हीरा और कोयला सच में दोनों एक चीज हैं
पोता दरवाजे पर खिलौनों के साथ खेलता रहता पास बैठी हुई दादी उसे देखकर खुश होती रहती, परंतु जब मुनिया उसके पास आ जाती, दादी नाक-भौं चढ़ा लेतीं
पोता दरवाजे पर अपने खिलौनों के साथ खेलता रहता और पास बैठी हुई दादी उसे देख-देखकर खुश होती रहती, परंतु जब कभी पड़ोस के परिवार की मुनिया उसके पास आ जाती, दादी नाक-भौं चढ़ा लेतीं। कहतीं, ‘‘जा तू उधर खेल, मेरे हीरे को परेशान मत कर।’’ मुनिया की मां जब यह सुनती तो बोल पड़ती, ‘‘ऐसा क्यों कहती हैं आप! मेरी
मुनिया क्या आपके लाड़ले से कुछ कम है?’’
दादी जवाब देतीं, ‘‘तेरी मुनिया तो कोयला है, मेरे हीरा से इसकी क्या तुलना।’’ मुनिया की मां पढ़ी-लिखी है। वह समझाती, ‘‘दादी, हीरा कोयला एक ही चीज है, उनमें कोई अंतर नहीं। न हो तो बगल वाले मास्टर जी से पूछ लो।’’ दादी अब बूढ़ी हो चली हैं। उनका हीरा किसी दफ्तर का बाबू बन गया है और मुनिया पढ़- लिखकर सरकारी अस्पताल की डॉक्टर। दादी की समझ में यह बात आ गई है कि हीरा और कोयला सच में दोनों एक चीज हैं। जिसे तराश दो, उसी में चमक आ जाती है।