल है। मेरी कहानियों में स्त्री अकेली नही, उसके साथ-साथ पुरुष पात्रों को भी प्रधानता दी जाती है।

‘याज्ञसेनी’, जो हिंदी में ‘द्रौपदी’ नाम से अनूदित हुई, इसके माध्यम से आपने क्या संदेश दिया?
द्रौपदी की कहानी पौराणिक काल की है लेकिन उसके पात्र आज के युग के हैं। नारी के लिए उस युग में भी दोहरी व्यवस्था थी और आज भी है। उपन्यास में द्रौपदी भगवान श्रीकृष्ण से अपील करती है कि वे इस तरह बांसुरी बजाएं कि शक्तिशाली लोग युद्ध और हिंसा की बजाय विश्व शांति के लिए उपाय करें।

क्या उड़ीसा की बोंडा पहाड़ियों के बीच रहने वाली बोंडा जनजाति पर उपन्यास लिखने से पहले उनके साथ रहने का अनुभव भी प्राप्त किया?
मैंने बोंडा जनजाति पर आधारित उपन्यास ‘अधिभूमि’ लिखा है। लोग कहते थे कि बोंडा खतरनाक होते हैं। उनके बीच रहना असंभव है, पर मुझे कभी ऐसा नहीं लगा। उन पर लिखने से पहले मैं लगातार तो नहीं, पर 8-9 साल
तक बीच-बीच में जाकर उनके साथ काम करती थी। मैंने पाया कि उनके साथ जो लोग प्यार से मिलते हैं, वे उन्हें प्यार देते हैं। यदि घृणा के साथ मिलता है, तो वे उसे मार भी देते हैं। 1999 के महाचक्रवात के अनुभवों पर आधारित है मेरा उपन्यास ‘मगनमति’।

युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगी?
साहित्य लेखन किसी में जबरन पैदा नहीं किया जा सकता है। जन्मजात प्रतिभा और साधना के बल पर ही कोई अच्छा लेखक बन सकता है लेकिन साहित्य पढ़ने-लिखने की आदत बचपन से ही डालनी चाहिए। मैंने छोटी उम्र से ही कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं और यह तय कर लिया था कि आगे लेखक ही बनना है। किसी भी समस्या पर बहस करने की बजाय समाज को उसका समाधान निकालना चाहिए।

स्मिता

इतिहास खुद को दोहरा रहा है लेकिन इस बार साहित्य के रूप में


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.