पुस्तक चर्चा: विविध वर्णी दोहे
रचनाकार की अनुभूति व्यापक और सार्वभौमिक है इसीलिए परंपरागत छंद में भी वह आधुनिक बोध को वाणी दे सके।
पुस्तक : दोहा द्विशती
कवि: डॉ. शिव ओम अम्बर
प्रकाशक: पांचाल प्रकाशन,
फर्रुखाबाद
मूल्य: फ 300
लघु कलेवर में अर्थ की विराटता को समाहित करने वाला दोहा एक ऐसा छंद है जो आदिकाल से लेकर आज तक के कवियों में समान रूप से प्रिय रहा है। कविता, गीत और हिंदी गजल से साहित्य को समृद्ध करने वाले डॉ. शिव ओम अम्बर ने अपने दोहों के माध्यम से भी समय-समय पर हमारा ध्यान आकर्षित किया है। सद्य:प्रकाशित ‘दोहा द्विशती’ में सामाजिक, आध्यात्मिक, नैतिक और दार्शनिक चिंतन बहुत ही सहज और संवेदनशील तरीके से अभिव्यक्त हुआ है। रचनाकार की अनुभूति व्यापक और सार्वभौमिक है इसीलिए परंपरागत छंद में भी वह आधुनिक बोध को वाणी दे सके।
समकालीन परिदृश्य में नैतिकता और मूल्यों का ह्रास उसकी चिंता का मुख्य विषय है, ‘प्रश्नों को हैं सूलियां मूल्यों को वनवास/ प्रतिभाओं के भाग्य में है निर्जल उपवास।’ इन दोहों में विरस होते मानवीय संबंध, अपमानित होते निर्धनों की पीड़ा है। प्रेम, प्रकृति श्रंगार के विविधवर्णी चित्र हैं तो नैतिकता, आशा और आस्था की हन अभिव्यक्ति भी। कथ्य और शैली में नवीनता है तो अभिव्यंजना का गुण सुधी पाठकों के लिए प्रतिपाद्य है- ‘जब से खिला पड़ोस में सोनजुही का फूल/रातें नागफनी हुईं दिन हो गए बबूल।’
अनेक दोहे हमें अपने भीतर के आलोक को देखने की दृष्टि प्रदान करते हैं, ‘देखो शहरी दृष्टि से है हर व्यक्ति अनन्य/निहित असत् में सत् यहां जड़ता में चैतन्य।’ राष्ट्रीय चेतना, सांस्कृतिक और विश्व मानवता का बोध भी इस कृति को महत्व प्रदान करता है। भाषा सहज प्रेषणीय एवं अलंकृत है। शब्द सौष्ठव एवं अर्थ गौरव में भी दोहे उत्कृष्ट बन पड़े हैं।
डॉ. राकेश शुक्ल