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कहानी: यह प्रेम वह प्रेम

मॉल की बाजारू चमक-दमक वाला प्रेम बहुत ही फीका लगा, उस अनपढ़, गंवार और मेहनतकश औरत द्वारा परिभाषित प्रेम के मुकाबले...

By Babita KashyapEdited By: Published: Mon, 27 Mar 2017 04:44 PM (IST)Updated: Mon, 27 Mar 2017 04:45 PM (IST)
कहानी: यह प्रेम वह प्रेम
कहानी: यह प्रेम वह प्रेम

वैलेंटाइन का खुमार एक दिन बाद भी हवाओं में था, फिजाओं में था। आज भी चौदह फरवरी की तरह मॉल में भीड़भाड़ थी। दिल्ली से सटे वैशाली और वसुंधरा के मॉल आज भी उसी तरह गुलाबी-लाल फूलों और गुब्बारों से भरे थे। हाथों में हाथ लिए न जाने कितने युवा दिल आज भी अपनी भावनाओं का इजहार करने के लिए

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मॉल में टिके हुए थे। तो कुछ लोग अभी भी हां और न की ऊहापोह में थे। इन सब चमक-दमक से परे माला ऑटो का इंतजार कर रही थी। घर में उसका बेटा इंतजार कर रहा होगा!

सुबह से शाम तक ऑफिस और घर के बीच में उसका बेटा पिसा जा रहा था। आलोक तो हमेशा ही रात को दस बजे से पहले नहीं पहुंचता था। उसके लिए तो प्यार केवल आधे घंटे की घटना होती थी। माला के लिए प्यार शायद अभी कहीं दबा हुआ था। माला इस समय ऑटो का इंतजार कर रही थी, मगर इस मॉल के आगे या तो भरे हुए ऑटो आ रहे थे या फिर बड़ी-बड़ी कारें।

'उफ, रोज का ही यह काम है!Ó माला ने अपने मन में मिसमिसाते हुए कहा!

'का हुआ मैडम जी, टंपू न मिला?Ó पीछे से ऑटोवाले ने उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए पूछा।

वैसे तो माला इन नजरों से रोज ही दो चार होती थी, मगर आज उसे बुरी तरह गुस्सा आ गया! वह पॉइंट नोएडा और मोहन नगर के बीच का पॉइंट था। यहां पर रोज ही इतनी ही भीड़ होती थी और ये टेंपोवाले! ये तो सवारियों को इंसान समझते ही नहीं हैं। उनके लिए तो बस दस रुपए की सवारी

ही होती थी। माला इन टेंपो में बैठने से बचती थी, वह नहीं बैठती थी, शेयर्ड ऑटो का इंतजार करती थी। माला के शरीर को ऊपर से नीचे तक अंदर तक चीर देने वाली नजर से एक बार फिर से उसने पीछे की सीट पर इशारा किया, 'मैडम जी, बैठ जाओ, ऑटो न मिलेगा आज! जब जो मिले उसी से काम चलाओ!Ó

माला का मन हुआ कि उसे दो थप्पड़ लगा दे! आखिर हद होती है, मगर उसे इन लोगों के रैकेट का भी पता था। ये सब देखने में जरूर गरीब लगें, मगर संबंधों में अमीर होते हैं। उसे याद है एकदिन एक लड़की ने एक टेंपोवाले को थप्पड़ मार दिया था तो सभी बाकी टेंपोवाले अपने साथी की

तरफ ही मुड़ गए थे। उस दिन का बवाल देखने के बाद माला बहुत डर गई थी और उसे यह भी पता था कि आलोक तो उसे बचाने नहीं आएगा!

जैसे-जैसे समय बढ़ रहा था, माला की चिंता बढ़ती जा रही थी। बेटा अब बेचैन होने लगा होगा! माला को इस बेचैनी में आईलवयू कहता आलोक याद आता था। लव, माला को हंसी आई! कितना भ्रामक शब्द है! ऑटो की आवाज से वह चौंक कर वर्तमान में आई! अब माला

की आंखें मॉल के प्रवेश द्वार पर अटकने लगी थीं। कई लड़कियों ने छोटी ड्रेस भी पहन रखी थी और उनके कमर में हाथ डाले उनके बॉयफ्रेंड बिना किसी डर या संकोच के इधर से उधर सफर कर रहे थे। कुछ जोड़े मॉल में ही चुंबन लीला में लीन थे।

