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गरीब नहीं हिंदी के लेखक: स्वयं प्रकाश

प्रेमचंद की परंपरा के प्रमुख कथाकार माने जाते हैं स्वयं प्रकाश। वे अपनी कहानियों में यथार्थ को संजोते हुए जीवन की वास्तविकता का चित्रण करते हैं।

By Babita KashyapEdited By: Published: Mon, 20 Mar 2017 03:02 PM (IST)Updated: Mon, 20 Mar 2017 03:09 PM (IST)
गरीब नहीं हिंदी के लेखक: स्वयं प्रकाश
गरीब नहीं हिंदी के लेखक: स्वयं प्रकाश

इन दिनों क्या लिख रहे हैं?

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आजकल मैं सिर्फ बच्चों के लिए लिख रहा हूं। मुझे लगता है कि बड़े बहुत ज्यादा समझदार हो गए हैं। उन्हें बताने के लिए अब मेरे पास कुछ भी नहीं है। इन दिनों बाल साहित्य में खूब सुधार और नवाचार हुआ है। इस क्षेत्र में कई संस्थाएं भी काम करने लगी हैं। पैसा भी आने लगा है। नए लेखकों को इस ओर जरूर

ध्यान देना चाहिए। 

क्या इंटरनेट के जाल से निकलकर बच्चे बाल साहित्य पढ़ रहे हैं?

भोपाल से एक पत्रिका निकलती है चकमक। इसके सभी लेखक, जो विशेष नामों से लिखते हैं, बच्चों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं। एक का नाम है प्यारे भाई रामसहाय। दूसरे का नाम है ‘हां जी-ना जी’। ये दोनों पात्र महाराष्ट्र से बंगाल

तक, असम से केरल तक खूब लोकप्रिय हैं। इनके लिए जगह-जगह से बच्चों के फोन आते हैं। यह देखकर मुझे बहुत खुशी होती है कि बाल साहित्य पुराने रंग में लौट रहा है।

कहानियां, कविता या व्यंग्य-इन तीनों में क्या लिखना आसान है?

यह तो व्यक्ति के स्वभाव पर निर्भर करता है कि उसे क्या लिखना पसंद है। कहानियां या व्यंग्य लिखे जाते

हैं, जबकि कविता लिखी नहीं जाती है। यह स्वत: स्फूर्त मनोमस्तिष्क में उतरती है।

अपने समकालीनों में किस लेखक या कवि को पसंद करते हैं? इन दिनों आप क्या पढ़ रहे हैं?

मेरे प्रिय कवि हैं राजेश जोशी। वे गोलमोल नहीं, सीधी बातें करते हैं। हमेशा ठोस बातें कहते हैं। इन दिनों मैं

प्रियदर्शन के उपन्यास ‘जिंदगी लाइव’ को पढ़ रहा हूं। मुंबई में जो आतंकवादी हमला हुआ, उस पर उन्होंने थ्रिलर लिखा है। हिंदी में थ्रिलर अभी लिखा जाना शुरू हुआ है। उनमें से एक है यह। हाल में मैंने भालचंद नेमाड़े की किताब ‘हिंदू’, अभय कुमार दूबे की किताब ‘हिंदी में हम’ पढ़ी है। वैसे मेरी प्रिय किताब ‘महाभारत’ है, जिसे मैं बार-बार पढ़ता हूं।

अब कालजयी कृतियां क्यों नहीं रची जा रही हैं?

कालजयी कृतियों के बारे में निर्णय समय लेता है। आप और हम निश्चय नहीं कर सकते हैं कि कौन सी रचना कालजयी होगी। यह तो पचास साल बाद पता चलेगा।

हिंदी लेखन से खाना-कमाना मुश्किल है?

हिंदी के लेखक अब गरीब नहीं रहे। उन्हें ढेर सारी रॉयल्टी मिल रही है। लगभग हर लेखक के पास अपनी गाड़ी, मकान और बैंक-बैलेंस है। हिंदी की किताबों से प्रकाशक इतनी कमाई कर रहे हैं कि वे परिवार के साथ विदेश में छुट्टियां मना रहे हैं। पिछले 25 सालों के अंदर भारतीय मध्यवर्ग के पास अचानक बहुत पैसा आ गया है। इससे उनकी क्रय शक्ति भी बढ़ गई है और लोगों ने किताबें खरीदना भी शुरू कर दिया है। पुराने जमाने में 20 रुपए की किताब भी महंगी मानी जाती थी। आज 300 रुपए की किताब को महंगा नहीं माना जा रहा। दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में हिंदी किताबों की जबर्दस्त बिक्री हुई। हमें इस बात को हजम करना सीख लेना चाहिए कि हिंदी की किताबें खूब बिक रही हैं।

आपने बड़ों के लिए लिखना क्यों छोड़ दिया?

मैं मंच से हटकर दर्शकदीर्घा में आ गया हूं। निश्चित समय बाद व्यक्ति को मंच से हट जाना चाहिए, नहीं

तो हूटिंग शुरू हो जाती है। हमने बड़े-बड़े लेखकों की हूटिंग देखी है।

 सोशल मीडिया का नकारात्मक पहलू बताएं?

सोशल मीडिया ने सारी दुनिया को जोड़ दिया है। दुनिया के किसी भी कोने में कोई समस्या आती है, तो

उसके प्रतिरोध के स्वर सभी जगह से सुनाई देने लगते हैं लेकिन यह क्षणभंगुर है। इसमें स्थायित्व नहीं है। एक

साल बाद किसी को पहले की घटना के बारे में कुछ भी याद नहीं रहता है।

युवा लेखकों को आप क्या कहना चाहेंगे?

बाजार के दबाव में वे बिल्कुल न आएं। उन्हें जो अच्छा लगे, वही लिखें।

स्मिता 


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