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कहानी: एक लोटा पानी

मेरी कहानी मेरा जागरण के तहत भारी संख्या में मिली पाठकों की कहानियां उनके सच्चे अनुभव बयान करती हैं। इस सप्ताह संपादक मंडल द्वारा चुनी गई श्रेष्ठ कहानियों में एक...

By Pratibha Kumari Edited By: Published: Sun, 02 Apr 2017 12:40 PM (IST)Updated: Sun, 02 Apr 2017 01:01 PM (IST)
कहानी: एक लोटा पानी
कहानी: एक लोटा पानी

मुझे नहाने के बहाने पानी बर्बाद करने, नल खुला छोड़ देने या पानी पीने के नाम पर थोड़ी-थोड़ी देर में पानी फेंकने की बुरी आदत थी। समझ बढ़ रही थी लेकिन मेरी इस आदत में कोई सुधार नहीं हो रहा था, जबकि इस बुरी आदत के कारण कई बार पिताजी से मार खाई थी। मां भी इस हरकत से इतनी तंग थीं कि हर रोज पानी बचाने की नसीहत देती थीं। मां की बातों का भी मुझ पर कोई असर नहीं पड़ता था। मैं तो पानी बर्बाद करने में ही खुश होता था। कक्षा 9 में पढ़ने के दौरान मेरी परीक्षाएं बोर्ड परीक्षाओं के बाद हुईं। इसके बाद विद्यालय बंद हो गए। मैंने छुट्टियों में नानी के घर जाने की बात कही। पिताजी मेरी बात मान गए। अंत में वह दिन आ गया जब मैं पिताजी के साथ मोटर साइकिल से नानी के घर जाने के लिए निकला।

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गर्मी की तपती दोपहरी थी और हम लोग आधा सफर पार कर चुके थे कि अचानक मोटर साइकिल लड़खड़ाई। देखा तो पता चला कि अगला टायर पंचर हो गया था। यह घटना ऐसी जगह हुई थी, जहां एक भी दुकान नहीं थी।अब पैदल चलने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था। गर्म हवाओं भरी तेज धूप में लगभग दो किमी पैदल चलने के बाद मेरा शरीर पसीने से भींग गया। प्यास के मारे गला सूख रहा था। चारों तरफ सिर्फ जंगल ही जंगल था। न कोई नल और न ही कोई मकान। मैंने पिताजी से कहा कि अब मुझसे चला नहीं जा रहा है तो उन्होंने हिम्मत बंधाते हुए कहा कि बस थोड़ी दूर की बात है। फिर पानी मिल जाएगा। बड़ी हिम्मत से मैं कुछ दूर चल पाया और लड़खड़ाकर बैठ गया।

पिताजी समझ गए कि अब अगर इसे पानी नहीं मिला तो यह बेहोश हो जाएगा। उन्होंने एक बार फिर मेरी हिम्मत बढ़ाई लेकिन मैं तो जैसे बेजान हो चुका था। तभी पिताजी को दूर खेतों में एक झोपड़ी दिखाई पड़ी।उन्होंने
मुझे सड़क पर ही लिटा दिया और झोपड़ी की तरफ पानी लेने के लिए दौड़े। झोपड़ी के करीब एक नल था। हिम्मत करके मैं भी पिताजी के पीछे-पीछे झोपड़ी की ओर गया। नल के पास पहुंचा तो पिताजी ने नल चलाया लेकिन दुर्भाग्य की बात थी कि नल खराब निकला। अब मैं फूट-फूटकर रोने लगा। पानी की क्या कीमत होती है, इसका सबक मुझे मिल चुका था। अब तो प्राण निकलने ही वाले थे कि एक बूढ़ा झोपड़ी से बाहर आया और मुझे नल के पास प्यास से तड़पता देखकर वह सब कुछ समझ गया।

वह झोपड़ी के अंदर गया और एक लोटा पानी लेकर आया। मैंने पानी पीकर अपनी प्यास बुझाई। अब मेरी आंखों में चमक लौटने लगी। मुझे पानी का मोल समझ आ गया था। इस घटना के बाद मैंने प्रतिज्ञा ली की पानी की एक बूंद भी बेकार नहीं करूंगा और न ही करने दूंगा। अब मैं जहां भी पानी बर्बाद होते देखता हूं तो उस घर के सदस्यों को पानी की जरूरतों के बारे में बताता हूं। मैंने दोस्तों का एक ग्रुप बना रखा है, जो लोगों को पानी की कीमत के बारे में जागरूक करता है। पानी बचाना मेरे जीवन का उद्देश्य बन चुका है। मैं पाठकों से कहना चाहता हूं कि वे पानी की कीमत समझें और लोगों को जल संरक्षण के लिए जागरूक भी करें।

अरविंद कुमार यादव, गोरखपुर (उ.प्र.)

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