'देख लो, ये हाल है आज की लड़कियों के? न जाने कैसे ये किसी का घर बसाएंगी?Ó माला के बगल में खड़ी हुई औरत ने मॉल के अंदर जाती हुई लड़कियों को देखकर कहा।

'रहने दीजिए न! और जो घर की परवाह करती हैं, उन्हें क्या मिलता है?Ó माला ने उस महिला केअनर्गल हस्तक्षेप का जबाव देते हुए कहा। माला ने कंधे उचकाते हुए अपने आधे घंटे के प्रेम को याद करके कहा।

'जीने दीजिए न उन्हें अपनी जिंदगी, आप और हम कौन होते हैं!Ó माला ने मोबाइल पर समय देखते हुए कहा। अब तो बात उसकी बर्दाश्त से बाहर हो रही थी, उसने सोचा कि थोड़ा आगे जाकर ही किसी ऑटो का इंतजार करे या फिर 

टेंपो से ही चली जाए!

उस मोड़ पर इधर-उधर कहीं से भी कोई गाड़ी आ जाती है। वह मोड़ बहुत ही खतरनाक और तीखा है। न जाने कितनी बार वह भी गिरते-गिरते बची है और उस रोज तो भीड़ भी थी, वह बहुत संभलते हुए आगे बढ़ी। तभी सामने से नोएडा की तरफ जाने वाले टेंपो ने उस सड़क पर जिस

तरह से एंट्री की, 'सेक्टर बासठ, तिरेसठ वाले, दस रुपया सवारीÓ, उससे न केवल माला चौंकी, बल्कि सामने से आ रहा एक प्रेमी युगल भी चौंक गया और लड़की नीचे गिर गई!

उसके हाथों में जो गिफ्ट आदि थे, वे वहीं सड़क पर फैल गए! लड़का इतने वाहनों की भीड़-भाड़ से घबराकर पीछे बैठ गया जबकि लड़की को न केवल चोट आई थी, बल्कि उसकी छोटी ड्रेस फटकर और भी छोटी हो गई थी। वह घबराकर अपने मित्र को देख रही थी, मगर उसे हर तरफ केवल वाहनों की आवाज ही दिख रही थी। उसे अपना वह मित्र कहीं नहीं दिखा, जिसका हाथ पकड़कर शायद उसने कुछ लम्हों को जीया होगा!

'देखा!Ó माला को कोहनी से टोकते हुए उसी महिला ने कहा। 'ये होता है आज का प्यार!

चला गया न! चलिए, हम लोग आगे चलते हैं,

यहां तो भीड़ बढ़ेगी अब!Ó उस महिला ने कहा।

माला अब थक चुकी थी। आलोक का घर देर

से आने का मैसेज उसके मैसेज बॉक्स में झांक

रहा था। माला ने चाहा कि वह उस लड़की को

एक थप्पड़ मारकर कहे कि प्यार-व्यार कुछ नहीं

होता! जैसे ही वे लोग दस कदम आगे बढ़े, एकदम से किसी गाड़ी में ब्रेक लगने की आवाज के साथ एक मानव स्वर भी सुनाई दिया, 'मार डाला!Ó माला ने नजर उठाई! 'उफ, ये आज क्या हो रहा है!Ó उसने झुंझलाते हुए अपने मन से कहा।

माला की आंखों के सामने एक टूटा रिक्शा और

उसका घायल रिक्शेवाला पड़ा था। उसके पैरों में चोट थी, रिक्शा टूट गया था और सामने सफेद स्कोर्पियो से एक जोड़ा उतर रहा था। नोएडा से सटे हुए वैशाली और वसुंधरा इलाके में आईटी बूम के बाद नवधनाढ्यों की संख्या बहुत बढ़ गई है। माला को हालांकि बहुत ही देर हो रही थी, मगर

फिर भी रिक्शेवाले के पैरों से बहते हुए खून और उसके टूटे हुए रिक्शे को देखकर वह आगे कदम बढ़ा न सकी!

