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कुछ लोग सिर्फ अपना भला ही देखते हैं

कुछ लोग सिर्फ अपना भला ही देखते हैं, कुछ दूसरों का भला तो देखते हैं, पर करते कुछ नहीं है, पर जो दूसरा का भला चाहकर उसके लिए प्रयास भी करते हैं, वही श्रेष्ठ हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 01 Jun 2016 03:30 PM (IST)Updated: Wed, 01 Jun 2016 03:44 PM (IST)
कुछ लोग सिर्फ अपना भला ही देखते हैं

कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर की यह लघु-कथा अत्यंत प्रेरक है। एक हवेली के तीन हिस्सों में तीन परिवार रहते थे।

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एक तरफ कुंदनलाल, बीच में रहमानी, दूसरी तरफ जसवंत सिंह। उस दिन रात में कोई बारह बजे रहमानी के बेटे पप्पू के पेट में दर्द हुआ कि वह दोहरा हो गया और जोर-जोर से रोने लगा। मां ने बहलाया, बाप ने कंधों पर लिया,

आपा ने सहलाया, पर वह चुप न हुआ। उसके रोने से कुंदनलाल की नींद खुल गई। करवट बदलते हुए उसने सोचा,

‘कमबख्त ने नींद ही खराब कर दी।

अरे, तकलीफ है तो उसे सहो, दूसरों को तो तकलीफ में मत डालो। और कुंदनलाल फिर खर्राटे भरने लगा। नींद

जसवंत सिंह की भी उचट गई। उसने करवट बदलते हुए सोचा- ‘बच्चा कष्ट में है। हे भगवान, तू उसकी आंखों में

मीठी नींद दे कि मैं भी सो सकूं।‘ हवेली के सामने बुढ़िया राम दुलारी अपनी कोठरी में रहती थी। उसकी भी नींद उखड़ गई। उसने लाठी उठाई और खिड़की के नीचे आवाज देकर कहा, ‘ओ बहू! ले, यह हींग ले और इसे जरा से पानी में घोलकर मुन्ने की टूंडी पर लेप कर दे। बच्चा है। कच्चा-पक्का हो ही जाता है, फिकर की कोई बात नहीं, अभी सो जाएगा।‘

बुढ़िया संतुष्ट थी, कुंदनलाल बुरे सपने देख रहा था। जसवंत सिंह थका- थका-सा था ओर रहमानी मुन्ने की टूंडी

पर हींग का लेप कर रहा था।

कथा मर्म: कुछ लोग सिर्फ अपना भला ही देखते हैं, कुछ दूसरों का भला तो देखते हैं, पर करते कुछ नहीं है, पर तीसरे प्रकार के लोग जो दूसरा का भला चाहकर उसके लिए प्रयास भी करते हैं, वही श्रेष्ठ हैं।


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