चांद छूना है मुझे..
फº है इन लड़कियों पर अरविंद रंजन महानिदेशक, सीआईएसएफ इससे अच्छी बात क्या हो सकती है कि अब भारत के छोटे-छोटे गांवों-शहरों से लड़कियां फोर्स में आ रही हैं। हम चाहते हैं कि यह सिलसिला और बढ़े, हमारी पब्लिक डीलिंग और बेहतर हो। अन्य सुरक्षा बलों के
फº है इन लड़कियों पर
अरविंद रंजन
महानिदेशक, सीआईएसएफ
इससे अच्छी बात क्या हो सकती है कि अब भारत के छोटे-छोटे गांवों-शहरों से लड़कियां फोर्स में आ रही हैं। हम चाहते हैं कि यह सिलसिला और बढ़े, हमारी पब्लिक डीलिंग और बेहतर हो। अन्य सुरक्षा बलों के मुकाबले देखें तो सीआईएसएफ में लड़कियों की संख्या ज्यादा है। इसकी कई वजहें हैं, मसलन, इन्हें यहां बेहतर वर्क-कल्चर मिलता है, उनके वेलफेयर का खास ख्याल रखा जाता है। यदि हस्बैंड-वाइफ एक ही पेशे में हों तो उन्हें साथ रहने का विकल्प भी आसानी से मिल जाता है। सीआईएसएफ का काम पब्लिक सिक्योरिटी से जुड़ा है। शहरों और खास तौर पर मेट्रो में जिस तरह से अलग-अलग जगह से लोग आते हैं, वे सीआईएसएफ से ज्यादा जुड़ाव महसूस करते हैं तो इसका एक कारण यह भी है कि फोर्स में विभिन्न प्रांतों की लड़कियां शामिल हैं और पब्लिक को सुरक्षा देने और सुरक्षा के प्रति आश्वस्त करने का दमखम है उनमें। गर्व होता है इन लड़कियों पर।
खो जाओ सपनों में
झूमा, उड़ीसा
'पांच वर्ष की थी, जब पापा को पैरालिसिस हो गया था। मुझे उनका प्यार नहीं मिला। बड़ी दीदी थीं, जिन्होंने जीने का हौसला दिया और कुछ कर दिखाने का जज्बा भी। उन्होंने सिखाया है जिंदगी की हर मुश्किल को कैसे आसान बनाया जाता है और कैसे संवारते हैं लोग अपने हाथों अपनी किस्मत!' 21 वर्षीया झूमा के ये बोल एकबारगी भावुक कर जाते हैं, पर अगले ही पल ऐसी लड़कियों पर नाज करने को मजबूर भी करते हैं, जिन्होंने अपने दम पर आगे बढ़ना सीखा है। झूमा याद करती हैं उन दिनों को जब पापा नहीं थे और मां ने कैसे लोगों के कपड़े सिलकर हम बहनों को अपने पैरों पर खड़े होने की सीख दी। बड़ी बहन इनकम टैक्स ऑफिसर हैं और झूमा को भी बड़े सपने देखने के लिए प्रेरित करती रहती हैं। फोर्स या पॉवर की तरफ बचपन से आकर्षित झूमा सीआईएसएफ के अलावा और किसी प्रफेशन में नहीं जाना चाहतीं थीं। 12वीं कक्षा में थीं, जब उनका यह लक्ष्य पूरा हुआ। अब आगे की पढ़ाई भी जॉब में रहते कर रही हैं। हिंदी साहित्य की छात्रा हैं, यह विषय उन्हें हौसला देता है और चलते रहने की सीख भी। वह कहती हैं 'मैं अपनी राह पर चल पड़ी हूं और अपने सपने में खोई हुई हूं। मुझे बस इतना पता है कि जब तक मन में जुनून और हर हाल में आगे बढ़ते जाने का जज्बा नहीं होता, हमारे सपने सच नहीं हो सकते!'
तोड़ दो हर चुप्पी
रेखा चौधरी, मथुरा, यूपी
'दबंगई' के लिए सब जानते थे उन्हें। जब लड़के मुहल्ले की लड़कियों से छेड़खानी करते तो उनका रेखा से बचना नामुमकिन था। सबको पता था कि रेखा कभी खामोश नहीं रहती, हर अन्याय का डटकर सामना करेंगी और सबको इसके लिए प्रेरित भी करेंगी। रेखा का वह अंदाज, वही तेवर आज भी बरकरार है। उन्हें इस बात की बहुत खुशी है कि जो उन्होंने चाहा, वही मिला। पापा पुलिस में थे, इसलिए खून में था 'पुलिसिया' रंग-ढंग, पर वह कमांडो बनकर कुछ नया कर दिखाना चाहती हैं। वह कहती हैं 'बहुत खीझ होती है जब सुनती हूं लड़कियां इसलिए घर से निकल नहीं पातीं, क्योंकि उन्हें डर होता है कि कोई उनके साथ बदतमीजी न कर बैठे..। लड़कियों के खिलाफ जितने भी अन्याय-अपराध होते हैं, उसका एक कारण लड़कियों की चुप्पी भी है। यदि वे आवाज उठाएं, कड़ा विरोध करें, मुंहतोड़ जवाब देने का साहस पैदा करें तो हमलावर हजार बार सोचेगा कोई भी गलत कदम उठाने से पहले!' रेखा आगे कहती हैं 'अभिभावक यदि घर में ही लड़कियों को मन से मजबूत बनाएं, इस दिशा में प्रशिक्षित करें तो स्थितियों को संभालने में मदद मिल सकती है। लड़कियों को बताया जाए कि वे किसी से कमतर नहीं हैं।'
(सीमा झा)