'अबे साले, तुझे मरने के लिए मेरी ही गाड़ी मिली, ये गाड़ी में जो खरोंच आई है, उसका खर्चा तेरा बाप देगा क्या?Ó गाड़ी से उतरते ही उस लड़के ने रिक्शेवाले से कहा।

'मालिक, माफी, बहुत भीर हथी, जगह ही नहीं थी, फिर भी मालिक माफी दया दया!Ó वह अपने दर्द को जज्ब करते हुए माफी मांग रहा था।

माला को बहुत गुस्सा आया। उसने तुरंत ही सौ नंबर को फोन लगाया और शिकायत करने के बाद मैदान में कूद पड़ी!

'मैडम, ये आपके मतलब का नहीं है, जाइए आप यहां से?Ó

एक-दो ऑटोवालों ने उसे पीछे करते हुए कहा

'क्यों, मेरे बस का नहीं है! मैंने पुलिस को फोन कर दिया है और जैसे ही पुलिस आएगी, जनाब की सारी हेकड़ी निकल जाएगी!Ó माला ने उसे गुस्से से देखते हुए कहा।

'अरे, काहे मैडम जी! बाउजी की कौन्हू गलती नहीं है! वो तो हमाओ जी बलंस बिगर गाओ।Ó रिक्शेवाले ने माला से हाथ जोड़ते हुए कहा। माला उसका दर्द महसूस कर पा रही थी, मगर चूंकि कोई बड़ा आदमी नहीं गिरा था, तो अस्पताल पहुंचाने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा था। उस

गाड़ीवाले से माला ने कहा, 'उसका रिक्शा टूटा है, आप उसे पैसा दीजिए।Ó

'पैसा और मैं, मैं अठन्नी नहीं दूंगा उसे!Ó स्कोर्पियो वाले ने माला की मांग ठुकराते हुए कहा। धीरे-धीरे भीड़ बढऩे लगी थी और उस गाड़ीवाले पर रिक्शेवाले को दवाई के पैसे और रिक्शे की मरम्मत के पैसे का दबाव बढऩे लगा था। पुलिस

के आते ही बाकी तो सब तितर-बितर हो गए मगर माला ने न डरते हुए पुलिस को सारी बात बता दी!

'माई बाप, माई बाप, जाए छोड़ दओ।Ó पीछे से एक महिला स्वर आया। माला ने एकदम से मुड़कर देखा। सांवले रंग की मझोले कद की सीधे पल्ले की साड़ी पहने करीब बत्तीस बरस की एक औरत उसके पीछे खड़ी थी। उसके माथे पर लाल रंग की बड़ी गोल बिंदी थी और मांग में सिंदूर

भरा था। लाल चूड़ी और सस्ती पायलें भी उसकी खूबसूरती को बढ़ा रही थीं। 'तुम कौन?Ó पुलिस वाले ने पूछा 'हम, जे रमैया के महरारू। साहब, हमें कुछौ न चाहिए!

रमैया ठीक-ठाक है, और का चाहिए! जैसे ही सुनी, वैसे ही जे घोल बनाय के लाए, अब जे घोल लगाय दिएं जा पे, एक ठो टिटनेस का इंजेक्शन होय जाइए, बस जे ठीक!

जाने चोट दई है, बाके पैसन से इलाज न करइबे, जाके बदले में हम दोय घर को काम और पकड़ लिहैं! साहब, जे हमाए बच्चन को बाप है जे, हमाओ सुहाग, हमाओ पियार, बाके खून को सौदा नहीं।Ó और उसने अपने साथ आए बच्चों के साथ मिलकर उसका रिक्शा उठाया और धीरे से उसे दूसरे रिक्शे पर बैठाया। माला के पास आकर उसने हाथ जोड़े 'मैडम जी, आपने बात तो सही कही, मगर आप खुद ही बताओ, जाने तुम्हारे पियार को चोट दई होय, बाके घर को पानी पिय ल्यो तुम? न हम तो न? हम खुद ज्यादा मेहनत

करके जाकी चोट सही कर लैहैं! नमस्ते मैडम!Ó

उस औरत के जाते ही माला एक सोच में पड़ गई? 

यह औरत, अनपढ़, गंवार औरत, कमाने के लिए घर में काम करने वाली औरत, मगर प्रेम की परिभाषा रचने वाली औरत! माला को अब मॉल की चमक-दमक में बसा हुआ प्यार बहुत ही फीका लगने लगा था।

सोनाली मिश

(चर्चित युवा लेखिका)

सी-208, नितिन अपार्टमेंट, शालीमार गार्डेन एक्स, साहिबाबाद-201005


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