मेरा कभी न ठंडा होने वाला सरप्राइज
दोनों ठहाका मारकर हंस पड़े। आज जीवन की संध्या भी मुस्कुरा उठी थी।
सात-आठ वर्षों से वृद्धाश्रम में साथ रहते हुए मनोहर और अर्चना बहुत करीब आ गए थे। दोनों अपने अपने जीवनसाथी को खोकर, संतानों द्वारा उपेक्षित हो इस आश्रम में आए थे। मनोहर के मिलनसार स्वभाव ने जल्द ही अर्चना को भी दर्द से बाहर निकाल लिया। फुर्सत के क्षण दोनों साथ बिताते... अर्चना मनोहर की चाय की तलब शांत करती और मनोहर हर प्याले के साथ अर्चना की नई कविता सुनते सराहते और उनमें सुधार करवाते। कुल मिलाकर जीवन फिर से अपनी चाल पर चलने लग गया था।
ऐसी ही एक शाम अर्चना मनोहर को तलाशती फिर रही थी कि एक पुस्तक में डूबे मनोहर मिल गए। ‘अरे मनोहर जी! आप यहां बैठे हैं और मैं आपको पूरे आश्रम में खोज आई.. ये तो वादाखिलाफी हुई भई! पांच बज गया मेरी चाय तैयार है और आप गायब। चाय के साथ गर्मागरम सरप्राइज भी था जो अब तक ठंडा भी हो गया होगा।’ अर्चना ने शिकायती लहजे में कहा। ‘अरे आपका सरप्राइज ठंडा हो गया होगा ये देखिए मेरा कभी न ठंडा होने वाला सरप्राइज !’ मनोहर ने अपने हाथ में पकड़ी हुई पुस्तक अर्चना को दिखाई। ‘ये क्या है?’ अर्चना ने अचंभित होते हुए कहा... ‘ये उन मोतियों की माला है अर्चना जी जो आप शाम की चाय के साथ मुझ पर लुटाती थीं। आज प्रकाशक ने ये आपकी कविताओं का संग्रह मुझे दिखाने को भेजा है।’ मनोहर ने प्रसन्नता से कहा। ‘बस अब आपसे ये तय करना है कि रॉयल्टी में मेरा हिस्सा कितना है?’ दोनों ठहाका मारकर हंस पड़े। आज जीवन की संध्या भी मुस्कुरा उठी थी।