कविता: मौन-लीला
मौन की प्रासंगिकता रत्ती भर न हुई कम....
By Babita KashyapEdited By: Published: Mon, 27 Mar 2017 03:11 PM (IST)Updated: Mon, 27 Mar 2017 03:16 PM (IST)
यह सच है
लिपि और भाषा का विकास हुए
हो गई हैं सदियां
फिर भी,
मौन
की प्रासंगिकता
रत्ती भर
न हुई कम,
मौन का साम्राज्य
बढ़ता ही जा रहा रोज
लेकर अपने लाव-लश्कर,
मौन तब भी था
मौन अब भी है
कल भी रहेगा यह
तुम्हारे संवाद में भी
लहराता है अपनी ‘विजय-पताका’
तुम पर अट्टहास करते हुए निरंतर
मौन क्या नहीं है ?
स्त्रियोचित लज्जा सुलभ मौन
सहमति है,
तनी हुई भृकुटि में मौन
नफरत, क्रोध, ईष्र्या है,
दो निकटस्थ के बीच का
परस्पर मौन
रिश्तों में दरार है
बचकर रहिए
इस मौन से
आपके घर भी पसारने पांव
यह हमेशा तैयार है।
(तेजी से उभरते युवा कवि की कविताएं
अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित)
द्वारा श्री विनोद कुमार, सरदार पटेल नगर,
गोड्डा-814133 (झारखंड)
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